महामारी पर भारी वोटों की मारामारी, सख्त हाईकोर्ट का चुनाव आयोग से टकराव

बार-बार की हिदायतों के बाद भी नाफरमानी देख आखिरकार एमपी हाईकोर्ट की ग्वालियर बैंच (Gwalior Bench of High Court) को कानून का डंडा चलाते हुए बुधवार को यह कहना पड़ा कि उम्मीदवार को चुनाव प्रचार (Election Campaign) का अधिकार है, तो लोगों को जीने के साथ-साथ स्वस्थ रहने का भी अधिकार है. उम्मीदवार के अधिकार से जनता का स्वस्थ रहने का अधिकार ज्यादा बड़ा है.

Source: News18Hindi Last updated on: October 23, 2020, 1:36 pm IST
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महामारी पर भारी वोटों की मारामारी, सख्त हाईकोर्ट का चुनाव आयोग से टकराव
(फाइल फोटो)
वोटों के लिए मारामारी कोरोना की महामारी पर किस कदर भारी पड़ रही है, इसका अनुमान एमपी में 28 विधानसभा सीटों पर 3 नवंबर को होने वाले उपचुनावों (By-Elections) के लिए हो रही रैलियों, सभाओं में सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) की उड़ रही धज्जियों को देखकर लगा सकते हैं. चुनावी घमासान में व्यस्त नेताओं को न तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नसीहतें सुनाई पड़ रही हैं, न अदालतों के फरमान. जनता की जान की कीमत इनके लिए महज एक वोट से ज्यादा नहीं है. चुनाव के दौरान कोरोना से सुरक्षित रहने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय की गाइडलाइन्स को भी इन नेताओं ने जैसे कूड़ेदान में फेंक दिया है. बार-बार की हिदायतों के बाद भी नाफरमानी देख आखिरकार एमपी हाईकोर्ट की ग्वालियर बैंच (Gwalior Bench of High Court) को कानून का डंडा चलाते हुए बुधवार को यह कहना पड़ा कि उम्मीदवार को चुनाव प्रचार (Election Campaign) का अधिकार है, तो लोगों को जीने के साथ-साथ स्वस्थ रहने का भी अधिकार है. उम्मीदवार के अधिकार से जनता का स्वस्थ रहने का अधिकार ज्यादा बड़ा है.



कोर्ट ने सख्त तेवर अपनाते हुए यहां तक आदेश दे दिया कि ग्वालियर-चंबल संभाग के 9 जिलों में कोई भी सभा या रैली चुनाव आयोग (Election commission) की अनुमति के बाद ही की जा सकेगी. कलेक्टर की भूमिका “पोस्टमैन” जैसी कर दी गई है, जो चुनाव आयोग से अनुमति के लिए अनुशंसा ही कर सकेगा. उधर हाईकोर्ट के दखल से नाराज चुनाव आयोग सुप्रीमकोर्ट जा पहुंचा है. आयोग ने अपनी याचिका में कहा है कि चुनाव कराना उसका डोमेन है. हाईकोर्ट का फैसला मतदान की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है. पहले से ही कोरोना वायरस संकट के दौरान चुनाव कराने के दिशानिर्देश तय हैं, इसलिए हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई जाए.



वहीं इस अदालती फरमान से कांग्रेस-भाजपा सहित सारे राजनैतिक दल भी बौखला गए हैं. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने अदालत के इस फैसले को एक देश में दो विधान जैसी स्थिति बताते हुए सुप्रीमकोर्ट में चुनौती देने की बात कही है. शिवराज सिहं, नरेन्द्र सिंह तोमर, कमलनाथ समेत कई नेताओं को गुरूवार अपनी चुनावी सभाएं, रैलियां रद्द करनी पड़ी हैं और अगली सभाओं के लिए चुनाव आयोग में अर्जी लगानी पड़ी है.



ग्वालियर हाईकोर्ट ने चुनाव प्रचार के दौरान कोविड-19 की गाइडलाइंस का उल्लंघन करने के आरोप में दतिया और ग्वालियर कलेक्टर को मुरैना से भाजपा सांसद व केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर और कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए हैं.



सभाओं पर ब्रेक से प्रचार पर पलीता



बता दें कि मप्र की 28 विधानसभा सीटों पर 3 नवंबर को वोट डाले जाएंगे और 10 नवंबर को नतीजे घोषित किए जाएंगे. इन 28 में से सबसे ज्यादा करीब 16 सीटें ग्वालियर-चंबल संभाग में हैं. यहां की तकरीबन सभी सीटों पर सिंधिया समर्थक वो सारे नेता उम्मीदवार हैं, जिन्होंने कमलनाथ सरकार में मंत्री-विधायक रहते हुए बगावत कर दी थी और सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल होकर मार्च 2020 में शिवराज सिंह के नेतृत्व में सरकार बनवा दी थी.



अब उपचुनाव में इन सीटों पर जीतना भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए नाक का सवाल है. चुनाव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेन्द्र सिंह तोमर, भाजपा अध्यक्ष बीडी शर्मा लगभग पूरे समय ही यहां डेरा डाले हैं, दूसरी ओर कमलनाथ और कांग्रेस की टीम इन्हीं सीटों पर जोर मार रही है. दोनों ही दलों ने अपने-अपने स्टार प्रचारकों (Star campaigners) के साथ चुनावी रैलियों और सभाओं के जरिए हल्ला बोल रखा है. प्रचार खत्म होने में 9 दिन ही शेष बचे हैं, ऐसे में हाईकोर्ट का ताजा आदेश प्रचार की गति को प्रभावित कर सकता है.







नेताओं के रवैये से कितनी व्यथित है अदालत



ये कोई पहली बार नहीं है कि ग्वालियर हाईकोर्ट ने टिप्पणी की हो. इससे पहले 21 सितंबर को भी हाईकोर्ट ने नेताओं को फटकार लगाते हुए कहा था कि आप कितने भी बड़े हों, लेकिन याद रखिए कि कानून आपसे भी बड़ा है. हाईकोर्ट की यह टिप्पणी सिंधिया, शिवराज, कमलनाथ समेत कई नेताओं के कार्यक्रमों में उमड़ी भारी भीड़ के चलते कोरोना गाइडलाइन के उल्लंघन के बाद सामने आई थी. बता दें कि मध्यप्रदेश के इंदौर, भोपाल के अलावा ग्वालियर समेत पूरे संभाग में कोरोना अपने चरम पर था और दो-दो सौ मरीज रोज मिल रहे थे, तब 22 से 24 अगस्त तक भाजपा ने ग्वालियर में उपचुनाव से पहले अपना शक्तिप्रदर्शन करने के मकसद सदस्यता अभियान के रूप में बड़ा राजनैतिक आयोजन किया था, जिसमें सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाते हुए रोज हजारों लोगों का हुजूम उमड़ा था. इन आयोजनों में खुद कोरोना के शिकार हो चुके शिवराज सिंह चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया, बी डी शर्मा समेत कई नेता सबसे आगे थे. सदस्यता अभियान के कुल 19 आयोजन ग्वालियर-चंबल संभाग में किए गए थे.



उस समय एक जनहित याचिका के बाद हाईकोर्ट ने तीन वकीलों को न्यायमित्र भी बनाया था, जो किसी राजनैतिक गतिविधि या अन्य आयोजन में गाडडलाइन की अवहेलना होने पर प्रिंसीपल रजिस्ट्रार के माध्यम से हाईकोर्ट को अवगत कराने का काम कर रहे हैं. याचिका में फोटोग्राफ्स के साथ तात्कालिक राजनैतिक गतिविधियों के उल्लेख को देखने को बाद कोर्ट ने कहा था कि जो राजनेता और प्रशासनिक अफसर जो भी हैं, वह गैर जिम्मेदाराना तरीके से काम कर रहे हैं. आमआदमी, राजनेता और राज्य के मुखिया को भी कानून का सम्मान करना आवश्यक है. ऐसा नहीं है कि भाजपा के ही कार्यक्रमों में कोरोना गाइडलाइंस भुलाई गई हों, कांग्रेस नेता कमलनाथ, अजय सिंह, जीतू पटवारी, विजय लक्ष्मी साधौ व अन्य नेताओं के कार्यक्रमों में भी ऐसी ही भीड़ उमड़ी और सोशल डिस्टेंसिंग गायब दिखी.



क्या कोविड-19 के लिए नियम केवल जनता के लिए हैं?



ये सवाल भी उठना लाजिमी है कि क्या कोरोना के लिए लागू नियम आम जनता और राजनैतिक दलों और नेताओं के लिए अलग-अलग हैं? क्या कोरोना जनता और नेता दोनों को देखकर अलग-अलग व्यवहार करता है? क्या जनता पर गाइडलाइंस का डंडा घुमाने वाले कलेक्टरों और दीगर अफसरों को यह बात समझ में नहीं आती. खंडवा जैसी जगह में जहां हाल ही में ज्योतिरादित्य सिंधिया की एक सभा के दौरान पंडाल में बैठे एक बुजुर्ग की मौत होने और खबर फैलने के बाद भी किसी को शर्म नहीं आती और संवेदनाओं को ताक पर रख सभा चलती चलती रहती है.



पूरे उपचुनाव वाले इलाकों में नेताओं की जानलेवा लापरवाही को देखते हुए ग्वालियर हाईकोर्ट में बहुत ही व्यथित होकर यह टिप्पणी स्वाभाविक लगती है, जिसमें उसने कहा कि सभाओं में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हो रहा है. नेता लोगों के स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशील, सजग और उदार नहीं दिख रहे. उन्हें चुनाव की चिंता है, लेकिन जनता के स्वास्थ्य की नहीं. अब पार्टियां पहले चुनाव आयोग से इजाजत लें, फिर सभाएं करें, साथ ही यह भी बताएं कि वर्चुअल सभाएं क्यों नहीं हो सकती? इसके साथ ही उम्मीदवार चुनावी सभा में शामिल होने वाले लोगों के बराबर मास्क और सेनेटाइजर की कीमत की दोगुनी राशि कलेक्ट्रेट में सुरक्षा इंतजाम करने के शपथ पत्र के साथ जमा करे.



यहां बता दें कि शादी, मौत, मुंडन, सामाजिक कार्यक्रमों में 10, 20 या 50 लोगों तक लोगों को शामिल होने की छूट है, लेकिन राजनैतिक आयोजनो में लोगों की भीड़ उमड़ रही है, मास्क तो छोड़िए, सोशल डिस्टेंसिंग का भी पालन नहीं हो रहा है. राज्य में चुनाव हैं तो क्या राजनैतिक दलों को लोगों की जान से खिलवाड़ करने की छूट दे दी जानी चाहिए, यह एक बड़ा सवाल है.



जरा पोहरी को याद कीजिए



हमें शिवपुरी जिले के पोहरी में सितंबर माह के तीसरे हफ्ते में हुई मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की चुनावी सभा को याद कर लेना चाहिए. इस भीड़ भरी सभा से लौटकर आए अधिकारी, कर्मचारियों ने जब अपना सैंपल कराया था, तो कलेक्टर, एसपी, शिवपुरी एसडीओपी, कोलारस, बदरवास के टीआई से लेकर बड़ी संख्या में शासकीय कर्मचारी कोरोना पाजिटिव निकले थे. सभा में पूरे जिले से भीड़ उमड़ी थी और किसी ने भी अपना सैंपल नहीं कराया था. सोचिए सभा में कितने लोग कोरोना के शिकार हुए होंगे? कोई सैंपल होता और आंकड़ा सामने आता, तो वह निश्चित तौर पर विस्फोटक होता.



उपचुनावों की घोषणा से ठीक पहले जनता को लुभाने के लिए मुरैना में 73 करोड़ के कार्यों के भूमिपूजन और 194 करोड़ के कार्यों के लोकार्पण के कार्यक्रम शिवराज, सिंधिया और तोमर की मौजूदगी में हुए थे और इनमें भारी भीड़ उमड़ी थी और सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों के पालन का कहीं अता-पता नहीं था. ऐसे ही कार्यक्रम जौरा और भिंड में भी हुए थे.



शिवराज, तोमर की प्रतिक्रिया



ग्वालियर हाईकोर्ट के ताजा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि मध्यप्रदेश के एक हिस्से में रैली और सभा हो सकती है, दूसरे हिस्से में नहीं, ये कैसा फैसला है. बिहार में रैलियां, सभाएं हो रही हैं, लेकिन प्रदेश के एक हिस्से में हमें अनुमति नहीं. ये तो एक देश में दो विधान जैसी स्थिति है. भाजपा हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती देगी. केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा कि भाजपा चुनाव आयोग और न्यायालय में भरोसा करने वाली पार्टी है, हम आयोग के नियमों का पालन करेंगे.



क्या हैं गृह मंत्रालय की गाइडलाइंस



-बिहार और मप्र में होने वाले उपचुनाव के लिए केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने 8 अक्टूबर को गाइडलाइंस जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि उपचुनाव के लिए होने वाली सभाओं में 100 से ज्यादा लोग शामिल हो सकते हैं.



-खुले मैदान में चुनावी रैली में शामिल होने पर भीड़ की कोई पाबंदी नहीं होगी, लेकिन इस दौरान कोरोना से बचाव के नियमों का पालन करना होगा.



इन 28 सीटों पर होनी है वोटिंग



मुरैना, मेहगांव, ग्वालियर पूर्व, ग्वालियर, डबरा, बमौरी, अशोक नगर, अम्बाह, पोहरी, भांडेर, सुमावली, करेरा, मुंगावली, गोहद, दिमनी, जौरा, सुवासरा, मान्धाता, सांवेर, आगर, बदनावर, हाटपिपल्या, नेपानगर, सांची, मलहरा, अनूपपुर, ब्यावरा और सुरखी विधानसभा सीट में वोटिंग होनी है.







मोदी की नसीहतें भी अनसुनी कर रहे नेता



बता दें कि देश में कोरोना महामारी की दस्तक के बाद 19 मार्च को अपने राष्ट्र के नाम पहले संबोधन से लेकर आज तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने संबोधनों में बार-बार “दो गज की दूरी, मास्क है जरूरी”, “जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं,” जैसे वाक्य बोलकर पूरे देश को कोरोना महामारी से बचने के लिए सतर्कता बरतने की नसीहतें दे रहे हैं, जिन्हें उनकी अपनी पार्टी के नेता ही नहीं मान रहे.  बीते 5 अगस्त को अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास, भूमिपूजन कार्यक्रम के बाद अपने संबोधन में उन्होंने कोरोना से राम की मर्यादा को जोड़ते हुए कहा था कि “भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, यह राम की मर्यादा है- दो गज की दूरी, मास्क है जरूरी.“ इस मर्यादा का पालन करके ही हम कोरोना से लड़ सकेंगे.



इससे पहले 30 जून को भी उन्होंने कहा था कि नियमों से ऊपर कोई नहीं. मास्क न लगाने पर बुल्गारिया के पीएम पर 13 हजार रुपए के जुर्माने का जिक्र करते हुए मास्क की अहमियत समझाई थी और प्रशासनिक अमले से ऐसी ही चुस्ती की उम्मीद जताई थी. उन्होंने आगाह करते हुए यह भी कहा था कि लॉकडाउन हटने के बाद व्यक्तिगत, सामाजिक, राजनैतिक स्तर पर दो गज की दूरी मास्क पहनने और हाथ धोने में लापरवाही देखने में आई है. इससे महामारी और फैल सकती है. अभी 20 अक्टूबर को उन्होंने राष्ट्र के नाम अपने एक और संबोधन में कहा “अगर आप लापरवाही बरत रहे हैं, तो आप अपने आपको, अपने परिवार को, अपने परिवार के बच्चों, बुजुर्गों को उतने ही बड़े संकट में डाल रहे हैं. हमें ये नहीं भूलना है कि लॉकडाउन भले ही चला गया हो, लेकिन वायरस नहीं गया है.



इसलिए याद रखिए...जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं.“ पीएम की नसीहतों, संदेशों को सभी को गंभीरतापूर्वक लेना चाहिए, लेकिन सवाल उठता है कि जब हमारे प्रदेश के राजनेता ही इसका पालन नहीं करते, तो जनता पर ही लापरवाही का ठीकरा फोड़ना और उन पर नियम कायदे लादना कितना उचित ठहराया जा सकता है. कोरोना से बचाव के लिए राजनेताओं को स्वयं नियमों का पालन कर उदाहरण पेश करना होगा, तब ही बनेगी बात.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
ब्लॉगर के बारे में
सुनील कुमार गुप्ता

सुनील कुमार गुप्तावरिष्ठ पत्रकार

सामाजिक, विकास परक, राजनीतिक विषयों पर तीन दशक से सक्रिय. मीडिया संस्थानों में संपादकीय दायित्व का निर्वाह करने के बाद इन दिनों स्वतंत्र लेखन. कविता, शायरी और जीवन में गहरी रुचि.

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First published: October 23, 2020, 1:36 pm IST

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