हिन्दी के प्रतिष्ठित दैनिक नईदुनिया के पूर्व प्रधान संपादक और वरिष्ठ पत्रकार अभय छजलानी का जाना हिन्दी पत्रकारिता की न सिर्फ अपूरणीय क्षति है बल्कि एक युग का अंत भी है. अंत अखबार मालिकों की उस यशस्वी पीढ़ी का, जो मालिक होने के साथ-साथ स्वयं पत्रकार और लेखनी की धनी भी रही है. अभय जी यद्यपि नई दुनिया के मालिकों में से थे, लेकिन उनकी पहचान नईदुनिया के मालिक के रूप में नहीं बल्कि एक पत्रकार के रूप में ही रही. इस पीढ़ी का अवसान इसलिए भी पत्रकारिता के लिए बहुत बड़ा नुकसान है, क्योंकि आज हम पत्रकारिता में जो बुराइयां अथवा कमियां देख रहे हैं उनका एक प्रमुख कारण ज्यादातर अखबार मालिकों का सक्रिय पत्रकारिता से कोई लेना देना नहीं रहना भी है. और अभय जी तो मालिक या पत्रकार ही नहीं, उत्कृष्ट लेखनी के धनी भी थे.
एक और बात जो उन्हें पत्रकारिता जगत में स्थापित करती है वह है उनकी पत्रकारिता की पेशेगत समझ के साथ-साथ जमीनी पकड़. नईदुनिया को वैसे तो कई पत्रकारों/संपादकों ने समृद्ध किया है जिनमें राहुल बारपुते और राजेंद्र माथुर जैसे यशस्वी नाम शामिल हैं. लेकिन नईदुनिया को ही यह श्रेय जाता है कि उसने देश में हिन्दी पत्रकारिता में संपादकों की एक पूरी पीढ़ी तैयार की (यह सूची बहुत लंबी है).
यह वो समय था जब एक ओर कई स्वनामधन्य पत्रकार अपने योगदान से नईदुनिया को गढ़ने और उसमें पत्रकारिता की प्राण प्रतिष्ठा करने का काम कर रहे थे, वहीं अभय जी को यह श्रेय जाता है कि उन्होंने मालिक की हैसियत से इन प्राणों को या दूसरे शब्दों में कहूं तो उसकी आत्मा की रक्षा करने, उसको बचाए रखने का भरसक प्रयत्न किया. आगे चलकर लोगों ने देखा कि जब नईदुनिया पर छजलानी परिवार का स्वामित्व नहीं रहा तो यह आत्मा भी जैसे तिरोहित हो गई.
पत्रकारिता के साथ-साथ सामाजिक जीवन में सक्रिय
पत्रकारिता के साथ-साथ वे सामाजिक जीवन में भी काफी सक्रिय रहे. भारतीय भाषाई समाचार पत्रों के शीर्ष संगठन इलना का तीन बार अध्यक्ष रहने के साथ ही वे इंडियन न्यूज पेपर सोसायटी (आईएनएस) के उपाध्यक्ष और अध्यक्ष रहे. 2004 में उन्हें भारतीय प्रेस परिषद के लिए मनोनीत किया गया. 1986 में उन्हें पहला श्रीकांत वर्मा राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया गया. इसके अलावा उन्हें ऑर्गनाइजेशन ऑफ अंडरस्टैंडिंग एंड फेटरनिटी द्वारा वर्ष 1984 के गणेश शंकर विद्यार्थी सद्भावना अवॉर्ड से और 1997 में जायन्ट्स इंटरनेशनल पुरस्कार तथा इंदिरा गांधी प्रियदर्शिनी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. पत्रकारिता में उल्लेखनीय योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री प्रदान किया था.
छजलानी की खेल गतिविधियों में खास रुचि के चलते ही नईदुनिया प्रकाशन ने हिन्दी की पहली खेल पत्रिका ‘खेल हलचल’ का प्रकाशन भी आरंभ किया था. उन्हें 1995 में मप्र क्रीड़ा परिषद का अध्यक्ष बनाया गया. इंदौर की विरासत को सहेजने में विशेष रुचि को देखते हुए उन्हें शहर की ऐतिहासिक धरोहर लालबाग से जुड़े ट्रस्ट का भी अध्यक्ष मनोनीत किया गया.
वैश्विक दौर में स्थानीयता के पैरोकार
मुझे नईदुनिया परिवार में ही भोपाल संस्करण के संपादक होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और उसी दौरान अभय जी से संपर्क में मैंने पाया कि पत्रकारिता की कई गहरी बातों को वे बड़ी सहजता से अपने सहयोगियों को समझा देते थे. एक और बात जो अभय जी और नईदुनिया की खूबी थी वो यह कि उन्होंने अखबार की राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा के बावजूद स्थानीयता के महत्व को कभी कम नहीं होने दिया. एक दृष्टि से कहूं तो उस समय इंदौर के प्राण नईदुनिया में बसते थे और नईदुनिया के प्राण इंदौर में. शहर की प्यास बुझाने के लिए इंदौर में नर्मदा जल लाने का मामला हो या शहर की ऐतिहासिक धरोहर लाल बाग को बचाने का मामला, या फिर अनूठे तरीके से आपातकाल के विरोध का विषय, अभय छजलानी की अगुवाई में नईदुनिया ने हमेशा नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभाई. इंदौर में खेल की गतिविधियों को विस्तार देने और स्थापित करने में भी अभयजी का बहुत बड़ा योगदान है और अभय प्रशाल उसी का जीता जागता उदाहरण रहा है.
नई दुनिया स्कूल
आधुनिक तकनीक अपनाने के मामले भी छजलानी ने नईदुनिया को सबसे आगे रखा. आज तो कंप्यूटर आ जाने और कई सारी नई तकनीक के चलते बहुत सुविधाएं उपलब्ध हैं, लेकिन जब ऐसा नहीं था तब भी नईदुनिया ने लेआउट से लेकर पाठकों की आंखों को सुकून से पढ़ने लायक सुविधा देने वाले फोंट के चयन तक पर काफी ध्यान दिया था. यही कारण था कि लंबे समय तक नईदुनिया श्रेष्ठ ले-आउट प्रस्तुति का पुरस्कार पाता रहा. एक तरफ आधुनिक संसाधनों के उपयोग और अखबार में प्रयोगधर्मिता को फलने फूलने का पूरा अवसर देना और दूसरी तरफ नईदुनिया पुस्तकालय के जरिये पत्रकारों में पढ़ने लिखने और दुनिया को जानने की संस्कृति विकसित करना ये दोनों काम उन्होंने बखूबी किए. उनकी दूरदृष्टि का ही परिणाम है कि आज नईदुनिया स्कूल से जुड़े पत्रकार अपने ज्ञान और भाषा कौशल के साथ साथ श्रेष्ठ पत्रकारीय समझ की बदौलत देश भर के संस्थानों में अपना मुकाम बनाए हुए हैं. भाषा और पत्रकारीय संस्कृति के शिल्पकार के रूप में अभय छजलानी का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकेगा.