नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने नियम विरुद्ध किसी को बंदी बनाकर रखने को लेकर बड़ी टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि राज्य की जिम्मेदारी अपराध रोकने और सुरक्षा बनाए रखने की है, लेकिन इसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता बाधित नहीं होनी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि कानूनी प्रक्रिया के बिना किसी को बंदी बनाकर नहीं रखा जाना चाहिए. सीआरपीसी की धारा 167 के अनुसार, अगर जांच एजेंसी हिरासत के दिन से 60 दिनों के भीतर आरोपपत्र दाखिल करने में असफल रहती है तो आरोपी स्वत: जमानत पाने का पात्र होगा. कुछ अपराधों में इस अवधि को बढ़ाकर 90 दिन तक किया जा सकता है.
दण्ड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 167(2) के प्रावधान (ए) में उल्लेखित 60/90 दिनों की डिफॉल्ट जमानत अवधि की गिनती करते हुए हिरासत की तिथि को उसमें जोड़ा जाए या नहीं सुप्रीम कोर्ट ने इस कानूनी प्रश्न पर विचार करते हुए टिप्पणी की है. न्यायमूर्ति के. एम. जोसफ, न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्न की पीठ ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 167 के तहत उल्लेखित 60/90 दिनों की अवधि की गिनती मजिस्ट्रेट द्वारा आरोपी को हिरासत में भेजे जाने के दिन से होगी.
व्यक्तिगत स्वतंत्रता बाधित न हो: पीठ
संविधान पीठ ने कहा, ‘‘इस अदालत का मानना है कि कानूनी प्रक्रिया के बगैर किसी को बंदी बनाकर नहीं रखा जाना चाहिए. राज्य की जिम्मेदारी अपराध रोकने और सुरक्षा बनाए रखने की है, लेकिन इसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता बाधित नहीं होनी चाहिए.’’
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