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मैथिलीशरण गुप्त की धरतीपुत्रों की दुर्दशा बयां करती कविता- 'किसान'

मैथिलीशरण गुप्त की धरतीपुत्रों की दुर्दशा बयां करती कविता- 'किसान'

इस बार बेमौसम की बारिश ने रबी फसलों को बहुत नुकसान पहुंचाया है. आसमान में घिरे काले बादलों को देखकर किसानों के मुंह लटके हुए हैं. खेतों में खड़ा या कटा गेहूं बारिश और ओले की मार से लगातार खराब हो रहा है. पत्र-पत्रिकाएं किसानों की दुर्दशा की कहानी बयां कर रहे हैं. किसानों के साथ कभी मौसम की तो कभी अव्यवस्था की मार पड़ती ही रहती है. हमारे कवि और साहित्यकारों ने समय-समय पर अपनी रचनाओं के माध्यम से किसानों के हालातों को उठाया है. राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने भी किसान कविता के माध्यम से किसानों की दुर्दशा का वर्णन किया है-


मैथिलीशरण गुप्त ने ‘किसान’ कविता में देश के किसानों की दयनीय स्थिति पर प्रकाश डाला गया है.

मैथिलीशरण गुप्त ने ‘किसान’ कविता में देश के किसानों की दयनीय स्थिति पर प्रकाश डाला गया है.

हेमन्त में बहुधा घनों से पूर्ण रहता व्योम हैपावस निशाओं में तथा हँसता शरद का सोम है

हो जाये अच्छी भी फसल, पर लाभ कृषकों को कहांखाते, खवाई, बीज ऋण से हैं रंगे रक्खे जहां

आता महाजन के यहां वह अन्न सारा अंत मेंअधपेट खाकर फिर उन्हें है कांपना हेमंत में

बरसा रहा है रवि अनल, भूतल तवा सा जल रहाहै चल रहा सन सन पवन, तन से पसीना बह रहा

देखो कृषक शोषित, सुखाकर हल तथापि चला रहेकिस लोभ से इस आंच में, वे निज शरीर जला रहे

घनघोर वर्षा हो रही, है गगन गर्जन कर रहाघर से निकलने को गरज कर, वज्र वर्जन कर रहा

तो भी कृषक मैदान में करते निरंतर काम हैंकिस लोभ से वे आज भी, लेते नहीं विश्राम हैं

बाहर निकलना मौत है, आधी अंधेरी रात हैहै शीत कैसा पड़ रहा, औ’ थरथराता गात है

तो भी कृषक ईंधन जलाकर, खेत पर हैं जागतेयह लाभ कैसा है, न जिसका मोह अब भी त्यागते

सम्प्रति कहां क्या हो रहा है, कुछ न उनको ज्ञान हैहै वायु कैसी चल रही, इसका न कुछ भी ध्यान है

मानो भुवन से भिन्न उनका, दूसरा ही लोक हैशशि सूर्य हैं फिर भी कहीं, उनमें नहीं आलोक है।

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Tags: Hindi Literature, Hindi poetry, Hindi Writer, Literature

FIRST PUBLISHED : April 02, 2023, 13:54 IST
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