राष्ट्रीय बालिका दिवस विशेष: सोचिए, क्या लड़कियों के लिए सुरक्षित है समाज
जिस सप्ताह को हम 'राष्ट्रीय बालिका दिवस' (National Day of Girl Child) के साथ समाप्त कर रहे हैं उसमें हमें अच्छी-अच्छी खबरें पढ़ने को मिलनी चाहिए थीं, लेकिन उन्हीं दिनों में अखबार ऐसी खबरों से भरे पड़े थे जिनपर सभ्य समाज शर्मसार होने के अलावा कुछ नहीं कर सकता!
Source: News18Hindi
Last updated on: January 24, 2021, 8:14 AM IST

साल 2014 से 2016 के बीच में हमने बच्चों के साथ तमाम किस्म के 200553 अपराध किए. (प्रतीकात्मक)
मध्यप्रदेश में बारह साल तक की बेटियों के साथ अनाचार करने के लिए सबसे पहले देश में सबसे कठोर फांसी की सजा का प्रावधान किया गया, इसके बावजूद बेटियों के साथ अत्याचार थमने का नाम नहीं ले रहे हैं. जिस सप्ताह को हम 'राष्ट्रीय बालिका दिवस' (National Day of Girl Child) के साथ समाप्त कर रहे हैं उसमें हमें अच्छी-अच्छी खबरें पढ़ने को मिलनी चाहिए थीं, लेकिन उन्हीं दिनों में अखबार ऐसी खबरों से भरे पड़े थे जिनपर सभ्य समाज शर्मसार होने के अलावा कुछ नहीं कर सकता!
मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के एक गांव में एक बच्ची को बलात्कार करने के बाद मरा समझकर नाले में दफन कर दिया गया, ऊपर पत्थर डाल दिए गए. इससे दो दिन पहले इंदौर जिले में एक बच्ची के साथ एक के बाद एक कई लोगों ने लगातार अत्याचार करने की खबर भी चलती रही.
प्रदेश की राजधानी में पांच बच्चियों के साथ यौन शोषण का मामला सामने आने के बाद उन्हें संरक्षण देने के लिए बालिका गृह में रखा गया, लेकिन वहां एक बालिका की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई. बेटियों के लिए सुरक्षित मानी जानी वाली जगह में नींद की अधिक गोलियों ले लेने से मौत होना बताया गया, लेकिन इसमें कई पेंच निकल कर सामने आ रहे हैं. इतना तक तो ठीक था, मौत के बाद बिटिया के शरीर को सीधे श्मशान पहुंचा दिया गया, परिजन उसकी देह को घर से ठीक से विदा भी नहीं कर पाए! इस केस की तुलना उत्तरप्रदेश के उस बहुचर्चित केस से की जाने लगी जिसमें ऐसी ही संदिग्ध परिस्थितियों में आधी रात को एक बेटी का अंतिम संस्कार कर दिया गया था.
मध्यप्रदेश में फिर से 'मामा सरकार' है. देश में कोई दूसरा मुख्यमंत्री फिलहाल बच्चों के साथ इतनी संवेदना से नहीं जुड़ता है. प्रदेश में बेटियों के लिए ऐसे कई कार्यक्रम हैं जो शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chouhan) के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट बताए जाते हैं, लाड़ली लक्ष्मी योजना (Ladli Laskhmi Yojna) उनमें से एक है, जो 2006 से प्रदेश में चलाई जा रही है. ऐसी चार से पांच और योजनाएं हैं जो यह बताती है कि प्रदेश में बेटियों के लिए पर्याप्त कोशिशें तो की जाती हैं फिर आखिर क्या कारण है कि ऐसी घटनाएं रूकने का नाम नहीं लेती हैं. हर तरफ से ऐसी खबरें लगातार आती हैं जो इन योजनाओं पर भारी पड़ जाती हैं. जाहिर तौर पर सामाजिक जागरूकता और संवेदना के बेटियों के लिए एक आदर्श समाज नहीं बन सकता, लेकिन यह जागरूकता और संवेदना आएगी कहां से. क्या वह कुछ योजनाओं के लाभ दिलवा पाने से हो पाएगा या फांसी के डर से लोग अपराध कम कर देंगे. यदि ऐसा हो रहा होता तो कम से कम मध्यप्रदेश में तो अपराध कम होने चाहिए थे, लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है! उसके लिए समाज में जो जरूरी शिक्षा होनी चाहिए, वह पर्याप्त नहीं है. उल्टे सामाजिक बुराईयों को जब सरकारी प्रोत्साहन मिलता है, तो लगता है कि 'कहा; कुछ जाता है और 'किया' कुछ और जाता है.
मसलन शराब. प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती (Uma Bharti) कह रही हैं कि इन अपराधों की जड़ में शराब है. दूसरी ओर वही नेता शराब की नई दुकानों की वकालत कर रहे हैं, जो विपक्ष में रहते हुए इसका विरोध कर रहे थे. लाॅकडाउन (Lock Down) में महिला पुलिस को शराब दुकानों पर बैठाकर शराब की व्यवस्था होते देखा है. इससे पैदा हुआ विरोधाभास तमाम सवाल पैदा करता है. इंटरनेट ऐसी सस्ता और सुलभ माध्यम साबित हो रहा है जिसने तमाम अच्छे रास्तों के साथ वह रास्ते भी खोल दिए हैं जहां पर बहुत बड़ी भटकन है. आज वह सब सामग्री गांव-गांव बहुत ही सस्ते दामों पर घूम रही है जिस पर नियंत्रण होना चाहिए था. पर उसके नियत्रंण को लेकर भी कोई सख्त कदम नहीं उठाए जा सके हैं. ऐसे में समाज यदि भीतर से अपने को मजबूत नहीं करेगा, नैतिक और सामाजिक शिक्षा पर जोर नहीं होगा तब तक बेटियों और महिलाओं के लिए यह समाज और अधिक खतरनाक साबित होता रहेगा. वह भी तब जबकि देश में धर्म शब्द ज्यादा सुनाई पड़ता है. धार्मिक आयोजन लगातार बढ़ रहे हैं, कथाएं हैं, रैलियां हैं, बेटियों को देवी का रूप मानकर पूजा भी जा रहा है, सरकारी कार्यक्रमों की शुरूआत बेटियों के पूजा करने से हो रही है, यदि यह सब है तो फिर यह खबरें क्यों हैं?
ऐसा नहीं है कि मध्यप्रदेश में ही सब बुरा ही बुरा है. नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े बताते हैं कि हम भारतवासी (जो खुद को विश्वगुरु कहते हैं) बच्चों के कितने बड़े अपराधी हैं? साल 2014 से 2016 के बीच में हमने बच्चों के साथ तमाम किस्म के 200553 अपराध किए. बच्चियों के साथ बलात्कार का कोई अलग से आंकड़ा एनसीआरबी नहीं रखता. लेकिन पॉक्सो अधिनियम की धारा 4 और धारा 6 के तहत 18 साल से कम बच्चियों के साथ जो यौनिक अपराध इसी बीच हुए हैं उनकी संख्या तकरीबन साठ हजार होती है. यह दर्ज आंकड़े हैं, भारतीय समाज का चरित्र बड़ी संख्या में अपराधों को पुलिस थानों तक जाने भी नहीं होने देता. इसलिए हम राष्ट्रीय बालिका दिवस भले ही मना रहे हैं, लेकिन असल में बेटियों के लिए यह समाज सुरक्षित बने उसके लिए हर दिन को उनके लिए सुरक्षित बनाया जाना बेहद जरूरी है.
मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के एक गांव में एक बच्ची को बलात्कार करने के बाद मरा समझकर नाले में दफन कर दिया गया, ऊपर पत्थर डाल दिए गए. इससे दो दिन पहले इंदौर जिले में एक बच्ची के साथ एक के बाद एक कई लोगों ने लगातार अत्याचार करने की खबर भी चलती रही.
प्रदेश की राजधानी में पांच बच्चियों के साथ यौन शोषण का मामला सामने आने के बाद उन्हें संरक्षण देने के लिए बालिका गृह में रखा गया, लेकिन वहां एक बालिका की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई. बेटियों के लिए सुरक्षित मानी जानी वाली जगह में नींद की अधिक गोलियों ले लेने से मौत होना बताया गया, लेकिन इसमें कई पेंच निकल कर सामने आ रहे हैं. इतना तक तो ठीक था, मौत के बाद बिटिया के शरीर को सीधे श्मशान पहुंचा दिया गया, परिजन उसकी देह को घर से ठीक से विदा भी नहीं कर पाए! इस केस की तुलना उत्तरप्रदेश के उस बहुचर्चित केस से की जाने लगी जिसमें ऐसी ही संदिग्ध परिस्थितियों में आधी रात को एक बेटी का अंतिम संस्कार कर दिया गया था.
मध्यप्रदेश में फिर से 'मामा सरकार' है. देश में कोई दूसरा मुख्यमंत्री फिलहाल बच्चों के साथ इतनी संवेदना से नहीं जुड़ता है. प्रदेश में बेटियों के लिए ऐसे कई कार्यक्रम हैं जो शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chouhan) के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट बताए जाते हैं, लाड़ली लक्ष्मी योजना (Ladli Laskhmi Yojna) उनमें से एक है, जो 2006 से प्रदेश में चलाई जा रही है. ऐसी चार से पांच और योजनाएं हैं जो यह बताती है कि प्रदेश में बेटियों के लिए पर्याप्त कोशिशें तो की जाती हैं फिर आखिर क्या कारण है कि ऐसी घटनाएं रूकने का नाम नहीं लेती हैं. हर तरफ से ऐसी खबरें लगातार आती हैं जो इन योजनाओं पर भारी पड़ जाती हैं.
मसलन शराब. प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती (Uma Bharti) कह रही हैं कि इन अपराधों की जड़ में शराब है. दूसरी ओर वही नेता शराब की नई दुकानों की वकालत कर रहे हैं, जो विपक्ष में रहते हुए इसका विरोध कर रहे थे. लाॅकडाउन (Lock Down) में महिला पुलिस को शराब दुकानों पर बैठाकर शराब की व्यवस्था होते देखा है. इससे पैदा हुआ विरोधाभास तमाम सवाल पैदा करता है. इंटरनेट ऐसी सस्ता और सुलभ माध्यम साबित हो रहा है जिसने तमाम अच्छे रास्तों के साथ वह रास्ते भी खोल दिए हैं जहां पर बहुत बड़ी भटकन है. आज वह सब सामग्री गांव-गांव बहुत ही सस्ते दामों पर घूम रही है जिस पर नियंत्रण होना चाहिए था. पर उसके नियत्रंण को लेकर भी कोई सख्त कदम नहीं उठाए जा सके हैं. ऐसे में समाज यदि भीतर से अपने को मजबूत नहीं करेगा, नैतिक और सामाजिक शिक्षा पर जोर नहीं होगा तब तक बेटियों और महिलाओं के लिए यह समाज और अधिक खतरनाक साबित होता रहेगा. वह भी तब जबकि देश में धर्म शब्द ज्यादा सुनाई पड़ता है. धार्मिक आयोजन लगातार बढ़ रहे हैं, कथाएं हैं, रैलियां हैं, बेटियों को देवी का रूप मानकर पूजा भी जा रहा है, सरकारी कार्यक्रमों की शुरूआत बेटियों के पूजा करने से हो रही है, यदि यह सब है तो फिर यह खबरें क्यों हैं?
ऐसा नहीं है कि मध्यप्रदेश में ही सब बुरा ही बुरा है. नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े बताते हैं कि हम भारतवासी (जो खुद को विश्वगुरु कहते हैं) बच्चों के कितने बड़े अपराधी हैं? साल 2014 से 2016 के बीच में हमने बच्चों के साथ तमाम किस्म के 200553 अपराध किए. बच्चियों के साथ बलात्कार का कोई अलग से आंकड़ा एनसीआरबी नहीं रखता. लेकिन पॉक्सो अधिनियम की धारा 4 और धारा 6 के तहत 18 साल से कम बच्चियों के साथ जो यौनिक अपराध इसी बीच हुए हैं उनकी संख्या तकरीबन साठ हजार होती है. यह दर्ज आंकड़े हैं, भारतीय समाज का चरित्र बड़ी संख्या में अपराधों को पुलिस थानों तक जाने भी नहीं होने देता. इसलिए हम राष्ट्रीय बालिका दिवस भले ही मना रहे हैं, लेकिन असल में बेटियों के लिए यह समाज सुरक्षित बने उसके लिए हर दिन को उनके लिए सुरक्षित बनाया जाना बेहद जरूरी है.
ब्लॉगर के बारे में
राकेश कुमार मालवीयवरिष्ठ पत्रकार
20 साल से सामाजिक सरोकारों की पत्रकारिता, लेखन और संपादन. कई फैलोशिप पर कार्य किया है. खेती-किसानी, बच्चों, विकास, पर्यावरण और ग्रामीण समाज के विषयों में खास रुचि.
First published: January 24, 2021, 8:14 AM IST