ऋतु खंडूरी हाल में उत्तराखंड विधानसभा की निर्विरोध अध्यक्ष बनी हैं. वह प्रदेश की पहली महिला स्पीकर हैं. उनके निर्वाचन के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि उनके राज्य के लिए ऐतिहासिक दिन है कि मातृशक्ति के रूप में विधानसभा को पहली महिला स्पीकर मिली. याद करें कि देश के अन्य राज्यों की विधानसभाओं में पहले भी महिलाएं स्पीकर रह चुकी हैं. साथ ही, देश के सबसे बड़े निर्वाचित सदन लोकसभा में भी दो महिलाएं लगातार स्पीकर रही हैं. वर्तमान स्पीकर ओम बिरला के ठीक पहले सुमित्रा महाजन लोकसभा अध्यक्ष थीं, तो उनके पहले मीरा कुमार ने इस पद को सुशोभित किया था. दोनों महिला नेत्री लोकसभा के पांच साल के पूरे कार्यकाल के दौरान स्पीकर रहीं और दोनों ने सदन ही नहीं, पूरे देश को प्रभावित किया.
स्पष्ट करना ज़रूरी है कि संसद के दोनों सदन हों या विधानसभा, अध्यक्ष की व्यवस्था के हिसाब से ही सदन चला करता है. इसी व्यवस्था के तहत ही संसद के दोनों सदनों में सांसद से लेकर प्रधानमंत्री तक अपनी बात रखा करते हैं. बड़े मसले तय करने के लिए सदस्यों की कार्य मंत्रणा समिति हुआ करती है, पर प्रत्यक्ष रूप से स्पीकर की अनुमति से ही विधानसभा के अंदर सदस्य से लेकर मंत्री और मुख्यमंत्री भी अपनी बात रखते हैं. विधानसभा अध्यक्ष पद पर महिलाओं के पदारूढ़ होने के विवरण के पहले लोकसभा अध्यक्ष यानी स्पीकर पद पर मीरा कुमार और सुमित्रा महाजन के बारे में संक्षिप्त चर्चा करते हैं.
दिग्गजों को हराकर रचे रिकॉर्ड
देश के प्रसिद्ध दलित नेता और पंडित नेहरू मंत्रिमंडल में सबसे युवा मंत्री और जनता सरकार में देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री जगजीवन राम की पुत्री मीरा कुमार मृदुभाषी नेता के तौर पर पहचानी जाती हैं. उन्होंने शुरुआत में भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन लेकर विदेशों में नौकरी की. राजनीतिक जीवन की शुरुआत में ही बिजनौर सुरक्षित सीट से उन्होंने मायावती और रामविलास पासवान जैसे दलित नेताओं को हराकर लोकसभा का चुनाव जीता. कई विभागों की केंद्रीय मंत्री रहने के बाद वे 2009 से 2014 तक लोकसभा की पहली महिला अध्यक्ष रहीं.
सुमित्रा महाजन अपनी लोकप्रियता के चलते सुमित्रा ताई के रूप में पहचानी जाती हैं. पहले ही लोकसभा चुनाव में प्रकाशचंद्र सेठी जैसे धुरंधर कांग्रेस नेता को हराने वाली सुमित्रा ताई के नाम एक और बड़ा रिकॉर्ड है. वह ऐसी नेता हैं, जिन्होंने एक ही क्षेत्र और एक ही पार्टी से लगातार आठ बार लोकसभा का चुनाव जीता. वह भी केंद्र में मंत्री रहने के बाद 2014 से 2019 तक स्पीकर रहीं. उनका कार्यकाल एक मृदुभाषी और प्रभावशाली लोकसभा अध्यक्ष के रूप में याद किया जाता है. पिछले निर्वाचन के दौरान उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला कर लिया.
ये दो महिलाएं अभी हैं विधानसभा अध्यक्ष
अब विधानसभा अध्यक्ष पद पर निर्वाचित महिलाओं का ज़िक्र. आज उत्तराखंड विधानसभा की अध्यक्ष बनीं ऋतु भूषण खंडूड़ी ने शुरू में नोएडा के एक शिक्षण संस्थान में अध्यापन किया. उनके पिता सेना के रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल भुवनचंद्र खंडूड़ी केंद्र में मंत्री और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे. पति राजेश भूषण बिहार कैडर के आईएएस अफसर हैं. वे 2017 में यमकेश्वर तो इस बार 2022 में कोटद्वार से विधायक चुनी गईं. खास बात यह कि कोटद्वार से सुरेंद्र सिंह नेगी को हराकर उन्होंने अपने पिता की हार का बदला भी ले लिया. इस सीट से मुख्यमंत्री रहते खंडूड़ी कांग्रेस के नेगी से हारे थे.
ऋतु खंडूड़ी के विधानसभा अध्यक्ष होने के बाद स्वाभाविक है कि देश में अन्य महिला विधानसभा अध्यक्षों की चर्चा हो. फिलहाल गुजरात की ही विधानसभा में अध्यक्ष पद पर डॉ. निमाबेन आचार्य विराजमान हैं. पिछले साल सितंबर में ही उन्हें यह भूमिका मिली. वह कच्छ के भुज से विधायक हैं. 2007 में कांग्रेस से भाजपा में आईं आचार्य लगातार विधानसभा की सदस्य हैं. इसके पहले भी वह दो बार कांग्रेस से और कुल पांच बार चुनी गईं. वह राज्य सरकार में मंत्री भी रही हैं.
देश का पहला चुनाव जीतने वाली सुमित्रा
अब ज़रा इतिहास में झांकें. राजस्थान में 2004 से 2009 तक सुमित्रा सिंह विधानसभा अध्यक्ष के आसन पर विराजमान थीं. तब मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भी एक महिला नेता वसुंधरा राजे थीं. राजस्थान के झुंझनू से विभिन्न दलों की उम्मीदवार के रूप में नौ बार चुनाव जीतकर आने वाली इस नेता की भी लोकप्रियता खूब रही. पहला चुनाव उन्होंने 1952 के प्रथम निर्वाचन में ही जीता था. उसी साल नाहर सिंह से उनकी शादी भी हुई. दुर्भाग्य से कोरोना के दौरान 93 वर्षीय नाहर सिंह का निधन हो गया. तब सुमित्रा सिंह भी अस्पताल के बिस्तर पर थीं और अपने पति की अंतिम यात्रा तक में शामिल नहीं हो सकीं.
पहली विधानसभा अध्यक्ष कौन थीं?
देश की पहली महिला विधानसभा अध्यक्ष का गौरव हरियाणा को है. शन्नो देवी अविभाजित भारत के मुल्तान में पैदा हुई थीं. देश का विभाजन हुआ, तब वह परिवार के साथ भारत के पंजाब में आ गईं. इसके पहले अंग्रेज़ी राज में ही जब प्रांतीय सभाओं के चुनाव हुए थे, स्वतंत्रता सेनानी शन्नो देवी 1940 में पंजाब के अमृतसर शहर पश्चिम से चुनी गई थीं. फिर जब 1946 में चुनाव हुए, तो वह दोबारा निर्वाचित हुईं. 1962 और 1966 में वे पंजाब विधानसभा की उपाध्यक्ष चुनी गईं. इसी बीच एक नवंबर 1966 को पंजाब के हिंदीभाषी पूर्वी भाग को हरियाणा राज्य बनाया गया. तब शन्नो देवी हरियाणा और देश के किसी भी राज्य की पहली महिला विधानसभा अध्यक्ष बनी थीं. शन्नो देवी ने जो परंपरा शुरू की थी, डॉ. निमाबेन आचार्य और ऋतु भूषण खंडूड़ी उसे आगे बढ़ा रही हैं.
हिन्दी पत्रकारिता में 35 वर्ष से अधिक समय से जुड़ाव। नेशनल बुक ट्रस्ट से प्रकाशित गांधी के विचारों पर पुस्तक ‘गांधी के फिनिक्स के सम्पादक’ और हिन्दी बुक सेंटर से आई ‘शिवपुरी से श्वालबाख’ के लेखक. पाक्षिक पत्रिका यथावत के समन्वय सम्पादक रहे. फिलहाल बहुभाषी न्यूज एजेंसी ‘हिन्दुस्थान समाचार’ से जुड़े हैं.
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