तीन-चार दशक पहले दुनिया में एक वक्त ऐसा भी था, जब इंटरनेट का नामोनिशान ही नहीं था. मगर आज ज़्यादातर लोग इंटरनेट के बगैर अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. वैसे भी कोरोना महामारी के इस दौर में पूरी दुनिया के ज़्यादातर कामकाज इंटरनेट पर ही निर्भर हैं. यूं समझिए जैसे सांस लेने के लिए हवा जरूरी है, वैसे ही आज दैनिक जीवन के विभिन्न क्रियाकलापों को सम्पन्न करने के लिए इंटरनेट जरूरी है.
बाजार से लेकर संचार तक उद्योग-धंधों का एक बड़ा हिस्सा इंटरनेट पर टिका हुआ है. इंटरनेट ने आज हमारी बहुत सी मुश्किलों को आसान कर दिया है, जिसकी वजह से हमें अमूमन हर काम आसान लगता है. दुनिया भर में लगभग 4.72 अरब सक्रिय इंटरनेट यूजर हैं. भारत में ही तकरीबन 62 करोड़ लोग इंटरनेट से जुड़े हुए हैं. वैसे इस तरफ हमारा ध्यान शायद ही जाता हो कि कभी हमें बिना इंटरनेट के भी रहना पड़ सकता है.
क्या होगा अगर इंटरनेट व्यवस्था ठप्प हो जाए?
इंटरनेट कई वजहों से बाधित होता है और इसके कुछ समय के लिए ही बंद होने पर अर्थव्यवस्था, बैंकिंग प्रणाली, हवाई यात्रा, कारोबार, सामाजिक जीवन वगैरह पर गहरा प्रभाव पड़ता है. आज वैश्विक अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा इंटरनेट पर निर्भर है, ऐसे में अगर एक घंटे के लिए भी इंटरनेट बंद हो जाता है तो हजारों करोड़ रुपयों का नुकसान उठाना पड़ता है. ब्रिटेन के डिजिटल प्राइवेसी एंड सिक्योरिटी रिसर्च ग्रुप टॉप-10 वीपीएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में इंटरनेट बंद होने से दुनियाभर में तकरीबन 4 अरब डॉलर का नुकसान हुआ था.
इंटरनेट बंद होने की घटनाओं में हाल के वर्षों में बढ़ोत्तरी हुई है. इसी महीने की 8 तारीख को अचानक दुनियाभर की हजारों लोकप्रिय वेबसाइटें काम करना बंद हो गईं. इनमें अमेजॉन, न्यूयॉर्क टाइम्स, बीबीसी, पिनटेरेस्ट, द फाइनेंशियल टाइम्स, रेडिट, सीएनएन जैसी हजारों बड़ी और प्रसिद्ध साइटें शामिल थीं. इन वेबसाइटों को वापस ऑनलाइन आने में तकरीबन एक घंटा लगा. इंटरनेट और वेबसाइटें तो वापस ऑनलाइन आ गईं लेकिन एक बड़ा सवाल पीछे छोड़ गईं कि ऐसा भविष्य में दुबारा ज्यादा बड़े पैमाने और लंबी कालावधि के लिए हुआ तो क्या होगा?
उस वक्त गूगल ने अपने सर्वर में हुई त्रुटि का कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया था. 2017 में भी अमेजॉन की क्लाउड सर्विस ‘एडबल्यूएस’ में कोई गड़बड़ी हुई थी तो वेबसाइट काफी वक्त तक बंद रही थी, उस समय अमेजॉन ने इसे सर्वर से जुड़ी समस्या बताया था. इंटरनेट बंद होने की इस 8 जून की घटना को एक क्लाउड सर्विस प्रोवाइडर कंपनी फास्टली से जोड़कर देखा जा रहा है. फास्टली अमेजॉन और बीबीसी सहित कई वेबसाइटों को सीडीएन (कंटेंट डिस्ट्रिब्यूशन नेटवर्क) उपलब्ध कराती है.
एक अकेली कंपनी कैसे इंटरनेट का कर सकती है प्रभावित
अब, सवाल यह उठता है कि आखिर एक अकेली कंपनी कैसे इंटरनेट के इतने बड़े हिस्से को इस तरह प्रभावित कर सकती है? अमेजॉन, न्यूयॉर्क टाइम्स, बीबीसी आदि वेबसाइटें फास्टली के ग्राहक हैं. फास्टली के डेटा सेंटरों और सर्वरों में इन कस्टमर वेबसाइटों का डेटा स्टोर होता है. जब कोई इन कस्टमर वेबसाइटों पर विजिट करता है, तो वह उसी इलाके के सीडीएन में जमा डेटा से इंटरऐक्ट करता है. इससे वेबसाइट तेजी से खुलता है और दूर स्थित वेबसाइट के सेंट्रल सर्वर पर ज्यादा लोड नहीं पड़ता.
इसलिए ग्लोबल वेबसाइट्स फास्टली जैसे सीडीएन सर्विसेज के इस्तेमाल की वकालत करती हैं क्योंकि इसकी बदौलत दुनिया के किसी भी कोने से किसी भी वेबसाइट से आसानी और तेजी से इंटरऐक्ट (ऐक्सेस) किया जा सकता है. ऐसे में जब फास्टली जैसा कोई सीडीएन प्रदाता काम करना बंद कर देता है तो इससे इसके ग्राहक वेबसाइटें लाजिमी तौर पर प्रभावित होती हैं.
इंटरनेट ठप्प पड़ने का क्या प्रभाव होगा?
पश्चिमी देशों में हुए कई अध्ययनों के मुताबिक इसका असर ग्लोबल लॉकडाउन से भी भयावह हो सकता है. कुछ समय के लिए ही इंटरनेट बंद होने पर अर्थव्यवस्था, चिकित्सा, सरकारी व्यवस्थाएं, सैटेलाइट्स का संचालन, टूरिज़्म, व्यापार और इंसानी मन-मस्तिष्क प्रभावित होते हैं. इस समय पूरी दुनिया को इंटरनेट सेवाएं समुद्रों की तलहटी में बिछे ऑप्टिकल फाइबर केबलों द्वारा ही मुहैया कराई जा रही है. विशेषज्ञ चेता रहे हैं कि इन केबलों के जरिये अधिकतम 9-10 साल तक ही इंटरनेट सर्विसेज प्रोवाइड कराई जा सकती हैं.
इसका कारण यह है कि इतने सालों में इन केबलों के माध्यम से प्रवाहित होने वाला डेटा अपनी आखिरी सीमा तक पहुँच जाएगा और अतिरिक्त डेटा ट्रान्सफर नहीं हो पाएगा. हालांकि कुछ और भी संकट पैदा हो सकते हैं. जैसे सुनामी, भूकंप, विशालकाय समुद्री जीव या किसी जहाज के लंगर (एंकर) से टकराने से ये केबल्स टूट-फूट सकते हैं. 2008 में ऐसी एक घटना हो चुकी है, जिससे इजिप्ट सहित कई देशों की इंटरनेट सेवाएँ बाधित हुईं थी.
इंटरनेट को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए अलग-अलग देशों में तकरीबन 30 इंटरनेट ट्रैफिक एक्सचेंज हैं. ये एक्सचेंज सुरक्षित और मजबूत इमारतों में प्लांट किए गए हैं और इनमें एक से बढ़कर लोकप्रिय नेटवर्क प्रोवाइडरों के केबल्स पहुंचते हैं. अगर इन 30 इमारतों में से किसी भी एक्सचेंज की पावर कट होने, भूकंप आदि के कारण केबल्स कट जाएँ तो पूरी दुनिया की इंटरनेट व्यवस्था प्रभावित होगी.
ऐसे पूरी दुनिया में इंटरनेट हो सकता है बंद!
कटेंट डिलिवरी नेटवर्क क्लाउड फ़्लेयर के सीईओ मैथ्यू प्रिंस के मुताबिक अगर सभी 30 इंटरनेट एक्सचेंज काम करना बंद कर दें तो पूरी दुनिया में मोटे तौर पर इंटरनेट काम करना बंद कर देगा. व्यापारिक-कूटनीतिक प्रतिस्पर्धा, हैकिंग और सरकारों के ढुलमुल रवैये से भी इंटरनेट बाधित होने और ओवरलोडिंग की घटनाओं में इजाफा हो रहा है. इसके लिए बीजीपी (बार्डर गेटवे प्रोटोकॉल) हाइजैकिंग का तरीका प्रयोग में लाया जा रहा है.
बीजीपी राऊटर्स के जरिए इंटरनेट पर मौजूद ट्रैफिक की दिशा निर्धारित होती है. हैकर्स की निगाह इन्हीं बीजीपी राऊटर्स पर होती है. वे इनको हैक करके मैनिपुलेट कर सकते हैं. इस हाईजैंकिंग के ज़रिए काफ़ी मात्राएं में सूचनाएं चुराई जा सकती हैं या फिर इंटरनेट ट्रैफिक की दिशा बदली जा सकती है. हो सकता है कि इंटरनेट बंद होने के पीछे हैकिंग या साइबर हमले जैसी कोई वारदात हो. इसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. बहरहाल, पूरी इंटरनेट व्यवस्था एक बेहद नाजुक ढांचे पर टिकी हुई है. इंटरनेट पर हमारी बढ़ती निर्भरता ने हालात को और भी पेचीदा कर दिया है. ऐसे में उस पर खतरा भी बढ़ रहा है. अस्तु!
उत्तर प्रदेश के एक सुदूर गांव खलीलपट्टी, जिला-बस्ती में 19 फरवरी 1997 में जन्मे प्रदीप एक साइन्स ब्लॉगर और विज्ञान लेखक हैं. वे विगत लगभग 7 वर्षों से विज्ञान के विविध विषयों पर देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में लिख रहे हैं. इनके लगभग 100 लेख प्रकाशित हो चुके हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त की है.
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