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West champaran: संतान की चाहत में हर दिन भक्त पहुंचते हैं मां सहोदरा स्थान, इस शक्तिपीठ से नहीं लौटता कोई खाली हाथ!

West champaran: संतान की चाहत में हर दिन भक्त पहुंचते हैं मां सहोदरा स्थान, इस शक्तिपीठ से नहीं लौटता कोई खाली हाथ!

नरकटियागंज से 27 किलोमीटर दूर, नेपाल की सीमा से सटा मां सहोदरा शक्तिपीठ एक ऐसा देवी स्थान है, जो चम्पारण या बिहार में ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई देशों में भी प्रसिद्ध है.

रिपोर्ट-आशीष कुमारपश्चिम चम्पारण. वैसे तो बिहार में एक से बढ़कर एक प्राचीन मंदिर मौजूद है, जहां की अलग-अलग मान्यताएं हैं. हर रोज हजारों श्रद्धालुओं का आगमन मंदिरों की मान्यताओं को और भी ज्यादा प्रगाढ़ करता है. ऐसा ही एक मंदिर पश्चिम चम्पारण जिले के गौनाहा प्रखंड में है, जिसे सहोदरा शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है.

जिला मुख्यालय बेतिया से तकरीबन 75 किलोमीटर दूर ग्रामीण इलाके में बसा यह शक्तिपीठ एक ऐसा मंदिर है, जहां सिर्फ बिहार ही नहीं बल्कि नेपाल, थाईलैंड, कोरिया तथा अन्य कई जगहों से लोग आते हैं. कहा जाता है कि संतान न होने की पीड़ा से जूझ रहे लोगों के लिए यह शक्तिपीठ वरदान की तरह है.

थाईलैंड, जापान, कोरिया से आते हैं श्रद्धालुनरकटियागंज से 27 किलोमीटर दूर, नेपाल की सीमा से सटा मां सहोदरा शक्तिपीठ एक ऐसा देवी स्थान है, जो चम्पारण या बिहार में ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई देशों में भी प्रसिद्ध है. मंदिर के पुजारी जितेंद्र गुरु तथा नरकटियागंज से मां के दर्शन के लिए मंदिर आए दीगरीप कुशवाहा बताते है कि यहां मुंबई, मद्रास, बैंगलोर ही नहीं बल्कि नेपाल, थाईलैंड, कोरिया तथा जापान तक से श्रद्धालु आते हैं. इसका एकमात्र कारण यह है कि मंदिर में विराजमान मां सहोदरा मनोकामना पूर्ति के लिए जानी जाती हैं. मंदिर में आए बेतिया निवासी बब्लू गुप्ता बताते हैं कि संतान न होने की पीड़ा से जूझ रहे लोगों के लिए यह स्थान एक वरदान की तरह है. ऐसा कभी नहीं हुआ की संतान के लिए यहां आए किसी भक्त की मुराद पूरी न हुई हो.

ये है मंदिर का इतिहासबता दें कि भक्तों की मनोकामना पूर्ति के लिए मशहूर इस शक्तिपीठ की स्थापन की कई कहानियां हैं. मंदिर के महंत जितेंद्र गुरु का कहना है कि यह एक शक्तिपीठ है. यहां मां सहोदरा के रूप में भगवान श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा विराजती हैं. पहले मंदिर का नाम सुभद्रा शक्तिपीठ था, जो बाद में सहोदरा हो गया. मंदिर में दर्शन के लिए आए श्रद्धालु दीगरीप कुशवाहा का कहना है कि यह मंदिर बौद्ध कालीन है. भगवान बुद्ध के घर त्याग के पश्चात उनकी पत्नी यशोधरा उन्हें खोजते हुए अपने पुत्र राहुल के साथ यहां तक आ गईं. यहां बंजारों से अपने सतीत्व की रक्षा हेतु उन्होंने मौत की देवी का आह्वान किया तथा अपने सतीत्व की रक्षा की. कालांतर में यही यशोधरा, मां सहोदरा के रूप में प्रसिद्ध हुईं. वास्तविकता चाहे जो भी हो, इतना तो तय है कि मंदिर का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है, तथा यहां की महिमा अपरम्पार है. यहां खुदाई के दौरान चट्टानों पर उकेरी ऐसी दर्जनों मूर्तियां मिलीं जो हजारों वर्ष पुरानी हैं.

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Tags: Hindu Temple

FIRST PUBLISHED : April 02, 2023, 13:56 IST
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