रिपोर्ट – निखिल त्यागी
सहारनपुर. उत्तर प्रदेश का सहारनपुर जिला हर दौर में सांप्रदायिक सौहार्द का गवाह रहा है. देश में कहीं पर भी कैसे भी हालात पैदा हुए हो सहारनपुर जनपद में शांति और सौहार्द बना रहा है. इसका श्रेय शहर की दो महान हस्तियों बाबा लाल दास और हाजी शाह कमाल को दिया जाता है. हिंदू मुस्लिम एकता के प्रतीक बाबा लाल दास और हाजी शाह कमाल की दोस्ती के किस्से देश भर में मशहूर हैं.बाबा लाल दास और हाजी शाह कमाल के बीच गहरी दोस्ती थी.
बाबा लाल दास रोज सुबह सूर्य उदय से पहले हरिद्वार जाकर गंगा स्नान कर लौट आते थे. एक दिन हाजी शाह कमाल ने बाबा लालदास से पूछा. आप रोज गंगा नहाने हरिद्वार जाते हो. क्या गंगा आपके लिए यहां नहीं आ सकती. हाजी शाह के सवाल पर बाबा मोन रहे और अगले दिन जब बाबा गंगा स्नान के लिए गए तब बाबा ने मां गंगा से प्रार्थना कर कहा. हे मां गंगा अगर मैं आपका सच्चा भक्त हूं और आप मुझ पर कृपा करती हैं तो कल मेरी कुटिया पर आकर दर्शन देना. मैं आपकी प्रतीक्षा करूंगा. बाबा लाल दास यह प्रार्थना करके अपना लोटा और सोटा गंगा की धारा में छोड़ आए.
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मां गंगा को अपने द्वार बुलायाबाबा लाल दास की भक्ति से खुश होकर मां गंगा सहारनपुर में शकलापुरी मंदिर के निकट भूगर्भ से प्रकट होकर उस जलस्य तक आ पहुंची. जिसके पास में ही बाबा लाल दास की कुटिया थी. जिस लौटे और सोट्टे को बाबा हरिद्वार में गंगा की धारा में छोड़ आए थे. वहीं लोटा और सोटा बाबा की कुटिया के पास बहता हुआ आ पहुंचा. जब बाबा लाल दास की ख्याति दूर-दूर फैलने लगी थी. तब मुगल सम्राट ने अपने सिद्ध फकीर हाजी शाह कमाल को सही बात पता करने के लिए बाबा की कुटिया पर जाने के लिए कहा.
दोनों के बीच गजब का दोस्तीहाजी शाह कमाल ने कुटिया पर जाकर बाबा को कहा कि बाबा मुझे प्यास लगी है. कृपया मुझे पानी पिला कर मेरी प्यास बुझा दीजिए. बाबा अपने कमंडल से हाजी शाह कमाल को पानी पिलाने लगे. हाजी शाह कमाल पानी पीते रहे और बाबा पानी पिलाते रहे. ना ही बाबा के कमंडल का पानी खत्म हुआ और ना ही हाजी शाह कमाल की प्यास बुझी. तभी दोनों ने एक दूसरे को पहचान लिया और हाजी शाह कमाल ने बाबा की कुटिया के पास ही अपनी गद्दी लगा ली. वहीं रहना शुरू कर दिया. यही से दोनों की दोस्ती की शुरुआत हुई. जो आज भी सहारनपुर के लिए दोस्ती की एक बड़ी मिसाल मानी जाती है.
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