रिपोर्ट : सुनील रजक
शिवपुरी. ब्रिटिश शासनकाल में स्वाभिमानी भारतीय श्रमिकों को मौत के घाट उतारने वाली अंग्रेजों की हत्यारिन तोप वर्तमान में मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के अशोक मोहिते नाम के एक व्यक्ति के पास मौजूद है. यह छोटी सी तोप महज चार इंच की है, लेकिन आज भी चालू हालत में है.
अंग्रेजी शासनकाल में इस तोप से उन भारतीय श्रमिकों को मौत के घाट उतारा जाता था जो चाय बागानों में बेगारी खटने से मना कर देते थे. जनरल जेएच व्हीलर के आदेश पर तोप की बत्ती सुलगाते ही गोली सीधे मजदूर के सीने में उतर जाती थी. यह दुनिया की सबसे छोटी तोपों में से एक है. यह आज भी अशोक मोहिते के पास सुरक्षित है. अशोक मोहिते, छत्रपति शिवाजी महाराज के सेनापति रहे हंबाराव मोहिते के छत्री ट्रस्ट के प्रबंधक हैं. खास बात यह है कि मिश्र धातु से बनी चार इंच की यह तोप आज भी चालू हालत में है.
बताया जाता है कि अंग्रेजों के शासनकाल में जब नैनीताल ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करती थी. तब वहां अंग्रेजों ने चाय के बागान लगवाए थे, जिसमें जनरल व्हीलर का विशेष योगदान रहा. उन्हीं के वंशज लिंकन व्हीलर 1948 तक यहां रहे. उन्होंने कई संस्मरण लिखे, इसमें लिंकन ने दादा जेएच व्हीलर का जिक्र करते हुए लिखा था कि उनके चाय और सेब के बागान में जो लोग बेगार करने का विरोध करते थे, उन्हें उनके दादा अपने साथ बैठकर खिलाते-पिलाते थे और फिर कार्यालय में बात करते-करते अपने सिगार से तोप की बत्ती में आग लगाकर मजदूर को सजा-ए-मौत दे देते थे.
ऐतिहासिक महत्व की चीजों को सहेजकर रखने वाले ट्रस्ट के प्रबंधक अशोक मोहिते ने बताया कि यह तोप बीकानेर राजस्थान के तत्कालीन महाराज ने ब्रिटिश जनरल व्हीलर को उपहार स्वरूप दी थी, जिसे बाद में उनके पोते जे व्हीलर ने चाय के बागान में काम करने वाले मजदूरों की मौत की सजा देने के लिए उपयोग किया. मोहिते का दावा है कि दुनिया की सबसे छोटी तोपों में से एक यह तोप 32 बोर की रिवाल्वर से निकली गोली से ज्यादा मारक क्षमता वाली है.
अशोक मोहिते बताते हैं कि उनके दादा हंबीरराव मोहिते छत्रपति शिवाजी के यहां सेनापति थे. 1682 में उनकी मृत्यु औरंगजेब से लड़ते हुए तोप का गोला लगने के कारण हुई थी. इसी कारण उन्हें तोप में विशेष रुचि है. जब जनरल व्हीलर का वंशज लिंकन व्हीलर 1948 में भारत छोड़कर गया तो नैनीताल में लावारिस मकानों पर वहां के लोगों ने आधिपत्य जमा लिया था. इन मकानों में कई ज्ञात-अज्ञात बेशकीमती चीजें रह गई थीं, जिन्हें समय-समय पर बेचते रहते थे. ऐसे में एक नारी से उन्होंने मिश्र धातु की यह तोप खरीद ली थी. मोहिते के अनुसार वह आज भी विशेष अवसरों पर इसे चलाते हैं.
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