कोई भी दिवस, सप्ताह, पखवाड़ा इसीलिए मनाया जाता है कि लोग उनसे जुड़े चुनौतीपूर्ण मुद्दों पर चिंतन, मनन, मंथन कर संकट से निपटने के रास्ते खोज सकें और किसी नतीजे पर पहुंच सकें.कोरोना महामारी के वैश्विक संकट से जूझ रही दुनिया इस साल शुक्रवार 20 नवंबर को जब अंतरराष्ट्रीय बाल दिवस (International Children's Day) मना रही होगी, तो पाएगी कि इस भयावह महामारी ने बच्चों के जीने, उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, संरक्षण, सम्मान और सहभागिता के अधिकार पर सबसे बड़ा हमला बोला है.बच्चों से उनके अहम अधिकार छिन गए हैं.बीते 9 महीनों से दुनिया के करीब 188 देशों में स्कूल बंद है, बच्चे घरों में कैद हैं, 150 करोड़ बच्चों के शिक्षा से वंचित होने का अनुमान है.67.2 करोड़ से ज्यादा ज्यादा बच्चे गरीबी के दलदल में जा चुके हैं. भूख और कुपोषण (Hunger and malnutrition) का शिकंजा कसता जा रहा है.लाखों बच्चे बालश्रम, बाल तस्करी, यौनशोषण, बालविवाह जैसी आपराधिक बुराईयों की ओर धकेले जा रहे हैं या उन्हें मजबूर किया जा रहा है.बच्चों के सामने उनके भविष्य से जुड़ी यह वो भयावह चुनौतियां और सवाल हैं, जिनके जवाब दुनिया को खोजना है.
बता दें कि 20 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय बाल दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत करते हुए 1954 में संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nation) बाल अधिकारों (Child Rights) का घोषणा पत्र लाया था.1989 में वैश्विक स्तर बाल अधिकारों के अभिसमय(Convention) को अपनाया गया. इस कन्वेंशन के प्रावधानों के अनुसार 18 साल से कम उम्र के हर व्यक्ति को बच्चे रूप में मान्यता दी गई.
यह कन्वेंशन हर बच्चे को नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों को निर्धारित, सुनिश्चित करता है.कन्वेंशन सितंबर 1990 से प्रभाव में आया, जिस पर दुनिया के 196 देशों ने हस्ताक्षर किए. भारत ने 1992 में बाल अधिकार संरक्षण के वैश्विक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. साथ ही वचन दिया कि वह अपने देश के सभी बच्चों को जाति, धर्म, रंग, लिंग, भाषा, संपत्ति, योग्यता के आधार पर बिना किसी किसी भेदभाव के संरक्षण देने, हर बच्चे को जीने का अधिकार सहित शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, सहभागिता जैसे सारे मौलिक और बुनियादी अधिकार देगा.
बच्चों पर कई तरह के जोखिम
सरकार, सिस्टम और संगठनों की अपने-अपने स्तर पर कोशिशों के बावजूद बहुत लंबा सफर अभी तय करना बाकी है.पहले से कई तरह के संकटों से घिरे बच्चों के अधिकारों पर इस बीच कोरोना महामारी का हमला विनाशकारी साबित हो रहा है. बच्चों पर संकट और जोखिम कई गुना ज्यादा बढ़ गए हैं. भोपाल की सिंगारचोली स्लम में रहने वाला छात्र तुषार स्कूल की आनलाइन पढ़ाई को समझ नहीं पा रहा.बैरागढ़ की प्रीति(बदला हुआ नाम) को अपने ही फौजी पिता से यौन शोषण का डर है, अब वह चाइल्ड लाइन के आसरे है और एक आश्रय गृह में रह रही है. भोपाल के 5-6 बच्चों ने अपने ही माता-पिता के खिलाफ हिंसा और दीगर शिकायतें दर्ज कराई है.राहुल नगर बस्ती का 12 साल का जयदीप स्कूल के बजाय अपने पिता के साथ मजदूरी पर जा रहा. मप्र ही नहीं, यूपी, महाराष्ट्र समेत देश भर में बच्चों से हिंसा, बालिकाओं से रेप की घटनाएं बढ़ी हैं. जबलपुर से अपने बीवी-बच्चों के साथ भोपाल आए 30 मजदूरों का दल बीएसएनएल की पाइप लाइन बिछाने के लिए वीआईपी रोड का फुटपाथ खोद रहा है और बच्चे उसी फुटपाथ के किनारे कभी सड़क, कभी मिट्टी के ढेर पर खेलते, सोते दिख जाते हैं. यह वो जगह है, जहां बच्चों को उनकी जरा सी चूक व्यस्त सड़क से गुजरते वाहन की तेज रफ्तार का निशाना बन सकती है.बच्चों के रहने, न रुकने, न पढ़ने का कोई ठिकाना है. आप ही बताइए इस दौर में बच्चों के कौनसे अधिकार सुरक्षित हैं?
संभवतः इन्हीं खतरों को भांपते हुए सेव द चिल्ड्रन (Save The Children) ने कोरोना महामारी को अभूतपूर्व आपातकाल (Emergency) बताया है और
संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से जारी आंकड़ों का हवाला देते हुए शिक्षा के बारे में अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि दुनिया भर में 1.60 अरब बच्चे स्कूल-कालेज नहीं जा पा रहे और शिक्षा से वंचित है.रिपोर्ट में लिखा है कि पहली बार वैश्विक स्तर पर बच्चों की एक पूरी पीढ़ी की शिक्षा बाधित हुई है. आर्थिक तंगी का असर साफ देखने को मिला है.अभिभावक बच्चों की फीस नहीं भर पा रहे.स्कूलों में एडमीशन पर बुरा असर पड़ रहा.कोरोना महामारी ने बच्चों के सामने शिक्षा का संकट और बढ़ा दिया है.महामारी से पहले 26 करोड़ बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे थे, अब नया आंकड़ा काफी डराने वाला है.
संस्था की प्रमुख एशिंग (Inger Ashing) के मुताबिक " दुनिया ने जो 2030 तक सभी बच्चों को शिक्षा का अधिकार दिलवाने का प्रण लिया था, वह कई सालों पीछे धकेल दिया जाएगा.एक करोड़ से ज्यादा छात्रों का स्कूल छूट सकता है.इस कठिन समय में सरकारों को जागना होगा."
देश में आनलाइन टीचिंग सिस्टम फेल है, बच्चे बोर हो रहे. जब गरीब बच्चों के पास इसके लिए जरूरी रेडियो, मोबाइल या इंटरनेट सुविधा ही नहीं है, तो आनलाइन या डिस्टेंस लर्निंग कितनी फलीभूत होगी, आप अंदाजा लगा सकते हैं.वैसे भी बमुश्किल 30 फीसदी तक बच्चों तक ही इसकी पहुंच हो पा रही है.भारत सहित दुनिया के एक तिहाई बच्चे डिजिटल वर्ल्ड से वाकिफ ही नहीं है.
बढ़ रही गरीबी, बालश्रम, बाल तस्करी का खतरा
यूनिसेफ और सेव दि चिल्ड्रेन की रिपोर्ट कहती है "कोरोना महामारी और लॉकडाउन की वजह से इस साल के अंत तक गरीब होने वाले बच्चों की संख्या 9 से 11 करोड़ और बढ़ जाएगी.कोरोना काल में अपना रोजगार खो चुके माता-पिता, परिवारों की आर्थिक मदद करने के लिए छात्रों, बच्चों को कम उम्र में ही नौकरियां करना पड़ रही हैं.
लाकडाउन के दौरान बंद उद्योग धंधे चरणबद्ध अनलाक प्रक्रिया के साथ जैसे-तैसे चालू हुए, तो वह सस्ते श्रम की तलाश में जुट गए.ऐसे में गरीबी से जूझते बच्चे आसान शिकार बन रहे हैं.भविष्य में यह स्थिति और भयावह बनेगी.घरों से चल रहे कामकाज, कृषि, और जोखिम वाले पेशों में बाल श्रम और बाल तस्करी बढ़ सकती है.
भुखमरी का संकट
उदाहरण के तौर पर मध्य प्रदेश को लें तो कोरोना के चलते यहां स्कूलों में मार्च से मिड डे मील नहीं मिला. मई के अंत में या जून में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने 56 लाख से ज्यादा बच्चों के खाते में मिड डे मील की तीन माह की एकमुश्त 145 करोड़ रुपये की राशि डाली थी.सवाल ये है कि शुरुआती तीन माह बच्चों के कुपोषण को दूर करने के मकसद से दिया जाने वाला जो भोजन नहीं मिला, क्या उसकी भरपाई एक साथ खाते में पैसे डाल कर की जा सकती है.दुनिया में 37 करोड़ बच्चे मिड डे मील से वंचित है.ऐसे में वंचित और गरीब बच्चों के सामने भुखमरी का संकट पैदा हो गया है.
कैसे सुरक्षित हो स्वास्थ्य का अधिकार
कोरोना काल में लाकडाउन के दौरान बच्चों-माताओं के लिए जरूरी टीकाकरण रोक दिया गया.आंगनबाडियों में पोषण आहार नहीं बंटा.मध्यप्रदेश, बिहार, मेघालय उन भारतीय राज्यों में शुमार हैं, जहां हर 10 में से 4 या उसके अधिक बच्चे कुपोषित हैं. देश में छह साल तक के करीब ढाई करोड़ बच्चे कुपोषण और कम वजन के शिकार हैं.
नीति आयोग (NITI Aayog) की वेबसाइट पर उपलब्ध 2018 का डेटा बताता है कि भारत में शिशु मृत्यु दर प्रति हजार पर 34 के करीब है, जबकि पांच साल से कम उम्र के बच्चों में यह आंकड़ा देखा देखा जाए तो यह प्रति हजार पर 39 है.
बच्चों पर हिंसा की शिकायतें बढ़ीं
कोरोना महामारी के कारण लगे लॉकडाउन के बाद से ही लगातार स्कूल बंद होने के कारण घरों में कैद बच्चों पर हिंसा की शिकायतें बहुत तेजी से बढ़ी हैं.बच्चों की सुरक्षा के लिए बनाई गई संस्था चाइल्ड लाइन के पास बीते 9 महीनों में 4 से 5 लाख से ज्यादा काल आए, 92 फीसदी शिकायतें बच्चों पर हिंसा से संबंधित थीं. चाइल्ड लाइन के पास बाल विवाह की सूचना से संबंधित 5584 काल आए.लॉकडाउन की वजह से अभिभावकों की नौकरी छूटने का असर भी बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पड़ा रहा है.
चाइल्ड लाइन इंडिया के मुताबिक मप्र में नवंबर 2019 से मार्च 2020 तक जहां 48 बालविवाह होने की सूचनाएं मिलीं, तो अप्रैल से जून के मध्य तक यह आंकड़ा बढ़कर 117 तक जा पहुंचा. इसी प्रकार छत्तीसगढ़ में इसी अवधि में बाल विवाह का आंकड़ा 18 से बढ़कर 58 हो गया. आगरा में चाइल्ड लाइन की समन्वयक ऋतु वर्मा के मुताबिक हेल्पलाइन नंबर पर इस साल सितंबर तक चाइल्ड लाइन के पास बच्चों, किशोरों और किशोरियों के उत्पीड़न, शोषण की 165 शिकायतें आईं.इनमें से 55 शिकायतें किशोरियों से छेड़छाड़ की थी.38 यानी 70 फीसदी शिकायतें अपनों के ही खिलाफ थीं.पिता, चाचा और रिश्ते के भाइयों पर भी आरोप लगे.
बच्चे डिप्रेशन में
मनोचिकित्सक डा. सत्यकांत त्रिवेदी का कहना है कि पिछले कई महीनों से पूरे समय घरों में रहन के कारण बच्चों की सहनशीलता कम होती जा रही है.दोस्तों से मिल नहीं पा रहे.मैदान में खेलने जा नहीं पा रहे.लगातार आनलाइन पढ़ाई, मोबाइल, टीवी तक जिंदगी सिमट जाने से तनाव और डिप्रेशन (Tension And Dipression) के शिकार हो रहे हैं.डिप्रेशन के मामलों में 20 से 30 फीसदी बढ़ोतरी हुई है.वहीं मप्र चाइल्ड लाइन की निदेशक अर्चना सहाय के अनुसार चाइल्ड लाइन में हाल ही बच्चों के 5-6 ऐसे मामले आए, जहां बच्चों ने जीवन में दखलदांजी से तंग आकर अपने ही मां-बाप के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई.
बढ़ेंगे बाल विवाह
सेव द चिल्ड्रेन की रिपोर्ट के अनुसार स्कूल बंद होने, लड़कियों के स्कूल छूटने और परिवार में गरीबी के चलते बाल विवाह और कम उम्र में उनके गर्भवती होने का खतरा बढ़ जाएगा.य़ूएनएफपीए के मुताबिक कोरोना खत्म होने के बाद अगले 10 साल में 53 लाख लड़कियों की समय से पहले शादी और कुल 1.30 करोड़ के बाल विवाह (Child Marriage) हो सकते हैं.इससे बाल विवाह की कुप्रथा को खत्म करने के लिए किये जा रहे तमाम प्रयास बाधित हो सकते हैं.बच्चों के आजादी और उसके जीने के अधिकार को संरक्षित करने सरकार और सिस्टम को अतिरिक्त प्रयास करने होंगे.
चिल्ड्रन्स फाउंडेशन की रिपोर्ट
नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के नाम के साथ संचालित चिलड्रन्स फाउंडेशन ने 50 से ज्यादा गैर सरकारी संगठनों (NGO)और प्रवासी मजदूरों (Mrigrant Workers) की वापसी से प्रभावित राज्यों के 250 परिवारों से बात कुछ अरसा पहले एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें कहा गया है कि श्रम कानूनों के कमजोर पड़ने से बच्चों की सुरक्षा प्रभावित होगी. इसके चलते बाल मजदूरी के मामले बढ़ सकते हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना महामारी से उपजे आर्थिक संकट की वजह से 21 फीसदी परिवार आर्थिक तंगी के कारण अपने बच्चों से मजदूरी कराने पर मजबूर हैं. रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि ऐसी स्थिति से बचने के लिए आसपास के गांवों में निगरानी तंत्र को और विकसित करना जरूरी है.
रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 76 फीसदी संगठनों ने कहा है कि लॉकडाउन के बाद यौन व्यापार के लिए मानव तस्करी तेजी से बढ़ने का अंदेशा है.इनमें बच्चों की संख्या ज्यादा हो सकती है.
अतंर्राष्ट्रीय बाल दिवस मना रही सरकारों, संगठन और लोगों के सामने बच्चों के अधिकारों को संरक्षित करना इस कठिन समय पर में सबसे बड़ी चुनौती और सवाल है, इस संकट के समाधान के लिए हर स्तर पर लोगों को जागरूक करना और जुटना होगा, तभी इस दिवस की सार्थकता सिद्ध होगी.