खूब खेलो इंडिया, पर एमपी में इन हालात को भी देखो

Khelo India Youth Games 2023: मध्यप्रदेश में हो रहे खेलो इंडिया यूथ गेम्स में देश-प्रदेश के 5812 खिलाड़ी अपने कौशल का प्रदर्शन कर रहे हैं. एमपी अपार संभावनाओं वाला राज्य है मगर मैदान मारने के लिए अब भी कुछ बुनियादी काम करने की जरूरत बनी हुई है. खेलो इंडिया जैसे बड़े आयोजन के अलावा इन महत्‍वपूर्ण बिंंदुओं पर ध्‍यान देने की भी आवश्‍यकता है.

Source: News18Hindi Last updated on: February 5, 2023, 11:37 am IST
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खूब खेलो इंडिया, पर एमपी में इन हालात को भी देखो
एमपी के आठ शहरों में 983 पदकों के लिए मैदान में उतरेंगे देश-प्रदेश के 5812 खिलाड़ी.

मध्यप्रदेश में खेलो इंडिया यूथ गेम्स का आगाज हो चुका है. तेरह दिनों तक चलने वाले इस आयोजन में देश-प्रदेश के 5812 खिलाड़ी भाग लेंगे. इस आयोजन में बाक्सिंग, कबड्डी, फुटबॉल, साइकिल रेस, खो-खो, हॉकी, मलखंभ, तलवारबाजी, कयाकिंग, कैनोइंग जैसे खेल खेलें जाएंगे. मध्यप्रदेश के आठ शहरों में 983 पदकों के लिए संघर्ष दिखाई देगा जिसमें 294 गोल्ड मैडल, 303 सिल्वर व 386 ब्रांज मैडल शामिल होंगे. मध्यप्रदेश इन दिनों बड़े आयोजन के लिए मुफीद जगह साबित हो रहा है. खेलो इंडिया यूथ गेम्स से पहले प्रवासी भारतीय सम्मेलन सफलतापूर्वक करके उसने खुद को साबित भी किया है.


यह एक अपार संभावनाओं वाला राज्य है जिसका पूरी क्षमता से उपयोग ही नहीं हो पाया है, अब ऐसा हो रहा है, इससे निश्चित तौर पर इस राज्य की छवि देश के पटल पर बेहतर हो रही है, लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि अब भी कुछ ऐसे बुनियादी काम करने की जरूरत बनी हुई है जिससे यह राज्य उस स्थिति तक पहुंच पाए जिसका कि वह हकदार है. खेलों के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि बच्चों को बेहतर शारीरिक शिक्षा मिले और बचपन से ही उन्हें खेलने-कूदने के, अपने मनमुताबिक खेल गतिविधियों में भाग लेने के और उसमें दक्ष होने के मौके मिले. पर मध्यप्रदेश में ऐसा कितना हो पा रहा है उसकी एक झलक हाल ही में आई ‘असर’ की रिपोर्ट में मिलती है.


असर की रिपोर्ट बताती है कि ग्रामीण भारत के प्रायमरी स्कूलों में 2018 में जहां 5.5 प्रतिशत स्कूलों में सेपरेट टीचर नियुक्त थे, वहीं 2022 में यह घटकर तीन प्रतिशत तक ही आ गए हैं. 59 प्रतिशत स्कूलों में कोई अन्य टीचर शारीरिक शिक्षा की क्लास लेते थे वह भी घटकर 51 प्रतिशत तक जा पहुंचा है. अपर प्राइमरी स्कूलों का हाल तो और भी बुरा है. 2022 की स्थिति में केवल 39 प्रतिशत अपर प्राइमरी स्कूलों में अन्य शिक्षक फिजिकल एजुकेशन टीचर के रूप में काम कर रहे हैं. रिपोर्ट बताती है कि 2018 में 35 प्रतिशत प्राइमरी स्कूलों में और 45 प्रतिशत अपर प्राइमरी स्कूलों में कोई टीचर शारीरिक शिक्षा के लिए नियुक्त नहीं था, वहीं 2022 में भी हालात यह हैं कि 32 प्रतिशत प्राइमरी स्कूलों और 39 प्रतिशत अपर प्राइमरी स्कूलों में फिजिकल एजुकेशन टीचर ही नहीं हैं. अब ऐसी स्थिति में बच्चे कैसे अपने शरीर को दमदार बनाएंगे और आगे बढ़ेंगे?


खेलों के लिए सबसे जरूरी है कि स्कूलों में अच्छे और बेहतर प्लेग्राउंड हों और स्कूलों में खेल सामग्री भी हो जो अलमारियों में बंद न हो. इनके अभाव में कैसे प्रतिभाएं निखरकर सामने आ सकती हैं. पिछले दिनों जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मध्यप्रदेश में आए थे तो उन्होंने नारा दिया था कि ‘एमपी अजब है, गजब है और अब सजग भी है.‘ लेकिन इस बारे में अभी एमपी का सजग होना बाकी है. असर की ही ताजी रिपोर्ट में यह बताया गया है कि मध्यप्रदेश में 2022 में तकरीबन 34 प्रतिशत और 19 प्रतिशत अपर प्राइमरी स्कूलों में खेल का मैदान ही नहीं है. पिछले चार सालों में इस आंकड़े में क्रमश: दो और चार प्रतिशत का ही इजाफा हुआ है. खेल सामग्री की भी बात करें तो इसी रिपोर्ट के अनुसार 23 प्रतिशत प्राइमरी और 15 प्रतिशत अपर प्राइमरी स्कूल के बच्चे इसलिए आगे नहीं बढ़ पाते क्योंकि उनके स्कूल में खेल सामग्री ही नहीं पाई जाती है.


अब बताइए कि एक तरफ तो यह राज्य खेलो इंडिया का नारा देकर यूथ गेम्स की मेजबानी कर रहा है वहीं उसके स्कूलों में यह हाल है. बच्चों का पोषण भी एक बड़ा मसला है. स्वस्थ बचपन बने और हमारे माथे से कुपोषण का कलंक मिटे इसके लिए सरकार ने मिड डे मील योजना शुरू की थी. मध्यप्रदेश में एक वक्त कुपोषण में सबसे टॉप पर था. अब स्थिति बेहतर है, लेकिन एक मजबूत बुनियाद के लिए इस योजना का अच्छे से चलते रहना बहुत जरूरी है. असर की रिपोर्ट ने बताया कि जिस दिन उनकी टीम इस अध्ययन के लिए स्कूलों में पहुंची उस दिन 12 प्रतिशत स्कूलों में मिड डे मील नहीं परोसा गया था, जबकि 2010 में केवल 5 प्रतिशत स्कूलों के बच्चे ही मिड डे मील से वंचित थे, इससे यह पता चलता है कि इस योजना की स्थिति खराब ही होती गई है. 18 प्रतिशत स्कूलों में मिड डे मील के लिए किचन शेड मौजूद नहीं है.


बचपन ही वह बुनियाद है जहां कि बहुत अच्छे अवसर मिलने चाहिए, इसके लिए जरूरी है कि न केवल आधारभूत सुविधाएं बल्कि उचित प्रशिक्षण और प्रोत्साहन भी मिले. यदि मध्यप्रदेश वाकई खेलों में आगे जाना चाहता है तो उसे रूरल मध्यप्रदेश के इन मानकों पर ध्यान देकर इन गैप्स को दूर करना होगा, तभी बराबरी से सभी का विकास हो पाएगा.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
ब्लॉगर के बारे में
राकेश कुमार मालवीय

राकेश कुमार मालवीयवरिष्ठ पत्रकार

20 साल से सामाजिक सरोकारों से जुड़ाव, शोध, लेखन और संपादन. कई फैलोशिप पर कार्य किया है. खेती-किसानी, बच्चों, विकास, पर्यावरण और ग्रामीण समाज के विषयों में खास रुचि.

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First published: February 5, 2023, 11:37 am IST

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