कोरोना संकट (Corona Crisis) के बीच चुनाव आयोग (Election Commision) के सामने पहली चुनौती महाराष्ट्र (Maharashtra) में विधान परिषद चुनाव और उसके बाद अलग-अलग राज्यों में राज्यसभा चुनाव (Rajyasabha Election) कराने की है, लेकिन उसकी असली अग्निपरीक्षा बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembley Elections) में होनी है. ऐसा इसलिए क्योंकि विधान परिषद और राज्यसभा के चुनावों में मतदाताओं की संख्या सीमित होती है, जबकि बिहार (Bihar) जैसे राज्य में हर विधानसभा में लाखों वोटर हैं.
ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर कोरोना संकट के बीच या उसके बाद होने वाले पहले चुनाव की तस्वीर कैसी होगी. चुनावी रैलियां होंगी या नहीं. और होंगी तो कैसे होंगी. नेता अपने वोटरों से जनसंपर्क करेगें या सिर्फ मैसेज पर वोट मांगेंगे और अगर जनसंपर्क करेंगे तो कैसे! उसके लिए क्या रास्ता निकलेगा! क्या चुनाव में वैसे ही वादे होंगे जो पहले होते थे! क्या इस चुनाव में भी पैसे और गिफ्ट बांटे जाएंगे! सवाल कई हैं और सबसे बड़ा सवाल यह कि क्या देश का चुनाव आयोग इस माहौल में चुनाव कराने के लिए तैयार है!
चुनाव आयोग के सामने चुनौतियां
कोरोना के बाद सबसे पहले बड़ा चुनाव बिहार में होना है. 7 करोड़ से ज्यादा मतदाताओं वाले इस राज्य में कोरोना के बाद या कोरोना संकट के बीच चुनाव कराना चुनाव आयोग के लिए सबसे बड़ी चुनौती है, क्योंकि बिहार की गिनती पिछड़े राज्यों में होती है और यहां तकनीक का इस्तेमाल करने वाले भी बहुत कम हैं. अब तक चुनाव आयोग लोगों को मतदान पर्ची तक उपलब्ध कराता रहा है. यहां आयोग की सबसे बड़ी चिंता ईवीएम को लेकर होनी चाहिए, क्योंकि ईवीएम में एक ही बटन सैकड़ों बार दबाया जाता है और हर वोटर के पहले उसे सेनेटाइज करना भी संभव नहीं है. ऐसे में चुनाव आयोग के सामने चुनाव से पहले नए विकल्प की तलाश बड़ी चुनौती होगा. इसी तरह एक ही बोतल की स्याही से हर मतदाता की उंगली पर निशान लगया जाता है. कोरोना के इस दौर में ये भी संभव नहीं है. लगातार मतदान प्रतिशत बढ़ाने की कोशिश कर रहे चुनाव आयोग के सामने इस बार मतदान प्रतिशत को कायम रखना भी बड़ी चुनौती होगा.
राजनीतिक दलों के सामने भी बड़ी चुनौती
ऐसा नहीं है कि चुनौती सिर्फ चुनाव आयोग के सामने है. चुनौतियां राजनीतिक पार्टियां और उम्मीदवारों के सामने भी रहेंगी. बिहार जैसे राज्य में जहां रैलियों का ख़ासा महत्व है, ऐसे में पार्टियां अपनी राजनीतिक रैलियां कैसे करेंगी. नामांकन से लेकर चुनाव प्रचार तक भीड़ के सहारे अपनी ताकत दिखाने वाले नेता कैसे जनता तक अपनी बात पहुंचा पाएंगे. क्योंकि बिना प्रचार चुनाव की बात ही बिहार की राजनीतिक में बेमानी है. उम्मीदवारों के सामने चुनौती है कि पैर छूकर आशीर्वाद लेने की राजनीति में दो गज से नमस्ते करने पर क्या जनता का आशीर्वाद मिलेगा. चुनाव आयोग की रोक के बाद भी हर चुनाव में लाखों-करोड़ों का उपहार बांटने वाले उम्मीदवार मतदाताओं तक कैसे पहुंचेंगे.
चुनाव में बढ़ेगा तकनीक और सोशल मीडिया का इस्तेमाल
जानकारों की मानें, तो कोरोना के संकट के इस दौर में तकनीक का इस्तेमाल बढ़ेगा, क्योंकि मतदाताओं तक पहुंचने का सहारा अब तकनीक ही होगी. साथ ही चुनाव आयोग भी तकनीक के सहारे ही कोरोना से लड़ने की कोशिश करेगा. कोरोना के दौर में होने वाले चुनाव में राजनीतिक दल और उम्मीदवार सोशल मीडिया पर ज्यादा जोर लगाएंगे. कुछ जानकारों का मानना है कि कोरोना के बाद होने वाले चुनाव में अब डीडी के साथ साथ अन्य चैनलों पर भी अगर राजनीतिक दलों को स्लॉट दिया जाए तो इससे इनकार नहीं किया जा सकता. साथ है मेसेज, प्री-रिकॉर्डेड कॉल, जैसी तकनीक जो पहले इस्तेमाल होती थी उसमें भी अब बढ़ोतरी होगी. यानी इस चुनाव में अब तक हुए चुनावों से ज्यादा तकनीक का इस्तेमाल होगा.
क्या देश में हो सकती हैं ऑनलाइन वोटिंग
जब प्रचार से लेकर मतदान तक हर जगह कोरोना का खौफ है, तो ऐसे में सवाल उठता है कि क्या देश में आनलाइन वोटिंग कराई जा सकती है. क्योंकि दुनिया के कई देशों में इसकी व्यवस्था और भारत में भी समय समय पर इसकी मांग होती रही है. ऐसे में क्या वर्तमान कोरोना संकट ही ऑनलाइन चुनाव कराने के लिए सही समय है. इसके लिए हमने बात की पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त नसीम जैदी से. नसीम जैदी का मानना है कि देश फिलहाल ई-वोटिंग के लिए तैयार नहीं है, क्योंकि भारत की जनता और देश का चुनाव आयोग फिलहाल इसके लिए तैयार नहीं हैं.

पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त नसीम जैदी
ऐसे हो सकता है बिहार चुनाव
नसीम जैदी मानते हैं कि ऑनलाइन चुनाव कराना भले ही संभव नहीं हो, लेकिन कोरोना संकट में चुनाव कराना असंभव भी नहीं है, लेकिन थोड़ा मुश्किल जरूर है. नसीम जैदी का मानना है कि चुनाव आयोग दक्षिण कोरिया में कोरोना के बाद हुए चुनाव के अनुभवों से कुछ सहारा ले सकता है. उनका कहना है कि इस बार चुनाव आयोग को अपनी तैयारियों में गृह मंत्रालय के साथ-साथ स्वास्थ्य मंत्रालय को भी शामिल करना पड़ेगा और अभी से ही एक टास्क फोर्स बनाकर इसकी तैयारी शुरू करनी पड़ेगी, क्योंकि बिहार चुनावों के लिए अब वक्त नहीं बचा है.
आमतौर पर चुनाव आयोग 5-6 महीने पहले चुनाव की तैयारी शुरू कर देता है. इस पर तो परिस्थितियां पहले से अलग हैं. पूर्व सीईसी का कहना है कि चुनाव आयोग को कोविड-19 के लिए जारी गाइडलाइन के अनुसार अभी से ही पूरी चुनाव प्रक्रिया जिसमें चुनाव प्रचार, नामांकन, मतदानकर्मियों का प्रशिक्षण, मतदान और मतों की गिनती सहित अन्य प्रक्रियाएं शामिल हैं, के लिए अभी से गाइडलाइन तैयार करनी शुरू कर देना चाहिए. ताकि समय रहते राजनीतिक पार्टियों, उम्मीदवारों, मतदानकर्मियों और वोटरों को तैयार किया जा सके.
ब्लॉगर के बारे मेंअनिल राय भारत के प्रतिष्ठित युवा पत्रकार हैं, जिन्हें इस क्षेत्र में 18 साल से ज्यादा का अनुभव है. अनिल राय ने ब्रॉडकास्ट मीडिया और डिजिटल मीडिया के कई प्रतिष्ठित संस्थानों में कार्य किया है. अनिल राय ने अपना करियर हिंदुस्तान समाचार पत्र से शुरू किया था और उसके बाद 2004 में वह सहारा इंडिया से जुड़ गए थे. सहारा में आपने करीब 10 वर्षों तक विभिन्न पदों पर कार्य किया और फिर समय उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड में चैनल प्रमुख नियुक्त हुए. इसके साथ ही वह न्यूज़ वर्ल्ड इंडिया में तीन वर्ष तक मैनेजिंग एडिटर रहे हैं. फिलहाल आप न्यूज़ 18 हिंदी में एडिटर (स्पेशल प्रोजेक्ट) के तौर पर कार्य कर रहे हैं.
और भी पढ़ें