केन्द्र सरकार ने 15 अक्टूबर से देश से स्कूल खोलने के लिए गाइडलाइंस (Guideline) को हरी झंडी तो दे दी है, लेकिन बच्चों में कोरोना संक्रमण (Corona infection) फैलने की स्थिति में खुद नतीजों की जिम्मेदारी लेने से बचते हुए इसका फैसला करने का अधिकार राज्य सरकारों पर छोड़ दिया है.
Source: News18Hindi Last updated on: October 9, 2020, 12:03 pm IST
शेयर करें:
भारतीय शिक्षा प्रणाली में व्यक्ति के समग्र विकास की संभावना विद्यमान है.
केन्द्र सरकार ने 15 अक्टूबर से देश से स्कूल खोलने के लिए गाइडलाइंस (Guideline) को हरी झंडी तो दे दी है, लेकिन बच्चों में कोरोना संक्रमण (Corona infection) फैलने की स्थिति में खुद नतीजों की जिम्मेदारी लेने से बचते हुए इसका फैसला करने का अधिकार राज्य सरकारों पर छोड़ दिया है. उधर राज्य सरकारों ने साफ कर दिया है, कि बच्चे स्कूल में तभी प्रवेश कर पाएंगे, जब उनके अभिभावक (Parents) सहमति दें याने स्कूल से लेकर बीच के सफर तक अगर कहीं भी कोरोना संक्रमण का शिकार होता है, तो उस स्थिति में अभिभावक ही जिम्मेदार होंगे. अब सवाल यह है कि केन्द्र, राज्य सरकारों से लेकर स्कूल प्रबंधन तक जब बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेने से पल्ला झाड़ रहे हैं, तो अभिभावक किसके भरोसे अपने जिगर के टुकड़ों को स्कूल पढ़ने भेजें.
कोरोना के खौफ और महामारी से बचाव के लिए सुरक्षा इंतजामों को लेकर आशंकित अभिभावकों के टूटे भरोसे का अंदाजा आप सिर्फ इस तक तथ्य से लगा सकते हैं कि जब अनलॉक-4 के दौरान केन्द्र ने कुछ हिदायतों के साथ कक्षा 9 से 12वीं तक स्कूल खोलने की गाइडलाइंस जारी की थी, तो मप्र में स्कूल खुलने पर केवल 5-8 फीसदी अभिभावकों ने ही अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए सहमति दी .
यह कोई हवा-हवाई आंकड़ा नहीं, बल्कि स्कूल शिक्षा विभाग (School Education Department) के रजिस्टर की जुबानी है. राज्य में करीब 9 हजार में से साढ़े 8 हजार सरकारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय तो खुल रहे हैं, लेकिन सुरक्षा इंतजामों को लेकर आशंकित पैरेंट्स की सहमति न मिलने से बहुत कम संख्या में बच्चे स्कूल पहुंच पा रहे हैं. भोपाल जिले में ही सरकारी और निजी स्कूलों को मिला लिया जाए, तो 1139 स्कूलों में पढ़ने वाले करीब डेढ़ लाख छात्रों में से केवल 7 हजार 473 अभिभावकों ने अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए अपनी लिखित सहमति दी.
राज्य के कई स्कूल ऐसे भी है, जहां एक भी अभिभावक ने बच्चे को स्कूल भेजने के लिए रजामंदी नहीं दी. ऐसे में मप्र सहित दीगर राज्यों की सरकारें कक्षा 1 से 8 वीं तक के स्कूल भी खोल देती हैं, तो अभिभावक अभी अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए बिल्कुल भी तैयार ही नहीं है. स्कूलों में नियमित कक्षाएं लग पाना तो बहुत दूर की कौड़ी लगती है.
अभी और सताएगा कोरोना
देश में वैश्विक कोरोना महामारी तेजी से फैल रही है. हालात बेहद नाजुक हैं. डब्ल्यूएचओ से लेकर तमाम वैज्ञानिक, चिकित्सक से लेकर शोध के सर्वे जब यह आशंका जता रहे हैं कि ठंड के मौसम में कोरोना महामारी के फैलने का सबसे भयावह दौर आ सकता है. ठंड में कोहरा, धुंध, प्रदूषण और हवा में नमी के चलते कोविड-19 वायरस बड़ी तादाद में लोगों को अपना शिकार बनाएगा. ऐसी भविष्यवाणियों तो देखते हुए अनलॉक-5 के तहत देश के सारे स्कूलों को खोलने की हरी झंडी देने के फैसले को कोई भी सही नहीं मान रहा.
इस बारे में शिक्षाविद् और यूपीए सरकार के दौरान प्रधानमंत्री के सलाहकार रहे सैम पित्रोदा की सरकार के फैसले पर सोशल मीडिया पर दी प्रतिक्रिया गौर करने लायक है, जिसमें वह कहते हैं कि अभी स्थिति बहुत गंभीर है, एक तरफ कोरोना संकट बढ़ रहा है, दूसरी तरफ बच्चों को शिक्षा की जरूरत है, हम डिजीटल एजुकेशन देने में सक्षम नहीं हैं, तो हमें मान लेना चाहिए और एक साल के लिए पढ़ाई स्थगित कर देना चाहिए. हमें अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस जैसे देशों से सबक लेना चाहिए, जहां स्कूल खोलने के एक दो हफ्ते के बाद ही संक्रमण तेजी से बढ़ने के कारण बंद करना पड़े. हालातों को देखते हुए यह हमारे लिए चेतावनी है कि स्कूल खोलने पर संक्रमण का आंकड़ा दोगुना हो सकता है.
अभी देश-प्रदेश का ये है हाल
भारत में रोज 75 से 80 हजार लोग संक्रमित हो रहे है. रोज करीब 8-9 सौ लोग जान गंवा रहे हैं और अब तक मरने वालों का आंकड़ा एक लाख से काफी ऊपर पहुंच चुका है. अब तक कोरोना संक्रमण के 69 लाख केस आ चुके हैं, जिनमें से करीब 9 लाख से ज्यादा अभी भी संक्रमित हैं. महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली, बंगाल, केरल से लेकर गुजरात, राजस्थान, बिहार, मध्यप्रदेश तक कोरोना संक्रमण के हालात बेहद गंभीर है. इन राज्यों में आंकड़े ऊपर हो सकते हैं, क्योंकि ये तो टेस्टिंग की रफ्तार पर काफी कुछ निर्भर है.
बाल आयोग भी खिलाफ
मप्र में बाल आयोग ने सरकार से सिफारिश की है कि अभी पहली से आठवीं कक्षा तक के स्कूल न खोलें जाएं, क्योंकि राज्य में कोरोना संक्रमण तेजी से फैल रहा है. बता दें कि राज्य में कोरोना से मरने वाले टीचर्स की संख्या 50 से ऊपर जा चुकी है, सैकड़ों की संख्या में शिक्षक और दीगर स्टाफ संक्रमित हैं. ऐसे में बच्चों को स्कूल बुलाना बड़ा खतरा साबित हो सकता है. सरकारी स्कूलों में अधिकांशतः गरीबों के बच्चे पढ़ते हैं, जिनके घर से लेकर स्कूल आने तक मास्क, सेनेटाइजेशन जैसी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं है.
कितने तैयार हैं स्कूल
राज्य के अधिकांश स्कूलों में बच्चों के सेफ डिस्टेंसिंग (Safe Distancing) के साथ बैठने के लिए जगह का अभाव है. पानी और शौचालय जैसी बुनियादी व्यवस्थाएं (Basic Infrastructure) नहीं हैं. राज्य में स्कूल खोलने के लिए पिछले दो माह से चली चर्चाओं के बाद से ही सरकार और शिक्षा विभाग हरकत में आ गए थे तथा राज्य के सभी प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में बच्चों के हाथ धोने (Hand Wash) की व्यवस्था के लिए 14 हजार से ज्यादा हैंडवाश यूनिट लगाने का निर्णय लिया और 21 करोड़ 59 लाख रुपए की राशि भी मंजूर की गई.
यह भी तय हुआ कि जिन स्कूलों में दो सौ से ज्यादा छात्र संख्या हैं, वहां दो-दो यूनिट लगाए जाएंगे. एक-एक यूनिट में 10 से 12 नल होंगे. प्रत्येक यूनिट में पानी की टंकी, साबुन, लिक्विड हैंडवाश होना सुनिश्चित किया जाना है. बचाव के लिए बच्चों को स्कूलों में लंच से पहले हाथ धोने के लिए 10 मिनट का समय दिया जाएगा. खबर है कि यह तैयारी भी अभी तक पूरी नहीं हो पाई है. लोक शिक्षण आयुक्त लोकेश जाटव के मुताबिक इस काम को अंजाम तक पहुंचने में तीन से चार माह का समय लगेगा.
ऑनलाइन टीचिंग, मोहल्ला क्लास फेल
राज्य के 70 फीसदी से ज्यादा छात्र-छात्राओं के पास न तो स्मार्टफोन हैं, न ही टीवी. ऐसे में केवल 30 फीसदी बच्चे ही ऑनलाइन क्लास का लाभ ले रहे हैं. बाकी 70 फीसदी बच्चों का क्या होगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है. स्कूल शिक्षा विभाग पहली से आठवीं कक्षा तक मोहल्ला क्लास लगवा रही है यानी एक क्षेत्र विशेष के स्कूल के टीचर्स मोहल्ले में बच्चों को छोटे-छोटे समूहों में इकट्ठा कर पढ़ा रहे हैं, लेकिन कोरोना के खतरे को देखते हुए लोग मोहल्ला क्लास में भी बच्चों को भेजने से कतरा रहे हैं, कि पता नहीं कौनसा बच्चा कोरोना से संक्रमित हो और उससे यह संक्रमण फैल जाए. टीचर्स भी रिस्क लेने से बच रहे हैं.
फैसले के पीछे निजी स्कूल लॉबी का दबाव
शिक्षा क्षेत्र के विशेषज्ञ यह मानते हैं कि राज्यों को सभी स्कूलों को खोलने की हरी झंडी के पीछे निजी स्कूलों के दबाव का खेल है. कोरोना के कारण मार्च से ही स्कूल बंद है. उनकी सारी कमाई ट्यूशन फीस के साथ ही ट्रांसपोर्टेशन, एक्टिविटी, डेव्लपमेंट फीस जैसे अलग-अलग मदों में की वसूल की जाने वाली राशि से होती थी, जो बंद हो गई. निजी स्कूलों का कहना है कि उनकी हालत खस्ता हो चुकी है, वह अपने स्टाफ को वेतन कहां से दें.
स्कूल बच्चों को ऑनलाइन तो पढ़ा ही रहे हैं. निजी स्कूल संचालकों की यह दलीलें पैरेंट्स से लेकर सरकार और अदालतों तक किसी के गले नहीं उतर रहीं, क्योंकि कोरोना काल में बेरोजगारी बढ़ी है, व्यापार ठप्प हो गया. काम मिल नहीं रहा, लोग परेशान हैं, ऐसे में स्कूलों की मनमानी और भारी भरकम फीस वो कहां से दें?
निजी स्कूलों की लॉबी सिस्टम और सरकार में अपनी गोटी फिट कर स्कूल खोलने को हरी झंडी देने का दबाव बनाने में कामयाब रही है. उसका साफ मानना है कि जब स्कूल खोल दिए जाएंगे, तो फीस या दीगर वसूली के लिए उनके रास्ते आसान हो जाएंगे और कोई भी मना नहीं कर पाएगा, क्योंकि निजी स्कूलों का संचालन करने वाले कह सकेंगे कि हम तो पढ़ाने के लिए तैयार हैं, आप फीस दो या फिर बच्चे को स्कूल से निकाल बाहर किया जाएगा. ऐसे में कौन पैरेंट्स अपने बच्चे की स्कूल से बेदखली चाहेगा? निजी स्कूल अपने फीस वसूली के मंसूबों में इस तरह कामयाब हो जाएंगे.
कई राज्य असमंजस में
बता दें कि दिल्ली सरकार ने अक्टूबर में स्कूल नहीं खोलने का फैसला किया है. यूपी सरकार ने कोरोना की गंभीर स्थिति को देखते हुए कलेक्टरों पर छोड़ा है. प. बंगाल, ओडिशा पहले ही स्कूल खोलने से मना कर चुका है. मध्यप्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों ने अपनी स्थिति अब तक साफ नहीं की है, यह सभी अभी असमंजस में है कि राज्य में स्कूल खोले जाएं अथवा नहीं.
सुरक्षा की गारंटी कौन लेगा?
शिक्षा विशेषज्ञ डा. राजेन्द्र सक्सेना का मत है कि स्कूल खोलना फिलहाल सुरक्षित नहीं है, हम स्कूल में बच्चों की सुरक्षा की गारंटी ले सकते हैं, लेकिन सफर के समय संक्रमण का जोखिम बढ़ जाता है, कि वो किस तरह से स्कूल आ रहे हैं. वह दावा करते हैं कि निजी स्कूल तो कुछ हद तक कार्रवाई के डर से बच्चों के लिए सेफ डिस्टेंसिंग, मास्क, सेनेटाइजेशन, बच्चों की सीमित संख्या के आधार पर शिफ्टों में स्कूल का संचालन कर भी लेंगे, लेकिन सरकारी स्कूलों में इंतजामों में भरोसा नहीं किया जा सकता. ऐसे में अगर अभिभावक बच्चों को स्कूल भेजने से मना करते हैं, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह स्वाभाविक भी है और जरूरी भी.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
सामाजिक, विकास परक, राजनीतिक विषयों पर तीन दशक से सक्रिय. मीडिया संस्थानों में संपादकीय दायित्व का निर्वाह करने के बाद इन दिनों स्वतंत्र लेखन. कविता, शायरी और जीवन में गहरी रुचि.