इस कोरोना वायरस (Coronavirus) की लड़ाई में भारत ने बहुत सावधानी रखी है कि बीमारी को देश में फैलने से रोका जाये. इस महामारी को फैलने से और लोगों को बीमारी से बचाने का पहला सिद्धांत है कि जो व्यक्ति जहां है वहीं पर रहे. इस गंभीर बीमारी के बीच वैसे तो लोगों को यात्रा करनी ही नहीं चाहिए. ऐसी परिस्थिति में क्या यह उचित होगा कि सरकार लोगों की यात्रा को प्रोत्साहन दे ? देशभर के कई गांवों ने अपने आप को बंद कर रखा है, तो कई गांव लोगों को अंदर नहीं आने दे रहे हैं. और अगर कोई पहुंच जाता है तो उनको गांव के बाहर क्वारंनटाइन (Quarantine) में रख रहे हैं. अगर ये बीमारी गांवों में पहुंच जाये तो लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाना असंभव हो जायेगा और राज्य सरकारों की व्यवस्था चरमरा जाएगी.
रोजगार का इंतजाम का होगी बड़ी चुनौती
लॉकडाउन 3 में थोड़ी आर्थिक गतिविधियां भी शुरू हो गयी हैं. ऐसे में बहुत बड़ी संख्या में मजदूरों की वापसी भी किसी भी राज्य सरकार और उद्य़ोग चलाने वालों को भी मंजूर नहीं होगी. अब थोड़ी आर्थिक गतिविधियां शुरू हुई हैं तो धीरे धीरे इन्हीं आप्रवासी मजदूरों की जिंदगी में स्थिरता और उद्य़ोग धंधों में भी तेजी आ जाएगी, लेकिन गांवों में पहुंच रहे इन मजदूरों से वहां की अर्थवय्वस्था पर असर जरूर पडेगा, जबकि जो लोग गांव पहुंचेंगे उनके पास कमाई के साधन भी नहीं होंगे. सरकार ने लॉकडाउन शुरू होने के बाद करोड़ों गरीब परिवारों के खाते में सीधे पैसे जमा कराएं हैं. सरकार आने वाले में दिनों में लगातार गरीबों के खातों में पैसा जमा कराने की योजना पर काम भी कर रही है, लेकिन चिंता यही है कि ज्यादा लोग अपने गांवों की ओर नहीं निकल पड़े, फिर उनके रोजगार का इंतजाम कहां से हो पाएगा.
श्रमिक स्पेशल ट्रेन में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन
इस सारी प्रक्रिया में वास्तव में भारतीय रेल की कोई भूमिका नहीं है, जो सरकारें लोगों को भेजना चाहती हैं और जो सरकारें अपने श्रमिकों को लाना चाहती हैं उन दोनों को भारतीय रेल उनकी इच्छानुसार मात्र एक सेवा प्रदान कर रहा है. पूरा देश जानता है कि इस लॉकडाउन के बीच हवाई तथा रेल सेवाएं आम यात्रियों के लिए बंद हैं. यह श्रमिक स्पेशल ट्रेनें सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए यानी लगभग 60% यात्री एक ट्रेन में, रास्ते में भोजन तथा पानी की व्यवस्था, सुरक्षा आदि के साथ चलाई जा रही हैं तथा वापसी में खाली ट्रेने लाई जा रही हैं. सामान्य दिनों में भी भारतीय रेल यात्रियों को यात्रा करने पर लगभग 50% सब्सिडी देती है. इन सबको ध्यान में रखकर मात्र 15-20% खर्च रेलवे भेजने वाले राज्य सरकारों से ले रही है और टिकट राज्य सरकारों को दिया जा रहा है. भारतीय रेल किसी भी प्रवासी को न तो टिकट बेच रहा है और न ही उनसे किसी प्रकार का संपर्क कर रहा है. यह इसलिये भी ज़रूरी है कि पूरी प्रक्रिया पर नियंत्रण रहे और राज्य सरकारें सुनिश्चित करें कि सिर्फ ज़रूरतमंद लोग ही इन स्पेशल ट्रेनों में यात्रा करें. ऐसा न किया जाये तो बेकाबू भीड़ इकट्ठी हो सकती है. उन पर नियंत्रण और सुरक्षा रखना असंभव होगा. उपर से रेलवे पर जो आर्थिक बोझ पडेगा सो अलग ही चिंता का विषय है सरकार के लिए.
अगर ये निःशुल्क होती तो
अगर ये सुविधा निःशुल्क होती तो नियंत्रण के बिना सभी लोग रेलवे स्टेशन पहुंच जाते, ट्रेनों में बड़ी संख्या में घुसकर लोग बिना सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किए बिना असावधानीपूर्वक यात्रा करते. किसी भी राज्य के लिए स्टेशनों पर भगदड़ को नियंत्रित करना असंभव हो जाता. इस स्थिति में राज्य सरकारों के लिए ये सुनिश्चित करना भी मुश्किल हो जाता कि वास्तव में इन ट्रेनों में प्रवासी मजदूर ही यात्रा कर रहे हैं. पूरी प्रक्रिया नियंत्रण से चले और मुसीबत में फंसे लोगों को उनके गांव तक पहुंचाया जा सके इसलिए जरूरी है कि यात्रा पर अंकुश और अनुशासन रहे. अभी तक भारतीय रेल ने 34 श्रमिक स्पेशल ट्रेन विभिन्न राज्यों से चलाई हैं और यह प्रक्रिया कोरोना वायरस महामारी को देखते हुए सुचारु रूप से चलाई है और पूरी सावधानी रखी है जिसके लिए पूरा नियंत्रण रखना अति आवश्यक है.
सरकारी सूत्र बताते हैं कि अब तक 34 स्पेशल ट्रेने चल चुकी हैं बिना किसी शोर शराबे के. हजारों मजदूर और छात्र घर पहुंचा दिए गए हैं. राज्य सरकारें ही आपस में मिल कर तय कर रही हैं और रेलवे सुविधा प्रदान कर रहा है. और ऐसे में सरकारी सूत्रों का मानना है कि कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी का बयान आप्रवासी मजदूरों में भ्रम फैलाएगा और साथ ही अफरा तफरी भी बढ़ेगी.
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कोरोनाकाल में चुनाव: कितनी बदल जाएगी तस्वीर, बिहार लेगा आयोग की अग्निपरीक्षा!ब्लॉगर के बारे मेंअमिताभ सिन्हा News18 India के एक्जिक्यूटिव एडिटर हैं. प्रिंट और टीवी पत्रकारिता में पच्चीस साल से ज्यादा का अनुभव है. पटना 'टाइम्स ऑफ इंडिया' से करियर की शुरुआत की और 'आज तक' में तकरीबन 14 साल तक रिपोर्टिंग की. सात साल से नेटवर्क 18 से जुड़े हुए हैं. हिंदी और अंगरेजी भाषाओं में समान अधिकार से लिखने वाले अमिताभ सिंहा ने देश -विदेश के बहुत से महत्वपूर्ण आयोजनों और घटनाओं की रिपोर्टिंग की है. संसदीय पत्रकारिता का लंबा अनुभव है, साथ ही सरकार की नीतियों और योजनाओं पर खास पकड़ रखते हैं. News18 की हिंदी और अंगरेजी दोनों भाषाओं की वेबसाइट पर लगातार लिखते रहते हैं. उच्च शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय से प्राप्त की है.
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