विजय राठौड़
ग्वालियर. महात्मा गांधी ने सत्याग्रह से भारत को अंग्रेजों से आजादी दिलवाई थी. लेकिन जिस बेरहमी से गोलियां दाग कर उनकी हत्या की गई थी, उसकी साजिश के तार मध्य प्रदेश के ग्वालियर से जुड़े हैं. वरिष्ठ पत्रकार देव श्रीमाली ने बताया कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कभी ग्वालियर नहीं आए थे, लेकिन उनकी मौत का नाता जरूर ग्वालियर से है. उन्होंने बताया कि आजादी से पहले से ग्वालियर हिंदू महासभा का बहुत बड़ा गढ़ था. गांधी जी के हत्याकांड में जितने भी लोग शामिल थे, चाहे वो नाथूराम गोडसे हों या करकरे या फिर डॉक्टर परचुरे सभी का ग्वालियर से गहरा नाता था.
डॉक्टर परचुरे से नाथूराम गोडसे की मुलाकात पुणे में हिंदू महासभा के एक कार्यक्रम के दौरान हुई थी. तब से इन दोनों के बीच संपर्क बढ़ गया था. जिस पिस्टल से गांधी जी पर गोली चलाई गई थी उसे ग्वालियर में नाथूराम गोडसे को 50 रुपये में उपलब्ध कराई गई थी.
उन्होंने बताया कि नाथूराम गोडसे उस समय ग्वालियर में नदी गेट क्षेत्र में रहता थ. वहां उसने पिस्टल से निशाना साधने की पूरी रिहर्सल और कार्यक्रम तैयार किया. गोडसे अपने साथियों के साथ यहां से 28 जनवरी, 1948 की रात को पठानकोट से दिल्ली के लिए रवाना हुआ था. 29 तारीख को यह सभी लोग दिल्ली पहुंचे और पूर्व के सभी साथी मिलकर एक स्थान पर एकत्रित हुए. यहां पूरे दिन बैठकर फिर से विचार मंथन हुआ.
घटनाक्रम को किस प्रकार अंजाम देना है इसकी रणनीति तैयार की गई. जिसके परिणामस्वरूप 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे ने दिल्ली के बिड़ला भवन जाकर महात्मा गांधी जब प्रार्थना सभा से उठ रहे थे तो उनके सीने में तीन गोलियां दाग दीं थी. इस हमले में बापू की मृत्यु हो गई थी. भारत के इतिहास में 30 जनवरी को काला दिवस के रूप में याद किया जाता है.
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