राजनीति में मोतीलाल वोरा (Motilal Vora) का चेहरा आम सहमति का चेहरा माना जाता था. जबकि वह अपनी जीविका के लिए क्या करते थे, इस बारे में अलग-अलग बातें चलती रही हैं. जब वे मुख्यमंत्री बने तो कई लोग यह भी दावा करते थे कि वे बस कंडक्टर थे. वैसे मोतीलाल वोरा की पहचान पत्रकार के रूप में भी थी.
Source: News18Hindi Last updated on: December 21, 2020, 8:34 pm IST
शेयर करें:
नेशनल हेराल्ड मामला : निधन के बाद मोतीलाल वोरा के खिलाफ कार्यवाही रद्द
वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ में अलग राज्य बन जाने से पहले तक मध्य प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में मोतीलाल वोरा का चेहरा आम सहमति का चेहरा माना जाता था. अविभाजित मध्य प्रदेश की राजनीति में वे अर्जुन सिंह से विरोध के चलते ही माधवराव सिंधिया के निकट माने जाने लगे थे. दोनों नेताओं की जोड़ी मोती-माधव एक्सप्रेस के नाम से मशहूर थी. माधवराव सिंधिया उन दिनों केन्द्र में रेल राज्यमंत्री थे. महत्वाकांक्षाी नेता न होने का लाभ वोरा को हमेशा मिला और वे दो बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री और उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रहे. मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ के अलावा उत्तर प्रदेश में भी उन्हें आम आदमी का चेहरा ही माना जाता था.
आम आदमी के लिए खोले थे सीएम और गर्वनर हाउस के दरवाजे
मोतीलाल वोरा मई 1993 में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बने थे. इससे पहले वे दो बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री और एक बार केन्द्र में स्वास्थ्य मंत्री रह चुके थे. उन्होंने सीएम हाउस और गर्वनर हाउस दोनों के दरवाजे आम आदमी के लिए खुले रखते थे. मध्य प्रदेश में वे पहली बार 1985 में राज्य के मुख्यमंत्री बने थे. अर्जुन सिंह को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने राज्यपाल बनाकर पंजाब भेज दिया था. मोतीलाल वोरा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे. अर्जुन सिंह ने ही उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का प्रस्ताव राजीव गांधी को दिया था. वोरा, छत्तीसगढ़ की दुर्ग विधानसभा सीट से चुनकर आते थे और वे जमीन से जुड़े नेता माने जाते थे. किसी पर नाराज न होना और किसी को नाराज न करना उनकी आदत का हिस्सा था. सुबह से शाम तक वे लोग से मेल-मुलाकात में व्यस्त रहते थे. कई बार तो सरकारी बैठक करना भी उनके लिए मुश्किल हो जाता था. अस्सी के दशक में अर्जुन सिंह सबसे ताकतवर राजनेता के तौर पर उभरे थे.
मोतीलाल वोरा की भलमनसाहत को खडांऊ राज्य के तौर पर स्थापित करने की कोशिश अर्जुन सिंह समर्थकों ने की. वोरा का कोई भी गॉडफादर कांग्रेस की राजनीति में नहीं था. माधवराव सिंधिया केन्द्र में रेल राज्यमंत्री थे. राजीव गांधी के नजदीक भी थे. वोरा ने सिंधिया से अपने रिश्ते आगे बढ़ाए और अपने आपको मजबूत कर लिया. पंजाब का मिशन पूरा होने के बाद अर्जुन सिंह को एक बार फिर मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला. वोरा को केन्द्र में स्वास्थ्य मंत्री बना दिया गया. चुरहट लॉटरी में मामले में हाईकोर्ट के फैसले के बाद पार्टी ने अर्जुन सिंह से इस्तीफा मांग लिया. राजीव गांधी, माधवराव सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे, लेकिन अर्जुन सिंह समर्थक विधायक तैयार नहीं हुए. जनवरी 1989 में वोरा आम सहमति का चेहरा बनकर दूसरी बार मुख्यमंत्री बने.
उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन में राज्यपाल थे वोरा
मोतीलाल वोरा मई 1993 में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बनाए गए थे. उन दिनों वहां राष्ट्रपति शासन लागू था. बाबारी मस्जिद का ढांचा गिराए जाने के बाद कल्याण सिंह की सरकार को बर्खास्त किया गया था. जबकि दिसंबर 1993 तक राष्ट्रपति शासन रहा. वोरा को राष्ट्रपति शासन में राज्यपाल के रूप में लंबे समय तक काम करने का मौका अक्टूबर 1995 से अक्टूबर 1996 के दौरान मिला. इस दौरान मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के लोगों को राजभवन में प्रवेश लेने के लिए सिर्फ गेट पर यह बताने की जरूरत होती थी कि वे कहां से आए हैं. राष्ट्रपति शासन में वे एक मुख्यमंत्री की तरह ही शासन चलाते थे. एनेक्सी में बैठकर लोगों से मिलते और फीडबैक लेते. वह अधिकारियों को जरूरत निर्देश देते और क्रियान्यवन की समीक्षा भी खुद करते थे.
राज्य परिहन निगम को लाभ में लाने का रिकॉर्ड
मोतीलाल वोरा अपनी जीविका के लिए क्या करते थे, इस बारे में अलग-अलग बातें चलती रही हैं. जब वे मुख्यमंत्री बने तो कई लोग यह भी दावा करते थे कि वे बस में कंडक्टर थे. मोतीलाल वोरा की पहचान पत्रकार के रूप में भी थी. रायपुर में उनके परिवार द्वारा अमृत संदेश नाम के अखबार का प्रकाशन किया जा रहा है. अखबार उनके भाई गोविंदलाल वोरा चलाते थे. उन्होंने दुर्ग में नौकरी भी की. नौकरी किसी बस ऑपरेटर के यहां थी. शायद मुनीम का काम था. सोशलिस्ट पार्टी से पहली बार पार्षद बनकर राजनीति शुरू की थी. 1972 में पहली बार विधायक बनने के बाद उन्हें राज्य परिवहन निगम का उपाध्यक्ष बनाया गया. सीताराम जाजू अध्यक्ष थे. जाजू-वोरा की जोडी को परिवहन निगम में लोगों ने सालों याद किया. दोनों के संयुक्त प्रयासों से निगम घाटे से लाभ में आ गया था. मोतीलाल जब दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने तो उनका अंदाज बदला हुआ था. सख्त प्रशासक के रूप में उनकी छवि बन रही थी. आपकी सरकार,आपके द्वारा जैसे कार्यक्रम उन्होंने शुरू किए. अफसरों को गांव-गांव जाकर शिविर लगाने होते थे.
प्रदेश अध्यक्ष बनाने से पहले राजीव गांधी ने लिया था इंटरव्यू
मोतीलाल वोरा लगभग अठारह साल कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रहे. उन्हें गांधी परिवार का भरोसेमंद राजनेता माना जाता था और वे नियमित तौर पर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के दफ्तर में बैठते थे. कोई भी उनसे बिना समय निर्धारित किए मिल सकता था. वोरा मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष जनवरी 1984 में बने थे. राजीव गांधी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव थे. राजीव गांधी के सामने दो नाम अध्यक्ष के लिए आए. वोरा के अलावा छत्तीसगढ़ के ही नेता राजेन्द्र प्रसाद शुक्ला का नाम भी था. दोनों नेताओं के इंटरव्यू हुए और वोरा को राजीव गांधी ने उपयुक्त पाया. इंदिरा गांधी से मुलाकात कराई गई और उसके बाद उन्हें अध्यक्ष घोषित किया गया. वोरा मार्च 1985 तक अध्यक्ष रहे. जबकि वोरा के स्थान पर दिग्विजय सिंह प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नियुक्त किए गए. कहा जाता है कि अर्जुन सिंह और वोरा के बीच दूरी इसके बाद ही बनना शुरू हुई थी. (डिस्क्लेमर: यह लेखक के निजी विचार हैं.)
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)