योजना में छोटे-सीमांत किसानों के अलावा ऐसे किसी भी व्यक्ति को शामिल होने की पात्रता नहीं है, जो आयकर देता हो या 10 हजार से अधिक पेंशन पाने वाला किसान हो. कोई भी नौकरीपेशा, डाक्टर, इंजीनियर, सीए, वकील या आर्किटेक्ट हो और कहीं भी खेती भी करता हो.
Source: News18Hindi Last updated on: October 4, 2020, 6:16 pm IST
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आखिर क्यों हो रहा है केंद्र के कृषि कानूनों का विरोध?
पहले कर्जमाफी ,यूरिया और उद्यानिकी घोटालों का शिकार हो चुका मध्यप्रदेश का किसान एक बार फिर छला गया है. इस बार उसके साथ यह छल प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में फर्जीवाड़े की शक्ल में हुआ है. आपको जानकर हैरत होगी कि राज्य में 70 हजार से ज्यादा ऐसे लोगों के नाम सम्मान दिए पाने वालों की सूची में जोड़ दिए, जो इस दुनिया में हैं ही नहीं. हजारों ऐसे भूमिहीन, टैक्स भरने वाले, नौकरी पेशा, धनाड्य लोग किसान बनकर सम्मान निधि की रकम पा रहे हैं, जिनके लिए यह योजना बनी ही नहीं है. यह सब हुआ कृषि विभाग, राजस्व विभाग, पटवारियों और दलालों की मिलीभगत से, जिन्होंने हजारों अपात्रों (Ineligible) के नाम सूची में जुड़वा कर सरकार को लाखों की चपत दे दी.
तमिलनाडु, असम और उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र की तरह मध्यप्रदेश में भी फर्जी किसान बनकर सम्मान निधि में करोड़ों की धांधली (Fraud) सामने आने पर केन्द्र सरकार के कान खड़े हुए. सरकार ने योजना का लाभ लेने वाले सभी राज्यों को निर्देश दिए हैं कि 5 फीसदी लाभार्थियों का रैंडम फिजीकल वेरीफिकेशन (Random physical verification) कर अपात्रों की पहचान की जाए. साथ ही धोखेबाजों पर नकेल कसकर उनसे रकम वापस ली जाए. मप्र के अलावा यह तस्वीर तो उन चंद राज्यों की है, जहां लाखों फर्जी खाताधारकों और करोड़ों के घोटाले का पता चला है. प. बंगाल को छोड़कर योजना का लाभ लेने वाले सभी राज्यों की जांच जब सामने आएगी, तो यह घोटाला अरबों का आंकड़ा पार कर जाएगा.
क्या है किसान सम्मान निधि योजना
बता दें कि पीएम किसान सम्मान निधि योजना मोदी सरकार की सबसे बड़ी किसान योजनाओं में से एक है. यह योजना 1 दिसंबर 2018 को देश के उन छोटे और सीमान्त किसानों (Small and marginal farmers) को आर्थिक मदद देने के मकसद से शुरू की गई थी, जिनके पास 2 हेक्टेयर (4.9 एकड़ ) से कम भूमि है और जो खेती-बाड़ी से अपनी गुजर बसर करते हैं. योजना के तहत हर साल तीन 2000-2000 रुपए की तीन किश्तों में कुल 6 हजार रुपए दिए जाते हैं. राशि सीधे किसान के बैंक खाते में डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर (DBT) के तहत डाली जाती है. केन्द्र सरकार की अधिकृत वेबसाइट pmkisan.gov.in के मुताबिक वर्तमान में इस योजना के 11 करोड़ 16 लाख कुल लाभार्थी पंजीकृत हैं. मध्यप्रदेश में लाभार्थियों की संख्या 77 लाख 43 हजार 415 है, जबकि पंजीयन कराने वालों की संख्या 82 लाख 975 है. यूपी में किसान लाभार्थियों की संख्या 2 करोड़ 32 लाख 63 हजार 33 है और पंजीयन 2 करोड़ 64 लाख 67 हजार 518 लोगों का है.
योजना की शर्त
योजना में छोटे-सीमांत किसानों के अलावा ऐसे किसी भी व्यक्ति को शामिल होने की पात्रता नहीं है, जो आयकर देता हो या 10 हजार से अधिक पेंशन पाने वाला किसान हो. कोई भी नौकरीपेशा, डाक्टर, इंजीनियर, सीए, वकील या आर्किटेक्ट हो और कहीं भी खेती भी करता हो. देश के सभी 14.5 करोड़ किसान परिवार इसके पात्र हैं. इसमें पति-पत्नी बच्चों को एक इकाई माना गया है.
कैसे हुई घोटाले की शुरुआत
तमिलनाडुः देश में योजना लागू होने के बाद किसानों के पंजीयन के साथ ही फर्जीवाड़े की शुरूआत हो चुकी थी. सरकार की नजर में भी गड़बड़ी सामने आ चुकी थी. उसने 8 राज्यों के करीब एक लाख 20 हजार खातों से पैसा वापस भी लिया, क्योंकि खाताधारकों के नाम, पते व अन्य विवरण आपस में मेल नहीं खा रहे थे. सरकार के योजना में धांधली को लेकर उस समय कान खड़े हुए, जब पिछले सितंबर के महीने में अब तक का सबसे बड़ा घोटाला तमिलनाडु में सामने आया, जहां फर्जीवाड़ा करने वालों ने सिस्टम में सेंध लगाकर 110 करोड़ रुपये खातों से निकाल लिए. जरा इन आंकड़ों से अंदाजा लगाइए कि गड़बड़ी कितने बड़े स्तर की है, तमिलनाडु में अब तक 5.95 लाख लाभार्थियों के अकाउंट की जांच की गई, जिसमें से 5.38 लाख अकाउंट फर्जी निकले हैं. मुख्यमंत्री पलानी स्वामी के गृहजिले में ही 10 हजार से ज्यादा अपात्र मिले हैं. सरकार की सख्ती के बाद 61 करोड़ रुपए ही वसूले जा सके हैं, जबकि सरकार 94 हजार करोड़ रूपए किसानों के बैंक अकाउंट में भेज चुकी है.
सितंबर में राज्य के प्रमुख सचिव गगनदीप सिंह बेदी के मुताबिक उन्होंने पहली बार अगस्त के महीने में देखा कि खासतौर से 13 जिलों में आसामान्य रूप से योजना के लाभार्थियों की संख्या बढ़ गई है. जांच के बाद 18 एजेंटों, दलालों को गिरफ्तार कर लिया गया. योजना से जुड़े 80 अधिकारी बर्खास्त और 34 अधिकारी निलंबित कर दिए गए.जांच में पाया गया कि अफसरों और कृषि विभाग द्वारा रखे गए अनुबंधित कर्मचारियों (Contract employee) ने स्कीम में बेईमानी की. इन लोगों ने जिला अधिकारियों के लाग-इन आईडी और पासवर्ड का दुरुपयोग किया. स्कीम का फायदा दिलाने रकम के 50-50 फीसदी बंदरबाट का फार्मूला अपनाते हुए भूमिहीनों को सूची में जोड़ दिया गया. सूची में शिक्षक, किसान, टैक्स चुकाने वाले भी बड़ी संख्या में पैसे लेकर शामिल कर दिए गए. इस फर्जीवाड़े के काम में सरकारी अधिकारी शामिल थे, जो नए लाभार्थियों में जुड़ने वाले दलालों को लॉगिन और पासवर्ड प्रदान करते थे. किसानों के नाम पर लाखों अपात्रों ने इस योजना का लाभ उठा लिया और जरूरतमंद किसान वंचित रह गए.
मध्यप्रदेश में कैसे हुआ घोटाला
मध्यप्रदेश में सरकार को इस बड़े घपले का पता तब चला, जब उसके पास पहुंची लाभार्थी किसानों की संख्या अनुमान से कहीं ज्यादा हो गई. सतना का उदाहरण लें, तो वहां ऐसे किसानों की संख्या एक हजार से भी ज्यादा है. सूची में उन भूमिहीन फर्जी किसानों की संख्या ज्यादा है, जिन्होंने स्व पंजीयन किया है, लेकिन स्वपंजीयन के बाद उनकी पहचान को तहसीलदार ने सत्यापित किया है, इसके बाद उनके खातों में किसान सम्मान निधि की राशि मिलने लगी. सवाल यह है कि इतना बड़ा घोटाला तहसीलदार, पटवारी की जानकारी या उनके शामिल हुए बिना संभव है क्या? इन भूमिहीनों को किसान निधि की राशि मिलने का पता ही नहीं चलता, अगर ग्वालियर के भू-अभिलेख एवं बंदोबस्त विभाग अपर आयुक्त ने सतना कलेक्टर को पत्र न लिखा होता. पत्र में साफ-साफ लिखा गया कि भूमिहीनों को दी गई किसान सम्मान निधि वापस ली जाए, योजना से उनके नाम काटे जाएं.
राज्य में किसानों को सम्मान निधि का फायदा दिलाने के नाम पर रकम की बंदरबांट की गरज से राजस्व विभाग के अफसरों ने इतनी तत्परता दिखाई कि 70 हजार से ज्यादा मृत किसानों के नाम भी सूची में जोड़ दिए गए. बाद में यह फर्जीवाडा विभाग के ही साफ्टवेयर ने पकड़ा. योजना का लाभ पाने पंजीयन कराने के लिए आधार कार्ड की जानकारी अनिवार्य है. पोर्टल में जब आवेदनों की आधार कार्ड से जांच हुई, तो संबंधित नाम के आगे मृत लिखा आ गया. यह भी पता इसलिए चल पाना संभव हो पाया, कि मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए आधार कार्ड की जानकारी अनिवार्य है. किसान सम्मान निधि योजना का अपना पब्लिक पोर्टल है, जिसमें आपरेटर के माध्यम से किसान अपना नाम जुड़वाते हैं, लेकिन योजना के लाभ पाने का अधिकार तहसीलदार के वैरिफिकेशन के बाद ही मिलता है. यह कैसे संभव हुआ, इसका कोई साफ जवाब नहीं दे रहा. तहसील और पटवारी ने ऐसे हितग्राही क्यों नहीं लौटाए, अगर लौटाए भी तो आपरेटर ने कैसे पात्रता की सूची में हितग्राही को डाल दिया. इन सवालों का किसी के पास साफ-साफ नहीं है.
बता दें कि केन्द्र सरकार को छोटे और सीमांत किसानों को 6000 रुपए दे रही है, इधर मप्र में भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसानों को 4000 रुपए की अतिरिक्त सम्मान निधि देने के लिए मुख्यमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का ऐलान कर दिया. ऐसा करने वाला मध्यप्रदेश देश का पहला राज्य बन गया है. इस तरह सम्मान निधि के 10 हजार रुपए पाने लालच में हजारों या कहें कि लाखों फर्जी लोगों ने किसान के रूप में सूची मे अपने नाम जुड़वा लिए. उनके साथ अपनी भी कमाई कर डालने के लिए राजस्व, कृषि विभाग के अधिकारियों और दलालों का तंत्र सक्रिय हो गया और तमाम औपचारिकताएं पूरी होना दिखाकर सूची में नाम जोड़ दिए गए. इस पोर्टल पर सूची में किसानों की संख्या अचानक बहुत अधिक बढ़ना देखकर सरकार चौंकी और प्रविष्टियों की पड़ताल में फर्जीवाड़ा पकड़ा गया. इसके बाद केन्द्र सरकार ने राज्य का पोर्टल बंद कर दिया. श्योपुर कलेक्टर ने तो एसडीएम और तहसीलादारों को किसान निधि पा रहे सभी किसानों की जांच के निर्देश भी दे दिए. फर्जीवाड़े के सामने आने के बाद केन्द्र ने तो 5 फीसदी हितग्राहियों के फिजीकल वेरिफिकेशन की बात की है, लेकिन मध्यप्रदेश सरकार अब सभी 77 लाख किसानों की पात्रता की जांच करेगा. अब 4000 रुपए का लाभ पाने के लिए किसानों को अपने पात्र होने का प्रमाण फिर देना होगा और यह काम मैदानी स्तर पर शुरू भी हो गया है.
उत्तरप्रदेश में भी बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा
तमिलनाडु के बाद उत्तरप्रदेश में भी प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना में घोटाला सामने आया. उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले की तिलहर तहसील में कृषि और राजस्व विभाग के अधिकारियों ने जनसेवा केंद्रों के साथ मिलकर भूमिहीन लोगों को भी प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना का फायदा पहुंचा दिया. इतना ही नहीं प्राइमरी स्कूल में पढ़ने वाले हजारों बच्चों के बैंक खातों में भी प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना की रकम पहुंची है. पुलिस अब इस मामले की जांच कर रही है और घोटाले के मुख्य आरोपी को जल्द गिरफ्तार करने की बात कह रही है. इस मामले में अखिल भारतीय प्रधान संगठन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विपिन मिश्रा ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर मामले की सीबीआई जांच की मांग की है. यूपी के ही बाराबंकी जिले में किसान सम्मान निधि में भ्रष्टाचार की खबरों पर प्रशासन ने अपनी मुहर लगा दी है. इसी क्रम में दो ऐसे लोगों पर मुकदमा दर्ज किया जो जनसेवा केंद्र चलाते हैं और बेरोजगारी भत्ते के नाम पर किसान सम्मान निधि में लोगों का पंजीकरण कर रहे थे. बाराबंकी जिले में करीब 5 लाख 25 हजार किसानों ने इसके लिए रजिस्ट्रेशन कराया था. इनमें से 4.98 लाख लोगों ने धनराशि दी गई है, लेकिन अब 2.49 लाख किसान अपात्र घोषित कर दिए गए हैं. इन किसानों से अब तक 1.38 लाख रुपए की रिकवरी की गई है, जबकि घोटाला 299 करोड़ से ज्यादा धनराशि का है.
राज्य के बलरामपुर में 740 मृत किसान योजना का लाभ ले रहे थे. यह संख्या और भी बढ़ सकती है. साथ ही सैकड़ा भर किसान ऐसे मिले, जिन्होंने अलग-अलग पता, आधार और बैंक खाते से पंजीयन करा लिया और विभागीय मिलीभगत से इनका सत्यापन भी हो गया. इसके बाद इन्हें दोहरा लाभ मिलने लगा यानी एक ही किसान के अलग-अलग बैंक खातों से दो किश्तें पहुंचने लगीं. उधर मिर्जापुर जिले में जहां एक ओर योजना के वास्तविक हकदार किसान पीएम की इस योजना का लाभ पाने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं, वहीं यहां दलालों के गिरोह ने अपात्र लोगों से रकम लेकर कंप्यूटर से फर्जी खतौनी और अन्य कागजात तैयार कर लोगों के नाम पात्र लोगों की सूची में जोड़ दिए. मिर्जापुर के कई किसानों का कहना है कि सहज जनसेवा केन्द्र पर किसान सम्मान निधि योजना में नाम चढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष मिलने वाली 6 हजार रुपए की राशि में से आधी रकम पर सौदा तय होता है. ज्यादातर गांवों की सूची में दर्जनों नाम ऐसे हैं, जो उस गांव में रहते ही नहीं हैं.
मप्र की तरह असम में भी सबकी जांच
असम में 9 लाख से ज्यादा फर्जी किसान प्रधानमंत्री की इस सबसे बड़ी योजना का लाभ उठाते पाए गए हैं, जिनकी पहचान कर ली गई है. कृषि मंत्री अतुल बोरा ने माना है कि फर्जी पाए गए नौ लाख लोगों के नाम हटाने के लिए विभाग को आदेश दे दिए गए हैं. केन्द्र सरकार ने 5 फीसदी वेरिफिकेशन करने को कहा है, लेकिन राज्य सरकार सौ फीसदी की सत्यता को फिर से जांचेगी. असम में कई जिला अधिकारियों पर कार्रवाई की गाज गिरी है, जबकि कई अफसरों के खिलाफ एफआईआर की गई है.
महाराष्ट्र में भी बड़े पैमाने पर घपलेबाजी
मुंबई से मिलीं मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हाल के समय में पीएम किसान सम्मान निधि योजना में ढेर सारे ऐसे लोगों ने लाभ लिया है, जो इस दायरे से बाहर हैं. यानी वे इनकम टैक्स भरते हैं और उनकी आय भी ज्यादा है. वे किसान के नाम पर कुछ खेतों के मालिक हैं. योजना का लाभ लेने वालों की सूची में कुछ रिटायर्ड कर्मचारी और कुछ वर्तमान में सरकारी कर्मचारी है. ऐसे लोगों की पैन कार्ड के जरिए भी जांच की जा रही है.
एक्शन में केन्द्र
कृषि मंत्रालय ऐसे फर्जीवाड़े को रोकने के लिए एक स्टेंडर्ड आपरेटिंग सिस्टम(SOS) तैयार कर रहा है. इसमें वास्तविक हितग्राहियों की असली पहचान की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होगी. जो नई गाइडलाइंस जारी की गई है, उनके मुताबिक किसान सम्मान निधि का आवेदन पटवारी के माध्यम से सारा एप पर आवेदन और किसान की फोटो अपलोड करेगा. तहसीलदार को पूरी जानकारी दी जाएगी. तहसीलदार भुगतान की जानकारी आयुक्त भू-अभिलेख को देगा. पैन कार्ड व अन्य डेटा से भी योजना के खाताधारकों की जांच होगी. सभी लाभार्थी राज्यों से 5 फीसदी खाताधारकों का रेंडम फिजीकल वैरिफिकेशन कलेक्टरों से कराने के लिए कहा गया है.
केंद्रीय कृषि मंत्रालय (Ministry of Agriculture) राज्यों को एक पत्र लिखकर कह चुका है कि अगर अपात्र लोगों को लाभ मिलने की सूचना मिलती है, अगर अपात्र लोगों के खातों में पैसा ट्रांसफर हुआ तो उसे वापस लिया जाएगा. इसके बाद ही अगली किश्त जारी की जाएगी. (डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.)
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
सामाजिक, विकास परक, राजनीतिक विषयों पर तीन दशक से सक्रिय. मीडिया संस्थानों में संपादकीय दायित्व का निर्वाह करने के बाद इन दिनों स्वतंत्र लेखन. कविता, शायरी और जीवन में गहरी रुचि.