नई दिल्ली. समलैंगिक विवाह का विरोध करते हुए अलग-अलग हाईकोर्ट के पूर्व जजों ने कहा कि पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित कुछ समूह हजारों साल पुरानी सामाजिक संस्था को नष्ट करना चाहते हैं. उनलोगों का मानना है कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से भारतीय समाज पर विपरीत असर पड़ेगा. 21 पूर्व जजों ने समलैंगिक विवाह व्यवस्था को आजाद भारत की संस्कृति पर पाश्चात्य सभ्यता को थोपने की कोशिश करार दिया.
उन्होंने कहा, “पश्चिमी देशों में कैंसर की तरह फैल चुके समलैंगिक विवाह को ‘चुनने के अधिकार की स्वतंत्रता’ के नाम पर भारत की न्यायपालिका का दुरुपयोग करके यहां आयात करने की कोशिश हो रही है. अमेरिका जैसे देश में 2019-20 में एचआईवी एड्स के जो मामले सामने आए, उनमें 70 फीसदी समलैंगिक पुरुषों में थे. व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से एचआईवी एड्स के रोगियों में भी बढ़ोतरी होगी.”
पूर्व जजों ने आगे कहा, ‘अध्ययन में ये पाया गया है कि समलैंगिक जोड़ों द्वारा गोद लिए हुए बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है. सेम सेक्स मैरिज को मान्यता देने के बाद मौजूदा गोद लेने और उत्तराधिकार से जुड़े पर्सनल लॉ की परिभाषा ही बदल जायेगी.’
24 मार्च को लिखे गए पत्र में जिन 21 पूर्व जजों के हस्ताक्षर हैं, ये रहे उनके नाम:
1. एसएन झा, पूर्व मुख्य न्यायाधीश, राजस्थान उच्च न्यायालय2. एमएम कुमार, पूर्व मुख्य न्यायाधीश, जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय3. एसएम सोनी, पूर्व न्यायाधीश, गुजरात हाईकोर्ट और लोकायुक्त गुजरात4. नरेंद्र कुमार, पूर्व कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश, राजस्थान उच्च न्यायालय5. एसएन ढींगरा, पूर्व न्यायाधीश, दिल्ली उच्च न्यायालय6. बी शिवशंकर राव, पूर्व न्यायाधीश, तेलंगाना उच्च न्यायालय7. आरएस राठौर, पूर्व न्यायाधीश राजस्थान उच्च न्यायालय8. केके त्रिवेदी, पूर्व न्यायाधीश, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय9. डीके पालीवाल, पूर्व न्यायाधीश, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय10. प्रत्यूष कुमार, पूर्व न्यायाधीश, इलाहाबाद उच्च न्यायालय11. रमेश कुमार मेरठिया, पूर्व न्यायाधीश, झारखंड उच्च न्यायालय12. कर्म चंद पूरी, पूर्व न्यायाधीश, हरियाणा पंजाब उच्च न्यायालय13. राज राहुल गर्ग, पूर्व न्यायाधीश, हरियाणा पंजाब उच्च न्यायालय14. राकेश सक्सेना,पूर्व न्यायाधीश, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय15. बीके दुबे, ,पूर्व न्यायाधीश, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय16. एमसी गर्ग, ,पूर्व न्यायाधीश, दिल्ली उच्च न्यायालय17. राजेश कुमार,पूर्व न्यायाधीश, इलाहाबाद उच्च न्यायालय18. सुनील हाली, पूर्व न्यायाधीश, इलाहाबाद उच्च न्यायालय19. राजीव लोचन, ,पूर्व न्यायाधीश, इलाहाबाद उच्च न्यायालय20. पीएन रवींद्रन, पूर्व न्यायाधीश, केरल उच्च न्यायालय21. लोकपाल सिंह, पूर्व न्यायाधीश, उत्तराखंड उच्च न्यायालय
संविधान पीठ करेगी फैसला
उच्चतम न्यायालय ने बीते 13 मार्च को समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने के अनुरोध वाली याचिकाओं को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेज दिया है. प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला की पीठ ने कहा था कि यह मुद्दा एक ओर संवैधानिक अधिकारों और दूसरी ओर विशेष विवाह अधिनियम सहित विशेष विधायी अधिनियमों से संबंधित है, जिसका एक-दूसरे पर प्रभाव है.
केंद्र ने किया है समलैंगिक विवाह को विरोध
उच्चतम न्यायालय ने मामले को 18 अप्रैल को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है. समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध वाली याचिकाओं का केंद्र ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष विरोध किया है. उसने दावा किया है कि वे (समलैंगिक विवाह को मान्यता देना) पर्सनल लॉ और स्वीकृत सामाजिक मूल्यों के बीच नाजुक संतुलन के ‘पूर्ण विनाश’ का कारण बनेंगे.
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