एक हंगामे पे मौक़ूफ़ है घर की रौनक़ नौहा-ए-ग़म ही सही नग़्मा-ए-शादी न सही- मिर्ज़ा ग़ालिब
उट्ठी है जब से दिल में मिरे इश्क़ की तरंग शादी ओ ग़म हैं आगे मिरे दोनों एक रंग- शाह आसिम
अब आया ध्यान ऐ आराम-ए-जाँ इस ना-मुरादी में कफ़न देना तुम्हें भूले थे हम अस्बाब-ए-शादी में- मीर तक़ी मीर
मैं उस को देख के चुप था उसी की शादी में मज़ा तो सारा इसी रस्म के निबाह में था- मुनीर नियाज़ी
ये रोज़-मर्रा के कुछ वाक़िआत-ए-शादी-ओ-ग़म मिरे ख़ुदा यही इंसाँ की ज़िंदगानी है- अब्दुल हमीद अदम
इस तअल्लुक़ में नहीं मुमकिन तलाक़ ये मोहब्बत है कोई शादी नहीं- अनवर शऊर (साभार- रेख़्ता)