कोरोना की मार से लोगों को बचाने सरकारें और सिस्टम अपने-अपने स्तर पर कदम उठा ही रहे हैं, सबसे बड़ी चुनौती उन चिकित्सकों के सामने हैं, जो पिछले 9 महीनों से लगातार अस्पतालों, कोविड सेंटरों पर संक्रमित मरीजों के इलाज में जुटे हुए हैं.
Source: News18Hindi Last updated on: December 9, 2020, 10:58 am IST
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(प्रतीकात्मक तस्वीर)
नई दिल्ली. कोरोना वायरस (Coronavirus Pandemic) महामारी के बढ़ते कहर के बीच फ्रंटलाइंस वारियर्स (Frontline Corona Warriors) के रूप में अपनी सेवाएं दे रही चिकित्सकों की बिरादरी खुद तनाव, चिंता, डर, अवसाद के शिकंजे में फंसती जा रही है. लगातार काम का हौसला बनाए रखना उनके लिए कितनी बड़ी चुनौती साबित हो रहा है. इसका अंदाजा लगाया सकता है महात्मा गांधी चिकित्सा महाविद्यालय (GMC) भोपाल द्वारा देश भर के डॉक्टरों पर किए गए एक सर्वे से, जिसमें बताया गया है कि देश के 60 से 70 फीसदी चिकित्सक किसी न किसी प्रकार के मनोरोग के शिकार हो रहे हैं.
डॉ. गोपाल शरण सक्सेना बताते हैं कि उन डॉक्टरों में मनोरोग की शिकायत ज्यादा मिल रही है, जो पिछले कई महीनों से कोविड-19 (Covid-19) के गंभीर कोरोना मरीजों का इलाज कर रहे हैं, या उन्हें वेंटिलेटर पर रहते या मरते देख रहे हैं. तमाम साइंटिफिक उपकरणों, संसाधनों से स्वयं को सुरक्षित रखने के बावजूद डॉक्टर इस बात को लेकर बेहद डरे रहते हैं कि कहीं वे खुद अपने परिवार के लिए इस महामारी के संवाहक न बन जाएं.
कम हो रहा खौफ, बढ़ रहे मामले
पहले उपचुनाव के दौरान राजनैतिक रैलियों, फिर दीपावली, एकादशी, छठ जैसे त्यौहारों के दौरान बाजारों और अभी हो रहे शादी समारोहों में बंदिशों के बावजूद उमड़ रही बेइंतहा भीड़ देख कर ऐसा लग रहा है कि किसी को कोविड-19 संक्रमण का खौफ ही नहीं है. न किसी को सोशल डिस्टेंसिंग की परवाह है, न मास्क लगाने को लेकर सजगता. इस लापरवाही के चलते महामारी की दूसरी लहर में मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. भारत में 8 दिसंबर दोपहर तक कोविड-19 के 32 हजार 981 नए मामले सामने आने के बाद कुल संक्रमितों की संख्या 97, 05, 806 हो गई और कुल मौतों की संख्या 1 लाख 41 हजार से ज्यादा हो गई है.
मप्र के भोपाल, ग्वालियर, इंदौर, जबलपुर, अशोकनगर, शिवपुरी, दतिया, रतलाम, धार में कोविड-19 वायरस तेजी से पैर पसार रहा है. कई शहरों में एक बार फिर नाइट कर्फ्यू लगाने, दुकानें जल्द बंद कराने, कंटेनमेंट जोन बनाने, मास्क लगाने को लेकर सख्ती शुरू हो गई है. प्रदेश में 8 दिसंबर दोपहर 2 बजे तक कुल संक्रमितों की संख्या बढ़कर 2 लाख 16 हजार और मरने वालों की तादाद 3347 हो गई चुकी थी. भोपाल में ही एक ही दिन मंगलवार दोपहर तक 538 नए मरीज मिल चुके थे.
अक्टूबर तक 515 डॉक्टरों की मौतें हो चुकी
आईएमए के राष्ट्रीय कोविड रजिस्ट्री डाटा के मुताबिक, अप्रैल तक कोविड-19 संक्रमण(Covid-19 infection) से कुल 1302 डॉक्टर संक्रमित हुए थे, इनमें से 99 डॉक्टरों की मौत हुई थी. 17 सितंबर तक कोविड-19 का इलाज करते हुए 382 डॉक्टर शहीद हो चुके थे. अक्टूबर के महीने में आइएमए के अध्यक्ष डॉक्टर राजन शर्मा के मुताबिक कोविड-19 रोगियों का इलाज करते हुए 515 डॉक्टरों की मृत्यु हो चुकी है और ये सभी एलोपैथिक डॉक्टर हैं, जिन्हें हमने आईएमए की देश भर में काम कर रही 1746 शाखाओं के माध्यम से पहचाना है.
बता दें कि कि आईएमए के डेटाबेस के अनुसार, मरने वाले बहुसंख्यक डॉक्टर (201) 60 और 70 वर्ष के आयु वर्ग में थे, इसके बाद 50 से 60 वर्ष के आयु वर्ग में 171 मारे गए. 70 साल से अधिक उम्र के 66 डॉक्टर थे, और 59 डॉक्टर 35 से 50 साल की उम्र के थे. कम से कम 18 डॉक्टर, जिनकी मृत्यु 35 वर्ष से कम थी. पूरे देश में कोरोना का इलाज करते हुए जितने डॉक्टर्स वायरस का शिकार बने हैं, उनमें से सबसे ज्यादा 11 फीसदी डॉक्टर्स की मौतें पश्चिम बंगाल में हुई हैं. मप्र में भी एक दर्जन से ज्यादा डॉक्टर्स कोरोना का इलाज करते हुए संक्रमित होकर जान गंवा चुके हैं. आईएमए का आंकड़ा तो केवल एलोपैथी डॉक्टरों की मौतों का है, जरा सोचिए आयुर्वेद, होम्योपैथी के न जाने कितने चिकित्सक कोरोना के कारण मारे जा चुके होंगे, क्योंकि अधिकांश निजी अस्पतालों में इन्हें मरीजों की देखभाल के लिए बहुत ही कम वेतन पर बतौर डॉक्टर नौकरी पर रखा जाता है.
सरकार के पास मृत डॉक्टरों का डाटा नहीं
बीते दिनों स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने संसद में स्वीकार किया था कि कोरोना ड्यूटी के दौरान जान गंवाने वाले डॉक्टरों की संख्या का अलग से कोई केन्द्रीय डेटा बेस नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि क्योंकि सार्वजनिक स्वास्थ्य और अस्पताल राज्यों के अंतर्गत आते हैं, इसलिए केन्द्र ने कोई डेटा बेस नहीं बनाया. सरकार के पास केवल कोरोना महामारी प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना पैकेज में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए सरकार की बीमा योजना के तहत संसाधित किए जा रहे मुआवजे की संख्या का रिकार्ड रखा जा रहा है.
चिकित्सकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती
कोरोना की मार से लोगों को बचाने सरकारें और सिस्टम अपने-अपने स्तर पर कदम उठा ही रहे हैं, सबसे बड़ी चुनौती उन चिकित्सकों के सामने हैं, जो पिछले 9 महीनों से लगातार अस्पतालों, कोविड सेंटरों पर संक्रमित मरीजों के इलाज में जुटे हुए हैं. उन्हें खुद को संक्रमित होने से बचाने के साथ ही सबसे बड़ी चिंता और चुनौती अपने परिवारों को सुरक्षित रखने की है.
बिना आराम काम करते रहने से चिकित्सकों में अब चिड़चिड़ेपन, नींद न आना, नींद आने पर डरावने सपने आना, निराशा, घबराहट, पसीना-पसीना हो जाना, लगातार अपने या परिवार के साथ कुछ अनिष्ट होने का अचानक भय सताना, भूल जाना जैसी समस्याएं सामने आने लगी हैं. इस बारे में हाल ही भोपाल के गांधी मेडिकल कालेज (GMC Bhopal) ने देश भर के डॉक्टर्स की कोरोना काल में मनःस्थिति पर एक अध्ययन किया था. इस अध्ययन में 720 डॉक्टर्स शामिल किए गए थे. अध्ययन के मुताबिक 60 फीसद चिंता की बीमारी से ग्रसित पाए गए.
मनोचिकित्सा विभाग के अध्यक्ष डा. जेपी अग्रवाल ने बताया कि कुछ अस्पतालों में संसाधनों की कमी, इलाज के लिए आवश्यक संसाधनों का अभाव और परिवार से दूरी के चलते डॉक्टरों में अवसाद, तनाव (Depression, stress) पाया गया है. कई डॉक्टर घर नहीं जा पा रहे हैं या अलग रह रहे हैं. परिवार को समय नहीं दे पा रहे हैं. उन्हें इस बात की भी चिंता है कि घर वालों को उनके जरिये कोरोना ना हो जाए. अध्ययन में शामिल 57 फीसदी डॉक्टरों में तनाव की समस्या पाई गई. तनाव की अवस्था में घबराहट, बेचैनी और कुछ घटना का डर होता है. 46 फीसदी चिकित्सकों में अवसाद पाया गया. अवसाद की अवस्था में नींद में कमी आना, चिड़चिड़ापन होना और काम करने की इच्छा न होने की शिकायत होती है.
मप्र की राजधानी भोपाल के एक शासकीय अस्पताल मे पदस्थ चिकित्सक डा. गोपाल शरण सक्सेना ने बातचीत में बताया कि आप इन्हें तीन श्रेणियों में बांट सकते हैं. पहली कैटेगरी में उन चिकित्सकों को रखा जा सकता है, जो कोविड मरीजों के लिए तय अस्पतालों में लगातार बिना ब्रेक के अस्पतालों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. उन मरीजों के संपर्क में हैं जो अतिगंभीर है, वेंटिलेटर पर है, डॉक्टर उनका इलाज भी कर रहे हैं, मरता हुआ भी देख रहे हैं. दूसरी श्रेणी उन डॉक्टरों की है, जो कोरोना की हल्की या शुरूआती बीमारी वाले लोगों के संपर्क में हैं, या इलाज और टेस्टिंग में लगे हुए है. तीसरी श्रेणी उन डॉक्टरों की है, जो उन अस्पतालों में पदस्थ हैं, जो कोविड मरीजों के लिए समर्पित नहीं है, दूसरे काम भी कर रहे हैं, या निजी क्लीनिक चला रहे हैं.
पहली दो श्रेणी वाले डॉक्टरों को डर, तनाव, बैचेनी या अवसाद होने की शिकायतें ज्यादा मिल रही हैं. उन्हें वास्तव में आराम की जरूरत है, लेकिन यह तब तक संभव नहीं है, जब तक कोरोना रोगियों की संख्या न्यूनतम नहीं हो जाती. यह तभी संभव है, जब लोग ज्यादा से ज्यादा सुरक्षा बरतें और सोशल डिस्टिंसिंग में रहें. डॉक्टर्स में व्याप्त भय और असुरक्षा के भाव को उनकी कार्यप्रणाली से समझ सकते हैं. भोपाल में जितने भी सरकारी या निजी अस्पताल, नर्सिंग होम खुले हैं, वहां डॉक्टर्स मरीजों को हाथ भी नहीं लगाते. 6 से 8 फीट दूर बिठाकर दूर से मरीज का हाल पूछकर दवा-गोलियां दी जा रही है.
जब तक वैक्सीन नहीं, तब तक मास्क ही इलाज
एम्स (AIIMS) भोपाल के निदेशक डॉ. सरमन सिंह ने फोन पर बातचीत में कहा कि लोगों को चाहिए कि वह कोविड 19 के प्रोटोकाल का पूरा पालन करें ताकि इस दूसरे चक्र में हम कम से कम संक्रमित हो सकें. अस्पताल की चौखट पर न जाना पड़े, क्योंकि वहां जाने के बाद आप ही खतरे में नहीं होते, बल्कि वह डॉक्टर भी होते हैं, जो आपका इलाज करते हैं. जब तक वैक्सीन नहीं आती, तब तक तो मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग ही इलाज है. डा. राकेश मालवीय कहते है कि जनता वह संयम बरतें. लोगों कोरोना संक्रमण की भयावहता जानना है तो वह उन हेल्थ वर्कर्स से जान सकते हैं, जो बीते कई महीनों से कोविड-19 वार्ड या सेंटरों में ड्यूटी कर रहे हैं.
महामारी ने चिकित्सकों को भी डराया
इन हालातों से चिकित्सकों का समुदाय कितना डर और तनाव में है, इसका अनुमान एक कोरोना वारियर ( Corona Warrior)डॉ. रक्षिंदा के सोशल मीडिया प्लेटफार्म (Social Media Plateforms ) पर लगातार वायरल हो रहे वीडियो से लगाया जा सकता है, जिसमें वह कह कह रही हैं कि कोरोना महामारी (Corona epidemic) के दौरान मरीजों का इलाज करते हुए संक्रमण का शिकार बने सैकड़ों डाक्टर्स, उनके परिवारों के हजारों सदस्य अपनी जान गंवा चुके हैं. प्लीज, प्लीज, प्लीज... हमारे और हमारे परिवारों के बारे में सोचिए, लगातार काम करते हुए हम तनाव और डर में जी रहे हैं. तनाव इस बात का कि हमारे फैमिली मेंबर रिस्क पर है. डर इस बात का है कि अगर अस्पताल नहीं गए, बैक टू बैक ड्यूटीज नहीं दी तो अस्पताल मैनेजमेंट हम पर एक्शन लेगा. नए बनने जा रहे डॉक्टरों को डिग्री नहीं मिलेगी, नर्सेस की नौकरी छिन जाएगी. प्लीज हमारे और हमारे बारे में सोचिए, लापरवाही मत कीजिए.'
वीडियो में वह कह रही हैं 'चिंता की कोई बात नहीं है, यह कोरोना तो मीडिया का फैलाया हुआ है. आपको भी लोगों ने ऐसा बोला होगा न, आपको भी ऐसे मैसेजेस आए होंगे. पर सुनिए, यह डरने की बात है. अस्पतालों में बैड्स नहीं हैं. अखबारों में श्रद्धांजलि कॉलम के लिए जगह नहीं है. 1445 मरीजों पर एक डॉक्टर है. कुछ लोगों के लिए अनलॉक तो वेकेशन की तरह आया है. शापिंग हो रही है, सड़कों पर गोलगप्पे पार्टीज हो रही हैं. पर हम (डाक्टर्स) पार्टी नहीं कर रहे, क्योंकि हम स्ट्रेस और डर में हैं.
उन्होंने आगे कहा कि कई डॉक्टर्स इस स्ट्रेस को नहीं झेल पाते और सुसाइड करते हैं. आज कई सीनियर डॉक्टर हास्पिटल में वेंटिलेटर न मिलने की वजह से हमारे बीच नहीं है. तो सुनिए गलती उस इंसान की है, जो कहता है कि कि ये कोरोना-वोरोना कुछ नहीं है, चल पार्टी करते हैं. जो कहते हैं न कि मास्क लगाने पर आपको सांस नहीं आती, तो एक घंटा पीपीई किट पहन कर बताइए, हम पूरे दिन पीपीई किट पहनते हैं. हम तो जिंदा हैं, हमें तो सांस आ रही.'
'हम और हमारे फैमिली मेंबर साथ खड़े होकर फ्रंट लाइन पर लड़ रहे हैं. हमेशा यह डर लगा रहता है कि हमारी वजह से उनको बीमारी न लग जाए. 382 डॉक्टर्स और उनके परिवारों के हजारों सदस्य कोरोना के कारण मर चुके हैं और आपको तो उन लोगों का नाम तक नहीं पता. इसलिए सिम्ट्म्स आते ही दिखाइये, क्योंकि लोगों को कोरोना दोबारा आ चुका है. कोई नहीं बचेगा. मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग ही वैक्सीन है.'
आज उन सभी डॉक्टर्स की तरफ से जो हमारे बीच नहीं हैं और वो सभी डॉक्टर्स जो हमारे लिए काम कर रहे हैं, मैं रक्षिंदा आपसे ये रिक्वेस्ट करती हूं कि लापरवाही मत बरतिए, अपने घर वालों का ध्यान रखिए, क्योंकि हमें आज आपकी जरूरत है. चलो आज एक दूसरे का साथ देते हैं, विश्वास की वैक्सीन लेते हैं.'
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
सामाजिक, विकास परक, राजनीतिक विषयों पर तीन दशक से सक्रिय. मीडिया संस्थानों में संपादकीय दायित्व का निर्वाह करने के बाद इन दिनों स्वतंत्र लेखन. कविता, शायरी और जीवन में गहरी रुचि.