सृष्टि का संचालन अदृश्य देवों की कृपा का ही परिणाम है. हिंदू धर्म का विश्वास है कि विभिन्न देव समय-समय पर हम भक्तों की आस्था का प्रतीक बनकर हमारे मध्य स्वयं विराजमान होने के लिए आ जाते हैं और हम उनके दिव्य स्वरुप को स्वयं भक्ति की शक्ति में डूबकर पाना चाहते हैं. उन्हें अपने साथ रखने के श्रद्धा भाव में हम उनको अपने परिवार का ही सदस्य मानकर उनकी सेवा में लगते हैं. उस आलौकिक शक्ति की निकटता से जुड़ जाते हैं. हमारे प्रथम उपासक देव गणेश भगवान हैं. गण हैं, श्रेष्ठ हैं, आराध्य हैं, संकटमोचक हैं, विध्नहर्ता हैं, अद्भुत हैं, आलौकिक हैं, सर्वमान्य हैं. इतना ही नहीं हर परेशानी में अपने भक्तों के साथ हैं. असम्भव को सम्भव बनाने वाले हैं. अनुपम हैं गजानन.
इनके लिए विशेष उत्सव का आयोजन गणेश चतुर्थी से आरंभ होकर भक्त की श्रद्धानुसार निश्चित तिथि पर सम्पन्न होता है. गणेश उत्सव की परंपरा पुरातन है पर नए युग में इसके मनाने में भक्तों का उत्साह अपने इष्ट के प्रति समर्पित हो जाने वाला है. धर्म व जाति की दीवारें भी टूटी हैं और गणेश उत्सव के प्रति भक्तों का भाव प्रबल हुआ है. गणेश उत्सव पर भक्त वर्ष में एक बार बप्पा को अपने घर में लाकर प्रतिष्ठित करके यथासामर्थ्य उनका आतिथ्य करते हैं, लेकिन हर घर में प्रतिदिन प्रथम पूज्य गणेश जी की अर्चना होती है.
गणेश जी अपने जीवन प्रसंगों से हमें यही ज्ञान का संदेश देते हैं कि माता-पिता से श्रेष्ठ इस संसार में दूसरा कोई नहीं है. तभी तो उनकी परिक्रमा करने से सभी देवों में पूज्य बने. हर भक्त के मन में शीर्षस्थ स्थान पर विराजमान हुए. ब्रह्मा जी के द्वारा संचालित सृष्टि को व्यवस्थित करना मानो गणेश जी के ही हाथों में है, तभी तो भक्त अपने संकट, परेशानी, व्यथा व इच्छा को गणेश जी के वाहन मूषक के कान में कहकर अपना संदेश उन तक पहुंचाते हैं और गणेश महाराज अपने भक्तों के दुःख दूर करने निकल पड़ते हैं. उनकी विपदा को हर लेते हैं. उनका नाम ही विघ्ननहर्ता है. हर गरीब की कुटिया से लेकर अमीरों के निवास में गणपति जी का वास है. गणेश चतुर्थी पर भक्त पूर्ण हषोल्लास व बैंड बाजों के साथ गणेश जी को घर लाते हैं. उनकी भक्ति में रमकर कुछ दिन उनके साथ व्यतीत करते हैं. यद्यपि गणेश जी हर वक्त साथ हैं फिर भी भक्त उल्लासित होते हैं.
ये भक्त और भगवान का प्रेम ही तो है जो हम जीवन देने वाले को ही घर ले आते हैं. भक्त का भाव ही तो है जो आस्था को प्रबल बनाता है क्योंकि भगवान भी भक्तों के बिना अधूरे हैं. जहां भक्त नहीं होंगे भगवान कहां होंगे? भक्त का प्यार भगवान को उसके पास खींच ही लाता है. ये पर्व भक्त और भगवान के मिलन का विशेष पर्व है. जहां गणेश हैं वहां सन्मति है, सुबुद्धि है,विचारों का शुद्धीकरण है. वहां के संकट स्वयं ही दूर हो जाते हैं क्योंकि पवित्रता जहां विराजमान है कलुषता की वहां कोई जगह नहीं. मां पार्वती के पुत्र बुद्धिदाता हैं. मां स्वयं आदिशक्ति हैं और पिता देवादिदेव महादेव जिन्होनें संसार की रक्षा के लिए विष को अपने कंठ में ही धारण कर लिया था. ऐसे परम पूज्य माता-पिता की संतान गणपति भक्तों के संकट को कैसे दूर नहीं करेंगें? वे तो भक्तों की एक पुकार पर दौड़े आते हैं.
श्रद्धा भक्ति से गणपति जी को हर पूजन में सम्मान के साथ आमंत्रित किया जाता है. विभिन्न श्लोकों से उनकी स्तुति की जाती है. उनके जीवन की विचित्रता हमारे ज्ञानचक्षु खोलती है. अपनी माता के आज्ञाकारी पुत्र मां के सम्मान के लिए अपने जीवन को भी उत्सर्ग करने को तैयार हो जाते हैं और मां की रक्षा के प्रण में अडिग रहकर पिता को भी प्रवेश की अनुमति नहीं देते हैं और सिद्ध कर देते हैं कि मां की आज्ञा से बढ़कर और किए गए ये प्रण से ज्यादा कुछ भी नहीं है.
भगवान गणेश अपने स्वरुप में हर उस सद्गुण को समेटे हुए हैं जो संसार की सुव्यवस्था को दर्शाता है. उसी गणपति को सुंदर रुप में विभिन्न वस्त्रों, अलंकारों से सुसज्जित कर प्रतिदिन भोग लगाकर उनके भजन कीर्तन में अपना समय व्यतीत करने वाले भक्तों को गणेश जी का विसर्जन बहुत पीड़ादायक होता है. अपने भक्तों के पास रिद्धि-सिद्धि के साथ रहने आए गणपति संदेश देते हैं सांसारिक नश्वरता का. जो आया है वह जाएगा, मिलन है तो विछोह भी है. हर परिस्थिति में अविचलित रहते हुए जीवन को मोह-माया की परिभाषा समझनी चाहिए. मनुष्य माटी का पुतला है. स्वयं माटी के रुप में जीवंत हो भगवान उसकी आस्था को परखते हैं और बताते हैं कि आना और जाना ही सत्य है.
सृष्टिकर्ता के रुप को अपने भावों की तूलिका के अनुसार भक्त अनेक प्रकार की आकृति देने की कोशिश भी करते हैं. कोई घास से, कोई फलफूल से, कोई मेवों से, कोई पत्तों से, और भी असंख्य प्रकारों से. अद्भुत होता है हर रुप धरती के मानव की कलाकारी का और गणपति की आकृति का. असाधारण गणेश साधारण से साधारण आकृति में सहज रुप में समाहित हो जाते हैं और भक्तों की आस्था का संबल बन जाते हैं. कोई घर, कोई मंदिर नहीं जहां गणेश अपने भक्तों के निकट ना होते हों. उनके बिना भक्त एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाते हैं. उनका नाम लेकर अपनी दिनचर्या शुरु करते हैं और हर कार्य से पहले श्री गणेशाय नमः का उच्चारण करते हैं. ऐसे दिव्य देव की आरती सहर्ष उतारते हुए गणेश जी के सम्मान में उनके जीवन का गुणगान करके भक्त अपने को कृतार्थ मानते हैं. सभी भक्त गणेश जी के आशीर्वाद की छाया में जीवन को रिद्धि-सिद्धि से भरकर अपने घर आंगन को, अपनी झोली को यूं ही खुशहाली से भरते रहें, गणेश भगवान का ध्यान, गुणगान करते रहें।
समसामयिक विषयों पर लेखन. शिक्षा, साहित्य और सामाजिक मामलों में खास दिलचस्पी. कविता-कहानियां भी लिखती हैं.
और भी पढ़ें