अगर आपको लगता है कि आपकी मां, बहन, पत्नी बहुत खुश हैं तो उन्हें कभी प्यार से देखिए और टटोलिए...

Violence Against Women: जुल्‍म और गम, शरीर पर पड़े निशान नहीं बल्कि आत्मा का दु:खी होना भी होता है. जुल्‍म चुपके-चुपके बहने वाले आंसू भी होते हैं, जुल्‍म आधे-अधूरे ख्‍वाब और ख्वाइशें भी होती हैं. जुल्‍म देखा नहीं जाता है बल्कि उसे महसूस करने के लिए औरत जैसा मन चाहिए होता है, वरना ये कहकर पल्ला झाड़ लिया जाता है कि औरत को समझना तो भगवान के बस में भी नहीं.

Source: News18Hindi Last updated on: March 16, 2023, 8:43 am IST
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औरत पर जुल्म सिर्फ शरीर पर पड़े निशान नहीं, आत्मा का दु:खी होना भी है
सिर्फ शारीरिक हिंसा या अपराध ही महिलाओं का शोषण नहीं है. इसके कई आयाम हैं जो हमारे व्‍यवहार से जुड़े हैं.

बहुत लोग सवाल उठाते हैं कि औरतों पर उतने जुल्म नहीं होते जितने बताए जा रहे हैं. औरतें उतनी गमगीन नहीं जितनी दिखाई जा रही है. औरतें शोषित भी नहीं जितनी महिलावादी बताते हैं. अब सवाल ये है कि क्या वाकई समाज के लोगों का ये दावा सही है? क्या वाकई औरतों को उतनी तकलीफें नहीं हैं जितनी फेमिनिस्ट या हम जैसी महिलाओं को नजर आती हैं? क्या वाकई हम औरतों की दुनिया को अलग तरह से देख रहे हैं? क्या वाकई हमारी नज़र वो देख रही है जो आम इंसान नहीं देख पाता है? सवाल बहुत से हैं जिनके बारे में सोचने की जरूरत है.


दरअसल, गलती समाज की, आपकी नहीं है, आपको महिला शोषण और जुल्म वही लगता है जब कोई मर्द अपनी बीवी को मारता है, उसके साथ शारीरिक हिंसा करता है या किसी औरत के साथ बलात्कार या उसका यौन उत्पीड़न होता है. आपके लिए जुल्म सिर्फ शारीरिक हिंसा है. तो जनाब दिमाग के जाले हटा दीजिए. आपके लिए जुल्‍म और गम की परिभाषा अलग है लेकिन एक महिला के मन में जो उथल-पुथल होती है उसका अंदाजा भी शायद आप लगा नहीं सकते हैं या फिर औरत के बारे में सोचना ही नहीं चाहते हैं. एक औरत तमाम उम्र क्या-क्या सहती है, गर आप एक औरत से जुल्म और बर्दाश्त की परिभाषा सुनेंगे तो वो परिभाषा आपके पैरों से जमीन खिसका देगी. आपको जो सोशल मीडिया या फिर असल जिंदगी में बागी औरतें लगती हैं उन्होंने अभी असल में बगावत की ही नहीं है, वो सिर्फ अभी अपनी बात कह रही हैं, ताकि आप महिला का मन समझ सकें, उसके प्रति संवेदनशील बन सकें. औरतों के हिस्से की उदासी समझने के लिए आपको अहसास करना पड़ेगा, आपको थोड़ा ठहरना पड़ेगा और बहुत सारा सोचना पड़ेगा, वो भी उसे इंसान मानकर ना कि हाड़-मांस की मशीन मानकर.



चलिए, अब गम पर आते हैं तो गम आपको नजर नहीं आता है लेकिन जितना सब्र औरत रखती है कोई नहीं रख सकता है. औरत के सब्र के बारे में कहा जाते है कि वो अपने आप में इतना कुछ दबा के रखती है कि गर उसने सब्र करना छोड़ दिया तो समाज का ताना-बाना बिगड़ जाएगा. ये माना जाता है कि शादियां समझौतों से चलती हैं. शादी और विदाई के बाद बेटी को हजार तरह की नसीहतें दी जाती हैं. उसे समझाया जाता है कि बेटा अपने ससुराल वालों की बातें बर्दाश्त करना, कोशिश करना कि बहुत ज़्यादा रिएक्ट ना करो क्योंकि शादी निभाने के लिए समझौते तो करने होते हैं. और इन समझौतों का पूरा बोझ लड़कियों के कांधों पर लाद दिया जाता है. अब अगर आज के वक्त में टूटते रिश्तों और शादियों की बात करें तो ये मान लिया जाता है कि शादियां इसलिए टूट रहीं हैं क्योंकि लड़कियों में सब्र कम हो गया है, उन्होंने अपनी बर्दाश्त कम कर ली है. शादियां औरतों के समझौते से निभती हैं.


अब समझौते पर आते हैं, तो समझौता गम भी है खुद की इच्छाओं को मारने का. एक रिश्ता निभाने के लिए ना जाने कितनी कुर्बानियां, कितने समझौते और कितने ख़्बावों की बलि दी जाती है. रिश्ता चलता रहे, मां-बाप की परवरिश पर सवाल ना उठे तो औरतें बर्दाश्त करती हैं, कभी-कभी बर्दाश्त इसलिए भी किया जाता है क्योंकि उनके पीहर में उनके लिए कोई जगह नहीं बचती है.


गर हम औरत की खुशी की बात करें तो अमूमन मर्दों की ये सोच होती है कि एक औरत को खुश रखने के लिए अच्छे कपड़े, जेवर, ऐश-ओ-आराम चाहिए होता है. किसी औरत को इसके अलावा क्या ही चाहिए लेकिन हर औरत सोने-चांदी के जेवर और महंगे तोहफों से खुश नहीं होती लेकिन वो आपके लिए खुश होने का नाटक जरूर करती है. क्योंकि जिस दिन उसने अपनी इच्छाओं को बताना और उन्हें पूरा करना शुरू कर दिया तो आप बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे. आपको वो औरतें खुश लगती हैं जो अपने परिवार के लिए अपना कॅरियर दांव पर लगा देंती हैं, अपने बच्चे के लिए एक झटके में जॉब छोड़ देती हैं. समाज उन्हें आला मुकाम देता है, मां को त्याग की मूर्ति कहते हुए हमारी जुबान नहीं थकती है. लेकिन एक मां अपने बच्चों के लिए अपना सुनहरा कॅरियर जरूर छोड़ देती हैं लेकिन उनके अधूरे सपने उन्हें परेशान करते हैं. वो अपने बच्चे को छोड़ नहीं सकती लेकिन उनका एक कोना दु:खी होता है अपने ख्वाबों को अपने ही हाथों तोड़ने से.


कभी आपने ये सोचा है कि एक औरत अपनी कॅरियर, नौकरी से समझौता क्यों करती है, शायद नहीं लेकिन उसकी वजह है उसके पार्टनर का साथ ना देना. बच्चा होने के बाद सारी जिम्मेदारी मां के कंधे पर डाल दी जाती है. उससे एक झटके में नौकरी छोड़ने को कह दिया जाता है. लेकिन उसे अपने सपनों की कुर्बानी ना देना पड़े गर बच्चे की जिम्मेदारी बाप भी उठाए, लेकिन पिता के बस में बच्चे को एक घंटे संभालने का सब्र भी नहीं होता है. घरों में अपनी जिंदगी खपाने वाली औरतें अकसर ये सुनती हैं कि घर में बैठकर करती ही क्या हो. कितना असंवेदनशील है किसी औरत की जिंदगी को, उसके वजूद को एक लम्हे में जीरो कर देना.


आपको लगता है कि आपकी मां, बहन, पत्नी बहुत खुश हैं तो कभी प्यार से देखिए और टटोलिए उन्हें, बहुत खालीपन मिलेगा उनकी जिंदगी में उनकी आंखों में. ये भी एक जुल्‍म हैं जो वो हंसते-हंसते रहती हैं और आपको औरत खुश लगती है. अगर बहन अपने भाई से अपने हक के लिए लड़े तो वो खराब हो जाती है और अगर त्याग कर दे तो महान. हमारा सामाजिक ढांचा ऐसा बना दिया गया है कि आप इतने संवेदनशील हो ही नहीं सकते कि आपको औरत की अनकही बातें समझ आ जाएं. औरतें जन्म से संघर्ष करती हैं, थोड़ी बड़ी हुई तो छोटे-भाई बहन को मां बनकर पाल लेती हैं लेकिन क्या उसका बचपन उसे अखरता नहीं होगा? क्या आपको उसका दर्द समझ आता है? नहीं आता होगा क्योंकि यही तो तय है हमारे समाज में. मेरी ज्‍यादातर सहेलियां नौकरी करती हैं, पति के साथ घर लौटने के बाद वो किचन में जाती हैं और पति बिस्तर पर. ये भी जुल्‍म है. कोई औरत थकती है लेकिन आपको उसकी थकन नजर नहीं आएगी. ये तो सामान्य औरत की जिंदगी है कभी गांव-कस्‍बे में औरतों को देखिए, खेत संभालती हैं, बच्चे पालती हैं घर देखती हैं और पतियों के जुल्‍म भी सहती हैं.


जुल्‍म और गम, शरीर पर पड़े निशान नहीं बल्कि आत्मा का दु:खी होना भी होता है, जुल्‍म चुपके-चुपके बहने वाले आंसू भी होते हैं, जुल्‍म आधे-अधूरे ख्‍वाब और ख्वाइशें भी होती हैं. जुल्‍म को देखा नहीं जाता है बल्कि उसे महसूस करने के लिए औरत जैसा मन चाहिए होता है, वरना ये कहकर पल्ला झाड़ लिया जाता है कि औरत को समझना तो भगवान के बस में भी नहीं. लेकिन थोड़ा सा ठहकर, कभी खुद से सवाल करिए क्या वाकई औरत को समझना इतना मुश्किल है आपको आपके सवाल का जवाब भी मिल जाएगा. क्योंकि औरत के मन को समझने के लिए आपके अंदर, जज़्बात, मोहब्बत, अपनापन और तकलीफ महसूस करने का माद्दा होना बहुत जरूरी है.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
ब्लॉगर के बारे में
निदा रहमान

निदा रहमानपत्रकार, लेखक

एक दशक तक राष्ट्रीय टीवी चैनल में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी. सामाजिक ,राजनीतिक विषयों पर निरंतर संवाद. स्तंभकार और स्वतंत्र लेखक.

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First published: March 16, 2023, 8:43 am IST

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