दिल्ली यूनिवर्सिटी (Delhi University) ने 14 मई 2020 को एक नोटिफिकेशन जारी किया था, जिसमें बताया गया था कि ग्रेजुएशन और मास्टर्स डिग्री के सभी सेमेस्टर की परीक्षाएं एक जुलाई से आयोजित की जाएंगी. अगर कोरोना महामारी के कारण स्थिति बिगड़ती है, तो फाइनल सेमेस्टर के ओपन बुक एग्जाम (ओबीई) कराए जाएंगे.
Source: News18Hindi Last updated on: July 4, 2020, 5:00 pm IST
शेयर करें:
राज्य सरकार ने आदेश दिया था, जब तक स्कूल फिर से खुल न जाएं, स्कूलों को छात्रों से फीस नहीं लेनी चाहिए.
"मेरा नाम स्टेंजिंन है, लद्दाख में रहती हूं. दिल्ली यूनिवर्सिटी में अंतिम वर्ष की छात्रा हूं. मेरा कॉलेज मार्च से बंद है. मेरे पास किताबें नहीं हैं, लैपटाप है, इंटरनेट की समस्या है. कॉलेज ने जूम, गूगल मीट जैसे विभिन्न एप से ऑनलाइन क्लासेस लीं, लेकिन मैं न पढ़ पाई, न ठीक से सुन पाई. कॉलेज का असाइनमेंट तक ऑनलाइन जमा नहीं कर पाई. इन हालातों में ऑनलाइन ओपन बुक एक्जाम कैसे दूंगी? क्या ये मेरे भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं है? "
ये समस्या केवल स्टेंजिंन की ही नहीं, बल्कि नॉर्थ-ईस्ट के राज्य मणिपुर में रहने वाली छात्रा लालरंग रूआती की भी है, कश्मीर में रहने वाली अंशुल की भी है. ये तकलीफ दिल्ली यूनिवर्सिटी के कॉलेजों में पढ़ रहे मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात समेत देश के लगभग सभी राज्यों के शहरों या गांवों में रहने वाले उन हजारों छात्र-छात्राओं की है, जिनसे कोराना की महामारी के चलते हॉस्टल, पीजी खाली करा लिए गए थे और उन्हें आनन-फानन दो जोड़ी कपड़े लेकर दिल्ली से घर लौटना पड़ा था. न किताबें साथ ला पाए, न लैपटॉप. सबको डर था, कहीं कोरोना उन्हें न जकड़ ले, लिहाजा जो जैसा था, उस हालत में, अपने शहर, अपने घर की ओर वापस भागा. किसी को यह उम्मीद भी नहीं थी कि कोरोना का कहर इतना लंबा खिंचेगा.
महामारी से पैदा गंभीर स्थिति का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं, कि पहले सीबीएसई की बची परीक्षाएं रद्द की गई, अब यूपीएससी, इंजीनियरिंग में दाखिले की सबसे बड़ी परीक्षा जेईई मेन्स और जेईई एडवांस तथा मेडिकल में दाखिले की सबसे बड़ी परीक्षा नीट को भी टाल दिया गया है. इंजीनियरिंग और मेडिकल की परीक्षाएं अब 1 से 27 सितंबर के बीच होंगी, लेकिन दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्रों और टीचर्स के विरोध और परीक्षाएं रद्द करने के लिए यूजीसी के सुझाव के बावजूद साइंस, कामर्स और ह्यूमैनिटीज के स्नातक और स्नातकोत्तर अंतिम वर्ष के स्टूडेंट्स के एग्जाम लेने पर अड़ी हुई है. यूनिवर्सिटी ने 10 से 20 जुलाई तक ओपन बुक एग्जाम की नई तारीखें भी घोषित कर दी हैं. पहले डीयू के ओपन बुक एग्जाम 1 जुलाई से होने वाले थे, लेकिन यूनिवर्सिटी ने 27 जून को परीक्षा को 10 दिन के लिए स्थगित करने का निर्णय लिया था. छात्रों के अभ्यास के लिए ओपन बुक मॉक टेस्ट शुरू कर दिए गए हैं, जो 8 जुलाई तक चलेंगे.
कई राज्यों में परीक्षाएं रद्द की जा चुकीं
यहां देखने वाली बात यह है कि महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान जैसे तमाम राज्यों के विश्वविद्यालयों में सभी परीक्षाएं रद्द कर दी गई हैं, चाहे वह स्नातक, स्नातकोत्तर प्रथम वर्ष के छात्र हों या अंतिम वर्ष के. ये सभी राज्य कॉलेज में छात्रों के पहले के सेमेस्टर्स में उनके परफॉर्मेंस, नतीजे, वर्तमान सेमेस्टर में उनकी उपस्थिति और इंटरनल असेसमेंट के आधार पर रिजल्ट घोषित कर रहे हैं. इस बारे में देश में मुंबई विश्वविद्यालय ने पहल करते हुए अपनी सभी परीक्षाएं नहीं कराने की घोषणा की. इसके बाद अन्य राज्यों ने भी अपने-अपने विश्वविद्यालयों की सभी परीक्षाएं रद्द करने का एलान किया. राज्यों के इस कदम के पीछे एक ही मकसद था कि कोरोना महामारी और लॉकडाउन के हालातों से जूझते छात्र वैसे ही घरेलू, आर्थिक, मानसिक परेशानी और भय के दौर से गुजर रहे हैं. इन हालातों में क्या वह परीक्षाएं दे सकेंगे?
याद कीजिए आईआईटी मुंबई की पहल को
याद कीजिए आईआईटी मुंबई प्रबंधन की उस घोषणा को, जिसमें उसने कहा कि सभी छात्रों के ऑनलाइन एग्जाम तो लिए जाएंगे, किसी भी स्टूडेंट के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं होने दिया जाएगा, लेकिन उससे पहले उनके हर स्टूडेंट तक लैपटॉप और इंटरनेट की सुविधा सुनिश्चित की जाएगी. छात्रों को अभी आईआईटी कैंपस आने की जरूरत नहीं है. आईआईटी कर रहे हर वंचित छात्र को परीक्षा से पहले लैपटॉप, इंटरनेट मुहैया कराएगा. इसके लिए उसने 5 करोड़ रुपये के डोनेशन जमा करने के लिए अभियान भी चलाया हुआ है, जिसमें उसके पूर्व और सक्षम छात्र भी सहयोग कर रहे हैं.
ओबीई का विरोध क्यों?
उल्लेखनीय है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी ने 14 मई 2020 को एक नोटिफिकेशन जारी किया था, जिसमें बताया गया था कि ग्रेजुएशन और मास्टर्स डिग्री के सभी सेमेस्टर की परीक्षाएं एक जुलाई से आयोजित की जाएंगी. अगर कोरोना महामारी के कारण स्थिति बिगड़ती है, तो फाइनल सेमेस्टर के ओपन बुक एग्जाम (ओबीई) कराए जाएंगे. इस नोटिफिकेशन के आने के बाद से ही ओबीई के फैसले का टीचर्स और स्टूडेंट ने विरोध शुरू कर दिया था. कोई भी इसके पक्ष में नहीं है. यूनिवर्सिटी में फाइनल सेमेस्टर में करीब 2 लाख से ज्यादा छात्र हैं, जिसमें से 48 हजार स्टूडेंट ने ट्विटर पर इस पर अपना विरोध दर्ज कराया. 1500 से ज्यादा छात्रों के बीच एक सर्वे में 72 फीसदी से ज्यादा ने कहा कि वह खराब नेटवर्क की वजह से अपनी ऑनलाइन क्लासेस तक सही ढंग से अटेंड नहीं कर पाए. इन हालातों में ओपनबुक एग्जाम तो बहुत दूर की बात है. एक हस्ताक्षर अभियान में 70 हजार छात्रों ने इस प्रणाली का विरोध किया था, राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री, मानव संसाधन मंत्री, वाइस चांसलर तक अर्जिंयां लगाई गईं, लेकिन कहीं आवाज नहीं सुनी गई.
नतीजे बिगड़ने का डर
>> दिल्ली यूनिवर्सिटी में साइंस फैकल्टी में अंतिम वर्ष की छात्रा भोपाल की अमीषा का कहना है कि कोरोना के चलते हम जल्दी भोपाल लौटे, क्योंकि ट्रेन-बसें सब बंद होने वाले थे. किताब, स्टडी मैटेरियल, लैटटाप सब दिल्ली में ही रह गए. जरा गौर करें कि जिस दिन दिल्ली यूनिवर्सिटी का रिजल्ट आता है, उस दिन वेबसाइट क्रैश हो जाती है और ये कह रहे हैं कि 3 घंटे का ऑनलाइन एग्जाम कराएंगे. जब हमसे एग्जाम का फार्म भरवाया, तब हमसे ये क्यों नहीं पूछा गया कि हमारे पास लैपटॉप , इंटरनेट है या नहीं?
>> एक अन्य छात्रा का कहना है कि 3 घंटे के अंदर प्रश्न पत्र डाउन लोड करना, हल करना, उसे स्कैन कर वेबसाइट पर अपलोड करना है. इस बीच इंटरनेट नहीं चला, या डाउन रहा या लाइट चली जाने से वाइ-फाइ बंद हो गया, तो कैसे एग्जाम दे पाएंगे ? क्या इससे हमारा रिजल्ट नहीं बिगड़ेगा ? वैसे भी यह बहुत लंबी प्रक्रिया है. ये रिजल्ट स्नातक और मास्टर्स डिग्री को भी प्रभावित करेगा. अगर ग्रेजुएशन में किसी के कम मार्क्स आते हैं तो उसे मास्टर्स डिग्री में दाखिले में भी दिक्कत होगी, क्योंकि दिल्ली यूनिवर्सिटी में 50 फीसदी सीट्स मार्क्स के ही आधार पर दी जाती हैं.
क्या होता है ओपन बुक एक्जाम
ओपन बुक में छात्रों को ऑनलाइन प्रश्नपत्र दे दिया जाएगा, जिसे उन्हें डाउनलोड करके हल करना होगा. पर्चा डाउनलोड करने से लेकर सॉल्व करने और उत्तर पुस्तिका को स्कैन कर पोर्टल पर अपलोड करने तक के लिए कुल 3 घंटे का समय मिलेगा.
सबसे अहम सवाल
जिस ऑनलाइन ओपन बुक परीक्षा प्रणाली से यह परीक्षाएं ली जाने वाली हैं, उसमें स्टूडेंट्स के पास लैपटॉप, लैपटॉप न होने पर बेहतर स्मार्टफोन के साथ तेज इंटरनेट एक जरूरी तकनीकी आवश्यकता है. बता दें दिल्ली विश्वविद्यालय में एससी-एसटी, ओबीसी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के स्टूडेंट्स पढ़ते हैं. ये छात्र कश्मीर से कन्याकुमारी तक देश के अलग-अलग राज्यों से अलग-अलग सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि से हैं. हर किसी छात्र के पास इंटरनेट, लैपटॉप या स्मार्टफोन होना संभव नहीं है, इसलिए ऐसा करने से परेशानी ज्यादा बढ़ जाएगी. दूर-दराज के ऐसे क्षेत्रों में जहां नेटवर्क की समस्या है, उनसे निबटने का क्या कोई ब्लूप्रिंट है? यदि वे समय से उत्तर न भेज पाएं तो क्या उनकी परीक्षा को निरस्त मान लिया जाएगा? क्या ये ओपनबुक एग्जाम उन छात्रों के साथ बेहद असमानता, भेदभाव या क्रूरता से भरा बर्ताव नहीं है, जो गरीब हैं और संसाधन जुटाने में सक्षम नहीं है.
अन्य राज्यों से सबक क्यों नहीं ले सकते
ऐसा लगता है कि महामारी के इस दौर में दिल्ली यूनिवर्सिटी का बस यही सिद्धांत रह गया है कि परीक्षाएं करवाना है, डिग्री देनी है, बस किसी तरह से करवा लो. छात्रों को क्या दिक्कत है, उनका लर्निंग क्राइटेरिया पूरा हुआ या नहीं, इससे इनको कोई मतलब नहीं है. अन्य राज्यों से जल्दबाजी नहीं करने और इंटरनल असेसमेंट के आधार पर नतीजे घोषित करने का सबक तो लिया ही जा सकता था.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
सामाजिक, विकास परक, राजनीतिक विषयों पर तीन दशक से सक्रिय. मीडिया संस्थानों में संपादकीय दायित्व का निर्वाह करने के बाद इन दिनों स्वतंत्र लेखन. कविता, शायरी और जीवन में गहरी रुचि.