काश मुर्दे भी बोल पाते...थोड़ा तो सम्मान दो, हम भी कभी जिंदा थे, इंसान थे

COVID-19: इलाज में लापरवाही और कोताही की खबरें तो रोजमर्रा की बात हो चली हैं, लेकिन शवों को फेंकने, घसीटने, बांधने, मुर्दाघर में लापरवाही से चूहों को कुतरने के लिए छोड़ देने, बेदर्दी से श्मशान या कब्रिस्तान तक ले जाने की तेजी से बढ़ती घटनाएं समूची इंसानियत को शर्मसार कर रही हैं.

Source: News18Hindi Last updated on: September 30, 2020, 5:50 am IST
शेयर करें: Share this page on FacebookShare this page on TwitterShare this page on LinkedIn
काश मुर्दे भी बोल पाते...थोड़ा तो सम्मान दो, हम भी कभी जिंदा थे, इंसान थे
इलाज में लापरवाही और कोताही की खबरें तो रोजमर्रा की बात हो चली हैं. (फोटो साभार- AP)
जीते जी तो सुकून न मिला, चैन से मरने भी ना दिया. कोरोना महामारी के इस दौर में जैसे संवेदनाएं और संस्कार भी मर गए, दूरियां बढ़ गईं, रिश्ते भी बेजार हो गए. तंत्र टूट गया, सिस्टम भी बेरहम हो गया. अदालतों के फरमान कोई सुनने, मानने को तैयार नहीं, गाइडलाइन्स के पन्ने हवा में उड़ रहे, नेता सियासत और चुनावों में व्यस्त हैं. दुनिया में करोड़ों लोग बीमार हैं, 130 करोड़ की आबादी वाले हमारे देश में 62 लाख लोग संक्रमण के शिकार हैं और मौतों का आंकड़ा 97 हजार के करीब पहुंचने को है. इलाज में लापरवाही और कोताही की खबरें तो रोजमर्रा की बात हो चली हैं, लेकिन शवों को फेंकने, घसीटने, बांधने, मुर्दाघर में लापरवाही से चूहों को कुतरने के लिए छोड़ देने, बेदर्दी से श्मशान या कब्रिस्तान तक ले जाने की तेजी से बढ़ती घटनाएं समूची इंसानियत को शर्मसार कर रही हैं. आखिर शवों का भी सम्मान होता है, पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार उनका अधिकार होता है, कम से कम हमारा संविधान तो यही कहता है. काश मुर्दे भी बोल पाते...थोड़ा तो सम्मान दो, हम भी कभी जिंदा थे, इंसान थे.



सितंबर के महीने में इंदौर में चार और सीधी में एक के साथ क्रूरता की पराकाष्ठा और अपमान की घटनाओं के वीडियो जिसने भी देखे होंगे, सिहर उठे होंगे, उनके दिल दहल उठे होंगे. ऐसा नहीं है कि इस तरह की घटनाएं केवल मप्र में सामने आईं हैं, बल्कि दिल्ली, पश्चिम बंगाल से लेकर छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, तमिलनाडु, कर्नाटक तक शवों के साथ ऐसी संवेदनहीन, शर्मनाक घटनाओं के लिए सुर्खियों में आ चुके हैं. यूपी से लेकर बिहार, आंध्र प्रदेश तक शवों के जलाने और दफनाने के मुद्दों पर विवाद, झगड़े, हिंसा तक की खबरें लगातार सामने आ रही हैं.



शवों का अपमान, इंसानियत शर्मसार

आइए आपको रूबरू कराते हैं अलग-अलग राज्यों में हुईं उन घटनाओं से, जिन्होंने मानवता को दागदार और इंसानियत को शर्मसार किया, जिन्हें देखकर भी सरकारें मौन हैं, जनता बेबस है. चौंकिए मत, इन्हें अंजाम देने वाले किसी और दुनिया के नहीं, कोई और नहीं, हमारे आपके घरों के वही लोग हैं, जो अस्पतालों, नगर निगमों, पुलिस में काम करते हैं. तंत्र की निगरानी में चूक कहिए, लापरवाही कहिए या काम का दबाव अथवा रोज-ब-रोज कई लाशों को देखना, उन्हें ठिकाने लगाने के काम से ऊब ने इनकी मानसिकता को भोथरा और संवेदनाओं को जैसे खत्म कर दिया है.



केस-1: मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में शवों के अपमान की एक ही महीने में चार घटनाएं सामने आईं. 15 सितंबर 2020 को इंदौर के सबसे प्रसिद्ध महाराजा यशवंत राव अस्पताल में एक लावारिस शव पोस्टमार्टम के बाद नौ दिन तक मर्च्यूरी में रखे-रखे सड़ांध मारता मिला, जो इतने दिनों में कंकाल में बदल चुका था. शरीर पर कीड़े चल रहे थे. 19 सितंबर को इसी अस्पताल के कर्मचारी एक मासूम का शव बाक्स कोने में रखकर भूल गए, वह 5 दिन तक ऐसे ही कोने में पड़ा रहा. बदबू आने पर शव का पता चला, जिसका शरीर चूहे खा रहे थे. 21 सितंबर को इंदौर के ही यूनिक अस्पताल में 87 साल के कोरोना संक्रमित बुजुर्ग का शव बिना सुरक्षा के बेसमेंट में रख दिया, जिसे चूहों ने बुरी तरह कुतर डाला था. 26 सितंबर को इंदौर के प्रसिद्ध ग्रेटर कैलाश हास्पिटल में बड़ी लापरवाही सामने आई, जब खंडवा के एक व्यापारी को अपने पिता की लाश ले जाते वक्त इंदौर से करीब 60 किलोमीटर दूर पहुंचने पर अस्पताल से फोन आया कि उनके पिता का शव महू के एक कोरोना संक्रमित व्यक्ति के शव से बदल गया है. यह सुनने के बाद व्यापारी के पैरों से जैसे जमीन खिसक गई, करीब 3 से 4 घंटे के बाद अस्पताल की एबुंलेंस आई और शवों की अदला-बदली की गई.



केस -2: शवों के अपमान की एक और घटना इंदौर में ही देखने को मिली, जहां कोरोना से संक्रमितों के शवों को श्मशान या कब्रिस्तान तक पहुंचाने के काम के लिए नगर निगम शव रथों के माध्यम से कर रहा है. बीती 15 जुलाई की दोपहर को शहर में जिसने भी नजर देखा, वह सिहर उठा. यहां कोविड-19 से मृत हुए लोगों के शव खुले शवरथ एमपी 09, जीजी 7255 से टपकते खून के साथ एमजी रोड शास्त्री बाजार से ले जाए जा रहे थे. इतना ही नहीं, शव वाहन में ऐसे रखे थे, जिसमें से एक शव का सिर की तरफ का हिस्सा बाहर की तरफ लटका हुआ था. लोगों ने शवों के इस तरह से अपमान के लिए निगम के जिम्मेदारों को न सिर्फ कोसा, बल्कि वाहन के फोटो खींचकर शिकायत भी की. सबका एक ही सवाल था, आखिर जिम्मेदारों पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं होती?



केस-3: शव को लेकर हमारा सिस्टम कितना संवेदनहीन है, इसका एक और उदाहरण दो दिन पहले सीधी जिला अस्पताल में देखने को मिला. यहां मृत एक महिला के शव को ले जाने के लिए अस्पताल से वाहन नहीं मिल सका. थक-हार कर उसके बेटे रामखिलावन और कुछ अन्य परिजनों को शव कंधे पर लादकर गांव ले जाना पड़ा. कंधे पर लाश का यह सफर थोड़ा-बहुत नहीं, बल्कि करीब 10 किलोमीटर का था, गांव से कुछ दूर पहले रात को गश्त पर निकले पुलिस वाहन ने रोका और फिर हालत जानकर अन्य वाहन से शव को गांव पहुंचाने की व्यवस्था की गई.



केस -4: शव के अपमान की एक दिल दहला देने वाली घटना छत्तीसगढ़ के दुर्ग-भिलाई में सामने आई, जहां कोरोना से मौतों के आंकड़े बढ़ने के साथ ही बीएसपी हास्पिटल और नगरनिगम कर्मियों की संवेदनहीनता भी बढ़ती दिखाई दी. यहां एक ही वाहन में कोरोना मरीजों के तीन से पांच शव तक लाद दिए गए. मर्च्यूरी से लाकर शवों को स्ट्रेचर से गाड़ी में ऐसे डाला गया, कि कुछ शव औंधे हो गए. शव एक दूसरे पर लद जैसे गए. अपने परिजन के शव की ऐसी दुर्दशा देख घर वालों का रूदन फूट पड़ा. रोते रोते पीड़ित कह रहे थे अगर कोरोना नहीं होता, तो बेहद जतन से पूरे सम्मान के साथ पिता के शव को घर तक ले जाते. परंपराएं पूरी करते, मुक्तिधाम तक ले जाकर अंतिम संस्कार करते, लेकिन यहां किस तरह से यहां गाड़ी में रखते वक्त ही शवों का अपमान किया जा रहा है, आखिर किसी की तो जिम्मेदारी तय होना चाहिए?



केस-5- शवों के अपमान करने में बंगाल तो बड़ा ही बेदर्द निकला, यहां कोलकाता में 10 जून को कोरोना संक्रमित लोगों के शवों को घसीटकर मर्च्यूरी तक ले जाने का वीडियो सामने आया था. इस वीडियो को देखते के बाद राज्यपाल जगदीप धनखड़ स्वास्थ्य विभाग, नगर निगम से लेकर ममता बनर्जी सरकार तक खूब जमकर भड़के, अफसरों की लानत-मलामत की. एक टीवी चैनल से बात करते वक्त गुस्साए धनखड़ ने कहा था कि भारत की संस्कृति ऐसी है, जब डेड बाडी को अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जाता है, तब सड़क पर गुजरते वक्त अन्जान व्यकित भी मृतक के सम्मान में रूक जाता है. हम मृतकों का अंतिम संस्कार करते हैं, उनकी अस्थियों का विसर्जन करते हैं, लेकिन शवों को घसीटने की यह बर्बरतापूर्ण हरकत बर्दाश्त नहीं की जा सकती. शवों के अपमान की घटना सामने आने के बाद कलकत्ता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को कोरोना के मरीजों के शवों का सम्मानपूर्वक निपटान करने के संबंध में दिशा-निर्देश दिए.



केस-6: 27 जून को हैदराबाद के उदयापुरम इलाके में एक 72 साल बुजुर्ग की कोरोना से मौत के बाद पीपीई किट पहने नगर निगम का स्टाफ उसके शव को जेसीबी मशीन से उठाकर शमशान ले गया. घटना का वीडियो वायरल के बाद शव के साथ इस तरह के व्यवहार का मामला सामने आया. शव उसी बुजुर्ग का था, जो खुद नगर निगम में काम कर चुका था. घटना सामने आने के बाद तेलुगू देशम् पार्टी के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने वीडियो शेयर करते हुए लिखा था, कि वो इस व्यवहार को देखकर हैरान है. उन्होंने लिखा कि डेड बाडी भी सम्मान की हकदार है. शव के साथ अमानवीय व्यवहार के लिए जगन मोहन रेड्डी सरकार को शर्म आनी चाहिए.



केस-7: इसी तरह से 20 मई 2020 को उत्तराखंड के काशीपुर में ई-रिक्शा में एक शव को बांधकर पोस्टमार्टम के लिए ले जाने का वीडियो वायरल हुआ, तो जवाब में वहां के एसएसपी का कहना था कि अन्य कोई वाहन उपलब्ध न होने के कारण पुलिस कर्मियों को ऐसा करना पड़ा होगा, वैसे शव के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए था.



केस-8 जुलाई के महीने में कर्नाटक के बेल्लारी की एक खदान में कोरोना पीडितों के शवों को फेंकते हुए एक वीडियो के सामने आने के बाद सियासत में काफी बवाल मचा था.



क्या कहता है कानून, अदालत

-भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा के तहत किसी भी शव की अवहेलना करना या शव का अपमान संज्ञेय अपराध माना गया है. यह अपराध जमानती है और कोई भी मजिस्ट्रेट इस तरह के अपराध पर कार्रवाई कर सकते हैं. इस अपराध में दोषी को एक वर्ष तक की सजा या जुर्माना दोनों का प्रावधान है. इसके दायरे में डाक्टर भी आते हैं, जिसके खिलाफ मृतक की पत्नी या वारिस की शिकायत पर धारा 297 के तहत कार्रवाई की जा सकती है.



-एक डाक्टर के शव को दफन करने को लेकर चेन्नई में हुए हंगामे के बाद मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को एक नोटिस जारी करते हुए कहा था कि संविधान का अनुच्छेद 21 हमें जीने का अधिकार देता है. इस अनुच्छेद के दायरे और विस्तार में मृतक के सम्मानजनक अंतिम संस्कार का अधिकार भी शामिल है. कोर्ट ने यह भी कहा कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने सामाजिक कलंकों और शव के सम्मानजनक प्रबंधन के संबंध में भी दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिसकी लोगों को जानकारी होना चाहिए और इसका पालन सुनिश्चित होना चाहिए. लोग कानून अपने हाथ में न लें, तंत्र अपनी संवेदनशीलता का परिचय दे, अराजकता पैदा न हो, इसकी व्यवस्था की जानी चाहिए.



क्या कहते हैं कानूनी विशेषज्ञ

इस मामले में भोपाल के वरिष्ठ वकील विजय कुमार का कहना है कि मृतक का भी अपना सम्मान होता है. शव की दुर्गति या उसका अपमान होने की स्थिति में मृतक के परिजन इस घटना के लिए अस्पताल या नगर निगम या पुलिस, जिसे जिम्मेदार मानते हैं, उस पर केस कर सकते हैं. मानहानि के दावे के साथ ही क्षतिपूर्ति के लिए केस कर सकते हैं. क्षतिपूर्ति की रकम मृतक की आर्थिक और सामाजिक स्थिति के हिसाब से न्यायालय तय करता है. अस्पताल और कर्मचारियों के खिलाफ जिला उपभोक्ता फोरम में शिकायत की जा सकती है.



क्या है प्रोटोकालः

म्यूनिसपल कारपोरेशन एक्ट में साफ लिखा है कि शव का डिस्पोजल कैसे होगा, उनके साथ गए परिजनों का क्वारंटीन कैसे होगा. कोविड-19 प्रोटोकाल के तहत जिन संदिग्ध और पाजिटिव मरीजों की मौत अस्पतालों में होती है, उनका शव परिजनों को नहीं सौंपा जाता है. शव को अस्पताल में सेनेटाइज कर कपड़े में लपेट कर निगम या अस्पताल के शव वाहन अथवा एंबुलेंस से श्मशान या कब्रिस्तान तक पहुंचाया जाता है. वाहन से उतारकर इन शवों का सीधे अंतिम संस्कार कर दिया जाता है. इस दौरान परिवार के दो से तीन लोग मौके पर होते हैं और उन्हें शव को खोलने या हाथ लगाने नहीं दिया जाता है.



बता दें कि संवेदनहीनता की बढ़ती घटनाओं और शिकायतों के बाद दिल्ली की केजरीवाल सरकार को अंतिम संस्कार के नए निर्देश जारी करने पड़े थे, जिसमें कहा गया था कि प्रोटोकाल्स का पालन नहीं करने के दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी. अस्पताल 2 घंटे के भीतर शव को मुर्दाघर में भेजे. ऐसी व्यवस्था की जाए कि 24 घंटे में अस्पताल निगम की मदद से दाह संस्कार या दफन करवाए. यह करते हुए शव के सम्मान और परिवार के साथ संवेदनशील व्यवहार का ध्यान रखा जाए.



जवाबदेही तय नहीं

देश में कोविड-19 संक्रमितों की संख्या करीब 62 लाख हो चुकी है. हर 24 घंटे में लगभग 75 से 85 हजार के करीब नए मरीज मिल रहे हैं. संक्रमण से मरने वालों की तादाद 97 हजार के करीब पहुंच चुकी है. केन्द्र सरकार के साथ ही बड़े पैमाने पर प्रभावित राज्यों ने कोरोना संक्रमितों के शवों के सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार के लिए गाइडलाइन्स तो जारी की है, लेकिन इनका कितना पालन हो रहा है और उसके बाद सवाल यह है कि क्या जवाबदेही तय हो पा रही है. अधिकांश मामलों में देखेंगे, तो पाएंगे कि गाइडलाइन्स के पालन में लापरवाही बरती जा रही है.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
ब्लॉगर के बारे में
सुनील कुमार गुप्ता

सुनील कुमार गुप्तावरिष्ठ पत्रकार

सामाजिक, विकास परक, राजनीतिक विषयों पर तीन दशक से सक्रिय. मीडिया संस्थानों में संपादकीय दायित्व का निर्वाह करने के बाद इन दिनों स्वतंत्र लेखन. कविता, शायरी और जीवन में गहरी रुचि.

और भी पढ़ें
First published: September 30, 2020, 5:50 am IST

टॉप स्टोरीज
अधिक पढ़ें