Mind Reading: दुनिया के हर व्यक्ति के दिमाग में एक ही समय पर अलग-अलग विचार चल रहे होते हैं. एक ही घटना को देखने वाले हर व्यक्ति की सोच अलग हो सकती है. कहा भी जाता है कि कई व्यक्ति एक ही तस्वीर को अपने अपने एंगल से अलग तरीके से देखते हैं और उसके बारे में अलग बात करते हैं. इसके बाद भी कुछ लोग अपने सामने आने वाले लोगों के मन में चल रही बात को आसानी से पकड़ लेते हैं. सामान्य तौर पर इसे ही माइंड रीडिंग कहते हैं. बागेश्वर वाले बाबा धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री आजकल इसी बात को लेकर चर्चा में हैं. दावा है कि वह अपने पास आने वाले हर व्यक्ति के दिमाग को पढ़ लेते हैं और उसकी समस्या का समाधान कर देते हैं.
दावा किया जा रहा है कि धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री बिना बताए सामने वाले व्यक्ति के मन में चल रहे सवाल को पढ़ लेते हैं और उसका जवाब दे देते हैं. यही नहीं, वह यह भी बता देते हैं कि उस व्यक्ति के घर में कौन सी किस जगह पर रखी है. उसका मोबाइल नंबर भी बिना बताए ही बता देते हैं. दावा तो यहां तक किया जा रहा है कि वह उसके मन की हर बात बिना बताए ही जान जाते हैं. ऐसे में ये सवाल उठना लाजिमी है कि वह चमत्कार से सब जान लेते हैं या इसके पीछे किसी तरह की साइंस है? क्या वह माइंड रीडिंग के एक्सपर्ट हैं या शानदार मनोविज्ञानी हैं?
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क्या है माइंड रीडिंग?
सबसे पहले समझते हैं कि माइंड रीडिंग क्या है? देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में डिपार्टमेंट ऑफ साइकोलॉजी के हेड डॉ. संतोष कुमार विश्वकर्मा ने बताया कि बिना बताए और बिना किसी फिजिकल इक्वीपमेंट की मदद लिए किसी व्यक्ति के मन में चल रहे विचारों का जान लेना ही माइंड रीडिंग है. इसमें माइंड रीडर सामने बैठे व्यक्ति के दिमाग में चल रहे हर सवाल को पढ़ लेता है और बिना पूछे ही जवाब दे देता है. ऐसे में लोगों को लगता है कि उनके मन को पढ़ने वाला व्यक्ति चमत्कारी है. हालांकि, धीरेंद्र कुमार शास्त्री में मामले दो चीजें हैं. पहली वह चीफ कंप्लेंट के बारे में बताते हैं और दूसरी हिस्ट्री के बारे में बात करते हैं.
कैसे पढ़ा जाता है दिमाग?
साइकोलॉजिस्ट डॉ. संतोष कुमार विश्वकर्मा ने बताया कि इसमें पहला पार्ट है चीफ कंप्लेंट यानी सामने वाला व्यक्ति आपके पास क्या सवाल या समस्या लेकर आया है. माइंड रीडर्स या साइकोलॉजिस्ट इसे आपके व्यक्तित्व, आपकी बॉडी लैंग्वेज से पहचान सकते हैं. वह कहते हैं कि इसे क्यूज एंड क्लूज कहा जाता है. इसमें माइंड रीडर्स सामने बैठे व्यक्ति के पहनावे, अंगूठी, ताबीज, कपड़े, बैठने के तरीके, भाषा, बात करने के लहजे को पकड़ते हैं. उनके मुताबिक, लंबे अनुभव के बाद ज्यादातर मनोविज्ञानी मरीज के सामने आते ही उपचार लिखना शुरू कर देते हैं. फिर बातचीत के आधार पर अपनी प्रिस्क्रिप्शन को पुष्ट कर लेते हैं.
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कैसे पता चलती है हिस्ट्री?
डॉ. संतोष कहते हैं कि कई बार सामने आने वाले व्यक्ति की उम्र के आधार पर ही सवाल तय हो जाता है. अमूमन एक आयु वर्ग की समस्याएं करीब-करीब एक जैसी होती हैं. अब दूसरा पार्ट है हिस्ट्री का. वह कहते हैं कि धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री अगर लोगों के घर में रखे सामान या मोबाइल नंबर भी बता देते हैं तो ये काफी मुश्किल है. दरअसल, उनके सामने बैठा व्यक्ति ये तो बिलकुल नहीं सोच रहा होगा कि उसके घर में कौन सा सामान कहां रखा है. ये उसकी हिस्ट्री है. अमूमन लोग अपनी चीफ कंप्लेंट के साथ ही धर्म गुरुओं के पास पहुंचते हैं. ये ठीक वैसे ही है जैसे आप डॉक्टर के पास जाते हैं तो बहुत जल्दी आपकी समस्या जान लेते हैं लेकिन आप उनको अपनी मेडिकल हिस्ट्री मांगने पर ही बताते हैं.
क्या जुड़ जाते हैं दिमाग?
कार्ल ह्यूम के कॉन्सेप्ट सिन्क्रोनाइजेशन के मुताबिक हमारे दिमाग एकदूसरे से जुड़े हुए होते हैं. हालांकि, किसी व्यक्ति का दिमाग पढ़ने के लिए एक व्यक्ति का दिमाग बहुत ही जाग्रत स्थिति में होना चाहिए. तभी वह दूसरे व्यक्ति के मन में मौजूद चीफ कंप्लेंट के साथ ही हिस्ट्री भी पढ़ सकता है. उदाहरण देते हुए डॉ. संतोष कहते हैं कि जब बच्चे पढ़ने के लिए बाहर चले जाते हैं और किसी चीज को लेकर परेशान होते हैं तो मां को अहसास होना शुरू हो जाता है. इसको साइकोलॉजी में हाउ टू कनेक्ट माइंड के तौर पर देखा जाता है. कई बार माता-पिता को परेशानी होने पर बच्चों को अहसास हो जाता है और वे तुरंत फोन करके हालचाल लेते हैं.
कैसे काम करते हैं माइंड रीडर्स?
माइंड रीडिंग में रीडर पूरी तरह से सचेत और खुले दिमाग से सामने व्यक्ति की भावनाओं को समझने की कोशिश करता है. कुछ साइकोलॉजिस्ट ट्रिक्स का इस्तेमाल कर सामने वाले व्यक्ति का दिमाग पढ़ लेते हैं. इसे सिम्पैथी और इम्पैथी एक्यूरेसी कहते हैं. इससे संकेत मिलते हैं कि सामने वाले व्यक्ति के दिमाग में क्या चल रहा है? माइंड रीडर्स लगातार प्रैक्टिस के चलते आसानी से पता कर लेते हैं कि सामने वाले के दिमाग में क्या सवाल हैं. उनकी एकाग्रता सामान्य लोगों से कई गुना ज्यादा होती है. माइंड रीडिंग में एकाग्रता को सबसे ज्यादा अहम माना जाता है. डॉ. संतोष कहते हैं कि माइंड रीडिंग किसी भी तरह से साइंस नहीं है. ये साइकोलॉजी और ट्रिक के बीच की स्थिति है.
कैसे पता करते हैं नंबर और कलर?
साइकोलॉजिस्ट डॉ. आलोक बताते हैं कि कुछ लोग नंबर ट्रिक, कलर आइडेंटिफिकेशन ट्रिक का इस्तेमाल कर लोगों को चौंका देते हैं. दरअसल, ये लोग एक सवाल भीड़ की तरफ उछालते हैं, जिसका जवाब उनके पास पहले से ही होता है. इसके बाद ये लोगों को नंबर या कलर की पहचान करने के लिए कहते हैं. फिर ये उनके बिना बताए ही उनके मन में आए नंबर या कलर को बताकर चौंका देते हैं. इसे जादूगरों की ट्रिक्स या हाथ की सफाई जैसा मान सकते हैं. ये ना तो साइंस है और ना ही मनोविज्ञान है.
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