डबल-डेकर विकास की राह में आ गईं किताबें, क्या टूट जाएगा खुदाबख्श लाइब्रेरी का वाचनालय?

पटना में अशोक राजपथ पर फ्लाईओवर निर्माण के लिए खुदाबख्श ओरिएंटल लाइब्रेरी के कर्जन रीडिंग-रूम को तोड़ने की योजना का हो रहा विरोध.
बिहार में सड़कों-पुल-पुलियों और फ्लाईओवरों के धुआंधार विकास की राह में अचानक एक ऐतिहासिक महत्व का पुस्तकालय आ गया है. खुदाबख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी के नाम से मशहूर इस पुस्तकालय में 20000 से अधिक ऐतिहासिक महत्व के मैनुस्क्रिप्ट (पांडुलिपि) और ढाई लाख से अधिक किताबें हैं. ऐसा माना जाता है कि इस पुस्तकालय में इस्लामिक साहित्य से जुड़ा दुनिया का सबसे उत्कृष्ट कलेक्शन मौजूद है. यहां मौजूद चार पांडुलिपियों को नेशनल मिशन फॉर मैनुस्क्रिप्ट ने 'विज्ञान निधि' की उपाधि दी है. इस्लामिक साहित्य पर शोध करने वाले दुनिया भर के शोधार्थी अक्सर यहां आते हैं. मगर बिहार राज्य का पथ निर्माण विभाग चाहता है कि कर्जन रीडिंग रूम के नाम से ख्यात इसके 100 साल से अधिक पुराने वाचनालय को तोड़ दिया जाए, क्योंकि वह रीडिंग रूम विभाग के प्रस्तावित फ्लाईओवर की राह में आ रहा है. यह फ्लाईओवर पटना के सबसे ऐतिहासिक मार्ग अशोक राजपथ में बनने वाला है, जिसे मौर्यकालीन माना जाता है.
बिहार में इन दिनों सड़कों-पुल पुलियों और फ्लाईओवरों के निर्माण की धूम है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मुताबिक इस गरीब राज्य बिहार में इस मद में एक लाख करोड़ से अधिक की राश खर्च की जानी है. अकेले पटना शहर में कई फ्लाईओवर बन चुके हैं, राजधानी की कोई भी मुख्य सड़क नहीं बची जहां फ्लाईओवर न बने हों. इसी कड़ी में 369 करोड़ की लागत से गांधी मैदान स्थित कारगिल चौक से पटना के साइंस कॉलेज तक 2.2 किमी लंबा डबल डेकर फ्लाईओवर बनना है. इसी की राह में खुदाबख्श ओरिएंटल लाइब्रेरी का वर्ष 1905 में बना कर्जन रीडिंग रूम आ गया है, जिसे यूनेस्को की तरफ संरक्षित विरासत घोषित किया जा चुका है. मगर पथ निर्माण विभाग को लगता है कि अगर यह टूट ही गया तो क्या होगा. बिहार राज्य पुल निर्माण निगम के अधिकारियों ने खुदाबख्श लाइब्रेरी का दौरा कर उन्हें इस रीडिंग रूम को तोड़ने के लिए अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी करने कहा है.
हालांकि इस फैसले के सामने आने पर राज्य के पुरातत्वविदों और जागरूक लोगों ने आपत्ति दर्ज करायी है. धरोहरों के संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्था इंटेक ने कहा है कि वे इस संबंध में नीतीश कुमार का ध्यान खीचेंगे और उनसे अनुरोध करेंगे कि धरोहरों के साथ संवेदनशील व्यवहार किया जाए. अगर यह भवन ध्वस्त होता है तो पूरी दुनिया में गलत संदेश जाएगा. साहित्य संस्था आयाम ने इस मसले पर तत्काल बैठक बुलाई और इस फैसले का विरोध किया. संस्था की तरफ से हिंदी-मैथिली की मशहूर लेखिका उषा किरण खान ने कहा कि इस भवन को तोड़ने की कल्पना ही असंवेदनशील और अमानवीय है.
मगर सवाल यह है कि क्या बिहार सरकार सचमुच इतनी संवेदनशील है कि वह ऐसे मसलों पर पुनर्विचार कर सके. इससे पहले राज्य सरकार ने एक अन्य ऐतिहासिक भवन को तोड़ने का फैसला कर लिया था. यह भवन 17वीं सदी का बना हुआ था और इंडो डच आर्किटेक्ट का अप्रतिम उदाहरण माना जाता है. सरकार चाहती है कि इसे तोड़कर वहां पटना कलेक्ट्रेट का नया भवन तैयार करे. देश भर के धरोहर प्रेमियों और इतिहासकारों ने बिहार सरकार के इस फैसले का विरोध किया. खुद डच एम्बेसी की तरफ से बिहार सरकार से अनुरोध किया गया कि इंडो-डच आर्किटेक्ट की इस निशानी को रहने दिया जाए. मगर बिहार सरकार नहीं मानी. उस वक्त भी इंटेक और गांधी फाउंडेशन ने इसका विरोध किया था. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस भवन को तोड़ने पर रोक लगा दी. इसी तरह एक विवाद तब खड़ा हुआ जब बिहार सरकार ने पटना में बिहार संग्रहालय के नाम से एक नया म्यूजियम तैयार किया और उस म्यूजियम में ऐतिहासिक पटना म्यूजियम की संरक्षित कलाकृतियों को लाकर रखना शुरू कर दिया.
उनकी यह अवधारणा उनकी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के तो अनुकूल हो सकती है, मगर धरोहरों के संरक्षण के लिहाज से ठीक नहीं है. अब इसी क्रम में खुदाबख्श ओरिएंटल लाइब्रेरी का कर्जन रीडिंग रूम आ गया है. राज्य का पथ निर्माण विभाग इसे ढहाने पर तुला है. राज्य के धरोहर प्रेमी और जागरूक लोग इसका विरोध कर रहे हैं. अब देखना है यह धरोहर बचती है या विकास की अंधी दौड़ की जीत होती है. (डिस्क्लेमरः ये लेखक के निजी विचार हैं)
बिहार में इन दिनों सड़कों-पुल पुलियों और फ्लाईओवरों के निर्माण की धूम है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मुताबिक इस गरीब राज्य बिहार में इस मद में एक लाख करोड़ से अधिक की राश खर्च की जानी है. अकेले पटना शहर में कई फ्लाईओवर बन चुके हैं, राजधानी की कोई भी मुख्य सड़क नहीं बची जहां फ्लाईओवर न बने हों. इसी कड़ी में 369 करोड़ की लागत से गांधी मैदान स्थित कारगिल चौक से पटना के साइंस कॉलेज तक 2.2 किमी लंबा डबल डेकर फ्लाईओवर बनना है. इसी की राह में खुदाबख्श ओरिएंटल लाइब्रेरी का वर्ष 1905 में बना कर्जन रीडिंग रूम आ गया है, जिसे यूनेस्को की तरफ संरक्षित विरासत घोषित किया जा चुका है. मगर पथ निर्माण विभाग को लगता है कि अगर यह टूट ही गया तो क्या होगा. बिहार राज्य पुल निर्माण निगम के अधिकारियों ने खुदाबख्श लाइब्रेरी का दौरा कर उन्हें इस रीडिंग रूम को तोड़ने के लिए अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी करने कहा है.
हालांकि इस फैसले के सामने आने पर राज्य के पुरातत्वविदों और जागरूक लोगों ने आपत्ति दर्ज करायी है. धरोहरों के संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्था इंटेक ने कहा है कि वे इस संबंध में नीतीश कुमार का ध्यान खीचेंगे और उनसे अनुरोध करेंगे कि धरोहरों के साथ संवेदनशील व्यवहार किया जाए. अगर यह भवन ध्वस्त होता है तो पूरी दुनिया में गलत संदेश जाएगा. साहित्य संस्था आयाम ने इस मसले पर तत्काल बैठक बुलाई और इस फैसले का विरोध किया. संस्था की तरफ से हिंदी-मैथिली की मशहूर लेखिका उषा किरण खान ने कहा कि इस भवन को तोड़ने की कल्पना ही असंवेदनशील और अमानवीय है.
बिहार सरकार ने पहले भी लिए हैं ऐसे फैसले
राज्य सरकार न सिर्फ संरक्षित भवनों को लेकर असंवेदनशील नजर आती है, बल्कि वह निर्माण से जुड़ी अपनी महत्वाकांक्षाओं की वजह से जल संरक्षण के उपायों पर भी तुषारापात करती रही है. एक तरफ राज्य सरकार जल, जीवन हरियाली अभियान को अपना सबसे बड़ा मिशन बताती है, मगर वहीं वह राजधानी पटना में तालाबों को भर कर अपने भवन बनवा रही है. पटना सदर प्रखंड का भवन ऐसे ही एक पुराने तालाब कुम्हरार स्थित वारिस साह पोखर को भरवा कर बनाया जा रहा है. इसी तरह नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल का डायग्नोस्टिक सेंटर भी एक बड़े तालाब को भरवाकर बनाया गया. यह सब हाल की घटनाएं हैं.
नई इमारत के लिए धरोहर ध्वस्त करने की चाहत
सच यही है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भले ही धरोहर और इतिहास को लेकर संवेदनशील नजर आते हैं, मगर उनकी विकास संबंधी अवधारणा दोषमुक्त नहीं है. वे हमेशा नये भवनों, इमारतों और फ्लाइओवरों को खड़ा करने की कोशिश करते हैं और इसके लिए वे पुरानी इमारतों-धरोहरों को ध्वस्त करने में नहीं हिचकते. जानकार बताते हैं कि नीतीश कुमार इतिहास में अपना नाम दर्ज कराने की ख्वाहिश से राज्य के बड़े संसाधनों का इस्तेमाल सिर्फ भवन औऱ फ्लाइओवर निर्माण में खर्च करना चाहते हैं. राज्य की पुरानी इमारतों के प्रति उनका स्नेह इसलिए नहीं है, क्योंकि वे उनके इतिहास पुरुष की छवि में बाधक हैं. इसलिए वे पुराने संग्रहालय की कीमत पर नया संग्रहालय खड़ा करना चाहते हैं. पुराने को ध्वस्त कर नया बनाना चाहते हैं.उनकी यह अवधारणा उनकी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के तो अनुकूल हो सकती है, मगर धरोहरों के संरक्षण के लिहाज से ठीक नहीं है. अब इसी क्रम में खुदाबख्श ओरिएंटल लाइब्रेरी का कर्जन रीडिंग रूम आ गया है. राज्य का पथ निर्माण विभाग इसे ढहाने पर तुला है. राज्य के धरोहर प्रेमी और जागरूक लोग इसका विरोध कर रहे हैं. अब देखना है यह धरोहर बचती है या विकास की अंधी दौड़ की जीत होती है. (डिस्क्लेमरः ये लेखक के निजी विचार हैं)
ब्लॉगर के बारे में
पुष्यमित्रलेखक एवं पत्रकार
स्वतंत्र पत्रकार व लेखक. विभिन्न अखबारों में 15 साल काम किया है. ‘रुकतापुर’ समेत कई किताबें लिख चुके हैं. समाज, राजनीति और संस्कृति पर पढ़ने-लिखने में रुचि.
First published: April 7, 2021, 1:27 PM IST