Kishwar Naheed Nazms: किश्वर नाहीद (Kishwar Naheed) का जन्म 17 जून 1940 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में हुआ था. ‘नाहिद’ खासतौर पर अपने स्त्री वादी विचारों के लिए मशहूर हैं. उनकी उर्दू शायरी विदेशों में भी प्रकाशित हो चुकी हैं. जानकारी के मुताबिक मुख़्तार सिद्दीक़ी उनके गुरु थे.
पढ़ें, उनकी नज़्म (Nazm) ‘हम गुनहगार औरतें’ और ‘ख़ुदाओं से कह दो’
ये हम गुनहगार औरतें हैंजो अहल-ए-जुब्बा की तमकनत से न रोब खाएँन जान बेचेंन सर झुकाएँन हाथ जोड़ेंये हम गुनहगार औरतें हैंकि जिन के जिस्मों की फ़स्ल बेचें जो लोगवो सरफ़राज़ ठहरेंनियाबत-ए-इम्तियाज़ ठहरेंवो दावर-ए-अहल-ए-साज़ ठहरेंये हम गुनहगार औरतें हैंकि सच का परचम उठा के निकलेंतो झूट से शाहराहें अटी मिले हैंहर एक दहलीज़ पे सज़ाओं की दास्तानें रखी मिले हैंजो बोल सकती थीं वो ज़बानें कटी मिले हैंये हम गुनहगार औरतें हैंकि अब तआक़ुब में रात भी आएतो ये आँखें नहीं बुझेंगीकि अब जो दीवार गिर चुकी हैउसे उठाने की ज़िद न करना!ये हम गुनहगार औरतें हैंजो अहल-ए-जुब्बा की तमकनत से न रोब खाएँन जान बेचेंन सर झुकाएँ न हाथ जोड़ें!
यह भी पढ़ें- Bulleh Shah Kafian: ‘हुण मैं अनहद नाद बजाया…’ पढ़ें, पंजाबी कवि बुल्ले शाह की चुनिंदा काफियां
जिस दिन मुझे मौत आएउस दिन बारिश की वो झड़ी लगेजिसे थमना न आता होलोग बारिश और आँसुओं मेंतमीज़ न कर सकेंजिस दिन मुझे मौत आएइतने फूल ज़मीन पर खिलेंकि किसी और चीज़ पर नज़र न ठहर सकेचराग़ों की लवें दिए छोड़ करमेरे साथ साथ चलेंबातें करती हुईमुस्कुराती हुईजिस दिन मुझे मौत आएउस दिन सारे घोंसलों मेंसारे परिंदों के बच्चों के पर निकल आएँसारी सरगोशियाँ जल-तरंग लगेंऔर सारी सिसकियाँ नुक़रई ज़मज़मे बन जाएँ
यह भी पढ़ें- Rahat Indori Shayari: ‘नए किरदार आते जा रहे हैं…’ पढ़ें राहत इंदौरी के क्लासिक शेर
जिस दिन मुझे मौत आएमौत मेरी इक शर्त मान कर आएपहले जीते-जी मुझ से मुलाक़ात करेमिरे घर-आँगन में मेरे साथ खेलेजीने का मतलब जानेफिर अपनी मन-मानी करेजिस दिन मुझे मौत आएउस दिन सूरज ग़ुरूब होना भूल जाएकि रौशनी को मेरे साथ दफ़्न नहीं होना चाहिए(साभार-रेख़्ता)
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी |
Tags:Literature, Poet