मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) की 28 विधानसभा सीटों (Assembly seats) पर होने वाले उपचुनावों से ठीक पहले शिवराज सरकार (Shivraj government) ने किसानों और आदिवासियों के हक में अपने ताजा फैसलों से जो मास्टर स्ट्रोक खेला है, वो चुनाव में विपक्ष के हमलों को भोथरा कर सकता है और भाजपा की झोली वोटों से भरकर जीत की राह आसान कर सकता है. शिवराज सरकार ने किसानों और आदिवासियों साहूकारों के चंगुल और कर्ज से मुक्ति दिलाने के साथ ही किसानों की सम्मान निधि बढ़ाकर इस वर्ग को बड़ी सौगात दी है, जिसका असर चुनाव में जरूर देखने को मिलेगा.
चुनाव आयोग (Election Commission) मध्यप्रदेश में उपचुनावों (By elections) की घोषणा किसी भी वक्त कर सकता है. संभव है कि आयोग बिहार के साथ ही मध्यप्रदेश में भी उपचुनावों की तारीखों की घोषणा कर दे या दो-चार दिन के अंतराल से भी वह ऐसा कर सकता है. बता दें कि राज्य की इन 28 सीटों में से 24 वही सीटें हैं, जहां से ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक कांग्रेस विधायकों ने बगावत कर इसी साल 20 मार्च को कमलनाथ के नेतृत्व वाली अपनी ही सरकार गिरा दी थी और भाजपा में शामिल हो गए थे. इस तरह कमलनाथ सरकार का पतन और शिवराज सरकार का गठन हुआ था. इन सीटों पर होने वाला उपचुनाव कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए कांटे की टक्कर वाला है. दोनों की दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. दोनों ही दलों में पाला-बदल की होड़ मची हुई है, मानो कोई प्रतियोगिता चल रही है. चुनाव में खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिहं चौहान, केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर और राज्यसभा सदस्य व भाजपा में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया की तिकड़ी ने मोर्चा संभाल रखा है, तो कांग्रेस की कमान पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने फिलहाल संभाल रखी है. किसानों की कर्जमाफी राज्य में बड़ा मुद्दा है, जिसपर शिवराज सिंह और कमलनाथ के अपने-अपने दावे हैं.
गंभीर हैं हालात, नाजुक हैं मुद्दे
खासतौर पर जब प्रदेश के अधिकांश जिलों में किसानों की फसलें पहले पानी न गिरने के कारण कीट लगने और बाद में अतिवृष्टि के चलते बर्बाद हो चुकी हैं. किसान फसल बीमा न मिलने और कर्ज में डूबने से हताश, निराश हैं. रोज कहीं न कहीं से किसानों की खुदकुशी (Suicide) की खबरें आ रही हैं. सरकार आलोचनाओं से घिरी हुई है. उधर केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार अपने उन 3 कृषि विधेयकों (agriculture reform bill) के पारित होने के बाद भी कई सफाईयों के बावजूद तमाम सवालों और किसान विरोधी होने के आरोपों से घिरी हुई है. ऐसे में इधर शिवराज सरकार ने दो महत्वपूर्ण विधेयकों को राज्य विधानसभा में पारित करा कर ऐसा मास्टर स्ट्रोक खेला, जो किसान और आदिवासियों के मन में नरमी (Soft Corner) पैदा करेगा.

रोज कहीं न कहीं से किसानों की खुदकुशी (Suicide) की खबरें आ रही हैं. सरकार आलोचनाओं से घिरी हुई है.
क्या हैं मास्टरस्ट्रोक
इस एक सप्ताह के भीतर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने किसानों और आदिवासियों को खुश करने वाली तीन-चार अहम सौगातें दी. यह सभी सौगातें किसानों को सीधा फायदा पहुंचाने वाली हैं.
1.
किसान सम्मान निधि में वृद्धिः कोरोना महामारी के साथ बाढ़ और फसल बर्बादी के दौर से गुजरते किसानों को उस समय बड़ी राहत मिली, जब मुख्यमंत्री ने केंद्र द्वारा किसान सम्मान निधि के रूप में दी जाने वाली 6 हजार रुपये की राशि के साथ ही 4 हजार रुपये राज्य सरकार की ओर से देने घोषणा की. मतलब अब किसानों को अब 6 के स्थान पर 10 हजार रुपए मिलेंगे. हर साल 2 किस्तों में यह 4 हजार की बढ़ी हुई राशि मिलेगी. पं. दीन दयाल के जन्मदिवस याने 25 सितंबर से इस राशि का वितरण भी शुरू हो जाएगा. किसान सम्मान निधि के दायरे में सर्वे कर प्रदेश के हर किसान को शामिल किया जाएगा. अभी यह राशि 77 लाख किसानों को मिल रही है.
2.
साहूकारों के चंगुल से मुक्ति के बिलः शिवराज सरकार ने विधानसभा के मानसून सत्र में दो महत्वपूर्ण विधेयक म.प्र. साहूकार (संशोधन) विधेयक 2020 एवं म.प्र. अनुसूचित जनजाति ॠण विमुक्ति विधेयक 2020 विधानसभा में पारित कराए. इसके साथ ही अब साहूकारों के चंगुल से आदिवासियों के मुक्त होने का मार्ग प्रशस्त हो गया . अब राज्य में कोई भी साहूकार अपनी मनमर्जी से ब्याज दर तय नहीं कर सकेगा. ब्याज दर सरकार तय करेगी. गैर लायसेंसी साहूकार द्वारा दिया गया उधार या कर्ज भी वसूल नहीं किया जा सकेगा. इसी तरह अधिसूचित क्षेत्रों (अनुसूचित जनजाति क्षेत्र) में इस वर्ग के व्यक्तियों को 15 अगस्त 2020 तक दिया गया कर्ज शून्य होगा. बता दें कि सूबे के 89 ब्लाक अधिसूचित क्षेत्र हैं. इनमें आदिवासियों, किसानों ने जो भी कर्ज भी नहीं चुकाया होगा या कर्ज के लिए जो भी दस्तावेज, गहने, अन्य वस्तुएं गिरवी रखे होंगे, वह भी साहूकारों को लौटाने होंगे.
बता दें कि करीब 38 साल पहले यानी 1982 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुनसिंह की सरकार मप्र ग्रामीण ऋणमुक्ति बिल लेकर आई थी, जिसमें किसान, खेतीहर मजदूर, गांवों के कारीगरों और छोटे किसानों के कर्ज शून्य घोषित किए गए थे. इसी तरह के फैसलों ने उन्हें गरीबों, किसानों के मसीहा के रूप में लोकप्रियता दी थी. अब शिवराज के कर्ज के साथ साहूकारी से मुक्ति दिलाने वाले ताजा फैसले उन्हें पहले से भी ज्यादा लोकप्रिय बनाने वाले होंगे.
3-
किसान क्रेडिट कार्डः किसानों, पशु, मछली पालकों का भरोसा जीतने के लिए किसान क्रेडिट कार्ड वितरण (Kisaan Credit Card) का कार्यक्रम भी शुरू किया गया है. किसानों को मुफ्त सोलर पंप भी दिए जा रहे हैं, ताकि उन्हें बिजली के बिल से मुक्ति मिले.
एमएसपी का मरहम
उधर केन्द्र सरकार ने 3 कृषि सुधार विधेयकों को लेकर पूरे देश में मचे हंगामे और किसानों में अंसतोष को शांत करने के लिए वक्त से करीब एक माह पहले सितंबर में ही रबी की फसलों गेहूं, सरसों, दलहनों का नए साल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support price) घोषित कर दिया. यह कदम विपक्ष के हमलों को बेअसर करने की एक कोशिश भी माना जा सकता है. सभी फसलों में समर्थन मूल्य को बढ़ाते हुए सरकार ने एमएसपी को लेकर यह स्पष्ट संदेश भी देने की कोशिश की है , कि जिस एमएसपी को खत्म करने की बात कह कर विपक्षी दल देश में बवाल खड़ा करने और किसानों को कथित रूप से गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं, वह गलत है. एमएसपी को खत्म करने, मंडियों को बंद करने का सरकार का कोई इरादा नहीं है. अपनी घोषणा के साथ सरकार किसानों को यह संकेत भी दे रही है कि वह एमएसपी देखकर सर्दियों में कौनसी फसल बोनी है, वह तय कर सकते हैं. एमएसपी पर खरीद अगले साल 1 अप्रैल 2021 से शुरू होनी है. बता दें कि सरकार यह भी साफ करने की कोशिश कर रही है कि कृषि सुधार विधेयकों के माध्यम से लाए जा रहे नए कानून से एमएसपी भी कोई असर नहीं पड़ेगा. उल्लेखनीय है कि सरकार ने गेहूं का समर्थन मूल्य 50 रुपए प्रतिक्विंटल बढ़ाते हुए 1975 रूपए प्रति क्विंटल कर दिया है. गेहूं के अलावा तिलहन में 225 रुपए, चना में 225 रुपए और मसूर में 300 रुपए समर्थन मूल्य बढ़ाया है.
फैसलों का कैसे पड़ेगा असर
मध्यप्रदेश की जिन 28 विधानसभा की खाली सीटों के लिए उपचुनावों होने हैं, उनमें अधिकांश ग्रामीण व किसान बाहुल्य वाले इलाके हैं. उदाहरण के तौर पर बड़ा मलहरा, डबरा, बदनावर, भांडेर, बमैरी, मेहगांव, गोहद, सुरख, ग्वालियर, मुरैना, दिमनी, ग्वालियर पूर्व, करेरा, हाट पिपल्या, सुमावली, अनूपपुर, सांची, अशोकनगर, पोहरी, अंबाह, सांवेर, मुंगावली, सुवासरा, जौरा, आगर मालवा आदि सीटों को लिया जा सकता है. इनमें से 2-3 सीटें ही ऐसी है, जहां शहरी मतदाता ( Urban Voter) ज्यादा हैं. बाकी पर खेती-किसानी पर लोग आश्रित हैं. फर्क इतना ही है कि यहां कोई छोटा-किसान है, कोई बड़ा किसान. इन इलाकों में आदिवासियों का भी बाहुल्य है. शिवराज सरकार के ताजा फैसलों का निश्चित रूप से यहां के मतदाताओं पर असर पड़ेगा.
क्या कहते हैं राजनैतिक विश्लेषक
राजनैतिक विश्लेषक वरिष्ठ पत्रकार राजेश पांडे के मुताबिक किसानों की सम्मान निधि बढ़ाने का फैसला हो या आदिवासियों, किसानों को साहूकारों और उनके कर्ज से मुक्ति का फैसला स्पष्ट रूप से मतदाताओं को लुभाने वाला फैसला है, यह सरकार की ओर से तोहफा है, जो भाजपा के लिए वोटो की फसल पैदा करने और पक्ष में माहौल बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. जहां तक केन्द्र के कृषि सुधार विधेयकों को लेकर किसानों के मन में शंकाओं के सवाल को लिया जाए, तो दूरदराज के किसानों को अभी इसके स्वरूप और पड़ने वाले असर के बारे में मालूम ही नहीं है. वह तो सीधे फायदे की बात समझता है और उसे तो केवल यह दिख रहा है कि उसकी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य मोदी सरकार ने बढ़ा दिया है, शिवराज सरकार ने किसान सम्मान निधि 4 हजार और बढ़ा दी है, अब साहूकारी कर्ज से मुक्ति मिल जाएगी. मतलब किसानों को सीधा यह संदेश जा रहा है कि केन्द्र और राज्य की मोदी सरकार किसानों के हित में काम कर रही है. उसे कोई मतलब नहीं है कि कौन किसे दलबदलू कह रहा है या गद्दार, उसे तो फिलहाल अपना फायदा दिख रहा है. उपचुनावों में स्वाभाविक रूप से उसका झुकाव तत्काल फायदा देने वाले की ओर होगा.