ग्रेटर नोएडा. ग्रेटर नोएडा (Greater Noida) स्थित शिव नाडर यूनिवर्सिटी (Shiv Nadar University) के वैज्ञानिकों ने कम कीमत वाली एक ऐसी स्याही (Ink) तैयार की है, जो जाली नोटों (Fake Currency) की पहचान करने में मदद कर सकती है. इसका उपयोग आधिकारिक दस्तावेजों और रोगों का पता लगाने के लिए भी किया जा सकता है.
शोधार्थियों के मुताबिक, यह नई स्याही, मौजूदा स्याही की तुलना में बेहतर सुरक्षा विशेषताओं वाली है. मौजूदा स्याही अधिक महंगी है. इस नई स्याही के बारे में जर्नल ऑफ फिजिक्स केमिस्ट्री सी में विस्तृत जानकारी दी गई है. उन्होंने बताया कि नई स्याही का इस्तेमाल सुरक्षा चिह्नों, आपात मार्ग चिह्नों, यातायात संकेत चिह्नों के अलावा चिकित्सा क्षेत्र में रोगों का पता लगाने के लिए कुछ विशेष जांचों में किया जा सकता है.
शिव नाडर यूनिवर्सिटी के प्राध्यापक देबदास रे ने कहा, ‘‘हमारी सफेद पृष्ठभूमि वाली सुरक्षा स्याही सस्ती, जैविक संघटकों से बनाई गई है, जिनका इस्तेमाल सूरज की रोशनी में किया जा सकता है. दरअसल, वे संघटक पराबैंगनी किरणों (Ultraviolet Light) के संपर्क में आने पर सफेद रंग में चमकते हैं. यह एकल संघटक वाली सुरक्षा स्याही बहु संघटक वाली सुरक्षा स्याहियों की तुलना में कहीं अधिक टिकाऊ होती हैं और विभिन्न पृष्ठभूमियों के तहत काम करती है.’’
नई स्याही को तैयार करने में लगता है सिर्फ 45 मिनट का वक्त
शोधार्थियों ने कहा कि इस नई स्याही को तैयार करने में सिर्फ 45 मिनट का वक्त लगता है और इस पर प्रति ग्राम 1,000 रुपये की लागत आती है. इस स्याही से दस्तावेजों पर कोई भी आकृति जैसे कि चिह्न, तस्वीरें, बार कोड आदि उकेरे जा सकते हैं, ताकि अतिरिक्त सुरक्षा उपलब्ध कराई जा सके.
पॉलीमर की मदद से तैयार की गई नई स्याही
इस स्याही के इस्तेमाल के बाद दस्तावेजों पर उकेरे गए चिह्नों को देखने के लिए दस्तावेजों को पराबैंगनी (यूवी) प्रकाश के संपर्क में लाने की जरूरत होती है. नई स्याही का निर्माण वाणिज्यिक रूप से सस्ते पॉलीमर की मदद से किया गया है, जिसे पोलीविनाइल अल्कोहॉल के नाम से जाना जाता है.
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