निकहत ज़रीन ने एक बार फिर गोल्डन पंच मारा है. कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में हिंदुस्तान के खिलाड़ी सोना-चांदी जीत रहे हैं. पूरा देश उन्हें को मुबारकबाद दे रहा है. सब गर्व से फूले नहीं समा रहे हैं. इन गेम्स में महिला खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर नज़र डालें तो उनका प्रदर्शन कमाल रहा है. रविवार को बॉक्सिंग में निकहत ज़रीन ने गोल्ड मेडल अपने नाम किया. वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप जीतने के बाद ये निकहत की बड़ी कामयाबी है. सोशल मीडिया निकहत की वाहवाही से पटा पड़ा है. आखिरकार निकहत ने वो कर दिखाया है जो हज़ारों-लाखों लड़कियों के लिए हिम्मत और हौसले का सबब बनेगा. वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशिप के बाद निकहत ज़रीन ने इंग्लैंड के बर्मिंघम में खेले जा रहे कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में गोल्डन पंच लगाकर इतिहास रच दिया है. निकहत की जीत का ये पंच उन लड़कियों के लिए किसी झरोखे से कम नहीं, जिनका टैलेंट बंद कमरों के पीछे सिसक-सिसक कर दम तोड़ देता है.
निकहत का सोने का तमगा उन सोने के ज़ेवरात पर भारी है, जो औरतों के लिए बेड़ियों का काम करते हैं. 25 साल की निकहत ने वो कर दिखाया है, जिससे लड़कियों को कमज़ोर समझने वालों को ज़ोरदार धक्का लगा है. तेलंगाना के निज़ामाबाद से आने वाली निकहत और उसके परिवार ने साबित किया कि हिम्मत, हौसले और कड़ी लगन से कामयाबी का मुक़ाम हासिल किया जा सकता है. मुस्लिम परिवार से आने वाली निकहत उन लड़कियों के लिए मिसाल हैं, जिन्हें शर्तों पर पढ़ने, घर से निकलने का मौका मिलता है. हज़ारों-लाखों लड़कियों का टैलेंट घर के पर्दों में क़ैद रह जाता है. वो अपने सपनों में रंग भरना चाहती हैं, लेकिन उनकी आंखों से ख्वाब छीन लिए जाते हैं और उन्हें झोंक दिया जाता है चूल्हे-चौके में. वर्ल्ड चैंपियनशिप जीतने के बाद निकहत की कामयाबी जारी है, जो लड़कियों के लिए हौसले की मिसाल बनी है.
निकहत जरीन ने लगाया गोल्डन पंच, कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में लहराया तिरंगा
कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत की बेटियां कामयाबी के झंडे गाड़ रही हैं. वो सोने-चांदी की बरसात करा रही हैं. बॉक्सिंग, रेसलिंग, हॉकी, क्रिकेट, एथलेटिक्स हर खेल में देश की बेटियां हमारा मान बढ़ा रहीं हैं. छोटे-छोटे शहरों से संघर्ष भरी कहानियां अपने आप में समेटे हुए ये खिलाड़ी रौशन सितारा बनी हुई हैं. इन लड़कियों ने साबित किया है कि वो किसी से कम नहीं हैं. सोशल मीडिया इन्हें बधाइयां दे रहा है. देश का सीना गर्व से चौड़ा हो रहा है. लेकिन सवाल यहां ये है कि क्या लड़कियों के लिए यहां तक का सफ़र आसान रहा होगा. आज उनकी कामयाबी के कई साझेदार बन रहे हैं, लेकिन परिवार और उन्होंने कितने अभावों में अपने जुनून को ज़िंदा रखा ये कोई नहीं जानना चाहता है. देश की झोली में भर-भरकर पदक लाने वाले खिलाड़ियों और खेल को लेकर हम कितने जागरुक हैं ये किसी से छुपी हुई बात नहीं है. हम सिर्फ़ कामयाबी का जश्न मनाते हैं लेकिन एक खिलाड़ी वो भी लड़की के लिए कामयाबी का सफ़र काटों से भरा हुआ सफ़र होता है. तरह-तरह के आभावों, शोषण, रोकटोक,बंधनों को पार करते हुए देश की बेटियां अपने गले में गोल्डन, सिल्वर, ब्रॉन्ज मेडल पहन पाती हैं.
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खिलाड़ियों के संघर्ष की कहानी हर कोई चटखारे लेकर पढ़ता है. लड़कियों के लिए ये संघर्ष कई गुना बढ़ जाते हैं. अक्सर उन्हें पहले परिवार के सामने संघर्ष करना पड़ता है फिर समाज और फिर इस व्यवस्था से. छोटे-छोटे कस्बों, गांवों से निकलकर आने वाली ये खिलाड़ी अपनी कहानी खुद बयां करती हैं. लड़कियों का संघर्ष इसलिए भी ज़्यादा है क्योंकि उन्हें घर से बाहर निकलने के लिए भी अपनों से समाज से झगड़ना होता है. हम ये कह कर पल्ला झाड़ लेते हैं कि समाज की सोच लड़कियों को लेकर बदल गई है लेकिन क्या हम अपने आसपास होने वाली लड़कियों की अनदेखी को सिरे से खारिज नहीं कर दे रहे हैं. जैसे तैसे बेटियां घरों निकलकर खेल के मैदानों में पहुंच रही हैं तो. ज़रूरत है कि उन्हें हौसला दिया जाए. उनके संघर्ष को घर-घर तक पहुंचाया जाए.
निकहत ज़रीन के वर्ल्ड बॉक्सिंग चैपियनशिप जीतने के बाद जहां उनको बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ था, वहीं रूढ़िवादी सोच के कट्टरपंथी लोग निकहत को ट्रोल करने में लग गए. किसी ने उसे पर्दे की सलाह दी तो किसी ने कहा कि बॉक्सिंग लड़कियों का खेल नहीं है. किसी ने जारी कर दी हराम और हलाल की लिस्ट. लेकिन निकहत का सफ़र अनगिनत निकहत पैदा करेगा. निकहत जरीन का जन्म तेलंगाना राज्य के शहर निजामाबाद में हुआ था.। 14 जून 1996 को जमील अहमद के घर निकहत का जन्म हुआ. 14 साल की उम्र से बॉक्सिंग की शुरुआत करने वाली निकहत के लिए यहां तक का सफर आसान नहीं रहा. लेकिन निकहत ने कभी हार नहीं मानी वो चलती रहीं और आज उनकी कामयाबी दुनिया देख रही है.
मुस्लिम समाज से आने के कारण निकहत के लिए मुश्किलें कुछ ज़्यादा रही होंगी. लेकिन निकहत इस मामले में खुशनसीब कही जा सकती हैं कि उन्हें ऐसा परिवार मिला, जहां उन्हें बॉक्सिंग जैसा चैलेजिंग खेल खेलने की इजाज़त ही नहीं मिली बल्कि उनके साथ उनका पूरा परिवार हर मुश्किल में खड़ा भी रहा. मुस्लिम समाज से ताल्लुक रखने के कारण मैं ये अच्छे से बता सकती हूं कि किसी मुस्लिम लड़की का घर से निकलना, समाज और धर्म के बनाए निमय कायदों को परे रख यहां पहुंचना कोई आसान काम नहीं है. मेरे ही परिवार की एक बेटी जो बेहतरीन फुटबॉल खिलाड़ी थी इसलिए स्टेट लेवल नहीं खेलने दिया क्योंकि परिवार ने उसे शहर से बाहर खेलने की इजाज़त नहीं दी. अगर निकहत की तरह इस बेटी को भी सपोर्ट करने वाला परिवार मिलता तो शायद हम एक बेहतरीन फुटबॉल खिलाड़ी के बारे में जान रहे होते.
सानिया मिर्ज़ा ने जब टेनिस कोर्ट पर कामयाबी के झंडे गाड़ने शुरु किए थे, तब भी उन्हें आचोलना झेलनी पड़ी थी. किसी ने कहा कि लड़कियों को छोटी स्कर्ट पहनकर टेनिस नहीं खेलना चाहिए. ये धर्म के खिलाफ़ है तो कोई मज़हब की दुहाई दे रहा था. लेकिन सानिया मिर्ज़ा ने साबित किया कि वो एक शानदार खिलाड़ी हैं. वो किसी भी तरह की आलोचनाओं से नहीं डरतीं. यहीं जज़्बा निकहत ज़रीन का भी है. मुस्लिम समाज से ताल्लुक रखने के बावजूद टेनिस, बॉक्सिंग करना कोई आसान काम नहीं है. हम दुआ करते हैं कि इस देश को ऐसे सैकड़ों-हज़ारों सानिया-निकहत मिलें जो घरों में बंद लड़कियों के लिए बंद दरवाज़ें खोलें और समाज का नज़रियां बदलें.
एक दशक तक राष्ट्रीय टीवी चैनल में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी. सामाजिक ,राजनीतिक विषयों पर निरंतर संवाद. स्तंभकार और स्वतंत्र लेखक.
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