धमतरी. छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज का एक सिपाही आज भी जिंदा है. बर्मा, असम और रंगून में जापानी सेना के साथ मिलकर युद्ध लड़ चुके सिपाही मनराखन लाल देवांगन की उम्र 105 साल है. आप जान कर हैरान होंगे कि उन्हें आज तक बुखार तक नहीं हुआ. धमतरी शहर से 5 किलोमीटर दूर है भटगांव और यहां रहते हैं मनराखन लाल देवांगन. मनराखन लाल वैसे तो एक किसान के बेटे थे लेकिन 1942 में वो दोस्तो के साथ रायपुर घूमने गए जहां आजाद हिंद फौज में सबको भर्ती होने की अपील की जा रही थी.
अपने देश के लिए कुछ कर गुजरने की लालसा में उन्होंने फौजी बनने का निर्णय लिया और फॉर्म भर दिया. बाद में उनकी कद, काठी, आंखों की विधिवत जांच की गई और फिजिकली फिट होने पर उस दौर के चौथी पास मनराखन को आजाद हिंद फौज में भर्ती कर लिया गया. पुणे में उन्हें हथियार चलाने और तमाम फौजी ट्रेनिंग मिली. मनराखन लाल की याद्दाश्त अभी भी दुरुस्त है. वो बताते हैं कि ट्रेनिंग के बाद उन्हें 397 कंपनी में बतौर सिपाही रखा गया और देश के कई हिस्सों में तैनाती रही. बाद में उनको कंपनी नम्बर 520 में ट्रांसफर दिया गया.
इसके बाद उनकी कंपनी को देश के पूर्वी सीमा में भेजा गया जहां असम, मणिपुर, बर्मा (रंगून) में तैनाती रही और जापानी फौज के साथ मिलकर उन्होंने जंग भी लड़ी. उस जंग में मनराखन ने 25 दुश्मन फौजियों को मारा भी. इस तरह के कई किस्से आज भी उन्हें याद हैं. मनराखन लाल से आजाद हिंद फौज ने 5 साल का बांड भरवाया था. 1947 में फिरोजपुर जो आज मौजूदा पाकिस्तान में है वहां से उन्होंने रिटायरमेंट लिया. आजाद हिंद फौज में उन्हें 18 रुपये वेतन मिलता था. रिटायरमेंट के समय उन्हें 1000 रुपये दिए गए थे. मनराखन लाल बताते हैं कि उन्हें कभी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से सीधे मिलने का मौका नहीं मिला लेकिन, सेना के मुखिया के तौर पर उनका भाषण जरूर सुना है.
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मनराखन लाल 1947 मेंं अपने गांव लौट गए और खेती बााड़ी करने लग गए. उनके 5 बेटे, दो बेटियां और 9 नाती हुए. 5 में से 3 बेटे अब इस दुनिया मे नही हैं. जीवित दो में एक 72 साल के बेटे को लकवा है लेकिन 21 मार्च 1918 में जन्मे खुद मनराखन लाल की उम्र आज 105 साल की हो चुकी है. उम्र की शतक जमा चुके ये नेताजी के सिपाही आज भी पिच पर डटे हुए हैं और पूरी तरह से स्वस्थ हैं. बिना चश्मे के ये बुजुर्ग अखबार पढ़ लेता है. इन्हें कोई बीमारी नहीं है. वो बताते हैं कि आज तक उन्हें एक बार भी बुखार तक नहीं आया. गांव के शिक्षक दिनेश पाण्डेय बताते हैं कि जब मनराखन लाल फौज से वापस गांव आये तब लोग उन्हें फौज से भागा हुआ भगोड़ा कह कर तंज कसते थे.
कोई मनराखन की बताई हकीकत पर भरोसा नही करता था लेकिन 2012 में जब कुछ पढ़े लिखे लोगों ने उनके रिटायरमेंट के दसतावेज जांचे, संबंधित संस्थाओं से संपर्क किया तब उन्हें सरकार ने पेंशन देना शुरू किया. 2012 से 2019 तक उन्हें 3 हजार पेंशन मिलता था जो अब बढ़ा कर 7 हजार किया गया है. अब तक गुमनामी में जीते रहे मनराखन लाल को 2012 के बाद लोगों ने स्वीकार किया और आज उनका हर कोई सम्मान करता है. आज उनके नाती कैलाश और उनका परिवार भी खुद पर गर्व करता है कि वो… आजाद हिंद फौज के सिपाही के वंशज हैं. मनराखन लाल ने अपनी खेती को अपने बेटों में बंटवारा कर दिया है. उनके नाती आज खेती, और दुकानदारी करते हैं. सभी खुशहाल हैं और गर्व से जी रहे हैं. आज भी इस सिपाही का जज्बा जस का तस जवान है.
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