शिक्षा जीवन का अनिवार्य अंग है और शिक्षित होना एक बच्चे का मौलिक अधिकार है. शिक्षा ऐसी हो जो ज्ञान के द्वार खोलती हो. बच्चों की शिक्षा के प्रति हर युग में, हर काल में, माता-पिता आरंभ से ही जागरुक रहे हैं. चरित्र का सर्वांगीण विकास हो इस हेतु पठन-पाठन के अतिरिक्त अन्य कलाओं में भी अपने बच्चों को पारंगत देखना चाहते हैं. प्राचीन काल में बच्चे प्रकृति की गोद में गुरु, ऋषि-मुनियों के आश्रम में शिक्षा ग्रहण करते थे जो उन्हें सभी विद्याओं और कलाओं में निपुण बनाते थे. गुरुकुल, स्कूलों, पाठशालाओं में बच्चे अपने मन की अभिरुचि के अनुसार अपना मार्ग सुनिश्चित करते थे. वर्तमान समय में विद्यालयों के अतिरिक्त पढ़ने के लिए मदरसे भी हैं, जहां अधिकांशतः मुस्लिम बच्चे ही शिक्षा पाते हैं.
आज अवैध मदरसों पर सरकार की नजर है, जिनके सर्वेक्षण की बात हो रही है. इस बात पर कुछ लोगों में रोष भी है कि मदरसों को शक के दायरे में क्यों रखा जा रहा है. इसका कारण भी है, अवैध मदरसों का कोई स्पष्ट विवरण दृष्टिगोचर नहीं होता है. इन अवैध मदरसों की तुलना विद्यालयों से की जाती है कि वहां का भी सर्वेक्षण हो जबकि वहां का हर पहलू पूर्ण रुप से पारदर्शी है. विद्यालय में सभी धर्म व जाति के बच्चे बिना किसी भेदभाव के पढ़ते हैं, जिनकी स्पष्ट जानकारी सरकार को होती है.
मदरसों के संदर्भ में एक प्रश्न काफी जटिल है कि अवैध मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को क्या जेहादी पढ़ाई कराई जा रही है? क्या किसी अन्य तरह के ज्ञान से वे वंचित ही रह जाएंगे? कुछ मुस्लिम अपने पक्ष में कहते हैं कि मदरसे को धर्म से ना जोड़ा जाए. बच्चे मदरसों में शिक्षा प्राप्त करके आत्मनिर्भर बनते हैं. मदरसों के सर्वेक्षण पर कुछ व्यक्ति काफी बोलने, सोचने व उग्र व्यवहार करने पर आमदा हो गए हैं. मदरसों के मूल्यांकन के लिए वे तैयार ही नहीं हैं, पारदर्शिता की परिभाषा समझना ही नहीं चाहते हैं. मुस्लिम पक्ष के कुछ व्यक्ति विरोध में हो गए हैं. उनके तर्क हैं कि मदरसों से शिक्षा प्राप्त करके भी बच्चे इंजीनियर, डॉक्टर बनते हैं जबकि बात अवैध मदरसों की है. आरोप हैं कि अवैध मदरसों में अन्य विषयों की पढ़ाई नहीं कराई जा रही है. ऐसे में सरकार को यह जानने का हक है कि अवैध मदरसों में शिक्षा किस आधार पर दी जा रही है? क्या हो रहा है? बच्चे क्या पढ़ रहे हैं?
विचारणीय है, मान्यता प्राप्त विद्यालय ही शिक्षा का आधार स्तंभ हैं, जब कि देश में इस समय 8496 मदरसे गैर मान्यता प्राप्त हैं, जिनके ही सर्वेक्षण की बात हो रही है. मदरसों के सर्वेक्षण पर सभी विद्यालयों और यूनिवर्सिटियों के भी सर्वेक्षण का भी प्रश्न उठ रहा है तो यह तो सर्वविदित ही है कि मान्यता प्राप्त सभी विद्यालयों और यूनिवर्सिटीज का समय-समय पर सर्वेक्षण होता रहता है. तभी तो सही जानकारियां सामने आती हैं कि छात्रों की कितनी संख्या है, कितनी फीस है, कौन संचालक है, कितने शिक्षक हैं, शिक्षा का क्या प्रारुप है, उन्हें वेतन किस प्रकार और कहां से मिलता है? सभी की संपूर्ण जानकारियां सरकार के पास होती हैं पर अवैध मदरसों के विषय में असमंजस है. इसीलिए मदरसों के प्रति सरकार जागरुक हुई है क्योंकि मदरसे भी तो इसी देश की शैक्षणिक संस्था हैं.
शिक्षा ग्रहण करने के लिए मजहब को दृष्टि में रखा ही नहीं जाता. मदरसों को चलाने वालों को सरकार का सही नजरिया समझकर अपने बच्चों के हित में सरकार की मंशा का स्वागत करना चाहिए. सरकार को जानने का अधिकार है कि विभिन्न बोर्डों के अनुसार मदरसा बोर्ड का भी रिकार्ड रखा जा सके. देश का मुसलमान शिक्षित, प्रतिष्ठित व सम्मानित है जो देश की भावनाओं की कद्र करना जानता है. हर विद्यालय के छात्र-छात्राएं मजहबी तालिम नहीं प्राप्त करते.
किसी भी धर्म जाति की तरह मुस्लिम समाज के युवा भी देश के उच्च पदों पर आसीन हैं. गौर करने की बात है कि अवैध मदरसों की है कि वहां बच्चे क्या पढ़ते हैं. वह अपने अध्यापक से क्या सीख रहे हैं? मदरसों की स्वच्छ छवि के लिए स्पष्टता तो बहुत जरुरी है. अब जब यह प्रश्न उभरकर आया है तो स्पष्ट व संतोषजनक उत्तर भी मिलना ही चाहिए. मदरसों की शिक्षा शक का कारण बन रही है, इस हेतु स्पष्टीकरण जरुरी है. बच्चों के हित में चलने वाले देश के स्कूल, विद्यालय, शाखाएं अपने पारदर्शी रुप में संचालित हैं जहां सरकार के संज्ञान में सब कुछ है. यदि इन अवैध मदरसों में भी बच्चों व देश के हित में शिक्षा दी जा रही है तो सर्वे से इंकार क्यों? संदिग्ध कोई भी संस्था किसी को भी चलाने का अधिकार नहीं है.
मदरसों को धर्म से जोड़कर देखा जाता है जबकि हर विद्यालय में सभी वर्ग के बच्चे पूर्ण सौहार्द्र और भाईचारे के साथ पढ़ते हैं. जहां शिक्षक भी उनमें कभी अंतर नहीं करते, समान व्यवहार, पहनावा और शिक्षा उनके व्यक्तित्व को निखारती है. मान्यता प्राप्त मदरसों में भी सभी विषयों के साथ कम्प्यूटर आदि की भी शिक्षा दी जाती है. सर्वेक्षण तो गैर मान्यता प्राप्त मदरसों का है. इसलिए विरोध के स्वर बंद होने चाहिए. इसलिए मजहब को आधार ना बनाकर बदलते युग के अनुसार बच्चों का विकास हो. इस विषय पर सोचने की आवश्यकता है और सरकार के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने की अनिवार्यता है.
समसामयिक विषयों पर लेखन. शिक्षा, साहित्य और सामाजिक मामलों में खास दिलचस्पी. कविता-कहानियां भी लिखती हैं.
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