ये क्या जगह है दोस्तों, ये कौन सा दयार है... साहित्य और सिनेमा से वाबस्ता अधिकांश लोग ये जानते हैं कि क्लासिक फि़ल्म 'उमराव जान' के लिए मक़बूल शायर शहरयार ने ऐसी पुरकशिश ग़ज़लें लिखीं. लेकिन ये कम लोग जानते हैं कि मुज़फ्फर अली को यह फि़ल्म बनाने का मशविरा ...और भी पढ़ें
"जब तक हम इस विशाल देश को उसकी समूची खूबियों के साथ नहीं देखेंगे तब तक हमारा उसके प्रति प्रेम शाब्दिक ही होगा. परिक्रमा तीर्थाटन तथा पर्यटन से हम अपने देश से जुड़ते हैं. प्रकृति प्रेम देश प्रेम की पहली सीढ़ी है." अमृतलाल बेगड़ ने अपनी तीसरी किताब ‘तीरे-तीरे नर्मदा’ में ...और भी पढ़ें
जगजीत सिंह शायर के लफ्ज़ों को आवाज दे रहे हैं, दार्शनिक अंदाज़ में कहते हैं 'अपनी मर्जी़ से कहॉं अपने सफ़र के हम हैं, रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं'. हवाओं में सचमुच वो ताकत है जो दुनिया को अपने हिसाब से मूव करा सके. हवा ...और भी पढ़ें
कबीर संत हैं. कबीर मध्यकालीन भक्ति आंदोलन के अग्रणी कवि हैं. वे एक पंथ के आधार हैं. वे ऐसे दृष्टता हैं जिनकी वाणी को सुन आज भी हैरत होती है कि जो आज कहने में हिम्मत नहीं होती वह उस समय में कबीर कैसे कह पाए? कह पाए तो ठीक, ...और भी पढ़ें
पारंपरिक रंगमंच और सभागारों से इतर चौक-चौराहे, गली-मोहल्ले, झुग्गी-झोपड़ी, हड़ताल-आंदोलन में, फैक्ट्रियों के आस-पास या कॉलेज-विश्वविद्यालय में जनता से ‘आओ आओ, नाटक देखो, नाटक देखो...’ की गुहार से शुरु हो कर समकालीन समय और सामाजिक-राजनीतिक सवालों से मुठभेड़ की शैली अब नुक्कड़ नाटकों की विशिष्ट पहचान बन चुकी है. आजाद ...और भी पढ़ें
जिस सुबह की ख़ातिर जुग जुग से हम सब मर मर के जीते हैं जिस सुबह के अमृत की धुन में हम ज़हर के प्याले पीते हैं इन भूखी प्यासी रूहों पर इक दिन तो करम फ़रमाएगी वो सुबह कभी तो आएगी -साहिर लुधियानवी एनएसओ के आंकड़े जो भी कहें, एक्टिविस्ट कितना भी ...और भी पढ़ें
एक पुरानी कहावत है कि भाग्य उसी की मदद करता है जो खुद अपनी मदद करता है और क्रिकेट में अक्सर ऐसा देखा जाता है कि सिर्फ आपका भाग्य ही नहीं बल्कि कई मौकों पर आपके साथी खिलाड़ियों का दुर्भाग्य भी अंजाने में ही सही आपके लिए बड़ा मददगार साबित ...और भी पढ़ें
चुनाव आयोग की घोषणा के अनुसार देश के अगले राष्ट्रपति का चुनाव 18 जुलाई को होगा. इन चुनावों में विधायक और सांसदों के वोटों की वैल्यू सन 1971 की जनगणना के अनुसार निर्धारित होगी. योजनाओं के लाभ, रोजगार और चुनावों में आरक्षण आदि के नाम पर बिहार में जातीय जनगणना ...और भी पढ़ें
बुलडोजर अहसास है शक्ति का. बलशालियों के बल कम करने का. बुलडोजर देखकर ताकतवर भी खुद को असहाय महसूस करने लगते हैं. वर्तमान में तो हर किसी की बातों में इसका जिक्र होना आम हो गया है. जहां भी इसके दर्शन होते हैं लोगों के झुण्ड दिखाई देने लगते हैं. ...और भी पढ़ें
रेडियो पर आरजे वाले कॅरियर ने मेरे फिल्मी ज्ञान चक्षु खोलने में बहुत मदद की थी. एक तो रोज़ाना के फिल्मी शोज़ के कारण नई नई फिल्मी जानकारी पढ़ने को होती थी. ढूंढनी पड़ती थी और दूसरा आए दिन फिल्मी हस्तियों को देखने, जानने का मौका मिला करता था. दोनों ...और भी पढ़ें
त्रिस्तरीय पंचायतों के चुनाव दलीय आधार पर होते तो शायद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान निर्विरोध निर्वाचन के लिए पंचायतों को कोई पुरस्कार घोषित ही नहीं करते. जो भी चुनाव दलीय आधार पर होते हैं,उनमें भाजपा की रणनीति अपने वोट बैंक को बढ़ाने की रहती है. त्रिस्तरीय पंचायतों के चुनाव में ...और भी पढ़ें
क्या करे समुद्र क्या करे इतने सारे नमक का कितनी नदियाँ आईं और कहाँ खो गईं क्या पता कितनी भाप बनाकर उड़ा दीं इसका भी कोई हिसाब उसके पास नहीं फिर भी संसार की सारी नदियाँ धरती का सारा नमक लिए उसी की तरफ़ दौड़ी चली आ रही हैं ... कवि नरेश सक्सेना की कविता की इन पंक्तियों में ...और भी पढ़ें
वो आठ जून की मनहूस सुबह थी. भोपाल नेशनल हॉस्पिटिल में हबीब तनवीर की सांसों का कारवाँ थम गया था. जीवन के रंगमंच को एक मकबूल कि़रदार ने अलविदा कहा और इस दुनिया-ए-फ़ानी में अपने नक़्शे क़दम छोड़ते हुए उसका जिस्म सुपूर्दे ख़ाक कर दिया गया. हबीब तनवीर यानी हिन्दी ...और भी पढ़ें
हिन्दी में एक प्रचलित मुहावरा है- तोल-मोल के बोलना, यानी कोई भी बात कहने या बताने से पहले उसका आगा-पीछा सोचना, उसके कारण होने वाले परिणामों को जानना, समझना. लेकिन ऐसा लगता है कि इन दिनों यह मुहावरा अपनी अहमियत पूरी तरह से खोता जा रहा है. अब लोग तोल-मोल ...और भी पढ़ें
एमपी के पन्ना जिले के तीर्थयात्रियों की उत्तराखंड में बस पलटने से हुए निधन के मसले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जो तत्परता दिखाई है, वो सराहनीय है. ये ठीक है कि किसी भी राज्य में हों, हादसे रोके नहीं जा सकते क्यूंकि इनके होने और नहीं होने के ...और भी पढ़ें