पेगासस के भूत को बोतल से बाहर ही रखेगा जांच आयोग

ममता बनर्जी का पेगासस जासूसी मामले में पहल इसलिए भी अहम है, क्‍योंकि मामले में जिन लोगों की जासूसी किए जाने को लेकर नाम आए हैं, उनमें एक ममता के भतीजे अभिषेक बैनर्जी और दूसरे प्रशांत किशोर का नाम भी है. प्रशांत किशोर पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान तृणमूल कांग्रेस के चुनाव सलाहकार रहे हैं.

Source: News18Hindi Last updated on: July 27, 2021, 7:00 am IST
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पेगासस के भूत को बोतल से बाहर ही रखेगा जांच आयोग

श्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भारी जीत के बाद से ही केंद्र सरकार से पंगा ले रही मुख्‍यमंत्री ममता बैनर्जी ने अब एक बड़ा दांव खेला है. देश के कई पत्रकारों, राजनेताओं, मंत्रियों, चुनाव आयुक्‍त व सरकारी जांच एजेंसी के अफसरों और यहां तक कि न्‍यायाधीशों की भी कथित जासूसी से जुड़े पेगासस कांड को लेकर बंगाल सरकार ने अपने स्‍तर पर एक जांच आयोग का गठन कर दिया है.


जांच आयोग की घोषणा उसी 26 जुलाई के दिन हुई, जिस दिन ममता ने अपनी नई दिल्‍ली यात्रा का ऐलान किया. उन्‍होंने मीडिया को बताया कि वे दो तीन दिन के लिए दिल्‍ली जा रही हैं और वहां उन्‍होंने प्रधानमंत्री से मुलाकात का भी समय मांगा है. इसके अलावा, वे राष्‍ट्रपति जी से भी मुलाकात की कोशिश करेंगी. उनका संसद जाने और वहां भी कई दलों के नेताओं से मिलने का कार्यक्रम है. यानी, ममता ने दिल्‍ली रवाना होने से पहले ही मुलाकात का एजेंडा सेट कर दिया है.


इसलिए ममता ने की जासूसी मामले की पहल

ममता का पेगासस जासूसी मामले में पहल करना इसलिए भी महत्‍वपूर्ण है क्‍योंकि मामले में जिन लोगों की जासूसी किए जाने को लेकर नाम आए हैं उनमें एक ममता के भतीजे अभिषेक बैनर्जी और दूसरे प्रशांत किशोर का नाम भी है. प्रशांत किशोर पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान तृणमूल कांग्रेस के चुनाव सलाहकार रहे हैं. यहां यह भी उल्‍लेखनीय है कि जिन लोगों ने मामले की जांच के लिए एमनेस्‍टी इंटरनेशनल को अपना फोन उपलब्‍ध कराया था, उनमें प्रशांत किशोर का नाम भी है.


जासूसी मामले पर संसद में बहस और हंगामा हो चुकने के बाद कहा जाने लगा था कि यह मामला जल्‍दी ही ठंडा पड़ जाएगा. सरकार का संसद में इस मामले पर स्‍टैंड साफ था. सरकार ने कहा कि इस मामले को उठाने वाले लोग विदेशी ताकतों के हाथों में खेल रहे हैं और उनका इरादा संसद की कार्यवाही न चलने देना है. विपक्ष ने इस मामले में संसद की एक समिति बनाकर जांच कराने या फिर सुप्रीम कोर्ट के किसी न्‍यायाधीश की निगरानी में जांच कराने की मांग रखी थी, पर वैसी कोई मांग नहीं मानी गई.

सरकार की ओर से भले ही कोई पहल नहीं हुई हो लेकिन मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है. वहां मामले की जांच को लेकर एसआईटी गठित करने की मांग को लेकर दो याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं.


आयोग की मंशा पर संदेह की गुंजाइश

अब इस पृष्‍ठभूमि में पश्चिम बंगाल सरकार का अपनी ओर से जांच आयोग गठित कर देना मामले को नया मोड़ देने वाला है. दो सदस्‍यीय जांच आयोग के अध्‍यक्ष सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्‍यायाधीश मदन बी. लोकुर होंगे और दूसरे सदस्‍य होंगे कलकत्‍ता उच्‍च न्‍यायालय के पूर्व मुख्‍य न्‍यायाधीश ज्‍योतिर्मय भट्टाचार्य. ममता ने इतने बड़े नाम चुनकर इस बात की गुंजाइश को भी खत्‍म कर दिया है कि आयोग की मंशा पर कोई संदेह किया जा सके.


देश का जांच आयोग कानून 1952 में बना था. ममता सरकार ने अपने जांच आयोग का गठन इसी कानून- जांच आयोग अधिनियम, 1952 (संख्यांक 60) के तहत किया है. आयोग के गठन की अधिसूचना में इस बात का साफ तौर पर जिक्र किया गया है कि जांच आयोग को अधिनियम की धारा 5 के तहत सारी शक्तियां प्राप्‍त होंगी. धारा 5 की उपधारा-2 कहती है कि आयोग जांच से संबंधित किसी विषय का अन्वेषण करने के लिये किसी व्यक्ति को समन कर सकेगा.


इतना ही नहीं, आयोग जांच से संबंधित किसी विषय का अन्वेषण करने के लिये किसी व्‍यक्ति को हाजिर करा सकेगा तथा उसकी परीक्षा कर सकेगा; किसी दस्तावेज के प्रकटीकरण एवं पेश किए जाने की अपेक्षा कर सकेगा; तथा किसी कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रतिलिपि की अपेक्षा कर सकेगा. इसके साथ ही आयोग संबंधित जांच एजेंसियों से ऐसे किसी मामले की जांच करने की सिफारिश कर सकता है.


सवाल है कि यदि ममता के जांच आयोग ने केंद्र की एजेंसियों, आईटी व अन्‍य संबद्ध मंत्रालय के अधिकारियों को गवाही के लिए तलब किया तब क्‍या होगा? क्‍या वे अधिकारी गवाही या साक्ष्‍य के लिए आयोग के सामने उपस्थित होंगे और यदि नहीं हुए तो क्‍या एक नई टकराहट की स्थिति नहीं बनेगी? याद रखना होगा कि ममता लंबे समय से राज्‍य के अधिकारों को लेकर केंद्र से टकराती रही हैं.

चुनाव के समय से लेकर उसके फौरन बाद तक राज्‍य के मुख्‍य सचिव को लेकर राज्‍य व केंद्र सरकार का शक्ति परीक्षण पूरे देश ने देखा था. तब ममता ने मुख्‍य सचिव से इस्‍तीफा दिलवाकर उन्‍हें अपना सलाहकार नियुक्‍त कर लिया था. इससे पहले कोलकाता के पुलिस कमिश्‍नर को लेकर भी केंद्र व पश्चिम बंगाल की सरकारें आपस में टकरा चुकी थीं.


बंगाल और केंद्र सरकार का एक नए युद्धक्षेत्र में प्रवेश?

क्‍या पेगासस जांच आयोग के बहाने बंगाल और केंद्र सरकार एक नए युद्धक्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं? यह सवाल इसलिए उठता है क्‍योंकि जांच आयोग को जांच प्रक्रिया के दौरान ज्‍यादातर इनपुट की जरूरत उन अधिकारियों और संस्‍थाओं से होगी जो केंद्र सरकार के अधीन हैं. सहयोग न मिलने पर ममता सरकार केंद्र पर न्‍यायिक जांच में अड़ंगा डालने का आरोप लगा सकती हैं.


और अगर ममता का जांच आयोग अपना काम पूरा करने में सफल रहा और उसने अपने निष्‍कर्षों में यह माना कि जासूसी हुई है और यदि उसने इसकी आगे किसी और एजेंसी से जांच कराने की सिफारिश कर दी तो…? वैसी स्थिति में नई उलझन पैदा होगी. भले ही केंद्र, राज्‍य सरकार द्वारा गठित आयोग के निष्‍कर्षों और सिफारिशों को कोई तवज्‍जो न दे लेकिन इससे विवाद तो बढ़ेगा ही.  जाहिर है पेगासस का भूत जल्‍दी ही बोतल के अंदर जाने वाला नहीं है…


(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
ब्लॉगर के बारे में
गिरीश उपाध्याय

गिरीश उपाध्यायपत्रकार, लेखक

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. नई दुनिया के संपादक रह चुके हैं.

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First published: July 27, 2021, 7:00 am IST

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