इन चुनावों में सीधे शिवराज और सिंधिया तथा कमलनाथ और दिग्विजय की जोड़ी की प्रतिष्ठा दांव पर है. इन चुनावों में दोनों को ही पूरी ताकत झोंक देनी होगी. एक के सामने सरकार को बचाने की चुनौती होगी, तो दूसरे के सामने मौजूदा शिवराज सिंह की सरकार का तख्ता पलट कर सूबे की सत्ता में फिर से लौटने की .
Source: News18Hindi Last updated on: September 5, 2020, 11:08 pm IST
शेयर करें:
कांग्रेस के लिए जीत की राह आसान नहीं होगी. (File)
बड़ा आश्चर्य होता है कि 30 साल पहले रामभरोसे अपनी राजनीतिक यात्रा को उड़ान देने वाली भाजपा इतने वर्षों में स्वयं में यह भरोसा नहीं जगा पाई कि वह जनता के विकास और उसके हित में किए किसी काम के भरोसे भी चुनाव जीत सकती है. देश में आम चुनाव हों या राज्यों के विधानसभा चुनाव या फिर उपचुनाव, हर बार भगवान राम को किसी न किसी बहाने सियासी मैदान में उतार दिया जाता है. इस बार भी मध्य प्रदेश की 27 सीटों पर होने वाले उपचुनावों की वैतरणी पार करने के लिए भाजपा चुनाव वाले इलाकों में रामशिला यात्राएं निकालने जा रही है. जाहिर है कि धोखा, बगावत और गद्दार बनाम लोकतंत्र की लड़ाई के नारों से भरे कांग्रेसियों के शोर को राम के प्रति आस्था के समंदर में डुबो देना और आस्था को वोट में बदलकर चुनावी चौसर जीत लेना भाजपा का मकसद है. दूसरी ओर भाजपा की रामभक्ति से भयभीत कांग्रेसी खुद को उनसे बड़ा रामभक्त बताने में जुटे हैं, जिसका नजारा हम अयोध्या में राममंदिर निर्माण के लिए 5 अगस्त को भूमिपूजन के समय देख चुके हैं, जब पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ समेत सारे कांग्रेसी अपने-अपने घरों में राम दरबार सजाकर सारे दिन हनुमान चालीसा गाते रहे थे.
मप्र में 27 विधानसभा सीटों पर उपचुनावों की घोषणा किसी भी वक्त हो सकती है. इनमें से करीब 24 वही सीटें हैं, जहां से ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक कांग्रेस विधायकों ने बगावत कर 20 मार्च को कमलनाथ के नेतृत्व वाली अपनी ही सरकार गिरा दी थी और सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल हो गए थे. इस तरह कमलनाथ सरकार का पतन और शिवराज सरकार का गठन हुआ था. इन सीटों पर होने वाला उपचुनाव कांग्रेस और भाजपा के दोनों के लिए बेहद कांटे की टक्कर वाला है.
इन चुनावों में सीधे शिवराज और सिंधिया तथा कमलनाथ और दिग्विजय की जोड़ी की प्रतिष्ठा दांव पर है. इन चुनावों में दोनों को ही पूरी ताकत झोंक देनी होगी. एक के सामने सरकार को बचाने की चुनौती होगी, तो दूसरे के सामने मौजूदा शिवराज सिंह की सरकार का तख्ता पलट कर सूबे की सत्ता में फिर से लौटने की . आंकड़ों के लिहाज से देखें तो 230 सीटों वाली राज्य विधानसभा में 27 सीटें खाली होने के बाद कांग्रेस के पास 89 सीटें हैं और उसे 116 के बहुमत का आंकड़ा पाने के लिए सभी 27 सीटों पर उपचुनाव जीतना होगा, जबकि बागियों के शामिल होने के बाद 107 के आंकड़े पर पहुंची भाजपा को सरकार बचाए रखने के लिए केवल 9 सीटों पर जीत की जरूरत होगी. सत्ता के इस खेल में 4 निर्दलीय समेत बसपा के दो और सपा का एक विधायक भी अपनी भूमिका निभाने वाले हैं. कांग्रेस के लिए बिल्कुल करो या मरो वाली स्थिति है, क्योंकि एक भी सीट खोना उसके लिए भारी पड़ सकता है.
राम के रास्ते भाजपा का प्लान
चुनावों के दौरान कभी भी भाजपा का राम से प्रेम छुपा नहीं रहा है. इस बार तो राम के सहारे चुनावी रथ पर सवार होना ज्यादा आसान है, क्योंकि अयोध्या में राममंदिर निर्माण के लिए सुप्रीमकोर्ट का फैसला भी आ चुका है और बीते 5 अगस्त को मंदिर बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भूमि पूजन भी कर चुके हैं. भाजपा ने राज्यव्यापी राम शिला पूजन के आयोजन का ऐलान कर दिया है. राम शिलाओं को लेकर यात्राओं और पूजन में आरएसएस और उसके सहयोगी संगठनों के कार्यकर्ता अहम् भूमिका निभाएंगे.
खबर है कि चांदी की पांच रामशिलाएं राम दरबार सजाकर रथ पर उपचुनावों वाले इलाकों से निकाली जाएंगी. इन यात्राओं के माध्यम से लोगों की भावनाओं को भुनाकर वोट में बदलने की कोशिश की जाएगी. राममंदिर निर्माण के लिए आर्थिक और मानसिक सहयोग मांगा जाएगा. 2 सितंबर से सुरखी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस से भाजपा में शामिल होकर मंत्री बने गोविन्द सिंह राजपूत रामशिला पूजन की शुरूआत कर चुके हैं. जल्द ही अशोक नगर, सांवेर, मुंगावली, जौरा, सुमावली, मुरैना, दिमनी, अंबाह, मेहगांव, गोहद, ग्वालियर, सांची आदि सीटों पर यह रामशिलापूजन के कार्यक्रम देखने को मिल सकते हैं. चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद रामशिलापूजन के कार्यक्रम तेज हो सकते हैं.
कांग्रेस कैसे निकालेगी तोड़?
उपचुनावों में लगे धर्म के तड़के का तोड़ कांग्रेस कैसे निकालेगी, यह देखने वाली बात होगी. पिछले दिनों कांग्रेस ने अपनी साफ्ट हिन्दुत्व वाली पार्टी के रूप में उभारने और स्वयं को बड़ा रामभक्त साबित करने की कोशिश की है. अगर आप 2018 के विधानसभा चुनावों पर नजर डालें तो कांग्रेस ने राम वनगमन पथ बनाने और गौशालाएं खोलने जैसे वादे कर अपनी हिन्दुत्ववादी छवि को उभारने की कोशिश की थी, जिसका उसे फायदा भी मिला था. सत्ता में आने के बाद उसने मंत्रालय में धूल खा रही रामवनगमन पथ की फाइलों को निकाला, काम भी शुरू किया था.
गौशालाओं, किसान कर्जमाफी पर भी काम शुरू किए, लेकिन ज्येतिरादित्य सिंधिया की महत्वाकांक्षा के आगे कमलनाथ सरकार की बलि चढ़ गई. वैसे देखा जाए तो संभावना है कि कांग्रेस शायद भाजपा के राम शिलापूजन के कार्यक्रम का विरोध न कर पाए, क्योंकि कमलनाथ खुद राममंदिर निर्माण के लिए पार्टी की तरफ से चांदी की 11 ईंटे भेजने की घोषणा कर चुके हैं. हो सकता है कि कांग्रेस भी इसी तरह की यात्रा या पूजन जैसा कोई कदम उठाने के बारे में विचार करे. हो सकता है कि कांग्रेस अपनी चांदी की 11 ईंटों को लेकर उपचुनावों वाले क्षेत्रों में पूजन के आयोजन शुरू करवाए और अपने पक्ष में राममय वातावरण खड़ा करने की कोशिश करे. यह तय है कि वह भाजपा के रामभक्ति को प्रदर्शित करने वाले अभियान को काउंटर करने की कोशिश जरूर करेगी.
रामभक्त बनने की होड़
उपचुनावों को जीतने के लिए कांग्रेस और भाजपा दोनों ही राजनीतिक दल रामभक्त बनने की होड़ में लगे हैं. इसी होड़ में कांग्रेस की ओर से पिछले दिनों एक विज्ञापन भी जारी किया गया था, जिसमें लिखा था कि राजीव गांधी की सरकार ने रामराज्य की कल्पना की थी. उन्होंने ही राममंदिर का ताला खुलवाया, राममंदिर निर्माण की नींव रखी, भाजपा ने तो राम के नाम पर सांप्रदायिकता के बीज ही बोए हैं. जवाब में भाजपा ने कांग्रेस की रामभक्ति पर ऐतराज जताते हुए कहा था कि कांग्रेस को विज्ञापन देकर यह बताना पड़ रहा है कि राम हमारे है. गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि अगर राम तुम्हारे हैं तो शक कैसे और अगर नहीं है, तो हक कैसा. रोम-रोम में राम बसे हैं, यह विज्ञापन देना ही शक पैदा करता है. बता दें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रामवनगमन पथ निर्माण और गौशालाओं का काम शुरू दिया है.
ग्वालियर-चंबल सबसे अहम्
प्रदेश में जिन 27 सीटों पर उपचुनाव होने हैं, उनमें से सबसे ज्यादा 16 सीटें ग्वालियर-चंबल में हैं, जो ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभुत्व वाला इलाका माना जाता है. वैसे देखा जाए तो भाजपा का प्रदेश संगठन बहुत सोच समझकर अपनी रणनीति को अंजाम दे रहा है, क्योंकि 23, 24, 25 अगस्त को जब ग्वालियर में शिवराज सिहं चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेन्द्र सिंह तोमर जैसे बड़े नेताओं की मौजूदगी में जब कांग्रेस के 76 हजार कांग्रेस कार्यकर्ताओं को भाजपा में शामिल करने का दावा किया था, तब यह भी खबर उभर आयी थी कि भाजपा के वरिष्ठ से लेकर जमीनी कार्यकर्ता तक सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों से नाराज है.
भाजपा के स्थानीय नेताओं को अपनी जमीन खोती दिख रही है, उन्हें लगता है कि पूरी जिंदगी जिस महल की राजनीति विरोध करते रहे, अब उसी की जय-जयकार करनी होगी. अंदरखाने बगावत की भनक लगने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया आरएसएस के नागपुर मुख्यालय में दंडवत कर वरिष्ठ नेताओं से चर्चा कर चुके हैं. सूत्र बताते हैं कि संघ बगावती और भीतरघाती साबित होने वाले तेवरों को ठंडा करने के लिए अपने कार्यकर्ताओं को सक्रिय कर सकता है. रामशिलापूजन के आयोजन उसकी रणनीति का हिस्सा भी हो सकते हैं. दूसरी ओर कांग्रेस भी अपने चुनाव अभियान की शुरूआत ग्वालियर चंबल से करने को तैयार है. यहां पूर्व सीएम कमलनाथ का मेगा शो आयोजित किया जा रहा है.
किसके-क्या मुद्दे
कांग्रेस इन उपचुनावों में पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतकर भाजपा में शामिल हो गए सिंधिया समर्थक नेताओं की धोखेबाजी और बगावत को जनता से गद्दारी का नाम देकर उन्हें कटघरे में खड़ा करना चाहती है और उसने इस चुनावों में गद्दारों को हराओ, लोकतंत्र बचाओ का नारा दिया है. वह किसानों के मुद्दे और नेताओं की गद्दारी, बेरोजगारी समेत स्थानीय मुद्दों को लेकर आक्रामक तेवर अपनाने वाली है, वहीं ज्योतिरादित्य यह कह रहे हैं कि आने वाला उपचुनाव न्याय और समानता के मुद्दे पर है, जो व्यक्ति जनता के बीच नहीं रहता, उसे वोट मांगने का हक नहीं है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि कमलनाथ तो परदेशी हैं, उनपर भरोसा नहीं किया जा सकता है, वह तो उपचुनावों के बाद दिल्ली में जाकर बैठ जाएंगे, तो यहां जनता की समस्याओं को सुनेगा कौन?
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.)
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
सामाजिक, विकास परक, राजनीतिक विषयों पर तीन दशक से सक्रिय. मीडिया संस्थानों में संपादकीय दायित्व का निर्वाह करने के बाद इन दिनों स्वतंत्र लेखन. कविता, शायरी और जीवन में गहरी रुचि.