रंगकर्म सृजन के साथ अन्याय के विरोध की भी विधा है. लेकिन मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय (Madhya Pradesh School Of Drama) के छात्रों ने इस विधा को अपनाया तो उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया. ये छात्र जनरल प्रमोशन (General Promotion) का विरोध और अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी करने की मांग कर रहे थे.
Source: News18Hindi Last updated on: August 23, 2020, 10:48 pm IST
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मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय का पूर्व परिसर.
रंगकर्म सृजन के साथ अन्याय के विरोध की भी विधा है, लेकिन मंच से परे मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय (Madhya Pradesh School Of Drama) के छात्रों ने जिंदगी के मैदान में इस विधा को अपनाया तो उनके भविष्य पर ही तलवार लटक गई. उन्हें अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी करने की मांग करने पर विद्यालय से ही निकाल दिया गया. पूरे मुद्दे को सियासत ने हथिया लिया, बाहरी और स्थानीय रंगकर्मी दो धड़ों में बंट गए. वरिष्ठ रंगकर्मियों ने यह कहते हुए अपनी कन्नी काट ली कि क्या आंदोलन या विरोध से पहले छात्रों ने हमसे पूछा था, जो हम दखल दें. रंगकर्मियों का एक बड़ा तबका ऐसा भी है, जो इस डर से फैसले के खिलाफ कुछ नहीं बोल रहा कि कहीं उन्हें मिलने वाले अनुदान और सुविधाएं बंद न हो जाएं.
दरअसल, तकरीबन दो हफ्ते पहले यह मुद्दा उस समय सुर्खियों में आया, जब भोपाल स्थित मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय (MPSD) के कुल 26 छात्रों के एक समूह ने कोविड के कारण अटकी अपनी अधूरी पढ़ाई को पूरा करवाने की मांग उठाई और मुंह पर मास्क लगाकर सोशल डिस्टेंसिंग के साथ कैम्पस में ही प्रदर्शन शुरू कर दिया. देश के विभिन्न राज्यों से यह छात्र रंगकर्म सीखने की ललक के साथ नाट्य विद्यालय के एक वर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम के लिए जुलाई 2019 में चयनित हुए थे. इनका सत्र 15 जुलाई 2020 तक चलना था. केवल 8 महीने की पढ़ाई के बाद कोरोना की महामारी के चलते मार्च में विद्यालय बंद कर छात्रों से घर जाने के लिए कह दिया गया. कुछ अरसा पहले जब छात्रों को इस बात की भनक लगी कि संस्कृति विभाग और विद्यालय प्रबंधन उन्हें जनरल प्रमोशन देकर सितंबर से नया सत्र शुरू करने की कवायद में लगा है, तो छात्र विरोध में उतर आए. छात्रों की मांग थी कि इंटर्नशिप शुरू होने से पहले उनका बचे हुए 4 महीने का कोर्स पूरा कराया जाए, फिर नया सत्र शुरू हो. विद्यालय प्रबंधन ने तर्क दिया कोविड खत्म होने पर बाकी पढ़ाई आनलाइन करा दी जाएगी. छात्र इस बात के लिए तैयार नहीं थे. लिहाजा जो 8 छात्र भोपाल में थे, उन्होंने कैम्पस में प्रदर्शन शुरू कर दिया, यह बात प्रबंधन को नहीं भाय़ी, उसने छात्रों को विद्यालय से बर्खास्त कर दिया.
बोलने को बगावत समझ लिया
छात्रों का तर्क अपनी जगह सही है कि रंगकर्म एक प्रदर्शनकारी कला (Performing Art) है. यह कोई बीए, बीएससी, बीकॉम जैसा सामान्य पारंपरिक (Traditional Course) या एकेडमिक कोर्स नहीं है, जिसका काम जनरल प्रमोशन से चल जाएगा. इस मामले में एक निष्कासित छात्र राजेश कुमार ने बताया कि हम विरोध नहीं अनुरोध प्रदर्शन कर रहे थे कि हमें सिर्फ बचे हुए चार महीने का वर्क कोर्स करने दिया जाए, जिसे अनुशासनहीनता का नाम गया. एक साल के कोर्स में छात्रों को 4 प्रोडक्शन, 6 सीन वर्क कराए जाते हैं. अभी दो प्रोडक्शन और तीन सीन वर्क ही हुए हैं. दोनों विषयों के विषय विशेषज्ञ आकर हमें प्रशिक्षित करते हैं और अपने सामने रहकर प्रयोग (Live Training) करवाते हैं. इसके बाद नाटक तैयार होता है, फिर उसका मंचन होता है. जब यह प्रक्रिया नहीं होगी, तो हम क्या सीखेंगे. हम सिर्फ यह चाहते हैं कि हमारे बाकी कोर्स की अवधि बढ़ाई जाए और कोविड खत्म होने के बाद कोर्स को पूरा कराया जाए. निष्कासित किए गए एक छात्र प्रियम का कहना है कि यह बड़े अचरज की बात कि एक रंगकर्मी को पढ़ने से रोका जाए, इसकी मांग करने पर हमारी बात सुनने, समझने की बजाय विद्यालय से ही निकाल दिया जाए. बोलने को बगावत समझ लिया जाए, यह तो ठीक नहीं है. हम प्रैक्टिकल सीखेंगे नहीं, तो रंगकर्म करेंगे कैसे? यही बात छात्र विनय बाघेला ने भी दोहराई. एक अन्य छात्र घनश्याम सोनी ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान हमें ईमेल से बताया गया कि आपने अब तक जो भी सीखा है, उसके हिसाब से प्रोजेक्ट बनाइए और भेजिए, हमने काम भी पूरा किया. रंगकर्म के प्रख्यात कलाकार गोविंद नामदेव और वाणी त्रिपाठी ने हमारी आनलाइन क्लासेस ली. हमें भरोसा दिया गया कि आपका बचा कोर्स पूरा कराया जाएगा. फिर एक दिन अचानक हमें इंटर्नशिप का मेल भेज दिया जाता है. मप्र नाट्य विद्यालय की छात्रा केतकी कहती है कि जनरल प्रमोशन मिलने के बाद हम ड्रामा स्कूल के पासआउट कहलाएंगे, लेकिन नॉलेज के नाम पर हमारे पास कुछ नहीं रहेगा, इसीलिए हम जनरल प्रमोशन नहीं चाहते.
निदेशक और सरकार का पक्ष
नाट्य विद्यालय के निदेशक आलोक चटर्जी, जो स्वयं 1987 के एनसीडी पासआउट है, छात्रों के निष्कासन को संस्कृति संचालनालय की कार्रवाई बताते हैं और अपना पक्ष सामने रखते हुए कहते हैं कि हमारा संस्थान सरकारी है, हम सरकार के नियमों और निर्देशों से अलग नहीं जा सकते. दूसरी ओर संचालनालय के संचालक अदिति कुमार त्रिपाठी कहते हैं कि आलोक चटर्जी की शिकायत थी कि छात्रों ने उन पर थूका और उन पर आरोप लगाते हुए सोशल मीडिया पर अनर्गल प्रचार अभियान चला रहे है, तब हमने उनसे कहा कि आप विद्यालय के नियमों के अनुसार अनुशासनहीनता की कार्रवाई कर सकते हैं. त्रिपाठी की ओर से यह पक्ष भी सामने आया कि विद्यालय छात्रों को बचा हुआ कोर्स कराने के लिए तैयार है.
बाहरियों का समर्थन, स्थानीय चुप
इस मुद्दे पर बाहरी और स्थानीय कलाकार दो धड़ों में बंट गए हैं. निष्कासित किए गए छात्रों के समर्थन में एमपीएसडी के पूर्व छात्र भी आ खड़े हुए हैं. ऐसे ही एक छात्र गगन का दावा है कि एनएसडी और एफटीटीआई निष्कासित छात्रों के साथ हैं. हम सबकी सरकार से गुजारिश है कि एमपीएसडी के छात्रों का बचा कोर्स पूरा कराया जाए और निष्कासन वापस लिया जाए. देश के अलग-अलग हिस्सों से जुड़े लोगों ने सोशल मीडिया पर पोस्ट डालकर छात्रों का समर्थन किया है. भारतीय जननाट्य संघ (इप्टा) के महासचिव राकेश ने छात्रों के खिलाफ कार्रवाई को अभिव्यक्ति की स्वंतत्रता पर हमला और न्याय के सिद्धांतों के प्रतिकूल कदम बताया है. वहीं, भोपाल की स्थानीय रंगमंच संस्थाओं ने इस मामले में आश्चर्यजनक चुप्पी साध रखी है. लोगों का तो यहां तक कहना है कि स्थानीय संस्थाओं को संस्कृति विभाग से नाटकों के मंचन के लिए अनुदान और पंजीकृत कलाकारों को मासिक राशि मिलती है. इन्हें डर है कि ये सुविधाएं कहीं बंद न हो जाएं. कलाकारों की यह चुप्पी रंगमंच के लिए खतरनाक है, यह सरकार का बंधुआ होने जैसा है.
वरिष्ठ रंगकर्मी नाराज
नाट्य विद्यालय के इस घटनाक्रम पर फिल्म और नाट्य अभिनेता राजीव वर्मा, बंसी कौल जैसे बड़े नाटककारों की कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है. वहीं वरिष्ठ रंगकर्मी, फिल्मकार मुकेश शर्मा का कहना है कि मौजूदा कोविड संकट के दौर में जब नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा जैसे संस्थान बंद हैं, तो मप्र नाट्य विद्यालय कैसे खुल सकता है. क्या हुआ जो 4 महीने की पढ़ाई नहीं हो पाई, 8 महीने तो कोर्स कराया गया है. जो सीखा है, उसकी अभ्यास कर अपनी कला को सशक्त बनाया जा सकता है. ऑनलाइन पढ़ाई में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए, यह प्रक्रिया तो देशभर में कोर्स पूरा करने के लिए अपनाई जा रही है. मैं छात्रों के इस तरह से प्रदर्शन के पक्ष में कतई नहीं हूं. सरकार से जुड़े संस्थानों को अपने दायरे में रहकर मौजूद सुविधाओं और आर्थिक क्षमताओं के अमुरूप काम करना होता है, उन्हें कलाकारों की मांगों के हिसाब से नहीं चलाया जा सकता.
सियासत भी गरमाई
मप्र नाट्य विद्यालय के छात्रों के निष्कासन के विरोध में पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह भी मैदान में कूद पड़े हैं. उन्होंने छात्रों के निष्कासन को अनुचित बताते हुए कहा कि नाट्य विधा दूसरे स्कूली पाठ्यक्रमों की तरह नहीं है, जिसमें जनरल प्रमोशन देकर अगली कक्षा में भेज दिया जाए. मप्र के कलाजगत की पहचान पूरी दुनिया में है और कलाकारों को हमेशा सम्मान मिला है, लेकिन मप्र नाट्य विद्यालय के कलाकारों के साथ अड़ियल रवैया उनके हितों पर कुठाराघात है. उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप कर निष्कासित छात्रों की वापसी और बचा कोर्स पूरा कराने, छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ रोकने की मांग की है. उधर बीजेपी प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल ने कहा कि विद्यार्थी कहीं के भी हों, कोरोना के इस संकट के दौर में सबसे संवेदनापूर्वक व्यवहार करना चाहिए, दूसरी तरफ छात्रों को भी मर्यादा व नियमों का पालन करना होगा. कांग्रेस नेता, पूर्व मंत्री जीतू पटवारी ने छात्रों के निष्कासन के कदम को फासिस्टवादी और कला पर कुठाराघात बताया है.
यह कोई पहला मामला नहीं
यह कोई पहला मामला नहीं है, जब मौजूदा निदेशक और छात्रों के बीच ऐसा विवाद हुआ हो. इससे पहले फरवरी 2019 में भी सत्र 2018-19 के छात्रों ने अव्यवस्थाओं को लेकर प्रदर्शन किया था, यह प्रदर्शन भी कई दिनों तक चला था. इस दौरान भी निदेशक ने कुछ छात्रों को निष्कासित किया था, हालांकि छात्रों के विरोध के बाद उन्हें निष्कासन का आदेश वापस लेना पड़ा था.
एमपीएसडी क्यों है खास
विशेषज्ञों की माने तो रंगकर्म सीखने के लिए कलाकारों की पहली पसंद राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय है. इसमें तीन साल का नाट्यकला का कोर्स होता है. इसके लिए हजारों छात्रों के आवेदन आते हैं, जिसमें से केवल 26 छात्र ही चयनित होते हैं. एनएसडी के बाद छात्रों की दूसरी पसंद मप्र नाट्य विद्यालय है. कई बार छात्र एक साल के पाठ्यक्रम के कारण मप्र नाट्य विद्यालय को ही चुनते हैं. यहां मध्यप्रदेश के अलावा छत्तीसगढ़, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखंड, यूपी, पंजाब, बिहार, प. बंगाल व उत्तरपूर्वी राज्यों के भी छात्र आते हैं. (डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.)
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
सामाजिक, विकास परक, राजनीतिक विषयों पर तीन दशक से सक्रिय. मीडिया संस्थानों में संपादकीय दायित्व का निर्वाह करने के बाद इन दिनों स्वतंत्र लेखन. कविता, शायरी और जीवन में गहरी रुचि.