दुनिया को बदलने वाला वो पहला कॉल, वो ट्रिन-ट्रिन का रोमांच

First Telephone Call: फोन कॉल के महत्‍व से आज कौन वाकिफ नहीं है? हमारी हथेली में समा जाने वाला फोन अपने में पूरी दुनिया समेटे हुए है. मोबाइल फोन हमारे लिए टेलीफोन, टॉर्च, घड़ी, कैमरा, टीवी, रेडियो, स्कैनर, क्‍लास, कांफ्रेंस सहित न जाने कितनी ही मशीनों का काम कर रहा है. आज फोन और सूचना के महत्‍व की बात इसलिए क्‍योंकि 10 मार्च 1876 को दुनिया का पहला फोन कॉल किया गया था. इस दिन के बहाने फोन कॉल से जुड़ी दिलचस्‍प बातें.

Source: News18Hindi Last updated on: March 10, 2023, 12:51 pm IST
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दुनिया को बदलने वाली वो पहली कॉल, वो ट्रिन-ट्रिन का रोमांच
10 मार्च को 1876 को टेलीफोन के आविष्कारक अलेक्जेंडर ग्राहम बेल ने पहला फोन कॉल किया था.

कितना अच्छा लगता है जब शहर के उस कोने में बैठा दोस्त फोन कॉल पर कहता है- याद ही नहीं करते तुम! मुझे तो जब तब तुम्हारी याद आ जाती है. दोस्‍त की यह एक बात झट से उंगली पकड़ कर गुलमोहर से लदे बाग में ले जाती है. इस वाक्य को पता ही नहीं कोई उसूल. वह नहीं जानता अपॉइंटमेंट लेने का रिवाज. वह बेधड़क घुस आता है खुशबू के झोंकों की तरह.


जब एक कॉल आता है और कहा जाता है- याद आती है, तब फाइलों से अटी पड़ी टेबल के किनारे-किनारे खिल आते हैं बोगन वेलिया. मन के स्क्रीन पर बनफूल की तस्वीर स्टेट्स बन महक जाती है. ऐसा ही होता है जब एक कॉल आता है और बुझ जाता है मन. अनहोनी की आशंका सच साबित होती है. यानी दुनिया की सूचनाएं हमारे खिलने और मुरझाने का सबब बनता है एक फोन कॉल. सो‍चिए जब फोन नहीं थे तब क्‍या होता था?


इंसान ने संप्रेषण के लिए जाने कितने माध्‍यम चुने जाने कितने तरीकों को आजमाया. शब्‍दों के परे स्‍पर्श और देखने भर से जाने कितनी बातों को कह दिया जाता है. पंछी और अश्‍व डाक लेकर आने-जाने के माध्‍यम बने तो फिर डाकिया खत लेकर आने लगा. तब भी तार यानी टेलीग्राम का खौफ था. उस वक्‍त यह ख्‍याल भी एक ख्‍याल होगा कि हम दूर बैठे अपने किसी प्रिय की आवाज एक छोटे से उपकरण के जरिए सुन पाएंगे. उसकी छवि देखना यानी वीडियो कॉल का स्‍वप्‍न तो अच्‍छी से अच्‍छी कल्‍पनाशक्ति वाले इंसान ने भी नहीं देखा होगा. फोन के आविष्‍कार ने जैसे हमारी दुनिया ही बदल दी. और अब एआई तकनीक जाने किस लोक के ख्‍याल को सच साबित करने जा रही है.


फोन कॉल की अहमियत पर मुझे बलराम गुमाश्‍ता की एक कविता याद आती है:


मां गांव में मरी

जिसकी सूचना

भोपाल में, मुझे

तीन दिन बाद मिली

इस तरह मरने के बाद भी

मेरे लिए

तीन दिन और जिंदा रही मां. 


दोस्त, संबंधी

और तमाम वो अपने

जिनकी सूचनाएं वर्षों से नहीं

कहीं इसी तरह से तो नहीं

बचे हुए हैं जिंदा.


अतीत में घट चुके को

वर्तमान बताती सूचनाएं

हमें बनाती हैं अमानवीय

वह भी इतना

कि देखो तो भला

मैं मां की मौत पर नहीं

उसकी सूचना पर रोया.


फोन कॉल और सूचना के महत्‍व की बात इसलिए क्‍योंकि 10 मार्च को दुनिया का पहला फोन कॉल किया गया था. उस फोन कॉल का महत्‍व भी उतना ही है जितना पहली पहली बार किए गए कॉल का होता है. जितना महत्‍व नौकरी के लिए आए पहले फोन कॉल का होता है. जितना प्रेम प्रस्‍ताव स्‍वीकार कर लिए जाने वाले कॉल का हुआ करता है. जितना महत्‍व लाइन चेंजिंग कहे जाने वाले फोन कॉल का होता है. 10 मार्च को 1876 को टेलीफोन के आविष्कारक अलेक्जेंडर ग्राहम बेल ने पहला फोन कॉल किया था. उन्‍होंने यह फोन कॉल दूसरे कमरे में बैठे अपने सहयोगी थॉमस वाटसन को किया था. इस पहले फोन कॉल में ग्राहम बेल ने कहा था, ‘मि. वाटसन, कम हियर. आई वांट यू. (मि. वाटसन. यहां आओ. मैं तुमसे मिलना चाहता हूं.)’


इस एक फोन कॉल के बाद तो जैसे दुनिया ही बदल गई. एक दूसरे से बात करने के लिए आने, जाने और मिलने की मजबूरी खत्‍म हो गई. घर बैठे, दफ्तर से बात होने लगी. और फिर आए कॉर्डलेस फोन और मोबाइल ने तो फिक्‍स फोन की सीमा को भी खत्‍म कर दिया. मोबाइल फोन आज टेलीफोन, टॉर्च, घड़ी, कैमरा, टीवी, रेडियो, स्कैनर, क्‍लास, कांफ्रेंस सहित न जाने कितनी ही मशीनों का काम कर रहा है.

संदर्भ है कि मोबाइल फोन का उपयोग पहली बार 3 अप्रैल 1973 को किया गया था. इसका इस्तेमाल अमेरिकन इंजीनियर मार्टिन कूपर ने किया था. कूपर ने ही मोबाइल फोन को बनाया था. हालांकि यह तथ्‍य अनजाना है कि उन्होंने पहला कॉल किसे किया था और क्‍या कहा था.


जहां तक हमारे देश की बात है तो भारत में टेलीफोन के आविष्‍कार के छह साल बाद 1881-82 में सर्वप्रथम कोलकाता में टेलीफोन सेवा शुरू हुई थी. भारत का पहला मोबाइल कॉल 31 जुलाई 1995 को किया गया था. तब तत्‍कालीन केंद्रीय दूरसंचार मंत्री सुखराम ने पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु से यह बात की थी. आपको याद दिला दूं कि तब उस एक कॉल पर 24 रुपए प्रति मिनट का खर्च हुआ था क्‍योंकि उस दौर में आउटगोइंग तथा इनकमिंग दोनों का पैसा लगता था. एक कॉल की आउटगोइंग पर करीब 16 रुपए और इनकमिंग पर करीब 8 रुपए खर्च होते थे. इस पहली कॉल के करीब 9 महीने बाद भारत में पहली बार सेलुलर सर्विस शुरू हुई. आज सबसे सस्‍ते और बड़े नेटवर्क के साथ 5 जी सेवा के युग में आ पहुंचे हैं.


बात जब फोन कॉल की हो रही है तो ‘हेलो’ शब्‍द को कैसे भूल सकते हैं? इस शब्‍द के उपयोग को लेकर कई धारणाएं है. कहा जाता है कि फोन उठाते ही हेलो शब्‍द का उपयोग भी टेलीफोन के अविष्कारक अलेक्जेंडर ग्राहम बेल ने किया था. इसके पीछे भी एक प्रेम कहानी बताई जाती है. कहा जाता है कि टेलीफोन का अविष्कार करने के बाद ग्राहम बेल ने सबसे पहले अपनी गर्ल फ्रेंड ‘मारग्रेट हेलो’ को फोन लगाया था. उन्होंने उनका नाम हेलो लिया और वहीं से फोन पर सबसे पहले हेलो कहने का चलन शुरू हो गया. उपलब्‍ध तथ्‍य यह है कि ग्राहम बेल की गर्ल फ्रेंड का नाम ‘मारग्रेट हेलो’ नहीं मेबेल हवार्ड था. इन्‍हीं से उनकी शादी भी हुई थी. ग्राहम बेल ने हेलो नहीं बल्कि ‘हाय’ शब्द बोला था. इसी शब्द का उपयोग फोन पर बात शुरू करने से पहले किया जाने लगा.


डिक्शनरी बताती है कि हेलो शब्द पुराने जर्मन शब्द हाला, होला से बना है, जिसका इस्तेमाल नाविक करते थे. यह शब्द पुराने फ्रांसीसी या जर्मन शब्द ‘होला’ से निकला है. इसका मतलब है ‘कैसे हो’. टटोलेंगे तो पता चलेगा कि फोन पर इस शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले थॉमस अल्वा एडिसन ने किया था.1877 में थॉमस एडीसन ने पिट्सबर्ग की सेंट्रल डिस्ट्रिक्ट एंड प्रिंटिंग टेलीग्राफ कंपनी के अध्यक्ष टीबीए स्मिथ को लिखा कि टेलीफोन पर स्वागत शब्द के रूप में हेलो का इस्तेमाल करना चाहिए.


इतने दिलचस्‍प रास्‍तों से होते हुए फोन कॉल की विकास यात्रा 5 जी तक आ पहुंची है. इस हद तक इस्‍तेमाल कि उपयोगकर्ताओं की आंखों, रीढ़ और यहां तक कि धड़कनों पर भी असर होने लगा है. सुकून खो रहा है, नींद उड़ रही है, कल्‍पना शक्ति क्षीण हो रही है, संपर्क की मिठास और आपसी रिश्‍ते की गु‍थन खत्‍म हो रही है. वैज्ञानिक और डॉक्‍टर चेता‍वनियां जारी कर रहे हैं.


मगर, इन सबके बीच फोन कॉल का महत्‍व तो कम नहीं होता है. हम भले ही भूल गए हैं कि कभी टेलीफोन कनेक्‍शन के लिए महीनों इंतजार करना पड़ता था. ट्रंक कॉल बुक करवाना होता था. ऑपरेटर से जल्‍दी कॉल मिला देने की गुजारिशें होती थी. हमारे फोन पड़ोस में आया करते थे. आवाजें लगती थी, तुम्‍हारे लिए फोन है… एक कॉल पूरे मोहल्‍ले के सामने खोल देता था राज. सब पर हो जाता था जाहिर सुख हो या दु:ख, कुछ नहीं रहता था गोपनीय. याद न भी हो यह सब लेकिन हमारे जेहन में आज भी उस पुराने फोन की ‘ट्रिन ट्रिन’ ताजा है. जरा जोर देंगे तो उंगलियों को नंबर डॉयल करने वाले छिद्र का स्‍पर्श याद हो आएगा. फोन पर मिली जाने कितनी सूचनाओं का स्‍मरण हो जाएगा. याद हो जाएगा कि फोन पर बात करना कितने बड़े कौतूहल, अचरज और झिझक का मौका होता था. खासकर पहली बार बात करना. दुनिया के पहले फोन कॉल की वर्षगांठ के दिन तमाम ऐसे फोन कॉल को याद करते हुए कवयित्री नीलेश रघुवंशी की यह कविता कितना कुछ कह देती है :


टेलीफोन पर

थरथराती है पिता की आवाज़

दिए की लौ की तरह कांपती-सी.

दूर से आती हुई

छिपाए बेचैनी और दु:ख.

टेलीफोन के तार से गुजरती हुई

कोसती-खीझती

इस आधुनिक उपकरण पर.

तारों की तरह टिमटिमाती

टूटती-जुड़ती-सी आवाज.


कितना सुखद

पिता को सुनना टेलीफोन पर

पहले-पहल कैसे पकड़ा होगा

पिता ने टेलीफोन.

कड़कती बिजली-सी पिता की आवाज़

कैसी सहमी-सहमी-सी टेलीफोन पर.


बनते-बिगड़ते बुलबलों की तरह

आवाज पिता की भर्राई हुई

पकड़े रहे होंगे

टेलीफोन देर तक

अपने ही बच्चों से

दूर से बातें करते पिता.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
ब्लॉगर के बारे में
पंकज शुक्‍ला

पंकज शुक्‍लापत्रकार, लेखक

(दो दशक से ज्यादा समय से मीडिया में सक्रिय हैं. समसामयिक विषयों, विशेषकर स्वास्थ्य, कला आदि विषयों पर लगातार लिखते रहे हैं.)

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First published: March 10, 2023, 12:51 pm IST

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