अमित सिंह
प्रयागराज. सनातन की वैदिक परंपरा कितनी गहरी है, इसे समझना है तो उत्तर प्रदेश के प्रयागराज आइए. यहां डेढ़ हजार से अधिक पंडा हमें अपने पूर्वजों के इतिहास के बारे में बताएंगे. खास बात यह है आधुनिकता के इस युग में आप भले ही देश-विदेश में रह रहे हो. लेकिन, एक बार अगर आप संगम क्षेत्र में किसी भी पंडा से मुलाकात करेंगे और अपना नाम, गांव या फिर अपने पिता, बाबा किसी का भी नाम बताएंगे तो वो आपकी वंशावली के बारे में पूरी जानकारी प्रदान कर देंगे.
इन पंडों के पास कई पीढ़ियों के हस्तलिखित दस्तावेज आज भी मौजूद हैं, जो इसकी प्रामाणिकता और मौलिकता को अधिक बल देते हैं. प्रयागराज के कीडगंज में रहने वाले पीली कोठी वाले पंडा जी ने बताया कि हम बहुत ही वैज्ञानिक तरीके से अपने यजमानों का साक्ष्य (सबूत) रखते हैं. हमारी पांचवी पीढ़ी अब यह कार्य कर रही है. यानी पांच पीढ़ियों से लगातार हम इस कार्य में अग्रसर हैं.
हर पंडा के अपने-अपने क्षेत्र
पंडा जी ने बताया कि प्रयागराज में डेढ़ हजार से अधिक पंडा हैं. सहमति के आधार पर हर पंडा के अपने-अपने कार्यक्षेत्र विभाजित हैं. जैसे किसी पंडा के पास पांच जिले हैं या किसी के पास सात जिले हैं, तीन जिले हैं. यह उनकी यजमान संग्रहण के ऊपर निर्भर होता है. इसके लिए वह अल्फाबेटिकल ऑर्डर में प्रदेश, जिलेवार गांव आदि के डेटा रखते हैं.
उन्होंने कहा कि वर्णमाला के अनुसार हम नाम को लिखते हैं. आसान भाषा में समझे तो जैसे छोटा अ से आने वाले गांव, बड़ा आ से आने वाले गांव. इस प्रकार ज्ञ वर्णमाला तक के गांव, जिले व देश का नाम अंकित किया जाता है. इससे हमें अपने यजमानों की जानकारी नोट करने में, और उन्हें दिखाने में सुविधा होती है. इसलिए हम अल्फाबेटिकल ऑर्डर में सब संग्रहित करते हैं.
यजमानों के लिए पूरी व्यवस्था
पंडित जी ने आगे बताया कि माघ मेले में संगम स्नान करने वाले यजमानों के लिए हम पूरी व्यवस्था देते हैं. वो कहां रुकेंगे, कितने दिन रुकेंगे, क्या भोजन करेंगे, इत्यादि हर प्रकार की सुविधाओं को हम उन्हें उपलब्ध करवाते हैं. अंत में यजमान प्रसन्न होकर अपनी शक्ति के अनुसार हमें दान-दक्षिणा प्रदान करते हैं जिससे कि हमारा जीविकोपार्जन चलता है. इसमें किसी भी प्रकार की जोर-जबरदस्ती नहीं होती है. न ही कोई विवाद होता है.
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