पिछले कुछ महीनों से मानसिक अवसाद (Depression) के कारण आत्महत्या या आत्महत्या की कोशिश (Suicide and Suicide attempts) करने वालों की जैसे बाढ़ सी आ गई है. खुदकुशी की घटनाओं से पहले मिल रहे सुसाइड नोट्स (Suicide notes) मौत से पहले की मनःस्थिति और हालातों की कहानी खुद बयां कर रहे हैं.
Source: News18Hindi Last updated on: September 20, 2020, 5:14 pm IST
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खुदकुशी की घटनाओं से पहले मिल रहे सुसाइड नोट्स मौत से पहले की मनःस्थिति और हालातों की कहानी खुद बयां कर रहे हैं (सांकेतिक फोटो)
किसी ने जहर (poison) खा लिया, कोई फांसी लगाकर (by hanging) मर गया, कोई बहुमंजिला इमारत से कूद पड़ा, तालाब में डूब मरा तो किसी ने ट्रेन (train) से कटकर जान दे दी. रोज-ब-रोज ऐसी मौतों (deaths) की लंबी होती जाती फेहरिस्त उन लोगों की है, जो जिंदगी की मुश्किलात के सामने हार मान दुनिया को बेवक्त अलविदा कह गए, यह भी न सोचा कि सांसें रहेंगी तो जिंदगी तो फिर गुलजार होने का मौका देगी, वरना मौत की दहलीज के उस पार क्या, किसने देखा. काश... इनसे भी जीवन के लिए कोई संवाद (communication) करता, भरोसा देता और कहता... डोंट वरी यार... मैं हूं ना. अगली बार कोई डिप्रेशन (depression) या अवसाद में दिखे, या मौत को गले लगाने जैसा कुछ गलत करने जा रहा हो, तो आप भी कंधे पर हाथ रख सकते हैं, उसे थाम सकते हैं, कह सकते हैं... ये भी वक्त है, जो गुजर जाएगा, डोंट वरी यार... मैं हूं ना.
सुसाइड नोट बताते दिल के हाल
पिछले कुछ महीनों से मानसिक अवसाद के कारण आत्महत्या या आत्महत्या की कोशिश करने वालों की जैसे बाढ़ सी आ गई है. खुदकुशी की घटनाओं से पहले मिल रहे सुसाइड नोट्स मौत से पहले की मनःस्थिति और हालातों की कहानी खुद बयां कर रहे हैं.
केस1-12 सितंबर को यूपी के प्रयागराज में 10 साल से रहते हुए यूपीएससी की तैयारी करते हुए मुख्यपरीक्षा से इंटरव्यू तक पहुंचे बस्ती के राजीव पटेल ने जब अपना नाम अंतिम सूची में नहीं पाया तो निराश होकर फांसी पर झूल गए. इससे पहले सुसाइड नोट में लिखा-पूजनीय बड़े पिता जी, माता जी मुझे माफ कर देना, मैं अच्छा बेटा नहीं बन पाया.
केस 2- 15 सितंबर को भोपाल में एक साथ खुदकुशी की चार घटनाओं ने हिलाकर रख दिया. इसमें ट्रेन से कटकर जान देने वाले कारोबारी खुमान सिंह ने अपने सुसाडड नोट में लिखा-कोरोना की वजह से लाॅकडाउन के दौरान दुकान बंद रहने से बैंक का लोन और जीएसटी नहीं चुका पा रहा, इसलिए जान दे रहा हूं. भोपाल के ही मोतिया तालाब में कूद कर जान देने वाले एक पिता ने लिखा-बच्चों मुझे माफ कर देना, मैं तुम्हें ठीक से पाल नहीं सका, तुम्हारी हसरतें पूरी नहीं कर सका. बीडीए कालोनी, अवधपुरी के छात्र विक्रम अहिरवार ने फांसी लगाकर खुदकुशी करने से पहले सुसाइड नोट में भेल ( BHEL)कालेज में एडमिशन की सीटें भर जाने को तनाव की वजह बताया. शंकर नगर बरखेड़ा में रहने वाली 27 साल की रजनी के घर की कलह से दुखी होकर जल मरने की कहानी सामने आई. पुलिस के रिपोर्ट बताती है कि 71 दिन के लाकडाउन के दौरान भोपाल में 71 लोगों ने मौत को गले लगाया. मौतों की रफ्तार और ये आंकड़े बेहद डराने वाले हैं.
केस 3- बैरसिया के किसान ने पानी की टंकी से कूद कर जान दे दी. पता चला वह फसल के बर्बाद होने और सूदखोरों के कर्ज से परेशान था.
केस 4- बालाघाट में नौकरी जाने के बाद आर्थिक तंगी और पारिवारिक कलह से परेशान एक पिता 3 बच्चों का गला घोंटकर खुद फांसी पर लटक गया. सुसाइड नोट में लिखा-मैं अपने जीने का अधिकार और सम्मान खो चुका हूं.
केस 5- महाराष्ट्र के धर्मपुरी के एक स्क्रैप व्यापारी का बेटा एनईईटी परीक्षा मे फेल हो गया था और मदुरै की एक 19 वर्षीय छात्रा जोतिश्री दुर्गा, जिसका नाम पिछले साल एनईईटी पास करने के बाद वेटिंग लिस्ट में था, दोनों ने खुदकुशी कर ली. फांसी लगाने वाली छात्रा ने सुसाइड नोट में लिखा-वह परीक्षा को लेकर आशंकित थी.
कितने भयावह हैं हालात
महाराष्ट्र हो, बंगाल हो, मध्यप्रदेश हो या फिर बिहार, कई छात्र, छात्राओं ने कोरोना के चरमकाल में जेईई मेन्स, एडवांस, नीट और फाइनल ईयर के एक्जाम कराये जाने की वजह से जान दे दी. कईयों के सुसाइड नोट से यह जानकारी सामने आई कि उन्हें भय था कि ऐसे हालातों में जब कोरोना का डर दिलों में बैठा हुआ है, वह परीक्षाओं में ठीक से अपना प्रदर्शन नहीं कर पाएंगे. पूरे देश में किसानों की खुदकुशी के मौतों के कारणों पर नजर डालें, तो फसल की तबाही, बैंक का चढ़ता लोन या सरकार अथवा सूदखोरों की वसूली में सख्ती से पैदा अवसाद वजह के रूप में सामने आई हैं. महाराष्ट्र में ही इस साल जनवरी से जून के बीच के 6 महीनों में 1074 किसानों की आत्महत्या रिकॉर्ड की गई है. यानी रोज़ाना औसतन 6 किसानों ने जान दी. मप्र में व्यापार केन्द्र के रूप में पहचाने जाने वाले खंडवा शहर में तो 1 जून से 16 जुलाई के बीच डेढ़ महीने में 47 लोगों ने खुद अपनी जान ली. ज्यादातर मौतें कोरोना काल में आर्थिक नुकसान से उपजे तनाव के कारण सामने आईं.
एसएचआर के सर्वे के मुताबिक केरल में 6 महीने में 13 से 18 साल की उम्र वाले 140 किशोरों ने खुदकुशी की. अध्ययन में कहा गया है कि आत्महत्या के प्रमुख कारणों में पारिवारिक विवाद, प्रेम प्रसंग, परीक्षा में असफलता, मोबाइल फोन एवं दोपहिया वाहन को लेकर मुद्दे शामिल थे. कारोबारियों के मामलों में लॉकडाउन के दौरान कारोबार बंद रहने से घाटा, कर्ज से पैदा तनाव खुदकुशी की बड़ी वजह रहा है.
बेरोजगारी बढ़ना खुदकुशी की बड़ी वजह
कोरोना के चलते अप्रैल से अब तक 1.89 करोड़ लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा है. सेंटर फार मानीटरिंग इंडियन इकोनामी (सीएमआईआई) मुताबिक लाॅकडाउन के दौरान अप्रैल में 1.77 करोड़, मई में 1 लाख लोगों की नौकरियां गईं. जून में 39 लाख नौकरियां मिलीं, लेकिन जुलाई में 50 लाख नौकरियां चली गई. सीएमआईई के ही आंकड़ों के अनुसार अगस्त, 2020 में बेरोजगारी की दर 8.35 प्रतिशत हो गई, जो कि जुलाई, 2020 में 7.43 प्रतिशत थी. वहीं लॉकडाउन के दौरान अप्रैल और मई में यह आंकड़ा बहुत अधिक बढ़कर 23.5 प्रतिशत तक जा चुका था. इसमें दिहाड़ी मजदूर भी शामिल थे और महीने के लाखों कमाने वाले जॉब गंवा चुके प्रोफेशनल्स भी और युवा शिक्षित बेरोजगार भी. यही कारण है कि लॉकडाउन के दौरान बेरोजगारी के कारण देश के कई हिस्सों से आत्महत्या की खबरें आईं.
क्या कहती एनसीआरबी की रिपोर्ट?
2019 में जारी नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट कहती है कि दिहाड़ी मजदूरों और विवाहित महिलाओं के बाद बेरोजगारों और छात्र-छात्राओं में आत्महत्या की प्रवृति बढ़ी है. पिछले साल हर रोज 38 बेरोजगार और 28 छात्र-छात्राओं ने खुदकुशी की. ये आंकड़े बेकाबू होते हालात बयां करते हैं. 2019 में कुल 1,39,123 लोगों ने आत्महत्या की, जिनका रिकॉर्ड दर्ज हुआ. इन 1,39,123 लोगों में से 10.1% यानी कि 14,051 लोग ऐसे थे, जो बेरोजगार थे. बेरोजगार लोगों की आत्महत्या का यह आंकड़ा पिछले 25 सालों में सबसे अधिक है. 2018 में आत्महत्या करने वाले बेरोजगार लोगों की संख्या 12,936 थी. अब जब सितंबर तक देश में करीब 2 करोड़ लोग नौकरी खो चुके हैं, जब जिंदगी से हताश-निराश लोगों और उनके परिवारों की मनोदशा कितनी गंभीर अवस्था में होगी, अंदाजा लगाना भी मुश्किल है.
कोरोना काल में आत्महत्या के मामले हुए दोगुने
दुनिया में कोरोना के बढ़ते खतरे के साथ ही डिप्रेशन और आत्महत्याओं के मामलों में तेजी से इजाफा होता दिख रहा है. अजमेर के मनोचिकित्सक डा. चरण सिंह जिलोवा के मुताबिक हर साल हर विश्व में 8 लाख और देश में 2 से 3 लाख लोग आत्महत्या करते हैं. वहीं हर 40 सेकेंड में एक व्यक्ति खुदकुशी करता है. भारत में हर चार मिनट में एक व्यक्ति खुदकुशी कर रहा है, लेकिन वर्तमान में चल रहे कोरोना काल में आत्महत्या के मामले दोगुने या उससे भी ज्यादा हो गए हैं. इसके तीन कारण हैं पहला-बेरोजगारी और धंधा चौपट होने से पैदा हुई आर्थिक तंगी, दूसरा-कोरोना होने का डर और तीसरा- समाज से दूरी बढ़ने के कारण अकेलापन महसूस करना है. 2019 में ग्लोबल बर्डन आफ डिसीज नामक इंटरनेशनल हेल्थ आर्गेनाइजेशन भी अपने सर्वे में बताता है कि भारत में हर चार मिनट में एक व्यक्ति खुदकुशी कर रहा है. बता दें कि 2018 में यही आंकड़ा 1 लाख 34 हजार लोगों द्वारा खुदकुशी करने का था, मतलब साफ है कि मानसिक तनाव में लोगों में खुदकुशी करने की प्रवृति बढ़ रही है. खुदकुशी करने वालों से ज्यादा खुदकुशी की कोशिश करने वालों की तादाद बहुत ही ज्यादा है.
सुसाइड प्रिवेंशन इंडिया फाउंडेशन (SPIF) का कोविड-19 क्लूज ऑनलाइन सर्वे बताता है कि भारत में तो आत्महत्या की दर वैसे भी वैश्विक औसत से 60 प्रतिशत से भी ज्यादा है. कोरोना के बाद से देश में खुद को चोट पहुंचाने, अपनी मौत की चाहत रखने और खुद की जान लेने की प्रवृति में कई गुना बढ़ी हुई पाई गई है. बीमारी के भय और जिन आर्थिक विषमताओं का सामना लोगों को करना पड़ा है, उसने कई लोगों ने खुद को मारने के बारे में सोचा या कोशिश की. साथ ही 71 फीसदी लोगों में कोरोना के बाद मरने की इच्छा बढ़ गई. राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NSSR) की 2016 में सरकारी रिपोर्ट कहती है कि भारत में मानसिक स्वास्थ्य से 15 करोड़ भारतीय जूझ रहे हैं, जबकि सेवाएं सिर्फ 3 करोड़ भारतीयों को मिल रही है. कोरोना काल के इन 6 महीनों में देश की 70 फीसदी से भी ज्यादा आबादी किसी न किसी रूप में मानसिक स्वास्थ्य से जूझ रही है. विश्वस्वास्थ्य संगठन(WHO) भी मानता है कि भारत में कोरोना काल के दौरान मानसिक अवसाद से ग्रसित लोगों की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ गई है. लांसेट (LANCET) पत्रिका 2018 में प्रकाशित का शोध कहता है कि विश्व की कुल जनसंख्या में मात्र भारतीय महिलाओं की हिस्सेदारी मात्र 18 फीसदी है, जबकि स्त्री आत्महत्याओं के मामले में यह हिस्सेदारी 36 फीसदी है. 2018 में एक लाख 34 हजार लोगों ने खुदकुशी की थी, जबकि 2019 मे यह संख्या बढ़कर 2 से 3 लाख के बीच हो गई.
सूचनाओं की ऑनलाइन बाढ़ से आतंक
दिल्ली में सर गंगाराम अस्पताल में मनोचिकित्सक और व्यवहार विज्ञान के उपाध्यक्ष डा. राजीव मेहता के अनुसार कोविड-19 के बार में सूचनाओं की ऑनलाइन बाढ़ ने बड़े पैमाने पर आतंक फैलाया है. अब हालात यह हो गए हैं, सामान्य छींकने और खांसने पर भी लोगों को कोरोना संक्रमण का अंदेशा होने लगता है. क्वारंटीन सेंटर जेल की तरह लग रहे हैं. संक्रमित लोगों को सामाजिक कलंक का डर सता रहा है. छ्त्तीसगढ़ के क्वांरटीन सेंटर में पिछले दिनों 10 लोगों की खुदकुशी की घटना दिल दहला देने वाली है.
भयावह होते हालातों से कैसे उबरेगा भारत
यह हमारा नहीं, विशेषज्ञों का मत है कि हर पांचवा भारतीय किसी न किसी तरह के मानसिक अवसाद से ग्रस्त है. राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP) बजट कम होता जा रहा है. वर्ष 2018 में इसके लिए 50 करोड़ के प्रावधान को 2019 में घटा कर 40 करोड़ रुपए कर दिया गया, जबकि 2017 में ही कार्यक्रम को लागू करने के लिए 95 हजार करोड़ रुपए की थी, मतलब बहुत छोटा हिस्सा भी इस पर खर्च नहीं किया जा रहा है. अब तो कोरोना की महामारी के बाद देश की बड़ी आबादी को बेहतर मानसिक स्वास्थ्य की जरूरत है, इसके लिए धन कहां से आएगा और देगा कौन.
जीवन से जीवंत संवाद बड़ी जरूरत
मानसिक अवसाद और डर मुक्ति के लिए मोटिवेशनल स्पीकर डिजिटल वेबसाइट्स, चैनलों, फेसबुक, जूम, गूगल मीट, इंस्टाग्राम, ट्विटर, व्हाट्सएप सहित सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफार्म से हर दिन, हर सप्ताह लेख, साक्षात्कार के जरिए लोगों को जीवन संवाद का संदेश दे रहे हैं. बता रहे हैं कि कैसे अतीत से कड़वी यादों से मुक्ति पाकर दिलो-दिमाग में जमे कचरे को हटा सकते हैं. आत्महत्या का भाव साहस नहीं, बल्कि कायरता भरा, पलायनवादी दृष्टिकोण है, जिसे बदलना जरूरी है. जीवन संवाद जीवंत संवाद बन जाए, इसके लिए शुरूआत आपको खुलकर अपनी भावनाओं के बारे में बात करनी होगी. निडर और बेहिचक अपनी भावनाएं लोगों बांटें. एक सभ्य व्यक्ति और समाज की तरह करूणा और प्रेम से लोगों की बातें सुनना सीखना और बात करना होगा. परिजनों और मित्रों से सामाजिक, भावनात्मक और आत्मीयता के साथ जुड़ें और यह आपस में यह संदेश दें कि वह अकेले नहीं, सब साथ हैं. ये मोटिवेशनल स्पीकर अलग-अलग कथाओं के जरिए लोगों को अपनी सोच सकारात्मक रखने और संकट के समय सबको एक दूसरे का हाथ थामे रखने और मदद के लिए प्रेरित कर रहे हैं.
अवसाद से कैसे लड़ें
-मनोचिकित्सक डा. साहा कहते हैं कि सोशल मीडिया की अफवाहों पर बिल्कुल भरोसा न करें, पहले सच्ची जांचें. सांस लेने का व्यायाम करें, किसी भी बीमारी में डाक्टर पर ही भरोसा करें.
-एसपीआईएफ से जुड़े नेल्सन विनोद मूसा के अनुसार आत्महत्या का विचार एक तात्कालिक संकट है, जिसे सही समय पर मदद मिलने से टाला जा सकता है. सामाजिक स्तर पर मेल-मुलाकात, आपस में यह विश्वास पैदा करें कि अनिश्चितता से भरा यह समय भी गुजर जाएगा.
-इंदौर के जाने-माने मनोचिकित्सक डा. वीएस पॉल ने बताया कि जिन लोगों में टॉलरेंस का लेबल कम होता है, वह दहशत में आकर आत्महत्या कर लेते हैं. हमें खबरों और अफवाहों से दूर रहना चाहिए. इससे भी ज्यादा खतरनाक वायरस आ चुके हैं, जिनमें कहीं ज्यादा मौतें हुईं है. इसलिए सिर्फ संक्रमण से बचें, डरें नहीं.
-भोपाल के बंसल अस्पताल में मनोचिकित्सक सत्यकांत त्रिवेदी अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखते हैं कि अब समय आ गया है कि आत्महत्याओं की रोकथाम के लिए सरकार, समाज, संगठन सब मिलकर काम करें. अपने आसपास के लोगों की शारीरिक, मानसिक, आर्थिक सहायता के लिए सब सामने आएं, यही एक रास्ता मुझे दिखता है.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
सामाजिक, विकास परक, राजनीतिक विषयों पर तीन दशक से सक्रिय. मीडिया संस्थानों में संपादकीय दायित्व का निर्वाह करने के बाद इन दिनों स्वतंत्र लेखन. कविता, शायरी और जीवन में गहरी रुचि.