रिपोर्ट : अमित सिंहप्रयागराज. यहां अकबर के किले के अंदर अक्षयवट नाम का एक विशालकाय वृक्ष है. जहां धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कई वर्षों से पूजा-पाठ की जा रही है. खास बात यह है कि यह वृक्ष 300 वर्षों से अधिक पुराना है. कहा जाता है कि अकबर ने इसे समाप्त करने के लिए भरसक प्रयास किया. अपने मातहतों के साथ कई बार इसे कटवाया. इसी क्रम में कई बार इसे जलाने का प्रयास भी किया.लेकिन ईश्वरी शक्ति का ऐसा स्वरूप कि बार-बार वृक्ष उसी स्थान पर पनप आता.
प्रयागराज के पुजारी प्रयाग नाथ गोस्वामी बताते हैं कि इसी वृक्ष के नीचे भगवान राम और सीता वनगमन के दौरान तीन रात तक विश्राम किया था. इस किले के अंदर स्थित पातालपुरी मंदिर में अक्षयवट के अलावा तिरालिस देवी-देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित है.
जब सारी दुनिया हुई जलमग्नपौराणिक कथाओं के अनुसार जब एक ऋषि ने भगवान नारायण से ईश्वरी शक्ति को दिखाने के लिए कहा. तब उन्होंने क्षण भर के लिए पूरे संसार को जलमग्न कर दिया था.फिर इस पानी को गायब भी कर दिया. इस दौरान जब सारी चीजें पानी में समा गई थी तब सिर्फ अक्षय वट का ऊपरी भाग दिखाई दे रहा था.
ये है धार्मिक मान्यताप्रयागराज के पुजारी अरविंद के अनुसार अक्षयवट वृक्ष के पास कामकूप नाम का एक तालाब था. इसी तालाब में स्नान करने से लोगों को मोक्ष की प्राप्ति होती थी. इसे प्राप्त करने के लिए कई राज्यों से लोग यहां आते थे और वृक्ष पर चढ़कर तालाब में छलांग लगाने का प्रयास करते थे. चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भारत भ्रमण के दौरान अपनी किताब में इस तालाब का जिक्र किया है.
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