बावरा मन: फिल्म गांधी का प्रीमियर और उसका फोटो किट

हर वर्ष ऑस्‍कर अवॉर्ड के मौके पर हमें 'गांधी' फिल्‍म जरूर याद आती है. इस फिल्‍म को ऑस्‍कर में 11 नॉमिनेशन मिले थे. 'गांधी' फिल्‍म का प्रीमियर शो अटेंड करने गए मेहमानों को फिल्म की तस्वीरों और ब्रोशर का एक किट भेंट किया गया था. इस ब्रोशर में बिहाइंड द सीन वाली 'गांधी' की ‘इन द मेकिंग’ की कहानी थी. ब्रोशर समय के साथ कहीं खो गया, पर फोटो आज भी मुझे उस प्रीमियर की याद दिलाती हैं. खासकर ऑस्कर्स के वक्त.

Source: News18Hindi Last updated on: March 21, 2023, 9:35 pm IST
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बावरा मन: फिल्म गांधी का प्रीमियर और उसका फोटो किट
ऑस्कर्स अवॉर्ड्स में गांधी फिल्म को कुल ग्यारह नॉमिनेशन और आठ ऑस्कर्स मिले थे.

बात बहुत पहले की है. ‘गांधी’ फिल्म रिलीज हो रही थी और उसका दिल्ली में एक प्रीमियर शो होने जा रहा था. ये प्रीमियर शो, दिल्ली के विख्यात चाणक्य सिनेमा हॉल में होना था. घर में बड़ों की बातें सुन कर हम बच्चों को इतना तो अहसास हो ही गया था कि दिल्ली में एक कोई बड़ी इवेंट, बड़ा जलसा होने जा रहा है. ऐसा जलसा जिस में हम बच्चे नहीं जा पाएंगे!


दरअसल, इस प्रीमियर शो में पिताजी और परिवार के बड़ों ने शिरकत की थी. प्रीमियर शो अटेंड करने गए मेहमानों को फिल्म की तस्वीरों और ब्रोशर का एक किट भेंट किया गया था. इस ब्रोशर में बिहाइंड द सीन वाली ‘गांधी’ की ‘इन द मेकिंग’ की कहानी थी. ब्रोशर समय के साथ कहीं खो गया पर फोटो आज भी मुझे उस प्रीमियर की याद दिलाती हैं. खासकर ऑस्कर्स के वक्त.


उस प्रीमियर में हम नन्हे बच्चे तो नहीं जा पाए पर उस प्रीमियर में मिली उस सौगात के ज़रिए हमने पहली बार ‘गांधी’ फिल्म के दर्शन किए.


हमारे बचपन के गांधी

‘गांधी’ फिल्म के प्रीमियर के समय मिले इस फोटो सेट में कुल मिला कर दस फोटो थीं. हर फोटो के पीछे उसकी एक डिस्क्रिप्शन, टेप के साथ चस्पा थी. समय के साथ ये टेप पीले पड़ गए हैं, यादें धुंधली हो गईं हैं. पर उन ब्लैक एंड व्हाइट फोटों का जलवा चालीस साल बाद आज भी बरकरार है. हमारे सेट में गलती से गांधी के रूप में बेन किंग्सले के क्लोज अप वाली फोटो, दो हो गईं थीं. इस फोटो के पीछे लिखा था- ‘Gandhi in a pensive mood.’



बेन किंग्सले के क्लोज अप वाली फोटो के पीछे लिखा है, गांधी इन पेंसीव मूड.



गांधी को हमारी पीढ़ी ने नहीं देखा. यहां तक कि हम बच्चों ने ‘गांधी’ फिल्म भी कभी हॉल में नहीं देखी. हमारे बचपन में गूगल और यू-ट्यूब भी नहीं था. ऐसे में फिल्म ‘गांधी’ का ये फोटो सेट, हमारे लिए किसी धरोहर से कम नहीं था. इस फोटो सेट को देख कर ही और इसके ब्रोशर को पढ़ कर हमने ‘गांधी’ के बनने की पूरी कहानी पढ़ी थी.


बाद में यही फिल्म टीवी पर हर साल दो अक्टूबर या तीस जनवरी के रोज, देखते हुए हम बड़े हुए. गांधी की हमारी सारी पहली स्मृतियां रिचर्ड अटेंब्रो के फिल्मी छायांकन पर ही आधारित थीं. हमारी जिंदगी में गांधी फिल्मी रास्ते से, बेन किंग्सले का रूप धारण कर आए थे. कहा जाता है कि गांधी के रोल के लिए बेन किंग्सले से पहले नसीरुद्दीन शाह के नाम पर भी विचार हुआ था पर फिल्म के लिए अंततः बेन किंग्सले को ही गांधी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ.


फोटो सेट


सेट में एक फोटो जलियां वाला बाग की है. कहते हैं कि जलियां वाला बाग हत्याकांड का सिनेमा में आजतक का सबसे सटीक चित्रण फिल्म ‘गांधी’ में ही हुआ है. फोटो सेट में जलियां वाला बाग हत्याकांड की इस फोटो के पीछे विवरण में लिखा है –


without issuing a warning, general Dyer orders two companies of Indian troops to open fire on the crowd trapped in the jallianwala Bagh. In less than 15 minutes 1650 bullets are fired causing 1516 casualties.


फिल्म ‘गांधी’ में इस हत्याकांड को दिल्ली के एक कॉलेज में फिल्माया गया था. फोटो सेट की एक फोटो में बा, गांधी जी को चरखा चलाना सिखा रही हैं. एक फोटो में दांडी यात्रा है. एक फोटो में दक्षिण अफ्रीका में ‘पास लॉ’ के खिलाफ जुलूस निकालते गांधी का सीन है.



फोटो सेट में एक फोटो गांधी जी को चरखा चलाना सिखा रही बा की भी है.



रिचर्ड अटेंब्रो


एक समय था जब विश्व प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक डेविड लीन भी गांधी के ऊपर एक फिल्म बनाना चाहते थे. डेविड लीन ने अपने गांधी के लिए एक्टर सर एलेक गिनीज को चुन रखा था. किसी कारणवश डेविड लीन गांधी पर वो फिल्म न बना सके और ‘गांधी’ बनाने का यश आखिरकार, रिचर्ड अटेंब्रो की झोली में आ गिरा. अगर रिचर्ड अटेंब्रो आज जिंदा होते तो सौ साल के होते. उन्हें इस बात की तस्सली होती कि हर साल ऑस्कर अवॉर्ड समारोह के समय हम हिंदुस्तानी उनको और उनकी इस आइकॉनिक फिल्म को खूब याद करते हैं. ऑस्कर्स अवॉर्ड्स में इस फिल्म को कुल ग्यारह नॉमिनेशन और आठ ऑस्कर्स मिले थे.


प्रीमियर वाले इस फोटो सेट की एक फोटो में गांधी को सीन समझते खुद रिचर्ड अटेंब्रो देखे जा सकते हैं. इस फोटो के पीछे लिखा विवरण, पढ़ पता चलता है कि ये साबरमती आश्रम का दृश्य है.



प्रीमियर वाले फोटो सेट में गांधी को सीन समझते खुद रिचर्ड अटेंब्रो की भी एक फोटो है.



कॉस्ट्यूम्स के लिए ऑस्कर


‘गांधी’ एक पीरियड फिल्म थी इसलिए इसके सेट्स और इसके कॉस्ट्यूम्स के लिए बड़ी रिसर्च की गई थी. भानु अथैय्या, जिनको फिल्म के कॉस्ट्यूम करने के लिए ऑस्कर मिला था, कहती थीं, ‘5000 लोगों को खादी के कपड़े पहनाना आसान काम नहीं था. 1885 से लेकर 1948 तक के बदलते समय और बदलते प्रांतीय रिवाजों को ध्यान में रख कॉस्टयूम डिजाइन करना एक मुश्किल काम था. इस विशाल देश में भाषा और रिवाज की तरह वेशभूषा भी अनेक हैं. कपड़े पहनने के तरीके अनेक हैं. साड़ी, धोती, कुर्ता, पगड़ी, टोपी को देश और काल के अनुसार दिखाना एक विशेषज्ञता पूर्ण कार्य है जिसे करने की भरपूर कोशिश इस फिल्म में की गई.’


बता दें फिल्म की शूटिंग के समय दर्जियों की एक पूरी टीम लगी हुई थी. दर्जियों की ये टीम दिल्ली के अशोका होटल के कन्वेंशन सेंटर में बैठ अपना काम पूरा करती थी.


गांधी, पटेल नेहरू के बाल


कहते हैं फिल्म ‘गांधी’ के लिए बेन किंग्सले, रोशन सेठ और सईद जाफरी ने अपने सर मुंडवा लिए थे. दरअसल उम्र के साथ बदलते बालों को दिखाने के लिए, स्टाइल देने के लिए, गंजे सरों पर विग का इस्तेमाल आसानी से हो जाता था. इसलिए फिल्म के इन मुख्य किरदारों का पचास साल का सफर दिखाने के लिए ये जरूरी था. फिल्म में अकेले गांधी के बालों का स्टाइल ही ग्यारह बार बदलता है. इस तरह पाउला गिलेस्पी और टॉम स्मिथ की टीम ने मेकअप के इन सारे गुरों का इस्तेमाल इन किरदारों के लुक के साथ कर डाला था.


फिल्म में पैन विजन


फोटो सेट की इन दसों फोटो के पीछे दी हुई जानकारी में, विवरण में एक वाक्य सबमें रिपीट हुआ है.


‘Richard Attenborough’s film Gandhi, is in Panvision and Technicolor. Made entirely on location in India it is an Indo British Films production and Columbia Pictures release.’


पैनविजन उस समय के हिसाब से एक नई तकनीक थी. इस तकनीक से युक्त कैमरा लेंस उच्च कोटि की फोटोग्राफी के लिए उपयुक्त माने जाते थे. गांधी के लिए तीन पैनविजन कैमरों का इस्तेमाल हुआ था जिसके लिए पहली बार लाउमा क्रेन, भारत लाई गई थीं.


‘टाइटेनिक’ और ‘जुरासिक पार्क’ की तरह आज ‘गांधी’ भी गजब की रिपीट वैल्यू वाली फिल्म बन गई है. सबने इसे देखा है. इसके बारे में गूगल करने पर इसके बनने की, सारी जानकारी झटपट उपलब्ध हो जाती है. पर गूगल से बहुत दूर वाले हमारे बचपन ने, इन बेशकीमती ब्लैक एंड व्हाइट फोटो सेट से इस फिल्म की सारी जानकारी हासिल कर ली थी. कल बुक शेल्फ को व्यवस्थित करते हुए ये तस्वीरें क्या मिलीं, बेमौका गांधी याद आ गए.


बेमौका इसलिए क्योंकि अब हम गांधी को दो अक्टूबर या तीस जनवरी के अलावा, जरा कम ही याद करते हैं.


धन्यवाद

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
ब्लॉगर के बारे में
ज्योत्स्ना तिवारी

ज्योत्स्ना तिवारीअधिवक्ता एवं रेडियो जॉकी

ज्योत्सना तिवारी अधिवक्ता हैं. इसके साथ ही रेडियो जॉकी भी हैं. तमाम सामाजिक कार्यों के साथ उनका जुड़ाव रहा है. इसके अलावा, लेखन का कार्य भी वो करती हैं.

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First published: March 21, 2023, 9:35 pm IST

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