130 करोड़ आबादी वाला भारत दुनिया के सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले देशों में शुमार है. इसमें से करीब 35.29 फीसद आबादी 20 साल से कम उम्र की है. किसी भी देश के लिए सौ करोड़ लोगों को वैक्सीन के दो डोज़ देना एक बड़ी चुनौती है. कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर भारत के कोने कोने में तबाही मचाए हुई है, ऐसे में तीसरी लहर ( ज्यादा खतरनाक) के आने का अनुमान लगाया जा रहा है. कहा जा रहा है कि इस लहर में सबसे ज्यादा चपेट में बच्चे आएंगे. हालांकि इस बात को लेकर विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है.
इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (आईएपी) ने परामर्श जारी किया है जिसके मुताबिक बच्चों पर कोविड-19 का उतना ही असर होता है जितना किसी वयस्क पर. लेकिन तीसरी लहर को लेकर ये चिंता जाहिर करना कि इसका असर मुख्यतौर पर बच्चों पर ही होगा, ये कहना ठीक नहीं होगा, अभी तक ऐसे कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं जिससे ये पता चलता हो कि कोविड-19 संक्रमण की तीसरी लहर बच्चों में गंभीर असर डालेगी. हालांकि आईएपी ने चेताया भी है कि दूसरी लहर के गुज़र जाने के बाद अगर हम फिर लापरवाही बरतने लगे, तो तीसरी लहर आते ही उन लोगों को घेरे में लेगी जो अपनी तक इम्यून नहीं हुए हैं. इसमें बच्चे भी शामिल हैं.
यूनिसेफ ने 100 देशों के जनवरी 2020 से मार्च 2021 तक के डेटा को लेकर एक रिपोर्ट तैयार की है जिसके मुताबिक दुनियाभर के कुल 8 करोड़ मामलों में से करीब 1 करोड़ 10 लाख मामले बच्चों के थे यानि कुल संक्रमण का 13 फीसद, कोविड-19 के चलते 78 देशों के करीब 6800 बच्चों और किशोरों की मौत हुई जो कोविड से हुई 2.3 फीसद मौत के मुकाबले में 0.3 फीसद है. सरकारी आंकड़े के हिसाब से भारत में जनवरी 1 से लेकर अप्रैल-21 तक 20 साल से कम उम्र में होने वाले संक्रमण के 56 लाख मामले दर्ज हुए.
बच्चों में कुछ बीमारियों को छोड़ दिया जाए तो कोविड 19 का असर वयस्कों और बुजुर्गों के मुकाबले बच्चों पर कम ही पड़ा है. हालांकि ऐसा कहा जा रहा था कि अब बच्चे सुपर स्प्रेडर बनेंगे लेकिन यह बात सच साबित होती नहीं दिख रही. जानकारों का कहना है कि ज्यादातर वयस्कों के वैक्सीन लगने से सुरक्षित हो जाने के बाद कोरोना वायरस बच्चों में अपना ठिकाना ढूंढ सकता है इसलिए जरूरी है कि बच्चों को भी वैक्सीनेट किया जाए.
बच्चों को वयस्कों के बराबर तौलना गलत है और इसलिए जरूरी नहीं कि ज्यादा उम्र के लोगों पर जो ट्रायल कारगर हो, उसे बच्चों के लिए भी सही माना जाए. बच्चों को वैक्सीन लगाने की जल्दबाज़ी करने से पहले जरूरी विश्लेषण किया जाना चाहिए. बच्चों की इम्युनिटी बन रही है, ऐसे में उन्हें वैक्सीन देना उचित होगा या नहीं यह जानना जरूरी है. वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि अमीर देशों को फिलहाल बच्चों को वैक्सीन देने की बजाय गरीब देशों तक वैक्सीन पहुंचाने के बारे में विचार करना चाहिए.
बच्चों के लिए कोविड वैक्सीन – वर्तमान स्थिति
Pfizer-BioNTech कोविड 19, दुनिया की पहली ऐसी वैक्सीन है जो 12-15 साल के बच्चों के लिए मंजूर हुई है. बच्चों को इसके उतने ही डोज़ दिए जाएंगे जितने की बड़ों को देते हैं – दो डोज़ 21 दिन के अंतर में. फाइज़र की प्रेस रिलीज़ कहती है कि 12-15 साल के 2260 बच्चों पर किए गए तीसरे चरण के शोध में यह वैक्सीन 100 फीसदी कारगर साबित हुई. फिलहाल कंपनी 6 महीने से 11 साल तक के बच्चों पर जरूरी अनुमति के साथ ट्रायल कर रही है.
5 मई को कनाडा पहला देश बना जिसने इस वैक्सीन को बच्चों पर लगाने की अनुमति दी. हाल ही में 28 मई को यूरोपीय मेडिकल एजेंसी ने भी इस वैक्सीन को 12-15 साल तक के बच्चों के लिए मंजूरी दी है.
25 मई को कोविड 19 वैक्सीन के एक और अमेरिकी निर्माता मॉडर्ना ने भी 3732 बच्चों पर TeenCOVE के दूसरे और तीसरे ट्रायल के नतीजे घोषित कर दिए जो बताते हैं कि यह वैक्सीन 12-17 साल तक के बच्चों के लिए 100 फीसदी सुरक्षित है. कंपनी जून में वैक्सीन की मंजूरी के लिए अमेरिका की एफडीए एजेंसी से अनुमति लेगी. अगर मंजूरी मिलती है तो मॉडर्ना, यूएस में बच्चों के लिए मंजूर हुई दूसरी वैक्सीन होगी. इसके अलावा जॉनसन एंड जॉनसन और ऐस्ट्राजेनका भी बच्चों की वैक्सीन पर काम कर रहे हैं.
वैक्सीन को लेकर भारत की क्या स्थिति है
फिलहाल भारत में कोविड की तीन वैक्सीन को ही मंजूरी मिली है. कोवैक्सीन, कोविशील्ड, स्पूतनिक वी. इनमें से एक को भी 18 साल से कम के लिए मंजूरी नहीं मिली है. फाइज़र की वैक्सीन को अभी मंजूरी मिलना बाकी है. कंपनी ने अपने दावे में कहा है कि उनकी वैक्सीन भारत के वैरियंट पर असरदार है. यही नहीं अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन ने वैक्सीन को लेकर एक खास जानकारी दी है कि वैक्सीन के संग्रहण में भी विकास हुआ है, और इसे पहले की अपेक्षा ज्यादा वक्त के लिए संग्रहित किया जा सकता है. फिलहाल भारत के औषधि नियंत्रण विभाग (डीजीसीआई) ने भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को 2-3 फेज़ के क्लीनिकल ट्रायल को 2 से 18 साल के बच्चों के लिए अनुमति दी है.
वैक्सीन की सुरक्षा, असर और इससे होने वाली प्रतिक्रिया को लेकर देश भर के एम्स जिसमें दिल्ली, पटना, और मेटीट्रिना इन्स्ट्टियूट ऑफ मेडिकल साइंस नागपुर के 525 सब्जेक्ट पर विविध तरीके के परीक्षण किए जाने हैं. हालांकि क्लीनिकल ट्रायल रजिस्ट्री ऑफ इंडिया की आधिकारिक वेबसाइट पर मिली जानकारी के मुताबिक बच्चों के लिए कोवैक्सीन के जिस ट्रायल को अनुमति दी गई है उसका परीक्षण वयस्कों से बिल्कुल अलग है. बच्चों के लिए फेज -3 ट्रायल में दुनिया भर में ना तो रैंडमाइज्ड, प्लेसिबो कंट्रोल ट्रायल किया जा रहा है और ना ही कोविड संक्रमण या बीमारी पर ये वैक्सीन कितनी असरदार है ये देखा जा रहा है.
खबरों के मुताबिक, अहमदाबाद की जायडस कैडिला भी 5 से 12 साल की उम्र के बच्चों के लिए कोविड वैक्सीन (जायको वी-डी) का ट्रायल करने की योजना बना रही है. सुरक्षा और असर से जुड़े डाटा के अलावा वैक्सीन की बच्चों पर होने वाली प्रतिक्रिया और इस स्वदेशी वैक्सीन की वांछनीयता को बच्चों में होने वाला नियमित टीकाकरण (बगैर नियमित टीकाकरण से उत्पन्न हुई इम्यूनिटी में हस्तक्षेप किये) के साथ जोड़ कर भी देखने की कोशिश की जा रही है. हालांकि कोवैक्सीन के बच्चों पर ट्रायल की अनुमति मिल जाने के बावजूद अभी इसमें वक्त लग सकता है तब तक बच्चों को बचाए रखने का एक ही तरीका है कि हम कोविड से जुड़ी सावधानियों को बरतें और इसमें कोताही ना की जाए. यानि ठीक तरह से मास्क पहनें, शारीरिक दूरी बनाए रखें, भीड़ एकत्र ना करें, सैनिटाइज़र का प्रयोग करें. वयस्कों में टीकाकरण को बढ़ाकर भी हम कोविड संक्रमण पर रोकथाम लगा सकते हैं जिससे बच्चों की सुरक्षा भी सुनिश्चित की जा सकती है.
कोविड टीकाकरण के लिए कोई और नई नीति
वैक्सीन के इन्जेक्शन के अलावा वैज्ञानिक और दवा निर्माता दूसरे तरीकों पर भी काम कर रहे हैं जिसमें संक्रमण को रोकने के लिए गोली, कैप्सूल या नाक में डालने वाली ड्रॉप या नैजल स्प्रे शामिल है. non-invasive तरीकों को विकसित करके दवा देने, उनके संग्रहण और वैक्सीन की मांग पर भी नियंत्रण लगाया जा सकता है. इसके अलावा सुई से जुड़ी चोट या दूसरे खतरे को दूर किया जा सकता है. ये वैक्सीन म्यूकोसल इम्यून सिस्टम को टारगेट करती है. जिससे माइक्रोओरगेनिज्म यानि सूक्ष्मजीव को सुरक्षा के पहले द्वार यानि शुरुआत में ही रोका जा सकता है. इस तरह से म्यूकोज़ल वैक्सीन फेफड़ों से पहुंचने से पहले ही एक मजबूत इम्यून सिस्टम बना सकती है जो सूक्ष्मजीव को पहले ही रोकने में कारगर हो सकता है.
5 मई को डब्ल्यूएचओ की जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक यूएस और यूके, चीन, भारत, ईरान, और क्यूबा में नाक के ज़रिये देनी वाली आठ वैक्सीन पर ट्रायल जारी है. फिलहाल नाक के ज़रिए दी जाने वाली केवल दो वैक्सीन फेज़2 के क्लीनिकल ट्रायल तक पहुंची हैं. इनमें से एक यूनिवर्सिटी ऑफ हांग कांग, जियामेन यूनिवर्सिटी और बीजिंग के वांताई बायोलॉजिकल फार्मेसी एंटरप्राइज ने विकसित की है. दूसरी वैक्सीन इरान के राज़ी वैक्सीन एंड सीरम रिसर्च इन्स्टिट्यूट ने विकसित की है.
हालांकि बगैर इन्जेक्शन के दी जाने वाली वैक्सीन पर अभी भरोसा कायम नहीं हो पाया है. नाक के ज़रिये फ्लू वैक्सीन (फ्लूमिस्ट) के पिछले अनुभव बताते हैं कि ये वैक्सीन के सीमित असर हैं और लंबे वक्त तक इम्यूनिटी विकसित नहीं कर पाती है. दरअसल ऊपरी गेस्ट्रो इंटेस्टाइनल ट्रेक्ट में एसिडिक और श्वसन तंत्र में म्यूकस की वजह से चिपचिपा माहौल होने से वैक्सीन का असर कम हो जाता है. इसके साथ ही चूंकि नाक दिमाग से सीधी जुड़ी होती है इसलिए इसका विपरीत असर भी पड़ सकता है. इस चिंता ने वैज्ञानिकों को सोच में डाल दिया है.
पर्यावरण और इससे जुड़े मुद्दों पर लेखन. गंगा के पर्यावरण पर 'दर दर गंगे' किताब प्रकाशित।
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