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सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविता- 'तुम धूल हो-पैरों से रौंदी हुई धूल'

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविता- 'तुम धूल हो-पैरों से रौंदी हुई धूल'

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने हिंदी साहित्य की तमाम विधाओं- कविता, गीत, नाटक, उपन्यास, कहानी, पत्रकारिता या फिर कोई आलेख, हर विधा में अपनी लेखनी चलाई है. उत्तर प्रदेश की बस्ती से अपना जीवन शुरू करने वाले सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने रचनात्मक की ऐतिहासिक ऊंचाइयों को छुआ है.

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने पेचीदा बातों को कविता के माध्यम से बेहद सहज और साधारण ढंग से कहा है.

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने पेचीदा बातों को कविता के माध्यम से बेहद सहज और साधारण ढंग से कहा है.

एक

तुम धूल हो—पैरों से रौंदी हुई धूल।बेचैन हवा के साथ उठो,आंधी बनउनकी आंखों में पड़ोजिनके पैरों के नीचे हो।

ऐसी कोई जगह नहींजहां तुम पहुंच न सको,ऐसा कोई नहींजो तुम्हें रोक ले।तुम धूल होपैरों में रौंदी हुई धूल,धूल से मिल जाओ।

दो

तुम धूल होजिंदगी की सीलन सेदीमक बनो।

रातों-रातसदियों से बंद इनदीवारों कीखिड़कियांदरवाजेऔर रोशनदान चाल दो।

तुम धूल होज़िंदगी की सीलन से जन्म लोदीमक बनो, आगे बढ़ो।

एक बार रास्ता पहचान लेने परतुम्हें कोई ख़त्म नहीं कर सकता।

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Tags: Hindi Literature, Hindi poetry, Hindi Writer, Literature, Poet

FIRST PUBLISHED : January 26, 2023, 14:49 IST
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