Opinion: हिम्मत और हौसले का दूसरा नाम थीं हमीदा बी

Hameeda Bi Death: भोपाल गैस कांड की भुक्तभोगी और चश्मदीद हमीदा बी ने 64 साल की आयु में दम तोड़ दिया. गैस पीड़ितों (Bhopal Gas Survivors) के बीच काम करने वाले तमाम संगठनों के बावजूद हमीदा बी, जब्बार भाई (Abdul Jabbar) की तरह ही एक विश्वसनीय और बड़ा चेहरा थीं.

Source: News18Hindi Last updated on: December 31, 2020, 9:06 am IST
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Opinion: चला गया भोपाल गैसपीड़ितों का एक और मसीहा
भोपाल गैस पीड़ितों के लिए अंत तक लड़ने वाली हमीदा बी अब हमारे बीच नहीं हैं.
ये साल जाते-जाते एक और कभी न भूलने वाला दर्द दे गया. इस दर्द को भोपाल के वाशिंदे कभी न भुला पाएंगे. 36 साल तक भोपाल के गैसपीड़ितों (Bhopal Gas Tragedy) को इंसाफ दिलाने के लिए आवाज बुलंद करती रहीं हमीदा बी (Hameeda Bi) की आवाज हमेशा-हमेशा के लिए खामोश हो गई. गुरबत भरी जिंदगी जीते हुए और कई बीमारियों से लड़ते हुए बेहतर इलाज के अभाव में वो भी इस दुनिया से रुखसत हो गईं.



याद दिला दें कि बीते साल 14 नवंबर को भोपाल के गैसपीड़ितों के मसीहा के रूप में पहचान रखने वाले अब्दुल जब्बार (Abdul Jabbar) भी इन्हीं हालातों में दुनिया को अलविदा कह गए थे. उन्हें गैंगरीन हो गया था, लेकिन अस्पतालों में सही इलाज नहीं मिला पाया. उनके साथ कंधे से कंधा मिला गैसपीड़ितों के लिए संघर्ष करने वाली हमीदा बी भी सबकी चहेती थीं. लोग उन्हें भी जब्बार भाई के समान ही मसीहा के रूप में देखते थे. वह गैसपीड़ितों के लिए संघर्ष का हौसला और हिम्मत थीं.



आखिरी सांस तक इंसाफ के लिए लड़ती रहीं

2-3 दिसंबर की काली अंधियारी रात को सन् 1984 में हुई विश्व की भीषणतम औद्योगिक त्रासदी की इस साल जब 36वीं बरसी मनाई जा रही थी, उसके चंद रोज पहले ही हमीदा बी से मुलाकात हुई थी. यह त्रासदी भोपाल के यूनियन कार्बाइड कारखाने से 27 टन मिथाइल आइसो साइनाइड गैस रिसने से हुई थी. बता दें कि इस त्रासदी में करीब 25 हजार लोगों की मौत हो गई थी और 5 लाख 70 हजार से ज्यादा लोग कैंसर, किडनी, लिवर, सीने में जलन, आंखों से जुड़ी गंभीर बीमारियों के शिकार हो गए थे, जो पीढ़ी दर पीढ़ी इन बीमारियों को भुगतने और अस्पतालों के चक्कर काटने के लिए आज भी मजबूर हैं. हमीदा बी इन सबके लिए एक मसीहा थीं. पीड़ितों को राहत, इलाज और मुआवजे की कभी न खत्म होने वाली लड़ाई हमीदा बी आखिरी सांस तक लड़ती रहीं और 29 दिसंबर की रात को उनका निधन हो गया.



कुनबे के 41 लोग गैसकांड ने लील लिए

भोपाल से अमेरिका तक लाखों गैसपीड़ितों के लिए मुआवजे और इस कांड के दोषियों को सजा दिलाने की लड़ाई लड़ते-लड़ते वह खुद इतनी कमजोर हो गई थीं, कि उन्हें भी कई बीमारियों ने जकड़ लिया था और बिस्तर पर ही उनका ज्यादातर वक्त बीतता था. उनके संघर्ष के जज्बे का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके घर में कोई खाना बनाने वाला नहीं बचा था. रोज उनका एक टिफिन आता था. उनके कुनबे के 41 लोगों को इस गैस त्रासदी ने एक के बाद एक मौत के आगोश में निगल लिया था.



आंदोलनों का बड़ा और विश्वसनीय चेहरा

इब्राहिमपुरा में रहने वाली 64 वर्षीय हमीदा बी न सिर्फ भोपाल गैसकांड की भुक्तभोगी और चश्मदीद थीं, बल्कि उन्होंने हजारों लोगों को सड़कों पर भागते, इलाज के लिए जद्दोजहद करते, दम तोड़ते देखा था. गैसपीड़ितों के बीच काम करने वाले तमाम संगठनों के बावजूद हमीदा बी, जब्बार भाई की तरह ही एक विश्वसनीय और बड़ा चेहरा थीं. उन्होंने भी जब्बार भाई की तरह गैस त्रासदी के जहर और जलन को इतना महसूस किया था कि खुद की तकलीफ भूल गुनहगारों के खिलाफ जंग लड़ने निकल पड़ी थीं और सड़कों पर मोर्चा संभाल लिया था. वह सरकार की ओर से दी जा रही मदद से संतुष्ट नहीं थीं. उनका मानना था पीड़ितों को बेहतर मुआवजा मिलना चाहिए. उनके रोजगार, पुनर्वास, इलाज का बेहतर इंतजाम होना चाहिए.



1989 में केन्द्र सरकार का केवल 1 लाख 5 हजार लोगों को पीड़ित मानते हुए यूनियन कार्बाइड के साथ 470 मिलियन डॉलर का समझौता हुआ. यह जब्बार भाई के साथ हमीदा बी के ही संघर्ष, प्रदर्शनों और अदालती लड़ाई का नतीजा था कि एक दशक बाद सुप्रीम कोर्ट ने 5 लाख 70 हजार दावेदारों को पीड़ित माना और 1503 करोड़ रुपए का वितरण उनके बीच करने के आदेश दिए.




सबके लिए जीतीं थीं हमीदा बी

हमीदा बी वो चेहरा थीं, जिन्होंने अदालत की चौखट से लेकर सड़क तक लड़ने से लेकर गैस पीड़ित हिन्दू-मुस्लिम महिलाओं के पुनर्वास और रोजगार के लिए विशेष प्रयास किए. जब्बार भाई के साथ उन्होंने महिलाओं के कौशल विकास के लिए स्वाभिमान केन्द्र खोला. इस केन्द्र में महिलाओं, लड़कियों को सिलाई, कढ़ाई, कपड़े के थैले बनाने आदि और कम्प्यूटर ट्रेनिंग का काम सिखाया जाता है.



हमीदा बी का दर्द

मुलाकात के दौरान जब हमने उनसे पूछा कि इंसाफ की इस लड़ाई में वह अपने आपको कितना सफल मानती हैं, तो उनकी आंखों से आंसू बरबस ही बह निकले. वह बोलीं-सिस्टम और सरकारें हमारी उम्मीद पर खरी नहीं उतरीं, ऐसा लगता है कि जैसे वह गुनहगारों के साथ और पब्लिक के खिलाफ खड़ी हों. आप चाहे गैसराहत अस्पताल जाएं, या अदालत, कोई सुनने वाला नहीं है. भोपाल गैसपीड़ितों के इलाज के लिए बने सबसे बड़े भोपाल मेमोरियल अस्पताल एंड रिसर्च सेंटर (बीएचएमआरसी) चले जाएं, वहां न आपको डॉक्टर मिलेंगे, न दवाएं. अदालतें नाम की बची हैं. गुनहगार बरी हो चुके हैं. सबसे खास गुनहगार यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन के पूर्व चेयरमैन वारेन एंडरसन की मौत हो चुकी है. विधवाएं पेंशन और गैसपीड़ित आज ही अपने हक के मुआवजे के लिए भटक रहे हैं, अपना दर्द किससे बयां करें, समझ नहीं आता.



हमीदा बी की आंख से बहते आंसुओं और बातों से इकलौती तड़प ये दिख रही थी कि भोपाल के गैस पीड़ितों को हर हाल में इंसाफ मिलना चाहिए. हमीदा बी भी एक साथ कई बीमारियों से जूझ रही थीं. अफसोस ये है कि सरकार या प्रशासन की ओर से उनकी कोई खबर नहीं ली गई, न ही अच्छे अस्पताल में इलाज हो पाया.




आंदोलनों की मुखर आवाज

हमीदा बी की शख्सियत भोपाल में होने वाले आंदोलनों के लिए खास मायने रखती थीं. चाहे भोपाल में किसान आंदोलन हो या नर्मदा बचाओ आंदोलन अथवा साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए किए जाने वाले धरना-प्रदर्शन, वह हर जगह महिलाओं की भारी संख्या में महिलाओं के साथ अपनी मौजूदगी दर्ज कराती थीं. उनके निधन से न सिर्फ भोपाल के गैसपीड़ित अकेले पड़ गए है, बल्कि उन जनता के लिए जनता के द्दारा लड़े जाने वाले आंदोलनों में उनकी कमी हमेशा खलेगी. भोपाल के वाशिंदों, गैसपीड़ितों की ओर से उन्हें, उनके संघर्ष को सादर नमन्, विनम्र श्रद्धांजलि. (डिस्क्लेमरः ये लेखक के निजी विचार हैं.)
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
ब्लॉगर के बारे में
सुनील कुमार गुप्ता

सुनील कुमार गुप्तावरिष्ठ पत्रकार

सामाजिक, विकास परक, राजनीतिक विषयों पर तीन दशक से सक्रिय. मीडिया संस्थानों में संपादकीय दायित्व का निर्वाह करने के बाद इन दिनों स्वतंत्र लेखन. कविता, शायरी और जीवन में गहरी रुचि.

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    First published: December 31, 2020, 9:06 am IST

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