बे-करारी सी बे-करारी हैवस्ल है और फ़िराक तारी है
जो गुजारी न जा सकी हम सेहम ने वो जिंदगी गुजारी है
निघरे क्या हुए कि लोगों परअपना साया भी अब तो भारी है
बिन तुम्हारे कभी नहीं आईक्या मिरी नींद भी तुम्हारी है
आप में कैसे आऊं मैं तुझ बिनसांस जो चल रही है आरी है
उस से कहियो कि दिल की गलियों मेंरात दिन तेरी इंतिजारी है
हिज्र हो या विसाल हो कुछ होहम हैं और उस की यादगारी है
इक महक सम्त-ए-दिल से आई थीमैं ये समझा तिरी सवारी है
हादसों का हिसाब है अपनावर्ना हर आन सब की बारी है
ख़ुश रहे तू कि ज़िंदगी अपनीउम्र भर की उमीद-वारी है।
(जॉन एलिया की शायरी में जीवन और दर्शन की गहरी अभिव्यक्ति है. उनका रचना फलक बहुत व्यापक है. जॉन एलिया बर्बादी को भी एक रचनात्मकता मानते हैं. वे बुरे वक्त को भी अपनी शायरी में ढाल कर एक नया जीवन देते हैं.)
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