कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया
वो लोग बहुत ख़ुश-क़िस्मत थेजो इश्क़ को काम समझते थेया काम से आशिक़ी करते थेहम जीते-जी मसरूफ़ रहेकुछ इश्क़ किया कुछ काम किया
काम इश्क़ के आड़े आता रहाऔर इश्क़ से काम उलझता रहाफिर आख़िर तंग आ कर हम नेदोनों को अधूरा छोड़ दियाकुछ इश्क़ किया कुछ काम किया।—
बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे
बोल ज़बाँ अब तक तेरी हैतेरा सुत्वाँ जिस्म है तेराबोल कि जाँ अब तक तेरी हैदेख कि आहन-गर की दुकाँ मेंतुंद हैं शोले सुर्ख़ है आहनखुलने लगे क़ुफ़्लों के दहानेफैला हर इक ज़ंजीर का दामनबोल ये थोड़ा वक़्त बहुत हैजिस्म ओ ज़बाँ की मौत से पहलेबोल कि सच ज़िंदा है अब तकबोल जो कुछ कहना है कह ले।—
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