रिपोर्ट : अमित सिंह
प्रयागराज में माघ मेला इन दिनों प्रगति पर है. ऐसे में साधु संत अपने जपतप को पूर्ण करने की आखिरी पड़ाव पर पहुंच चुके हैं. वैसे तो देशभर से आए संत कई प्रकार के जप-तप करते हैं. लेकिन धूना तपस्या में संतो और साधुओं को विशेष और कठिन परिस्थितियों से होकर गुजरना पड़ता है. इस प्रक्रिया के दौरान उन्हें कभी अग्नि को सिर पर रखना होता है तो कभी गोद में रखना होता है. ना सिर्फ इसे रखना है बल्कि 12- 12 घंटे इसी मुद्रा में बैठे रहना होता है.
खास बात यह है कि यह तप 1 या 2 दिन में नहीं बल्कि 18 वर्षों में पूर्ण होता है जो कि 6 भागों में विभाजित होती है. तब अलग अलग तरीके से संतो द्वारा किया जाता है. माघ मेले के तपस्वी नगर में चल रहे इस अनूठे तपको देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं.
18 साल तक करना होता है तप
अखिल भारतीय श्री पंच तेरहभाई त्यागी अयोध्या के महंत राम संतोष बताते हैं कि साधु यह तपलोक कल्याण के लिए करते हैं. यह तपस्या पूरे 18 साल की होती है. जो भी साधु संत से शुरू करते हैं, उन्हें 18 साल तक से करना होता है. साधु पंचधूना तप, सप्त धूना तब द्वादश धूना तप, कोट धूना और खप्पर धूना तप करते हैं. यह तपस्या अग्नि माता के बीच में बैठकर की जाती है. कभी अग्नि को गोद में रखकर तो कभी मिट्टी के बर्तन में रखकर उसे सिर पर रखकर जापकरते हैं.
अग्नि के घर में बैठकर ढूंढो तपस्यातपस्वी नगर के खाक चौक में 200 से ज्यादा साधु अग्नि के घर में बैठकर ढूंढो तपस्या कर रहे हैं. कुछ संत सिर पर मिट्टी के घड़े में अग्नि रखकर जप कर रहे हैं. जेष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी यानी गंगा दशहरा के दिन तपस्या की पूर्ण होगी. महंत संतोष बताते हैं कि यह दोनों तपस्या प्रतिदिन कम से कम 5 घंटे से लेकर 12 घंटे तक अग्नि के साथ चलती है. उसके बाद साधु अपना अन्य काम करते हैं. माघ मेले में जूना तपस्या का संकल्प लेने वाले साधु-सुबह से शाम तक साधना में लीन रहते हैं. गंगा दशहरा पर हवन पूजन और धोनी की गंगा में विसर्जित करेंगे.
नियम हैबहुत सख्तसाधु बताते हैं कि इस तपस्या का नियम बहुत ही सख्त है. यदि किसी भी स्थिति में तपस्या भंग हो जाती है तो शांति से नए सिरे से अगले वर्ष फिर से प्रारंभ करते हैं. माघ मेले में संगम की पवित्र धरा पर हम लोग यह तपस्या लोक कल्याण के लिए कर रहे हैं.
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