बावरा मन: बड़े दिन पर बड़े दिल वालों की बात
विरासत को विरासत के रूप में ही रखने का, देखने का ये निर्णय, आज़ाद भारत के शाह जी और उस पीढ़ी के बड़े दिल का ही प्रमाण है. वैसे भी विरासत तभी तक विरासत रहती है जब तक उसे विरासत की तरह ही संजो के रखा जाए. शाह साब की ये कहानी बताने लायक थी सो आप से कह दी.

जो बड़ा दिल रखता है, वही इंसान बड़े व्यक्तित्व का मालिक भी कहलाता है.
उस दिन पुराने रेडियो वाले दिनों के मित्र शरद जी से बातचीत हो रही थी. पता चला वो नोएडा/दिल्ली की अपनी मसरूफ जिंदगी से कुछ दिन का ब्रेक ले आजकल हल्द्वानी वाले अपने घर में रह रहे हैं. “बावरा मन” जो ठहरा, सुन कर मैं भी कुछ समय के लिए कुमाऊं की वादियों में सैर करने लगी. हमारी जब बातें शुरू होती हैं तो तामाम होती हैं. हल्द्वानी से मुक्तेश्वर तक की हुईं पर बातों का सिलसिला जब नैनीताल पहुंचा तो शरदजी ने एक छोटा सा किस्सा बताया. सोचा, आपसे भी सांझा कर लूं.
शरद जी ने अपनी एक 1992/93 की रोचक नैनीताल यात्रा का ज़िक्र किया जब वो वहां एक किसी राजनैतिक सम्मेलन को कवर करने गए थे. सम्मेलन में उनकी मुलाक़ात, नैनीताल के एक बेहद स्भ्रांत, प्रतिष्ठित निवासी, श्री चंद्र लाल शाह साब से हुई थी. चंद्र लाल शाह साब नैनीताल का एक बड़ा जाना माना नाम थे. उनके परिवार की वहां बड़ी इज़्ज़त थी, बड़ी प्रॉपर्टी और शैक्षिक संस्थान थे. चंद्र लाल शाह साब, शरद जी को सम्मेलन के बाद अपने घर लिवा ले गए. घर भी क्या, अंग्रेजों के वक्त का एक बड़ा ही खूबसूरत बंगला था. बीच शहर वाली टूरिस्टी आपाधापी से ज़रा दूर, पेड़ों, चिड़ियों की संगत में सुकून की लोकेशन लिए, ये बंगला नुमा घर जिसका नाम “हटन कॉटेज” था शाह साब के बड़ों ने स्वयं जिम कॉर्बेट से खरीदा था.
शरद जी से रहा नहीं गया उन्होंने शाह साब से पूछ लिया, “आपने इस घर का नाम नहीं बदला, अंग्रेज़ी नाम ही बनाए रखा”?
उत्तर में जो 1992/93 वाले शाह साब ने कहा वो आज की 2021 की पीढ़ी और हम सब के लिए सीख है. शाह साब ने कहा कि, “ये बात ठीक है कि अंग्रेजों ने हम पर राज किया था. पर उन्होंने हमें दिया भी बहुत. इसलिए इस नाम को बदलने का मन नहीं किया”.
विरोधी को भी उचित सम्मान देना, बड़ी बात है
विरासत को विरासत के रूप में ही रखने का, देखने का ये निर्णय, आज़ाद भारत के शाह जी और उस पीढ़ी के बड़े दिल का ही प्रमाण है. वैसे भी विरासत तभी तक विरासत रहती है जब तक उसे विरासत की तरह ही संजो के रखा जाए. शाह साब की ये कहानी बताने लायक थी सो आप से कह दी. आज शाह साब तो नहीं हैं. पर उनके सुपुत्र अनूप शाह हैं जो स्वयं एक बहुत ही जानेमाने फोटोग्राफर /पर्वतारोहक हैं. नैनीताल की शान हैं. पदमश्री हैं.
आज उनका ये बंगला सवा सौ साल पुराना हो चुका है. पर इस बंगले का नाम आज भी “हटन कॉटेज” ही है. जिन सेलानियों को “पुराने” से प्यार है, जिन्हें अतीत की धरोहर पसंद आती है, जिन्हें “बर्ड वाचिंग” का शौक है, यहां जा सकते हैं, इसे देख सकते हैं. एक बेहतरीन छुट्टी का आनंद ले सकते हैं.
ख़ैर क्रिसमस यानि बड़ा दिन. चूंकि बड़े दिन पर बड़े दिल लोगों का ज़िक्र फीलगुड करवाता है. इसलिए एक “बड़े दिल” का ज़िक्र और…
सूद साब
1951 की बात है. वी एस सूद, बेबकॉक एंड विलकॉक्स ऑफ़ इंडिया लिमिटेड के ऑफिस में काम करते थे. वो बड़े ही ईमानदार कर्मठ युवा इंजीनियर थे. उनके बॉस एक अंग्रेज़ अधिकारी थे. एक दिन सूद साब को किसी बात की गलतफहमी पर उनके अंग्रेज़ बॉस ने डांट दिया. उन्हें “ब्लडी इंडियन” कह दिया. सूद साब का “नया नया आज़ाद भारतीय खून” तुरंत ही खौल उठा. “खबरदार” करते हुए वो अंग्रेज़ अफ़सर के गिरेबान तक पहुंच गए, उनका कॉलर तक पकड़ लिया. अपशब्द कह दिए. लेकिन थोड़ी ही देर में दोनों पक्षों ने अपनी अपनी गलती महसूस कर ली. दोनों अख्लाक वाले इंसान थे. बात खत्म हो गई.
कुछ समय के बाद सूद साब को उनकी मनपसंद वाली सरकारी नौकरी मिल गई. वो खुश तो बहुत थे पर नौकरी की एक शर्त थी और शर्त पूरी करनी ज़रूरी थी. शर्त ये थी कि उन्हें अपने दस्तावेजों के साथ एक कैरेक्टर सर्टिफिकेट भी जमा करना था. अब सूद साब अपने को फंसा हुआ महसूस कर रहे थे. उनके लिए ये नई नौकरी ज़रूरी थी और नौकरी के लिए कैरेक्टर सर्टिफिकेट भी ज़रूरी था.
यानि जिन अफसर के गिरेबान तक सूद साब के हाथ पहुंच गए थे, उन्हीं अफसर के ही हाथों अब इंजीनियर साब की नैया पार लगनी थी.
ख़ैर, चूंकि और कोई चारा नहीं था, सूद साब उन अंग्रेज़ अधिकारी के यहां पहुंचे. अंग्रेज़ अधिकारी ने उन्हें देखा. मुस्कुराए, समझ गए कि ज़रूर कोई ज़रूरी काम है. इज़्ज़त से सूद साब को सामने कुर्सी पर बिठवाया और आने का कारण पूछा. इंजीनियर साब ने झिझकते हुए अपने आने का सबब बताया. अंग्रेज़ अधिकारी ने पूरी बात समझी. अब वो चाहते तो अपनी पिछली बात का बदला सूद साब से सूद समेत ले सकते थे. चाहते तो अहसान जता कर, सूद साब को कुछ कह कर टाल सकते थे. तंग कर सकते थे. कई चक्कर लगवा सकते थे. पर उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया. उन्होंने सूद साब को कुछ समय बाद आने को कहा और कहा कि वो तब तक लेटर तैयार कर के रखेंगे.
सूद साब का कैरेक्टर सर्टिफिकेट
अंग्रेज़ अधिकारी ने ना सिर्फ़ कैरेक्टर सर्टिफिकेट बनाया, बल्कि उन्होंने दिल खोल कर ईमानदारी से सूद साब की कार्यकुशलता की सच्ची प्रशंसा की. हालांकि, वो दिल न भी खोल कर सर्टिफिकेट बना सकते थे, तब भी काम हो जाता पर उन्होंने सूद साब के कद और कबलियत का ध्यान रखते हुए उनसे बड़े दिल के साथ बर्ताव किया.
सूद साब ने वो सर्टिफिकेट जमा किया और उस सर्टिफिकेट के ही कारण वो भारतीय फौज में एक कमीशंड ऑफिसर बने. आगे चल कर्नल सूद हो कर फौज से रिटायर हुए.
आज सूद साब नब्बे साल से ऊपर हैं. दिल्ली में रहते हैं. उन्हें आज भी वो दिन और वो अंग्रेज़ अधिकारी से मुलाकात, कल ही की तरह याद है. उन्होंने अपना वो कैरेक्टर सर्टिफिकेट आज भी बहुत संभाल के रखा है, एकदम एक अनमोल धरोहर की तरह. उन्होंने मेरे कहने पर “बड़े दिल” के साथ उस सर्टिफिकेट को हमसे सांझा किया है.
ख़ैर, कैरेक्टर सर्टिफिकेट तो अंग्रेज़ अधिकारी ने सूद साब का बनाया था पर उसे बनाते बनाते उन्होंने अपने चरित्र का प्रदर्शन भी दे दिया था. दिखा दिया था कि, जो बड़ा दिल रखता है, वही इंसान बड़े व्यक्तित्व का मालिक भी कहलाता है.
धन्यवाद
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
ज्योत्स्ना तिवारीअधिवक्ता एवं रेडियो जॉकी
ज्योत्सना तिवारी अधिवक्ता हैं. इसके साथ ही रेडियो जॉकी भी हैं. तमाम सामाजिक कार्यों के साथ उनका जुड़ाव रहा है. इसके अलावा, लेखन का कार्य भी वो करती हैं.