मां शब्द किसी लाचारी का नहीं वरन् नारी के जीवन की गुणगाथा का सजीव चित्रण है. मां सर्वसमर्थ होती है फिर चाहे वो अकेली हो या पति के साथ, गरीब हो या अमीर. ‘अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी आंचल में है दूध और आंखों में पानी’. कवि मैथिलीशरण गुप्त की इन पंक्तियों से मुक्त होकर आज नारी ने हर क्षेत्र में अपने कदम रखकर ये साबित कर दिया है कि सबला जीवन आज तुम्हारी यही कहानी आंचल में है दूध, इरादों की ठानी. जीवन की कंटीली पगडंडियों पर अपने रास्ते बनाती नारी कभी किसी समस्या से घबराती नहीं है. इरादे मजबूत कर ले तो पीछे हटती नहीं है. लाख संकट सामने हों फिर भी कभी लड़खड़ाती नहीं है.
बीते दौर में समाज में उपेक्षित भाव से देखी जाने वाली नारी चाहरदीवारी में कैद होकर सबकी चाकरी करने वाली समझी जाती थी. मां-बहू के रुप में कठिन परिक्षाओं से गुजरती हर कदम पर तानों, व्यंग्य बाणों और अत्याचारों को सहन करती थी. ससुराल की चौखट पर दम तोड़ना ही उसकी नियति थी. विवाह पश्चात् विदा होते हुए यही शिक्षा लेकर जाती थी कि डोली में जा रही हो अर्थी में ही लौटना. इन्हीं जंजीरों में बंधी नारी अपने लिए कोई निर्णय ले ही नहीं पाती थी. पति के द्वारा त्याग देने पर तो और भी असहाय हो जाती थी. हर जगह पति के नाम से उसकी पहचान थी. पुरुष प्रधान समाज में स्त्री की राय की कोई कीमत नहीं थी. अपनी अभिलाषाओं का गला घोटना उसे बखूबी आता था.
बेटी होने के कारण माता- पिता के यहां भी उपेक्षित ही रहती थी क्योंकि पराया मानकर उसका लालन-पालन होता था. शिक्षा के प्रति जागरुकता का अभाव होने से विवाह के बाद की परेशानियों से जूझना उसके लिए असंभव था. पति से संबंध विच्छेद होकर रहना या उसकी मृत्यु पश्चात् जीवन जीने की कल्पना से भी आशंकित हो जाती थी. अकेले संतान पालना तो वह सोच भी नहीं सकती थी. पति के बिना नारी समाज का कटा अंग बनकर रह जाती थी. समय ने करवट बदली और नारी ने अपने को संवारा. अपने अस्तित्व को पहचाना. अपने इरादों को मजबूत किया और समाज में अपनी भूमिका से सबको हतप्रभ कर दिया.
आज नारी बदलती विचारधारा की मजबूत चट्टान है. उसे समाज का, परिवार का, किसी के व्यंग्य बाणों का कोई भय नहीं है. उसे फर्क ही नहीं पड़त़ा कि लोग उसके बारे में क्या सोच रहे हैं. वह परेशानी आने पर पति के और परिवार के बिना जीना सीख गई है. आज मोह के बंधन से, घर की घुटन से आजाद होकर वह अपना और अपने बच्चे का भविष्य संवार रही है. उसका आत्मबल उसे हर राह पर आगे ले जाता है. कभी कमजोर पड़ती भी है तो अपनी संतान का मुंह देखकर संभल जाती है. सिंगल मदर होना अभिशाप नहीं है. पर जब जीवन पर गाज गिरती है तो संभलने में वक्त लगता है. सहज नहीं होता अकेले जीवन व्यतीत करना. कष्टों से हार ना मानकर नारी ने निभाना ही सीखा है पर कई बार विपत्ति के अलावा भी अलगाव की स्थिति आ जाती है. विचारों के मेल ना होने से स्वेच्छा से भी दंपत्ति अलग हो जाते हैं. अलग होकर जीना चुनौती बन जाता है. समाज में जब पिता का नाम ही सर्वमान्य होता था तब अकेली नारी को संघर्ष करना पड़ता था. पिता का नाम कागजों में नहीं होने से बच्चों को और मां को अनेक समस्याओं से जूझना पड़ता था.
दिल्ली की गीता देवी का बाल विवाह हुआ था. अपने बच्चे के वजीफे के लिए जब पिता के नाम की जरुरत पड़ी तो उनके बच्चे को वजीफा नहीं मिला. सिंगल मदर ने तीन वर्षों तक लंबी लड़ाई लड़ी और उन्हें उनका अधिकार मिला. उनके प्रयत्नों से उनके बच्चे को वजीफा मिला उसकी शिक्षा पर वो अकेली ध्यान दे रहीं हैं. ऐसे कितनी ही मां हैं जो बाल विवाह की यंत्रणाएं झेल रही हैं या जो कमजोर हैं. जब उन्हें अपने अधिकारों का ज्ञान होता है तो वे संघर्ष करती हैं. अपनी संतान की खातिर कोई मजदूरी कर रही है, कोई रिक्शा चला रही है. पढ़ी लिखी महिलाएं भी अकेली रहकर संतान का भविष्य बना रही हैं. संतान की परवरिश करने के लिए आज नारी को पति के सहारे और नाम की जरुरत नहीं है. अपने नाम के संरक्षण में अपनी संतान का जीवन बुनती है, सजाती हैं, संवारती है. वह अकेली है पर अपनी संतान के लिए पिता का फर्ज निभाती है.
माता-पिता का भी दृष्टिकोण बदला है. बेटी को गर्व से पालते हैं. शिक्षा देते हैं और विवाह के बाद भी परछाई बनकर उसके साथ रहते हैं. सिंगल मदर होने पर हर कदम उसका साया बनते हैं. समाज से मुंह नहीं छिपाते हैं. अकेली बेटी जीवन यापन करने में समर्थ है. उसका संबल बनते हैं. रुही की जिंदगी अंधेरे में डूब गई जब उसे शराबी पति के साथ रहना पड़ा. उसके अत्याचारों को सहना पड़ा. मरने का विचार भी आया पर अपने अंदर पनप रहे नन्हे जीव की जान बचाने हेतु नारकीय जीवन से दूर रहकर जिंदगी काटने की सोची. शुरु में परेशानी हुई. झिझक भी हुई फिर बच्चे के भविष्य को बनाने के लिए पति को छोड़ दिया.
अकेली मां भावनाओं के वशीभूत जहां संतान के आने से खुश होती है वहां उसके भविष्य के लिए चिंतित भी होती है. तनाव भरी जिंदगी उसके व्यक्तित्व को झकझोर देती है. बड़ा कठिन होता है अकेले पालना. पास में पैसे नहीं होते, ससुराल वाले साथ नहीं देते पर बच्चे की खुशियां सबसे उपर होती हैं. बच्चा मां की जान होता है. उसके लिए मां कुछ भी कर सकती है. जिंदगी चलाने के लिए संतुलन बनाना पड़ता है. संघर्षों की कहानी होती है. आंसुओं की धारा बहती है. व्यथा की दास्तान होती है पर एक मां के लिए कुछ भी असंभव नहीं.
अनेकों महिलाओं ने अपने जीवन की यंत्रणाओं से मुक्ति पाने के लिए व्यवसाय में कदम रखे, बर्तन मांजे, रिक्शा चलाया, कपड़े सिले. छोटे-छोटे काम करने वाली भी उच्च मनोबल से समाज में सिंगल मदर बनकर गर्व से जी रही हैं. पढ़ी-लिखी महिलाएं भी घर व बाहर दोनों जिम्मेदारी निभाकर अपने बच्चों को समर्थ बना रही हैं. बच्चे की परवरिश करते-करते अपने दुःख-दर्दों को भूल जाती हैं. ऐसी महिलाओं पर सबको गर्व है. ये समाज के लिए आदर्श प्रस्तुत करती हैं. अपने बच्चों को पिता का प्यार, अधिकार और दुलार देने वाली मां सिंगल मदर नहीं होती वरन् दोहरी भूमिका निभाने के कारण देश के लिए अभिमान करने वाली बन जाती है.
समसामयिक विषयों पर लेखन. शिक्षा, साहित्य और सामाजिक मामलों में खास दिलचस्पी. कविता-कहानियां भी लिखती हैं.
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